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भारत में गरीबी आकलन के तरीकों पर पुनर्विचार

Lokesh Pal March 16, 2024 06:11 102 0

संदर्भ

अर्थशास्त्री सी. रंगराजन (C Rangarajan) और एस. महेंद्र देव (S Mahendra Dev) ने रंगराजन समिति (Rangarajan committee) द्वारा अनुशंसित गरीबी रेखा को अद्यतन करके नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES) के आधार पर भारत में गरीबी का अनुमान जारी किया है।

संबंधित तथ्य 

  • HCES सर्वेक्षण के आधार पर गरीबी का अनुमान: SBI रिसर्च और अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन के अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला और करण भसीन ने भी हाल ही में विभिन्न मापदंडों का उपयोग करते हुए नवीनतम HCES सर्वेक्षण के आधार पर अपने गरीबी अनुमान जारी किए हैं।
    • HCES रिपोर्ट 11 वर्ष बाद जारी की गई है।
  • गरीबी अनुमान पर विवाद: इससे गरीबी आकलन के लिए अपनाई जाने वाली पद्धतियों पर बहस छिड़ गई है।

घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 

(Household Consumption Expenditure Survey- HCES)

  • इसे परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खपत के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • HCES में एकत्र की गई जानकारी उपभोग और व्यय पैटर्न, जीवन स्तर और परिवारों के कल्याण संबंधी आँकड़ों को समझने के लिए उपयोगी है।

गिनी गुणांक (Gini coefficient) या गिनी सूचकांक (Gini index) 

  • गिनी गुणांक को इटैलियन सांख्यिकीविद् कोरेडो गिनी (Corrado Gini) ने विकसित किया था।
  • यह आय के वितरण की विषमता की माप की सबसे प्रचलित विधि है, जो आय के प्रत्येक युग्म के बीच आय अंतर की माप करती है।

  • यह वास्तविक लॅारेंज वक्र तथा निरपेक्ष रेखा के बीच का क्षेत्रफल तथा निरपेक्ष समता रेखा के नीचे के संपूर्ण क्षेत्र के बीच अनुपात प्रदर्शित करता है।
  • गिनी गुणांक का अधिकतम मूल्य 1 के बराबर होगा तथा न्यूनतम मूल्य शून्य के बराबर होगा।
  • गिनी गुणांक में यदि 100 से गुणा कर दें तो हम गिनी सूचकांक प्राप्त कर सकते हैं।

सी. रंगराजन और एस. महेंद्र देव द्वारा गरीबी अनुमान के मुख्य निष्कर्ष

  • गरीबी रेखा: उनके अनुसार, वर्ष 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा 1,837 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 2,603 रुपये है।
    • वर्ष 2011-12 में गरीबी रेखा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए क्रमशः 972 रुपये और 1,407 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह थी।
  • शहरी क्षेत्रों में अधिक महत्त्वपूर्ण गरीबी में गिरावट: पिछले दशक में प्रतिशत बिंदु के संदर्भ में गरीबी में गिरावट की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक थी।
    • इसका कारण सरकार की मुफ्त अनाज योजना हो सकती है, जो शहरी इलाकों में बेहतर काम करती है।

भारत में हालिया अन्य गरीबी अनुमान

  • एसबीआई अनुसंधान
    • गरीबी रेखा: एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा 1,622 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 1,929 रुपये आँकी गई है।
    • गरीबी में गिरावट: ग्रामीण गरीबी वर्ष 2011-12 में 25.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 7.2 प्रतिशत हो गई, जबकि इसी अवधि के दौरान शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत से कम होकर 4.6 प्रतिशत हो गई।
  • अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन के अर्थशास्त्री
    • शहरी और ग्रामीण असमानता में गिरावट: शहरी और ग्रामीण असमानता में गिरावट आई है। शहरी गिनी सूचकांक 36.7 से घटकर 31.9 हो गया और ग्रामीण गिनी सूचकांक 28.7 से घटकर 27.0 हो गया।
      • ग्रामीण गरीबी 2.5 प्रतिशत थी, जबकि शहरी गरीबी घटकर 1 प्रतिशत रह गई।
    • प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि: वर्ष 2011-12 के बाद से वास्तविक प्रति व्यक्ति खपत 2.9 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ी है, जिसमें ग्रामीण विकास 3.1 प्रतिशत है जो शहरी विकास 2.6 प्रतिशत से काफी अधिक है।
    • हेडकाउंट गरीबी अनुपात (Headcount Poverty Ratio- HCR) में गिरावट: हेडकाउंट गरीबी अनुपात (HRC), गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का अनुपात, वर्ष 2011-12 में 12.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 2 प्रतिशत हो गया है, जो प्रति वर्ष 0.93 प्रतिशत अंक के बराबर है।

भारत में गरीबी का आकलन

  • गरीबी: विश्व बैंक के अनुसार, गरीबी का तात्पर्य खुशहाली से वंचित होना है और इसमें कई आयाम शामिल हैं।
    • इसमें कम आय और गरिमापूर्ण जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी वस्तुओं एवं सेवाओं को प्राप्त करने में असमर्थता शामिल है।

    • अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2.15 डॉलर है।
  • गरीबी रेखा: भारत में गरीबी को प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के संदर्भ में निर्धारित गरीबी रेखा के आधार पर मापा जाता है।
    • गरीबी से संबंधित डेटा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) के उपभोक्ता व्यय डेटा के व्यापक नमूना सर्वेक्षण से प्राप्त किया जाता है।
    • गरीबी रेखा से नीचे उपभोग व्यय वाले परिवारों कोगरीबी रेखा से नीचे’ (Below the Poverty Line- BPL) कहा जाता है और इन्हें गरीब माना जाता है।
  • गरीबी रेखा की गणना: भारत में, गरीबी की माप की गणना भोजन, कपड़े, जूते, ईंधन, विद्युत, शिक्षा, चिकित्सा देखभाल और अन्य की न्यूनतम आवश्यकताओं पर विचार करके की जाती है।
  • कैलोरी सेवन और जनसांख्यिकीय कारकों के आधार पर गणना: भोजन की आवश्यकता निर्धारित करने का सूत्र वांछित कैलोरी सेवन पर आधारित है, जिसमें विभिन्न आयु समूहों, लैंगिक और काम के प्रकारों के लिए अलग-अलग कैलोरी की आवश्यकता होती है।

    • ग्रामीण क्षेत्रों में, भारत में स्वीकृत औसत कैलोरी आवश्यकता प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2400 कैलोरी है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2100 कैलोरी प्रति दिन है।
  • मौद्रिक व्यय का आवधिक संशोधन: खाद्यान्न और अन्य वस्तुओं के माध्यम से इन कैलोरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक मौद्रिक व्यय को बढ़ती कीमतों के कारण समय-समय पर संशोधित किया जाता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2011-12 में, गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 816 रुपये प्रति माह और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,000 रुपये प्रति माह निर्धारित की गई थी। शहरी क्षेत्रों के लिए उच्च राशि शहरों में आवश्यक उत्पादों की आम तौर पर उच्च कीमतों को दर्शाती है।

गरीबी आकलन के लिए प्रयुक्त विभिन्न पद्धतियाँ

  • हाल के गरीबी अनुमानों के दौरान रंगराजन और महेंद्र देव द्वारा अपनाई गई पद्धति:
    • रंगराजन पैनल लाइन: उन्होंने रंगराजन समिति द्वारा अनुशंसित गरीबी रेखाओं को अद्यतन करने वाले नवीनतम HCES का उपयोग करके गरीबी के आँकड़ों की पुनर्गणना की।
    • उन्होंने वर्ष 2011-12 के लिए रंगराजन पैनल लाइन का इस्तेमाल किया और इसे वर्ष वर्ष 2022-23 के लिए समायोजित किया।
  • SBI  द्वारा अपनाई गई पद्धति
    • सुरेश तेंदुलकर समिति पर आधारित: SBI रिसर्च ने वर्ष 2011-12 के लिए सुरेश तेंदुलकर समिति की सिफारिशों को आधार बनाया।
    • मुद्रास्फीति समायोजित डेटा: इसने वर्ष 2011-12 के लिए तेंदुलकर समिति द्वारा स्थापित गरीबी रेखा पर पिछले दशक के मुद्रास्फीति डेटा को शामिल करके गरीबी रेखा के अनुमानों को संशोधित किया।
    • खाद्य पदार्थों का समायोजन: इसमें सरकारी योजनाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य वस्तुओं और सेवाओं के बीच मुफ्त खाद्य पदार्थ भी शामिल हैं।
  • अर्थशास्त्री भल्ला और भसीन द्वारा अपनाई गई पद्धति

    • विश्व बैंक गरीबी रेखा: सर्वेक्षण के आधार पर गरीबी दर का अनुमान लगाने के लिए उन्होंने विश्व बैंक रेखाओं का उपयोग किया।
    • सरकारी सहायता का बहिष्कार: इन अनुमानों में सरकार द्वारा दो-तिहाई आबादी को दिए जाने वाले मुफ्त खाद्यान्न और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा के उपयोग पर विचार नहीं किया गया।

वर्तमान गरीबी अनुमान/नई गरीबी रेखा की आवश्यकता से संबंधित मुद्दे

  • घोषित आय गरीबी रेखा का अभाव: सरकार ने भारत में किसी स्पष्ट गरीबी रेखा की घोषणा नहीं की है, जिसके कारण वर्तमान गरीबी अनुमान के लिए तेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा और विश्व बैंक की $2.15 प्रतिदिन की क्रय शक्ति गरीबी रेखा का उपयोग किया गया है।
    • यह 5% से भी कम, अत्यधिक गरीबी या अत्यधिक अभाव को दर्शाती है।
    • तेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा स्वयं पूरी की जाने वाली विशिष्ट न्यूनतम कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित थी और इसलिए जो परिवार कैलोरी पर कम-से-कम इतना खर्च करते हैं वे इस रेखा से ऊपर होंगे।
  • वर्तमान अनुमानों के लिए पुरानी गरीबी रेखा का अनुप्रयोग: नवीनतम HCES डेटा के आधार पर 2022-2023 में गरीबी का आकलन करने के लिएतेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा का उपयोग किया गया है।
    • नवीनतम HCES सर्वेक्षण में डेटा संग्रह विधियों में बदलाव के कारण दोनों डेटासेट सीधे तुलनीय नहीं हैं।
    • नवीनतम सर्वेक्षण तीन घटकों पर आधारित है, जिसमें पहले के सर्वेक्षणों के दौरान एकल घटकों की तुलना में कई दौरे शामिल थे।
    • HCES डेटा अभी पूरी तरह से जारी नहीं किया गया है। इसलिए, जब तक यूनिट-स्तरीय डेटा उपलब्ध नहीं हो जाता, तब तक इस डेटासेट पर पुरानी गरीबी रेखा लागू करना उचित नहीं है।
  • डेटा संग्रह विधि में असंगतता: कई दौरों सहित HCES के डेटा संग्रह तरीकों में बदलाव, इन दौरों के दौरान प्रदान की गई प्रतिक्रियाओं की स्थिरता के बारे में चिंताएँ बढ़ाते हैं।”
    • नियोजित प्रगणकों की अस्थायी स्थिति भी एक चुनौती है।
  • सैंपलिंग पद्धति में बदलाव: HCES ने वर्ष 2022-2023 में सैंपलिंग पद्धति में उल्लेखनीय बदलाव हुआ है। उदाहरण के लिए, दूसरे चरण का स्ट्रेटम वर्गीकरण अब ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भूमि स्वामित्व और शहरी क्षेत्रों के लिए कार स्वामित्व पर निर्भर करता है।
    • यह पिछले सर्वेक्षण से अलग है, जहाँ विभाजन ग्रामीण क्षेत्रों के लिए घरेलू स्थिति और गतिविधियों तथा शहरी क्षेत्रों के लिए मासिक प्रति व्यक्ति आय पर आधारित थे।
    • यह असमान रूप से समाज के समृद्ध वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोग व्यय अधिक होता है।
  • उपभोग अनुमान में विसंगति: राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (National Accounts Statistics- NAS) आँकड़ों और NSSO द्वारा प्रदान किए गए कुल निजी उपभोग व्यय के बीच विसंगति है।
    • 1970 के दशक के अंत में 10 प्रतिशत से कम के अंतर से, वर्ष 2011-12 में यह 53 प्रतिशत पर आ गया है। वर्ष 2022-23 में यह अंतर मामूली रूप से घटकर 52 प्रतिशत रह गया।
  • वास्तविक गरीबी में कमी के बारे में संदेह: वर्ष 2010 की कीमतों पर वास्तविक रूप से प्रतिदिन 100 रुपये तक कमाने वाले श्रमिकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि, वर्ष 2011-12 में 106.1 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2021-22 में लगभग 190 मिलियन हो गई, जो गरीबी में कमी के दावों पर संदेह पैदा करती है।
  • कैलोरी मानदंडों की अपर्याप्तता: पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् के अनुसार, मूल कैलोरी मानदंड एक अपर्याप्त उपाय है क्योंकि यह केवल अनाज की खपत को मापता है।
    • इसके अलावा, खाद्य उत्पादन की संरचना में भारी बदलाव आया है।
    • इन अनुमानों में सरकार द्वारा लगभग दो-तिहाई आबादी को दिए जाने वाले मुफ्त भोजन (गेहूँ और चावल) को शामिल नहीं किया गया है और न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा को।

भारत में उपभोग व्यय के स्रोत

  • भारत में उपभोग व्यय डेटा के दो स्रोत हैं: NSO सर्वेक्षण और राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (NAS)।
    • NSO सर्वेक्षण: NAS के एक भाग के रूप में, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) सालाना निजी खपत का अनुमान संकलित करता है।
    • NAS: NSO का HCES निजी खपत का अनुमान देता है। ये ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विभिन्न राज्यों (प्रांतों) के लिए अलग-अलग उपलब्ध हैं, जिन्हें राष्ट्रीय अनुमान में एकत्रित किया जा सकता है।
  • इन दोनों स्रोतों से निजी खपत के अनुमान अलग-अलग हैं, मुख्यतः क्योंकि ये भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से प्राप्त किए गए हैं।

आगे की राह

  • एक समान गरीबी रेखा: भारत में एक समान गरीबी रेखा की आवश्यकता है क्योंकि यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी के स्तर का आकलन करने के लिए एक मानकीकृत उपाय प्रदान करेगी।
    • यह राज्यों के भीतर और राज्यों में गरीबी के स्तर की अधिक सटीक तुलना तथा आकलन की सुविधा प्रदान करेगा।
    • इससे गरीबी दर और रुझानों की अंतरराष्ट्रीय तुलना में भी मदद मिलेगी, जिससे भारत अन्य देशों के मुकाबले अपनी प्रगति की तुलना कर सकेगा।
  • NSO और NAS के बीच मतभेदों को कम करना: NSO सलाहकार समूह को समस्या का अध्ययन करना चाहिए और दोनों मार्गों के माध्यम से डेटा के संग्रह में सुधार के लिए संभावित सुझाव देना चाहिए।
  • गरीबी मानदंडों का अद्यतनीकरण: तेंदुलकर रिपोर्ट के आधार पर एसबीआई द्वारा की गई पहल में पिछले दशक की मुद्रास्फीति दरों को वर्ष 2011-12 के लिए गरीबी रेखा पर लागू करके गरीबी रेखा के अनुमानों को संशोधित किया गया।
    • हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में, गरीबी मानदंडों को अद्यतन करने की आवश्यकता है और गरीबी की समझ तथा परिभाषा विकसित करने की दिशा में काम किया जाना चाहिए।
  • गरीबी रेखाओं का पुन: मापांकन: आय, उपभोग पैटर्न और कीमतों में परिवर्तन के आधार पर गरीबी रेखाओं का पुन: मापांकन करना चाहिए।
    • अपने निष्कर्षों को राष्ट्रीय खातों के साथ संरेखित करने के लिए सर्वेक्षण अधिकारियों के बीच समन्वय आवश्यक है, जिससे विसंगतियों को दूर करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है।
  • श्रम बाजार की गतिशीलता की जाँच: वर्ष 2021-22 में लगभग 144 मिलियन श्रमिकों के 100 रुपये से 200 रुपये की आय सीमा में आने के साथ, गरीबी उन्मूलन प्रयासों की वास्तविक सीमा का पता लगाने के लिए श्रम बाजार की स्थितियों की जाँच करना अनिवार्य हो जाता है।

News Source: Business Standard

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