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ओरांस (Orans): राजस्थान के पवित्र उपवन

Lokesh Pal March 08, 2024 06:11 107 0

संदर्भ

हाल ही में राजस्थान सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर ओरण(Orans) को डीम्ड वन (Deemed Forest) घोषित कर दिया, जिससे समुदाय के निवासियों में वन उपज एवं आजीविका तक पहुँच खोने का डर पैदा हो गया।

संबंधित तथ्य

  • डीम्ड वनों की स्थिति: उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार ओरण, देव-वन (Dev-vans) एवं रूंधों (Rundhs) की वन भूमि को वन माना जाएगा।
  • वर्ष 1996 का टी.एन. गोदावर्मन (TN Godavarman) मामला: वर्ष 1996 में टी.एन. गोदावर्मन मामले में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों को ऐसी भूमि की पहचान करने का निर्देश दिया एवं कहा कि डीम्ड वनों सहित सभी वन‘, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत कवर किए जाएँगे।
  • गैर-वानिकी गतिविधियों पर प्रतिबंध: धारा 2 के तहत प्रावधान केंद्र सरकार की अनुमति के बिना ऐसी वन भूमि पर खनन, वनों की कटाई, उत्खनन या बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के निर्माण जैसी गैर-वानिकी गतिविधियों पर रोक लगाते हैं।

ओरण (Oran) के बारे में

  • समुदाय द्वारा संरक्षित पवित्र स्थान: ओरण, समुदाय द्वारा संरक्षित पवित्र स्थान हैं, जो जैव विविधता से समृद्ध हैं एवं इसमें आमतौर पर एक जल निकाय शामिल होता है।
  • स्थानीय लोग ओरण को पवित्र उपवन मानते हैं, यानी धार्मिक कारणों से एक निश्चित समुदाय द्वारा संरक्षित प्राकृतिक वनस्पति का एक क्लस्टर है।
    • ओरण के साथ आध्यात्मिक एवं धार्मिक संबंधों के कारण उन्हें पेड़ों को काटने तथा गिराने से रोक दिया गया है।
  • पशुधन चराई: ओरण अपने पशुओं को चराने के लिए उपयोग करते हैं एवं सामुदायिक सभाओं, त्योहारों तथा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के लिए भी स्थान हैं।
  • पर्यावास: वे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) के अंतिम प्राकृतिक आवासों में से हैं।
  • ओरण के संबंध में चिंताएँ: ओरण को बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत करने से जैव विविधता का नुकसान हो रहा है तथा क्षेत्र में स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही है, क्योंकि सौर संयंत्र स्थापित करने के लिए भूमि का बड़ा हिस्सा आवंटित किया गया है।
    • भूमि का खुला हिस्सा, जो लंबे समय तक सूर्य की रोशनी एवं तेज हवाओं को प्राप्त करता है, जिससे यह पवन चक्कियों तथा सौर फोटोवोल्टिक के साथ हरित ऊर्जा का केंद्र बन गया है।

डीम्ड वन (Deemed Forest) क्या है?

  • डीम्ड वन उन वन क्षेत्रों को संदर्भित करते हैं, जिन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड में केंद्रीय या राज्य अधिकारियों द्वारा औपचारिक रूप से वन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।

यदि ओरण को डीम्ड वन घोषित किया जाता है तो क्या चुनौतियाँ होंगी?

  • वन उपज से वंचित: समुदायों का मानना ​​है कि एक बार जब ओरण को डीम्ड वन घोषित कर दिया जाता है, तो वे वन उपज एवं वन क्षेत्र में भेड़ों के झुंडों एवं अन्य पशुओं की पहुँच से वंचित हो जाएँगे।
    • ग्रामीण अपनी आजीविका एवं दैनिक उपयोग के लिए ओरणों से प्राप्त गोंद, लकड़ी, वन उपज तथा जंगली सब्जियों का उपयोग करते हैं।
  • भूमि खाली करना: यहाँ तक ​​कि पूजा स्थल, अंतिम संस्कार एवं धार्मिक कार्यक्रम भी ओरण के अंदर होते हैं तथा पेड़ों, जल निकायों एवं पवित्र उपवनों की अन्य संस्थाओं से संबंधित हैं।
  • लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध: ओरण भूमि एवं पड़ोसी गाँव आपस में जुड़े हुए हैं तथा घूमने-फिरने के लिए उपयोग किए जाते हैं, इसलिए जंगलों में प्रतिबंध से आवाजाही पर असर पड़ेगा।
  • गैर-वन क्षेत्र: ओरण भूमि मुख्यतः रेगिस्तानी क्षेत्रों में आती है, अतः वन का शब्दकोषीय अर्थ लागू नहीं होता। इसलिए, यदि वर्ष 1996 के गोदावर्मन मामले को लागू किया जाए तो भूमि का उपयोग जंगल की परिभाषा के विपरीत है।
  • स्थानीय समुदाय से कोई परामर्श नहीं: सरकार की ओर से किसी भी प्रतिनिधि ने परामर्श या सुनवाई के लिए समुदाय के सदस्यों से संपर्क नहीं किया।

पवित्र उपवन (Sacred Groves) क्या हैं?

पवित्र उपवन धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व के लिए पारंपरिक रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा संरक्षित पेड़ों के छोटे-छोटे क्लस्टर हैं।

पवित्र उपवनों का महत्त्व

  • प्रकृति का संरक्षण: यह मृदा संरक्षण एवं मृदा क्षरण को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
  • प्राकृतिक आपदाओं को कम करना: पवित्र उपवन प्राकृतिक वायु अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं, आस-पास की बस्तियों एवं कृषि भूमि को प्रचंड हवाओं से बचाते हैं तथा तूफान से होने वाली क्षति को कम करते हैं।

पवित्र उपवनों के लिए अलग-अलग नाम

  • बिहार में सरना (Sarna)
  • हिमाचल प्रदेश में देव वन (Dev Van)
  • कर्नाटक में देवराकाडु (Devarakadu)
  • केरल में कावु (Kavu)
  • मध्य प्रदेश में देव (Dev)
  • महाराष्ट्र में देवराहती या देवराय (Devarahati or Devarai)
  • मणिपुर में लाई उमंग (Lai Umang)
  • मेघालय में लॉ किंतांग (Law Kyntang) या असोंग खोसी (Asong Khosi) 
  • राजस्थान में ओरण (Oran)
  • तमिलनाडु में कोविल कडु (Kovil Kadu) या सर्पा कावु (Sarpa Kavu)

  • जैव विविधता संरक्षण: उनमें उच्च स्तर की जैव विविधता होती है क्योंकि वे मानवीय हस्तक्षेप से सुरक्षित होते हैं। यह उन्हें आवास की तलाश करने वाली दुर्लभ एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • धार्मिक महत्त्व: वे एक विशेष देवता या आत्मा को समर्पित हैं। उन्हें ऐसे प्राणियों के निवास स्थान के रूप में देखा जाता है एवं एक ऐसे स्थान के रूप में भी देखा जाता है जहाँ मनुष्य परमात्मा से जुड़ सकते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय परंपराओं एवं मान्यताओं का अभिन्न अंग, पवित्र उपवन अनुष्ठानों, कहानियों तथा पैतृक ज्ञान के कनेक्शन के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करते हैं, सामुदायिक पहचान एवं गौरव को बढ़ावा देते हैं।

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