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गांधी-टैगोर की असहमति के बावजूद दोस्ती की कहानी

Lokesh Pal March 11, 2024 05:15 106 0

संदर्भ:

मोहनदास करमचंद गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के बीच स्थायी मित्रता थी, जो वर्ष 1914-15 से 1941 में उनके निधन तक चली।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी और टैगोर का योगदान, गांधी और टैगोर के साहित्यिक कार्य।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान-महत्वपूर्ण घटनाओं, व्यक्तित्वों और मुद्दों तक का आधुनिक भारतीय इतिहास।

टैगोर और गांधी की मुलाकात:

  • पहली मुलाकात: गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 6 मार्च, 1915 को पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में टैगोर से गाँधी जी की प्रथम मुलाकात हुई थी ।
  • बैठक की व्यवस्था: इस मुलाकात की व्यवस्था एक ब्रिटिश समाज सुधारक और दोनों के एक साझा मित्र सी. एफ. एंड्रयूज द्वारा की गयी थी ।

शांतिनिकेतन:

  • वर्ष 1901 में प्रतिष्ठापित, शांतिनिकेतन की स्थापना टैगोर द्वारा एक आवासीय विद्यालय और कला केंद्र के रूप में की गयी  थी।
  • यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में इसके विवरण के अनुसार, यह “प्राचीन भारतीय परंपराओं और धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता की एकता के दृष्टिकोण पर आधारित था”।


  • टैगोर की सफलता:
    • साहित्य में नोबेल पुरस्कार: टैगोर को वर्ष 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
    • वह नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे और पश्चिम में उनकी बहुत लोकप्रियता थी।

गांधी पुण्यहा दिन’:

  • उन दोनों की मुलाकात की स्मृति में शांतिनिकेतन में प्रति वर्ष 10 मार्च को ‘गांधी पुण्य दिवस’ मनाया जाता  है।
  • इस दिन, स्कूल के कामकाजी कर्मचारियों (चौकीदार, माली, रसोइया, आदि) को एक दिन की छुट्टी मिलती है, जबकि छात्र और शिक्षक कार्य करते हैं: आत्मनिर्भरता पर गांधी की शिक्षाओं के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में

  • टैगोर गांधी से परिचित थे: वर्ष 1901 में, गांधी जी टैगोर के बड़े भाई ज्योतिरींद्रनाथ से मिले थे और इस मुलाकात के बारे में गांधी द्वारा लिखा गया एक लेख टैगोर परिवार की पत्रिका ‘भारती’ में प्रकाशित हुआ था।

गाँधी एवं टैगोर के मध्य समानताएँ:

  • अहिंसा: टैगोर और गांधी दोनों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध की वकालत की और शांतिपूर्ण विरोध की शक्ति में विश्वास किया।
  • आध्यात्मिकता: टैगोर और गांधी अत्यधिक आध्यात्मिक थे और उन्होंने आंतरिक शांति और आत्म-बोध के महत्व पर जोर देते हुए भारतीय दार्शनिक परंपराओं से प्रेरणा ली।
  • शिक्षा: दोनों नेताओं द्वारा व्यक्तियों और समाज के विकास में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया गया, हालांकि शिक्षा के प्रति उनके दृष्टिकोण निम्नलिखित तरीकों से भिन्न थे: 
    • व्यावहारिक बनाम सौंदर्य: गांधी ने शारीरिक श्रम के माध्यम से व्यावहारिक आत्मनिर्भरता पर जोर दिया था, जबकि टैगोर का दृष्टिकोण अधिक सौंदर्यवादी था और उन्होंने कलात्मक और रचनात्मक अभिव्यक्ति पर ज्यादा जोर दिया ।
    • नैतिक शिक्षा बनाम समग्र विकास: गांधी ने अपने शैक्षिक दर्शन के मूल के रूप में नैतिकता और नैतिक शिक्षा पर जोर दिया, जबकि टैगोर ने रचनात्मकता पर जोर देने के साथ बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास सहित समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया।
    • राष्ट्रीय बनाम अंतर्राष्ट्रीय: गांधी की शिक्षा के संबंध में दृष्टि गहरी राष्ट्रवादी थी, जिसका लक्ष्य भारतीयों को उनके सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ में सशक्त बनाना था। 
      • टैगोर ने भारतीय संस्कृति को महत्व देते हुए वैश्विक नागरिकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूर्वी और पश्चिमी दर्शन को एकीकृत करने की भी माँग की।
    • पश्चिमी सभ्यता की आलोचना: टैगोर और गांधी पश्चिमी सभ्यता की भौतिकवादी और औद्योगिक प्रकृति के आलोचक थे एवं उनका मानना ​​था कि इस प्रवृति का व्यक्तियों और समाजों पर अमानवीय प्रभाव पड़ता है।

दोनों के मध्य असहमति का एक उदाहरण: वर्ष 1934 में बिहार में आए भीषण भूकंप के बाद, गांधी ने इसे हरिजनों के खिलाफ ऊंची जातियों द्वारा किए गए कथित गलतियों के लिए “ईश्वरीय दंड” बताया था, लेकिन टैगोर इन विचारों से सहमत नहीं थे I

गाँधी एवं टैगोर के मध्य भिन्नता:

  • राष्ट्रवाद: जबकि गांधी भारतीय राष्ट्रवाद और एकजुट भारत के विचार के प्रबल समर्थक थे, वहीं टैगोर राष्ट्रवाद को लेकर अधिक सतर्क थे एवं उनका मानना ​​था कि इससे बहिष्कार और विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • स्वतंत्रता के संबंध में दृष्टिकोण: गांधी ने राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जबकि टैगोर ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के साधन के रूप में सांस्कृतिक और बौद्धिक जागृति पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।
  • आधुनिकीकरण के संबंध में विचार: टैगोर आधुनिकीकरण के विचार के प्रति अधिक खुले थे और उनका मानना ​​था कि पश्चिमी विचारों और प्रौद्योगिकियों को चुनिंदा रूप से अपनाने से भारत को लाभ हो सकता है। गांधी आधुनिकीकरण के ज्यादा आलोचक थे और जीवन के पारंपरिक भारतीय तरीकों के वापसी की वकालत करते थे।
  • अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: टैगोर का दृष्टिकोण अधिक वैश्विक था और वे सार्वभौमिक मानवतावाद के विचार में विश्वास करते थे, जिसमें सभी लोगों के परस्पर जुड़ाव पर जोर दिया गया था। हालांकि गांधीजी का भी वैश्विक प्रभाव था, लेकिन उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के विशिष्ट संदर्भ पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।

निष्कर्ष: फिर भी, सार्वजनिक मुद्दों पर आपसी मतभेदों के बावजूद गांधी और टैगोर ने एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान बनाए रखा।

  • टैगोर ने 1915 की शुरुआत में गांधी को “महात्मा” (महान आत्मा) कहा था। इस बीच, गांधी ने टैगोर को “गुरुदेव” (शिक्षक) का अभिवादन दिया था ।

News Source: Indian Express

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