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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का 19वाँ स्थापना दिवस

Lokesh Pal March 13, 2024 06:15 136 0

संदर्भ

12 मार्च, 2024 को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने नई दिल्ली में ‘इंडियन हैबिटेट सेंटर’ में अपना 19वाँ स्थापना दिवस मनाया।

संबंधित तथ्य

  • इस अवसर को चिह्नित करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से बच्चों को NCPCR केपरीक्षा पर्व अभियानमें उनके प्रयासों और भागीदारी को स्वीकार करने के लिए आमंत्रित किया गया।
    • परीक्षा पर्व अभियान का उद्देश्य नियोजित गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को परीक्षा के तनाव/चिंता से निपटने के बारे में अपने अनुभव, पैटर्न, दिनचर्या आदि को व्यक्त करने के लिए छोटे वीडियो संदेशों के माध्यम से प्रोत्साहित करना है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) 

  • परिचय
    • स्थिति: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) एक वैधानिक आयोग है।
    • स्थापना: इसकी स्थापना दिसंबर 2005 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम के माध्यम से की गई थी।
    • संबंधित मंत्रालय: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
    • अधिदेश: आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र बाल अधिकारों के अनुरूप हों, जो भारतीय संविधान और संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में उपलब्ध हैं।
    • आयोग द्वारा 18 वर्ष से कम आयु वालों को ‘बाल’ श्रेणी में रखा गया है।
  • आयोग के कार्य 
    • बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए मौजूदा सुरक्षा उपायों की जाँच और समीक्षा करना तथा उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।
    • इन सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता पर केंद्र सरकार को वार्षिक और अन्य अंतराल पर रिपोर्ट करना।
    • बाल अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना और उचित मामलों में कानूनी कार्यवाही की सिफारिश करना।
    • बाल अधिकारों से संबंधित मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और गतिविधियों की समीक्षा करें तथा उनके सुधार के लिए सिफारिशें करना।
    • बाल अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना।
    • प्रकाशनों, मीडिया और सेमिनारों जैसे विभिन्न माध्यमों से बाल अधिकारों और उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
    • किशोर गृह सहित उन संस्थानों का निरीक्षण करना, जहाँ बच्चों को हिरासत में लिया गया है या रहते हैं और यदि आवश्यक हो तो उपचारात्मक कार्रवाई की सिफारिश करना।
    • शिकायतों की जाँच करना और बाल अधिकारों के अभाव तथा उल्लंघन एवं बच्चों की सुरक्षा व विकास करने वाले कानूनों के गैर-कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लेना।
    • आयोग अधिकारों पर आधारित संदर्श की परिकल्पना करता है, जो राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों में परिलक्षित होता है।
    • इसके साथ राज्य, जिला और खंड स्तरों पर पारिभाषित प्रतिक्रियाएँ भी शामिल हैं, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्टता और सशक्तीकरण को भी ध्यान में रखा जाता है।
    • आयोग बालकों तथा उनकी कुशलता को सुनिश्चित करने के लिए राज्य हेतु एक अपरिहार्य भूमिका, सुदृढ़ संस्था-निर्माण प्रक्रियाओं, स्थानीय निकायों और समुदाय स्तर पर विकेंद्रीकरण के लिए सम्मान तथा इस दिशा में वृहद् सामाजिक चिंता की परिकल्पना करता है।
  • संरचना

सदस्य

पात्रता 

पदावधि 

अध्यक्ष प्रतिष्ठित व्यक्ति और बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट कार्य किया है। 3 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक।
6 सदस्य

 

नोट : कम-से-कम दो सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए।

निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रतिष्ठित व्यक्ति:

  • शिक्षा
  • बाल स्वास्थ्य, देखभाल, कल्याण या बाल विकास
  • किशोर न्याय या उपेक्षित या हाशिए पर पड़े बच्चों अथवा विकलांग बच्चों की देखभाल
  • बाल श्रम या संकटग्रस्त बच्चों का उन्मूलन
  • बाल मनोविज्ञान या समाजशास्त्र
  • बच्चों से संबंधित कानून
3 वर्ष या 60 वर्ष की आयु तक।

  • नियुक्ति
    • आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
    • अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश पर की जाती है।

बाल अधिकार से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-15: यह केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • लेकिन राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद-23 
    • यह मानव तस्करी और बलात् श्रम पर रोक लगाता है।
    • इस अनुच्छेद के तहत एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य, 1997 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बाल श्रम को अवैध ठहराया है।
  • अनुच्छेद-24: इसमें स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी कारखाने या खदान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक रोजगार में नहीं लगाया जाएगा।
  • 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 ने छह से चौदह वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने वाले मौलिक अधिकार के रूप में अनुच्छेद-21 (A) को शामिल किया है।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों एवं विशेष रूप से अनुच्छेद-39 (f) के तहत राज्य की यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि बच्चों के जीवन के विकास, उन्हें स्वतंत्रता एवं सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए अवसर और संसाधन प्रदान किए जाएँ।

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