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कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चुनाव

Lokesh Pal March 20, 2024 04:50 269 0

संदर्भ

वर्ष 2024 में विश्व के विभिन्न देशों में अधिसूचित आगामी चुनावों की शृंखला के बीच यह स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) में लोकतंत्र को बाधित करने की क्षमता है।

संबंधित तथ्य

  • चुनावी परिदृश्य: भारत में सात चरण में आम चुनाव की घोषणा हो चुकी है और यह चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून, 2024 तक होने हैं, लेकिन राजनीतिक दल और मतदाता चुनावों के AI आयाम को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
    • इस वर्ष, भारत, मैक्सिको, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा दुनिया भर के 50 अन्य राष्ट्रों में भी चुनाव होने हैं (कुछ रिपोर्टों के अनुसार)।

चुनावों में AI की महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ

  • प्रभावी मतदाता सहभागिता: सामाजिक प्लेटफॉर्मों के माध्यम से जागरूकता फैलाकर, AI मतदाताओं को मुद्दों और उम्मीदवारों को समझने में मदद कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सहभागिता में वृद्धि हो सकती है तथा मतदाताओं को अधिक प्रभावी ढंग से सूचित किया जा सकता है।
    • ECI नए मतदाता पंजीकरण की महत्त्वपूर्ण तारीखें, मतदान की तिथि और समय आदि जैसी प्रासंगिक जानकारी प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकता है। इसका उपयोग पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु भी किया जा सकता है।
  • समावेशिता को बढ़ावा: भाषिणी जैसे AI-आधारित ऐप्स की मदद से, जानकारी कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जा सकती है। इससे समाज के वंचित वर्ग को मदद मिलेगी।
    • AI प्रौद्योगिकियाँ दिव्यांग मतदाताओं (जैसे कि दृष्टिबाधित) की सहायता कर सकती हैं, जिससे मतदान प्रक्रिया अधिक सुलभ और समावेशी हो जाती है।
  • चुनाव पारदर्शिता और सुरक्षा: AI पारदर्शी विज्ञापन नीतियों के कार्यान्वयन, सामग्री लेबल को लागू करने और गलत सूचना से निपटने के लिए चुनाव-संबंधी प्रश्नों को प्रतिबंधित करने में मदद कर सकता है।
    • मशीन लर्निंग एल्गोरिदम चुनावी खतरों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं, जो हस्तक्षेप के प्रयासों का संकेत दे सकते हैं, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम और मतदाता डेटाबेस की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

डीपफेक: यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके एडिट और मॉडिफाई किए गए डिजिटल मीडिया कंटेंट हैं, जिनमें वीडियो, ऑडियो और तस्वीरें शामिल हैं।

  • चुनावी प्रक्रियाओं का सुव्यवस्थितीकरण: AI मतदाता पंजीकरण से लेकर मिलान तक विभिन्न संबंधित कार्यों को स्वचालित कर सकता है और अधिक कुशल चुनावी प्रक्रियाओं को बढ़ावा  दे सकता है, मानवीय त्रुटि को कम कर सकता है तथा तेज, अधिक विश्वसनीय परिणाम प्रदान कर सकता है।
    • चुनाव आयोग की वेबसाइट पर शिकायतों के समाधान के लिए AI आधारित चैटबॉट को प्रस्तुत किया जा सकता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपकरण, मशीन लर्निंग एल्गोरिदम तथा निवारक उपायों के माध्यम से  मतदान प्रक्रियाओं की निगरानी करेंगे, डेटा का विश्लेषण करेंगे और चुनाव की अखंडता सुनिश्चित करेंगे।
  • मजबूत लोकतंत्र: ECI ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण और वेबसाइट पर मतदाता सूची जारी करने जैसे विकल्पों के साथ प्रौद्योगिकी का इष्टतम उपयोग भी कर रहा है। वह जागरूकता पैदा करने, व्यापक पहुँच बनाने और शिकायतों का समाधान करने के लिए AI और सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बारे में

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का अर्थ मशीनों में मानवीय बुद्धि का अनुकरण करना है।  इन्हें इस तरह से प्रोग्राम किया जाता है कि वे इंसानों की तरह सोच सकें और उनके कार्यों की नकल कर सकें। इसमें मशीन लर्निंग, पैटर्न पहचान, बड़ा डेटा, स्वयं सीखने के एल्गोरिदम जैसी तकनीकें शामिल हैं।
  • उदाहरण: चैटजीपीटी, एलेक्सा, सिरी, आदि।

जनरेटिव कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Generative Artificial Intelligence-GAI) के बारे में

  • यह एक अत्याधुनिक तकनीकी प्रगति है, जो मशीन लर्निंग और AI का उपयोग करके नए तरह के मीडिया का निर्माण करता है।
  • यह आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (Artificial General Intelligence-AGI) में तब्दील हो जाएगा, जो मनुष्यों की क्षमताओं की नकल कर सकता है।

  • लागत-प्रभावी: जेनरेटिव AI में काफी कम लागत पर और अधिक दक्षता के साथ अभियान सामग्री बनाने की क्षमता है।
    • AI विपणक और विज्ञापनदाताओं को समय एवं संसाधनों की बचत करते हुए विज्ञापन अभियानों को स्वचालित और अनुकूलित करने की अनुमति देता है।
  • सरकार द्वारा सलाह: हाल ही में भारत सरकार ने अपने कृत्रिम बुद्धिमत्ता परामर्श को स्पष्ट किया है, जो जनरेटिव एआई सेवाओं और चुनावों पर है। यह परामर्श महत्त्वपूर्णप्लेटफॉर्मों के लिए निर्देशित किया गया था, न कि स्टार्टअप्स के लिए
  • प्रभाव और हेरफेर: मार्च 2018 में, कैंब्रिज एनालिटिका घटना ने सोशल मीडिया के चुनावी राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव को और फेसबुक उपयोगकर्ताओं की निजी पोस्ट से निकाले गए डेटा का इस्तेमाल कर उनके विचारों में हेरफेर करने की संभावना को आम जनता की चर्चा का विषय बना दिया।

चुनावों में AI के साथ चुनौतियाँ

  • गलत सूचना और दुष्प्रचार: डीपफेक और अन्य AI-जनित सामग्री अति-यथार्थवादी डिजिटल मिथ्याकरण पैदा कर सकती है और संभावित रूप से प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने, सुबूत गढ़ने और लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • सहायक अध्ययन: PNAS Nexus में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, दुष्प्रचार अभियान चुनावों में झूठ फैलाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (जेनरेटिव एआई) का तेजी से इस्तेमाल बढ़ सकता है।
    • विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक जोखिम धारणा सर्वेक्षण में गलत सूचना और दुष्प्रचार को शीर्ष 10 जोखिमों में से एक माना गया है। जिसमें बड़े पैमाने पर AI मॉडल के उपयोग में आसान इंटरफेस गलत सूचना और “फेक कंटेंट” के प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं।
      • इसने यह भी चेतावनी दी गई है कि दुष्प्रचार सरकारों की वैधता पर सवाल उठाकर और उन्हें बदनाम करके समाजों को अस्थिर कर सकता है।

  • दुष्प्रचार: गलत जानकारी जिसे जानबूझकर लोगों को धोखा देने के लिए फैलाया जाता है।
  • गलत सूचना: यह गलत या भ्रामक जानकारी है। यह दुष्प्रचार से भिन्न है, जो जानबूझकर भ्रामक और प्रचारित करने वाली जानकारी है।

  • भ्रामक सामग्री के माध्यम से प्रभाव: चित्रों, ऑडियो या वीडियो के अति-यथार्थवादी डीपफेक मतदाताओं को भ्रमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    • विजुअल टूल: जनरेटिव एआई कंपनियाँ, जिनके विजुअल टूल्स सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, वो यूजर्स को “भ्रामक” इमेज बनाने से रोकती हैं ,लेकिन ब्रिटिश गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर काउंटरिंग डिजिटल हेट (Centre for Countering Digital Hate-CCDH) के शोधकर्ताओं ने 40% से ज्यादा बार चुनाव से जुड़ी धोखाधड़ी वाली तस्वीरें बनाने में सफलता हासिल की है।
  • सोशल मीडिया की भूमिका  : फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा अपनी तथ्य-जाँच  (Fact-Checking) और चुनाव अखंडता (Election Integrity) टीमों में कटौती करने से प्रभाव और गलत सूचना के जोखिम में वृद्धि हुई है।
    • जबकि यूट्यूब, टिकटॉक और फेसबुक को AI के साथ उत्पन्न चुनाव-संबंधी विज्ञापनों की लेबलिंग की आवश्यकता होती है, लेकिन यह एक अचूक निवारक नहीं हो सकता है।
  • माइक्रोटार्गेटिंग: माइक्रोटार्गेटिंग तकनीकों के माध्यम से AI एल्गोरिदम का उपयोग मतदाताओं की प्राथमिकताओं में हेरफेर करने और मतदाताओं को प्रभावित करके चुनाव की निष्पक्षता को कम करने के लिए किया जा सकता है।
    • पूर्वाग्रह: AI सिस्टम जिस डेटा पर उन्हें प्रशिक्षित किया गया था, उसके कारण पूर्वाग्रह को प्रदर्शित कर सकता है।
      • उदाहरण: इससे कैंब्रिज एनालिटिका की घटना बहुत मामूली लग सकती है।
    • AI मॉडल अभी दुष्प्रचार फैलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बॉट और स्वचालित सोशल मीडिया अकाउंट से कहीं ज्यादा प्रभावशाली हो सकते हैं।
  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: AI को लेकर मुख्य गोपनीयता संबंधी चिंताएँ डेटा उल्लंघनों और व्यक्तिगत जानकारी तक अनधिकृत पहुँच की संभावना है। इतना अधिक डेटा एकत्र और संसाधित किए जाने से यह जोखिम है कि यह हैकिंग या अन्य सुरक्षा उल्लंघनों के माध्यम से गलत हाथों में पड़ सकता है।
    • उदाहरण: एक जापानी अस्पताल को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा, जब यह पता चला कि उन्होंने मरीजों की सहमति के बिना उनके डेटा का उपयोग करके एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता निदान उपकरण विकसित किया है।
    • इसके अलावा, रश्मिका मंधाना का एक डीपफेकवीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
  • विश्वास का क्षरण: AI-जनित सामग्री के अस्तित्व मात्र से ही अविश्वास का माहौल बन सकता है, जहाँ लोग सभी सूचनाओं की प्रमाणिकता पर सवाल उठाते हैं। इस घटना को झूठे के लाभांश या लायर डिविडेंड (Liar Dividend) के रूप में जाना जाता है।
    • इससे पता चलता है कि जब नकली सामग्री इतनी आसानी से तैयार की जाती है, तो जनता को वास्तविक जानकारी पर भी संदेह हो सकता है, जिससे चुनाव-संबंधी संचार की विश्वसनीयता कमजोर हो सकती है।
  • विशिष्ट कानून का अभाव : भारत में डीपफेक और AI से संबंधित अपराधों को संबोधित करने के लिए विशिष्ट कानूनों का अभाव है, लेकिन कई कानूनों के तहत प्रावधान नागरिक और आपराधिक दोनों तरह की राहत प्रदान कर सकते हैं।
    • उदाहरण: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act) की धारा 66E  डीपफेक अपराधों के मामलों में लागू होती है, जिसमें किसी व्यक्ति की छवियों को बड़े पैमाने पर मीडिया में कैप्चर करना, प्रकाशित करना या प्रसारित करना शामिल होता है, जिससे उनकी गोपनीयता का उल्लंघन होता है।
    • इस तरह के अपराध पर 3 वर्ष तक का कारावास या ₹2 लाख का जुर्माना हो सकता है।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • डिजिटल प्लेटफॉर्मों के लिए सलाह: भारत सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्मों से समाज और लोकतंत्र को नुकसान पहुँचाने वाली गलत सूचनाओं को रोकने और खत्म करने के लिए तकनीकी और व्यावसायिक प्रक्रिया समाधान प्रदान करने के लिए कहा है।
    • सरकार ने कहा कि चुनाव के बाद डीपफेक और दुष्प्रचार के विरुद्ध कानूनी ढाँचे को अंतिम रूप दिया जाएगा।
    • सरकार ने यह भी कहा कि कंपनियों को ऐसी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न नहीं करनी चाहिए, जो भारतीय कानूनों के तहत अवैध हों याचुनावी प्रक्रिया की अखंडता को खतरे में डालें
  • सहयोग: भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने AI-संचालित गलत सूचना से निपटने और चुनावी प्रक्रिया की सुरक्षा बढ़ाने के लिए रणनीति विकसित करने के लिए OpenAI समेत अग्रणी प्रौद्योगिकी फर्मों के साथ साझेदारी की है।
    • इसका उद्देश्य चुनाव पारिस्थितिकी तंत्र में संभावित कमजोरियों की पहचान करना और AI समाधान तैनात करना है, जो गलत जानकारी फैलाने वाले डीपफेक या स्वचालित बॉट जैसे खतरों का पता लगा सकते हैं और उन्हें बेअसर कर सकते हैं।
    • Google-ECI साझेदारी: आम चुनावों के दौरान गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए Google ने भारतीय चुनाव आयोग के साथ साझेदारी की है। Google विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने और भ्रामक AI-जनित सामग्री को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक विज्ञापनों के लिए दिशा-निर्देश: ऐसे दिशा-निर्देश निर्धारित करके, ECI यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मतदाताओं को उनके संपर्क में आने वाली सामग्री के स्रोत और इरादे के बारे में सूचित किया जाए, जिससे सूक्ष्म-लक्षित विज्ञापनों के माध्यम से हेरफेर के जोखिम को कम किया जा सके।
  • मतदाता-अनुकूल वातावरण: सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा देने और गलत सूचना के संभावित प्रसार का प्रतिकार करने के लिए, ECI सार्वजनिक जागरूकता अभियानों में भी निवेश कर रहा है।
    • इसका उद्देश्य मतदाताओं को डिजिटल सामग्री से जुड़े जोखिमों के बारे में शिक्षित करना और सूचना स्रोतों के साथ महत्त्वपूर्ण जुड़ाव को प्रोत्साहित करना है , जिससे निर्वाचन क्षेत्र की दुष्प्रचार के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।
  • बहुआयामी दृष्टिकोण: नियामक उपायों, तकनीकी समाधानों और सार्वजनिक शिक्षा के बारे में ECI का दृष्टिकोण AI के युग में चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के लिए इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • कोलकाता में उपयोग: कोलकाता में चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव के दौरान संवेदनशील बूथों पर अनियमितताओं का शीघ्र पता लगाने के लिए AI का उपयोग करने की योजना बना रहा है।

AI-केंद्रित चुनावों का भविष्य

  • माँग में वृद्धि : AI मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करने वाली माँग पैदा करने जा रहा है, लेकिन इसका उपयोग उन उपकरणों में भी किया जाएगा जिन पर वह यह तय करने के लिए भरोसा करेंगे कि कौन-सा उम्मीदवार उनके राजनीतिक विचारों का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करता है।
    • ईमेल को सारांशित करने और पहले से पढ़ने के लिए चैटजीपीटी और इसी तरह के उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है।
  •  किसी के लिए भी वास्तव में यह जानना कठिन हो जाएगा कि वास्तव में क्या वास्तविक है और क्या नहीं है तथा यह उम्मीदवारों को व्यक्तिगत घटनाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • अधिक समावेशिता: AI में भविष्य में राजनीतिक दलों के संदेशों को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करने में मदद करने की क्षमता है। पहले से कहीं अधिक स्पष्ट और सारगर्भित संदेशों के साथ व्यापक जनसांख्यिकी तक पहुँच की क्षमता है।
    • हालाँकि, इस बात का जोखिम है कि असामाजिक तत्व मतदाताओं को गुमराह करने और गलत सूचना देने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • अधिक जाँच: राजनीतिक दलों को चुनाव आयोगों के साथ-साथ मतदाताओं से AI के उपयोग और इसके द्वारा भेजे जाने वाले संदेशों की अधिक जाँच की उम्मीद करनी चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी उम्मीद करनी चाहिए कि वह इससे उत्पन्न होने वाले खतरों से निपटने के बारे में कितने मुखर हैं।

आगे की राह

  • विनियमन ढाँचा: चुनावों में AI के उपयोग के लिए एक स्पष्ट कानूनी ढाँचा तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है, जैसे डेटा सुरक्षा पर नियम, AI-संचालित विज्ञापन में पारदर्शिता और AI के नैतिक उपयोग के लिए मानक।
  • सहयोग: गलत सूचना से निपटने और चुनावी प्रक्रियाओं को सुरक्षित करने के लिए सरकारों और निर्वाचन निकायों को प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
    • नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के नेताओं और नागरिक समाज को AI प्रौद्योगिकियों के जिम्मेदार उपयोग का समर्थन करने वाली नीतियों और प्रथाओं को विकसित करने के लिए सहयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण: हाल ही में, OpenAI, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों ने पिछले माह चुनावों के दौरान भ्रामक मानी जा सकने वाली AI सामग्री से लड़ने के लिए एक प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर किए है।
  • सार्वजनिक जागरूकता: AI-जनित गलत सूचना की चुनौतियों के बारे में जनता को शिक्षित करना मतदाताओं को सूचना का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के लिए सशक्त बना सकता है।
    • दुष्प्रचार के विरुद्ध प्रचार के लिए डिजिटल साक्षरता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने वाले अभियानों की आवश्यकता है।
  • तकनीकी समाधान: झूठी सूचनाओं और डीपफेक का पता लगाने और चिह्नित करने में सक्षम AI सिस्टम विकसित करने का समय आ गया है।
    • ऐसे नैतिक AI विकसित करने की आवश्यकता है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दे।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विचार: AI-जनित डीपफेक एक बड़ी चुनौती है, जो संभावित रूप से चुनावों को प्रभावित कर सकता है, यह  बाल यौन शोषण सामग्री बनाने में मदद कर सकता है।
  • गोपनीयता: व्यक्तिगत गोपनीयता और नागरिक स्वतंत्रता को होने वाले जोखिमों को कम करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उत्तरदायी विकास और परिनियोजन वांछनीय है।
    • AI एल्गोरिदम को व्यक्तिगत डेटा के संग्रह और प्रसंस्करण को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए कि डेटा को सुरक्षित तथा गोपनीय रखा जाए।

निष्कर्ष

यह एक ऐसा युग है, जहाँ तकनीकी विकास अपरिहार्य है। लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखते हुए तकनीक का इस्तेमाल विकास के लिए करना, गहन विचार और निरंतर नैतिक परीक्षण की आवश्यकता है। सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उचित एकीकरण आने वाले वर्षों में भारतीय लोकतंत्र के अमृत काल में राजनीतिक चर्चा और निर्णय लेने को प्रभावित करेगा।

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