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भारतीय शहरों में भूजल संकट

Lokesh Pal March 12, 2024 05:39 110 0

संदर्भ

दक्षिण भारत में बेंगलूरु शहर लंबे समय से सूखे के कारण गंभीर जल संकट (Water Crisis) का सामना कर रहा है।

संबंधित तथ्य

  • सिंचाई पर प्रभाव: जल संकट के कारण पेयजल आपूर्ति के साथ-साथ सिंचाई पर भी असर पड़ा है। बेंगलूरु के 14,700 बोरवेल में से 6,997 सूख गए हैं।
  • डे जीरो का जोखिम: बृहत् बेंगलूरु महानगर पालिका  (BBMP) के अंतर्गत लगभग 30 इलाकों में प्रत्येक दूसरे दिन बारी-बारी से जल आपूर्ति हो रही है।
    • विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि बेंगलूरु को वर्ष 2018 में केप टाउन की डे जीरो जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस संकट के मद्देनजर मानसून आने में अभी भी लगभग सौ दिन शेष हैं।
    • डे जीरो उस बिंदु को संदर्भित करता है, जिस दिन केप टाउन की नगरपालिका द्वारा जल आपूर्ति बंद कर दी जाती है।
  • झीलों का विलुप्त होना: कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (KSPCB) के आँकड़ों के अनुसार, बेंगलूरु की लगभग 90 प्रतिशत झीलें आसन्न विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं।
    • बेंगलूरु शहर से कई झीलें विलुप्त हो चुकी हैं, जो जलभृतों को फिर से जल से भर दिया करती थीं। वर्ष 1961 में बेंगलूरु में 262 झीलें थीं। आज यह संख्या मात्र 81 है।
    • जैविक प्रदूषण के कारण झीलों के जल में घुलित ऑक्सीजन का स्तर 4 मिलीग्राम/लीटर की वांछित सीमा से कम हो गया है।
  • भारतीय शहरों में बढ़ता जल संकट: शहरीकरण में निरंतर वृद्धि एवं उच्च शहरी जनसंख्या वृद्धि के कारण भारतीय शहरों में जल वितरण कठिन होता जा रहा है। ये चुनौतियाँ जल संसाधनों की उपलब्धता, गुणवत्ता एवं स्थिरता को प्रभावित करती हैं।

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI)

  • यह सूचकांक नौ व्यापक क्षेत्रों और 28 संकेतकों पर राज्यों का मूल्यांकन करता है, जिसमें भूजल, सिंचाई, कृषि पद्धतियाँ एवं पेयजल शामिल हैं।
  • इसे नीति आयोग द्वारा लॉन्च किया गया है।

भारतीय शहरों में जल संकट की स्थिति

  • जल संकट की सीमा: नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) रिपोर्ट 2018 के अनुसार, लगभग 600 मिलियन भारतीय उच्च से अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं।

  • प्रभाव एवं प्रक्षेपण
    • NITI आयोग के अनुसार, स्वच्छ जल की कमी के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 2,00,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
    • इसमें अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक जल की उपलब्धता घटकर प्रभावी माँग की आधी रह जाने से संकट और बढ़ जाएगा।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 97 मिलियन भारतीयों के पास वर्तमान में  स्वच्छ जल तक पहुँच नहीं है, जो इस संदर्भ में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • इसके अलावा, भारत में जल की कमी और भी बदतर होने की आशंका है क्योंकि वर्ष 2050 तक कुल जनसंख्या बढ़कर 1.6 बिलियन हो जाने की उम्मीद है।
    • यदि शमन उपाय लागू नहीं किए गए, तो भारत को वर्ष 2050 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6% की हानि का सामना करना पड़ेगा।
  • जल संदूषण: लगभग 70% जल प्रदूषित होने के कारण, भारत वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर है।
    • लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट, WWF 2020 के अनुसार, वर्ष 2050 तक कम-से-कम 30 भारतीय शहरों को गंभीर जल जोखिम का सामना करना पड़ेगा।
  • प्रति व्यक्ति उपलब्धता: देश भर में बारह नदी घाटियों में रहने वाले भारत के लगभग 820 मिलियन लोगों के पास प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1000m3 के करीब या उससे कम है।
  • गंगा  नदी के जल स्तर में गिरावट: एक अध्ययन के अनुसार, पिछली कुछ ग्रीष्म ऋतुओं में गंगा के कई निचले इलाकों में जल का स्तर अभूतपूर्व रूप से कम हुआ है।

जल संकट का प्रभाव

  • विश्वसनीय जल आपूर्ति का अभाव: भारत के तीन-चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास पीने योग्य जल तक पहुँच नहीं है तथा उन्हें जल के असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • 163 मिलियन भारतीयों को स्वच्छ पेयजल तक पहुँच नहीं है।
    • 210 मिलियन भारतीयों के पास बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है।
    • 21% संचारी रोग असुरक्षित जल से जुड़े हैं।
    • भारत में प्रत्येक दिन पाँच वर्ष से कम उम्र के 500 बच्चों की डायरिया से मृत्यु हो जाती है।
  • कृषि पर प्रभाव: जल की उपलब्धता कम होने से कृषि पर असर पड़ता है, जिससे फसल की पैदावार कम होती है एवं खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: भारत में जन समुदाय स्वच्छता एवं साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देता है, जिसके परिणामस्वरूप जलजनित बीमारियाँ होती हैं।
    • लैंसेट अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में लगभग पाँच लाख मौतें जल प्रदूषण के कारण हुईं थी।
  • समुदायों के बीच संघर्ष: विभिन्न क्षेत्रों एवं समुदायों के बीच जल संसाधनों को लेकर संघर्ष उत्पन्न होते हैं।

जल संकट के पीछे कारण

  • अनियोजित शहरीकरण: अनियोजित शहरीकरण के परिणामस्वरूप शहरों का विस्तार असंतुलित तरीके से हुआ है, जिससे भारतीय शहरों की स्थानीय पारिस्थितिकी, जल विज्ञान एवं पर्यावरण बाधित हो गया है।
    • उदाहरण के लिए, बेंगलूरु में, मुख्य सीवर एवं जल प्रणाली के माध्यम से जल निकायों में अपशिष्टों के निर्वहन से सतह एवं भूजल दोनों जल स्रोतों में प्रदूषण उत्पन्न हुआ है।
  • जल निकायों का अतिक्रमण: झीलों एवं जल निकायों को रियल एस्टेट क्षेत्र द्वारा आवास विकास के लिए प्रयोग किया गया है।
    • कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (KSPCB) के अनुसार, बेंगलूरु की लगभग 90 प्रतिशत झीलें विलुप्त होने के कगार पर हैं।
  • ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर का नुकसान: जल निकायों एवं पार्कों तथा ग्रीन क्षेत्रों के सिकुड़ने से जल निस्पंदन की दर में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा जल संचयन एवं संग्रहण विधियों का महत्त्वपूर्ण रूप से कम उपयोग हुआ है।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन: सतही जल संसाधनों के बावजूद, भारत दैनिक जीवन के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भर है।
    • हरित क्रांति को बढ़ावा देने के लिए भूजल के एक बड़े हिस्से का उपयोग हुआ है। 20 मिलियन से अधिक कुएँ, जो अक्सर सब्सिडी वाली बिजली से संचालित होते हैं, ने भूजल स्तर को कम करने में योगदान दिया है।
    • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय  (PAU) के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1998 से 2018 तक पंजाब के 22 जिलों में से 18 में प्रत्येक वर्ष भूजल में एक मीटर से अधिक की गिरावट आई है।
  • उप-इष्टतम रोपण पैटर्न (Sub-Optimal Planting Patterns): गन्ना एवं धान जैसी जल की खपत करने वाली फसलें महाराष्ट्र एवं पंजाब जैसे राज्यों में उगाई जा रही हैं।
    • जल का अत्यधिक उपयोग होने के बावजूद, महाराष्ट्र देश में कुल गन्ना उत्पादन का 22 प्रतिशत उगाता है।
    • इसी प्रकार, पंजाब में धान की सिंचाई के लिए 80 प्रतिशत जल के लिए भूजल स्रोतों का उपयोग किया जाता है।
    • पश्चिमी घाट के निचले हिस्से में जहाँ वर्षा कम होती है, किसान गन्ना उगा रहे हैं, जो जल की अधिक खपत वाली फसल है। परिणामस्वरूप, खेती योग्य भूमि का एक छोटा-सा हिस्सा राज्य की कुल सिंचाई का एक बड़ा भाग उपयोग कर लेता है।
  • आभासी जल हानि: कृषि जिंसों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार जल-गहन फसलों के निर्यात के कारण बड़ी मात्रा में आभासी जल हानि में योगदान देता है।
  • खराब भंडारण क्षमता: भारत में प्रति व्यक्ति जल भंडारण क्षमता लगभग 209 m3 है, जो ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य देशों (3223 m3) की तुलना में कम है।
  • जल संसाधन और जनसंख्या के बीच गंभीर असंतुलन: वैश्विक आबादी का 18% हिस्सा रहने के बावजूद, भारत के पास दुनिया के केवल 4% जल संसाधनों तक पहुँच है।

भूजल संरक्षण हेतु सरकारी पहल

  • जल जीवन मिशन  (Jal Jeevan Mission- JJM): इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल का जल कनेक्शन प्रदान करना है।
  • अटल भूजल योजना: इस योजना का मुख्य उद्देश्य चिह्नित राज्यों में चुनिंदा जल संकट वाले क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करना है।
  • अमृत ​​सरोवर योजना: इस मिशन का लक्ष्य देश के प्रत्येक जिले में 75 अमृत सरोवर (तालाब) का विकास/पुनरुद्धार करना है, जिससे देश में कुल मिलाकर लगभग 50,000 अमृत सरोवर होंगे।
  • जल शक्ति अभियान (JSA): यह जल संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन पर जागरूकता पैदा करने के लिए एक जल संरक्षण अभियान है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS): इसमें प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (NRM) घटक के तहत गतिविधियों में से एक के रूप में जल संरक्षण एवं जल संचयन संरचनाएँ शामिल हैं।

आगे की राह

  • विश्व बैंक की जल की कमी वाले शहरों की पहल: यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लचीलापन अपनाकर जल की कमी वाले शहरों में जल संसाधनों के प्रबंधन एवं सेवा वितरण के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहता है।
  • राष्ट्रीय जल परिषद (NWC): राष्ट्रीय स्तर के समाधान के लिए GST की तर्ज पर NWC का गठन करना सबसे उपयुक्त होगा। इसके तीन मुख्य उद्देश्य होने चाहिए-
    • अप्रतिबंधित भूजल दोहन को रोकना: इसमें सिंचाई पंपों के लिए मुफ्त बिजली प्रदान करने की प्रथा को संबोधित करने की आवश्यकता शामिल होगी, क्योंकि पूरी तरह से मुफ्त प्रदान की गई किसी भी सेवा का दुरुपयोग होना तय है।
    • वाटरशेड और नदी बेसिन के नजरिए से मूल्यांकन: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जल प्रबंधन के लिए जिम्मेदार सभी संस्थान वाटरशेड एवं नदी बेसिन के आधार पर आकलन करें।
      • वर्तमान में, प्रत्येक राज्य में नदी के प्रवाह को अपनी भौगोलिक सीमाओं के भीतर देखने की प्रवृत्ति है एवं सतही जल और भूजल के लिए उनकी अलग-अलग जिम्मेदारियाँ हैं।
    • फसल पैटर्न को पुनः व्यवस्थित करना: अधिशेष जल वाले क्षेत्रों में जल-गहन फसलों एवं जल तनाव वाले क्षेत्रों में कम जल-गहन फसलों को प्रोत्साहित करके जल संकट का सामना किया जा सकता है।

गुजरात की जलसंभर प्रबंधन परियोजना 

  • परिचय: इस परियोजना का प्रबंधन पाँच स्तरीय प्राधिकरण प्रणाली द्वारा किया जाता है, जिसमें सूखाग्रस्त गुजरात में दीर्घकालिक टिकाऊ समाधान निकालने के लिए सभी हितधारक (केंद्र, राज्य, जिला, उद्योग तथा ग्रामीण) शामिल हैं।
  • परियोजना की सफलता के कारण: सहयोगात्मक प्रयास जिसमें सरकारी विभाग, अनुसंधान संस्थान एवं गैर-सरकारी संगठन शामिल थे।

  • सूक्ष्म सिंचाई को प्रोत्साहन: सूक्ष्म सिंचाई की आवश्यकता न केवल प्रारंभिक सब्सिडी के संदर्भ में है, बल्कि ऐसी प्रथाओं को अपनाने वाले किसानों से खरीद में भी संबंधित है। धीरे-धीरे, राज्य विशिष्ट फसलों के लिए सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग को अनिवार्य कर सकते हैं।
    • भारत में लगभग 69.5 मिलियन हेक्टेयर को सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत लाने की क्षमता है, लेकिन अभी तक केवल 7.73 मिलियन हेक्टेयर को ही सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत कवर किया गया है।
  • सूक्ष्म सिंचाई प्रबंधन का विकेंद्रीकरण: सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के मामले में, खेतों तक कुशलतापूर्वक जल पहुँचाने की क्षमता में कमी है। इसे केवल अंतिम उपयोगकर्ताओं के समर्थन एवं भागीदारी से ही बेहतर बनाया जा सकता है।
    • ऐसा ढाँचा जो सूक्ष्म सिंचाई प्रबंधन को FPO या जल उपयोगकर्ता संघों तक विकेंद्रीकृत करता है, अधिक प्रभावी होगा।
  • वर्षा जल भंडारण: भारत स्वाभाविक रूप से जल की कमी वाला देश नहीं है क्योंकि इसे मानसूनी वर्षा एवं हिमालयन बर्फ के माध्यम से सालाना लगभग 2,600 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) जल प्राप्त होता है।
    • हालाँकि, केवल लगभग 258 BCM (या दसवें से कम) ही संभावित रूप से उपलब्ध जल भंडारों में संगृहीत किया जा सकता है।
    • वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण के पारंपरिक मॉडल जैसे उपायों की आवश्यकता है।
  • भूजल की पूर्ति: भूजल स्तर में मौसमी उतार-चढ़ाव को संबोधित करने के लिए, मानसून के मौसम के दौरान उथले जलभृतों को वर्षा जल से भरने के लिए परती भूमि एवं हरे क्षेत्रों जैसे खुले स्थानों का उपयोग करना लाभकारी साबित हो सकता है।
  • इष्टतम जल मूल्य निर्धारण: एक अच्छे मूल्य निर्धारण मॉडल में उपयोगकर्ता की भुगतान करने की क्षमता के साथ-साथ जल की वास्तविक लागत दोनों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
    • वाटर रिस्क मोनेटाइजर (Water Risk Monetizer)  (इकोलैब, माइक्रोसॉफ्ट एवं ट्रूकोस्ट द्वारा विकसित एक वित्तीय उपकरण) जैसे वित्तीय उपकरण सरकारों और व्यवसायों को जल की उपलब्धता, अनुमानित जल के उपयोग, जल की वर्तमान कीमत और जल की गुणवत्ता जैसे विभिन्न कारकों को देखकर जल की सही लागत का आकलन करने का एक नया तरीका प्रदान करते हैं।
  • जल-सघन फसलों को विघटित करना: महाराष्ट्र में गन्ना एवं पंजाब तथा हरियाणा में चावल जैसी जल सघन फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए एवं उन्हें जल-समृद्ध पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
  • अन्य आवश्यक कदम
    • घरेलू सीवेज का पूर्ण उपचार सुनिश्चित करना।
    • वर्ष 1974 के जल अधिनियम के अनुसार, अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्टों का निर्वहन करने वाले उद्योगों परप्रदूषक भुगतानसिद्धांत लागू किया जाना चाहिए।

प्रत्येक वार्ड में देशज प्रजातियों के साथ 1-2 हेक्टेयर के छोटे जंगल का निर्माण करना एवं सीवेज नालों के सभी अतिक्रमणों को हटाकर झीलों के बीच अंतर-संपर्क को पुनः स्थापित किया जाना चाहिए।

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