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भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा

Lokesh Pal March 22, 2024 04:26 456 0

संदर्भ

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS-5) ने भारत में महिलाओं के खिलाफ व्यापक हिंसा के चिंताजनक आँकड़े प्रस्तुत किए हैं, जो उनकी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों एवं बेघर होने के अंतर्संबंध को उजागर करते हैं।

 महिलाओं के खिलाफ हिंसा

  • परिभाषा: संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के खिलाफ हिंसा को ‘लैंगिक आधारित हिंसा के किसी भी कार्य के रूप में परिभाषित करता है, हिंसा के परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक एवं यौन शोषण या मानसिक हानि उठानी पड़ती है इस हिंसा में सार्वजनिक या निजी जीवन में धमकी, जबरदस्ती या उनकी स्वतंत्रता को बाधित करना जैसे कृत्य शामिल होते हैं।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा जन्म से पहले (भ्रूणहत्या), शैशवावस्था, बचपन, किशोरावस्था, वयस्कता से बुढ़ापे तक पूरे जीवन चक्र में कभी भी हो सकती है।
  • चिंता का विषय: महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा एक सामाजिक, आर्थिक, विकासात्मक, कानूनी, शैक्षणिक, मानवाधिकार और स्वास्थ्य (शारीरिक और मानसिक) संबंधी मुद्दा है।
    • यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है और महिलाओं एवं लड़कियों के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक शारीरिक, यौन संबंधी और मानसिक परिणाम उनकी मृत्यु सहित विनाशकारी होते हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के बारे में

  • विश्वसनीय और अद्यतन जानकारी एकत्र करने के उद्देश्य से, बड़े पैमाने पर पूरे भारत में घरों से आँकड़े एकत्र करने का एक बहु-दौर सर्वेक्षण (Multi-round Survey) है।
  • संचालनकर्ता: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), भारत सरकार 
  • नोडल एजेंसी: केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सर्वेक्षण के लिए इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS), मुंबई को नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा की स्थिति

  • संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार,  
    • संयुक्त राष्ट्रमहिला’ (UN Women) के अनुसार: दुनिया भर में तीन में से एक महिला शारीरिक या यौन हिंसा से पीड़ित है, इनमें ज्यादातर अपने अंतरंग साथी (Intimate Partner) द्वारा ही हिंसा से पीड़ित हैं।
      • लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र इकाई को संयुक्त राष्ट्रमहिला’ (UN Women) के रूप में भी जाना जाता है।
    • ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार: विश्व स्तर पर, महिलाओं की 38% हत्याएँ पुरुष अंतरंग साथी (Male Intimate Partner) द्वारा की जाती हैं।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) डेटा
    • व्यापकता
      • 18 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 30% महिलाओं ने 15 वर्ष की आयु से शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है, जबकि 6% ने अपने जीवनकाल में यौन हिंसा का अनुभव किया है।
      • किसी के द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करने वाली केवल 14% महिलाओं ने ही इस मुद्दे को उठाया है।
    • उम्र और हिंसा के प्रकार
      • 40-49 आयु वर्ग की महिलाओं ने 18-19 वर्ग की महिलाओं की तुलना में अधिक हिंसा का अनुभव किया।
      • 32% विवाहित महिलाओं (18-49 आयु वर्ग) ने जीवनसाथी के द्वारा ही शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है।
      • पति-पत्नी की हिंसा का सबसे आम प्रकार शारीरिक हिंसा (28%) है, इसके बाद भावनात्मक हिंसा और यौन हिंसा आती है।
    • क्षेत्रीय विभाजन
      • महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा कर्नाटक में सबसे अधिक 48% है, इसके बाद बिहार, तेलंगाना, मणिपुर और तमिलनाडु हैं।
      • लक्षद्वीप में घरेलू हिंसा सबसे कम 2.1% है।
      • शारीरिक हिंसा का अनुभव शहरी क्षेत्रों (24%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (32%) में अधिक आम है।
    • शिक्षा और धन का प्रभाव
      • स्कूली शिक्षा और आर्थिक वृद्धि के साथ हिंसा में तेजी से गिरावट आती है।
    • स्कूली शिक्षा: बिना स्कूली शिक्षा वाली 40% महिलाएँ शारीरिक हिंसा का शिकार होती हैं, जबकि स्कूली शिक्षा पूरी करने वाली 18% महिलाएँ शारीरिक हिंसा का शिकार होती हैं।
    • अपराधी के रूप में पति: महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा के 80% से अधिक मामलों में, पति ही अपराधी होता है। इस पर निम्नलिखित विभिन्न कारकों का प्रभाव पड़ता है:
      • पति की शिक्षा और शराब का सेवन सामाजिक हिंसा दर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
    • मानसिक स्वास्थ्य और बेघर होने के साथ अंतर्संबंध: महिलाओं के खिलाफ हिंसा, बेघर होने और मानसिक स्वास्थ्य के बीच लगभग सार्वभौमिक रूप से एक पुनरावर्ती संबंध होता है।
    • कम रिपोर्टिंग
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 40% से कम महिलाएँ परिवार और दोस्तों से मदद लेती हैं।
      • 10% से भी कम लोग पुलिस से अपील करके मदद माँगते हैं।

महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली हिंसा के कारण

  • लैंगिक असमानता: यह महिलाओं के खिलाफ हिंसा के प्रमुख कारणों में से एक है।
    • भेदभावपूर्ण लैंगिक मानदंड और लैंगिक रूढ़िवादिता के परिणामस्वरूप संरचनात्मक असमानता होती है।
    • लैंगिक भूमिकाओं की रूढ़िवादिता युगों-युगों से जारी है।
  • सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारक: पितृसत्ता महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुख्य कारण है।
    • यदि महिलाओं की आर्थिक स्थिति उनके पतियों से उच्च है और उन्हें पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को बदलने की पर्याप्त शक्ति के रूप में देखा जाता है, तो हिंसा का जोखिम अधिक है।
  • पारिवारिक कारक: बचपन के दौरान कठोर शारीरिक अनुशासन का सामना करना और बचपन में लैंगिक भूमिकाओं के बीच भेदभावपूर्ण व्यवहार देखना उत्पीड़न एवं हिंसा के अपराध का पूर्वसूचक है।
  • महिला नरसंहार: यह शारीरिक पीड़ा में वृद्धि के साथ दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक आघात का कारण बनता है।
  • एसिड हमले: यह विभिन्न कारणों से महिलाओं के खिलाफ एक सस्ता और आसानी से उपलब्ध हथियार के रूप में उभरा है, जैसे- पारिवारिक झगड़े, दहेज की माँगों को पूरा करने में असमर्थता, विवाह प्रस्तावों को अस्वीकार करना आदि।
  • ऑनर किलिंग: बांग्लादेश, मिस्र, जॉर्डन, लेबनान, पाकिस्तान, तुर्की और भारत सहित दुनिया के कई देशों में, कथित व्यभिचार, विवाह पूर्व संबंध, बलात्कार जैसे विभिन्न कारणों से परिवार के सम्मान को बनाए रखने के लिए महिलाओं को मार दिया जाता है।
  • कम उम्र में विवाह: कम उम्र में विवाह हिंसा का एक रूप है क्योंकि यह लाखों लड़कियों के स्वास्थ्य एवं स्वायत्तता को प्रभावित करता है।
    • महिलाओं के लिए निर्धारित की गई प्राथमिक भूमिकाएँ विवाह एवं मातृत्व रही हैं।
    • महिलाओं को विवाह अवश्य करना चाहिए क्योंकि अविवाहित, पृथक या तलाकशुदा स्थिति समाज में एक कलंक के रूप में मानी जाती है।
  • कम शिक्षा और संवेदनशीलता: यदि पुरुषों की शिक्षा कम है, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का उनका इतिहास है, उनकी माताओं के खिलाफ घरेलू हिंसा का जोखिम है, शराब का हानिकारक उपयोग है, तो हिंसा को स्वीकार करने के दृष्टिकोण सहित असमान लैंगिक मानदंडों आदि के कारण पुरुषों (और महिला पीड़ितों) के हिंसा करने की संभावना अधिक होती है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को संबोधित करने वाला विधायी ढाँचा

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए, इसे परिवार और घर के भीतर शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, यौन तथा आर्थिक शोषण के रूप में परिभाषित किया गया है।

भारतीय दंड संहिता (IPC) संशोधन 

  • IPC की धारा 498A: जो कोई, किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करेगा, उसे तीन वर्ष तक की कैद की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी लगाया जाएगा।
    • यह किसी भी महिला पर ऐसी प्रकृति की क्रूरता (चाहे मानसिक हो या शारीरिक) के अधीन होने की बात करता है, जिससे महिला को आत्महत्या करने या गंभीर चोट लगने या जीवन अथवा स्वास्थ्य को खतरा होने की संभावना हो।
  • IPC की धारा 304B (2): जहाँ किसी महिला की मृत्यु उसकी शादी के सात वर्ष के भीतर किसी प्रकार से जलने या शारीरिक चोट के कारण हुई हो या सामान्य परिस्थितियों के अलावा किसी और तरह से हुई हो तथा यह दिखाया गया हो कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उसके पति या उसके किसी रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता अथवा उत्पीड़न किया गया था। उसके पति द्वारा दहेज की किसी भी माँग के लिए या उसके संबंध में ऐसी मृत्यु को ‘दहेज मृत्यु’ कहा जाएगा और ऐसे पति या रिश्तेदार को उसकी मृत्यु का कारण माना जाएगा।
    • जो कोई भी दहेज हत्या करेगा उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

भारत में महिला सुरक्षा के लिए अन्य प्रमुख कानून 

  • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961
  • सती (रोकथाम) अधिनियम, 1987
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
  • स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के परिणाम

  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: किसी भी रूप में हिंसा महिलाओं के शारीरिक, मानसिक, यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और उनके आत्मसम्मान, काम करने की क्षमता और प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
  • आर्थिक मुद्दे: महिलाओं के खिलाफ हिंसा घर के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव डालती है।
    • उदाहरण: आय की हानि, उत्पादकता, सामाजिक सेवाओं की लागत, बच्चों की देखभाल पर प्रभाव, अंतर-पीढ़ीगत सामाजिक, मनोवैज्ञानिक लागत, आदि।
  • विकास का मुद्दा: इस तरह की हिंसा कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिषेध करती है, उनकी कार्य करने या स्वतंत्र रूप से घूमने की क्षमता को बाधित करती है और इसलिए विकास एवं परियोजना कार्यक्रमों में बाधा आती है।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में बाधा है क्योंकि यह संसाधनों के समान वितरण में बाधा डालती है।

केस स्टडी: महिलाओं में हिंसा, मानसिक स्वास्थ्य और बेघर होने की परस्पर क्रिया को समझना

  • सर्वेक्षण के निष्कर्ष: एक मानसिक स्वास्थ्य सेवा संगठनद बनयान’ (The Banyan) के सर्वेक्षण में पाया गया कि संबंधपरक व्यवधान, जो अक्सर हिंसा से जुड़े होते हैं, महिलाओं के बीच बेघर होने से संबंधित होते हैं, तब भी जब उन्हें अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल तक पहुँच प्राप्त थी।
  • गुणात्मक साक्षात्कार: मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के साथ रहने वाली महिलाएँ बताती हैं कि बेघर होना देखभाल तक पहुँच की कठिनाइयों को दर्शाता है।
    • एक बार-बार सामने आने वाला विषय बाल यौन शोषण और अंतरंग साथी की हिंसा का व्यक्तिगत मानसिक स्वास्थ्य और बेघर होने पर प्रभाव था।
  • सामाजिक वापसी: गरीबी और जाति की संरचनात्मक बाधाओं के भीतर, हिंसा और एजेंसी सुविधा के नुकसान की संबंधित भावनाओं ने सामान्य संबंध बंधन और घर से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया।

  • संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों का उल्लंघन: महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (जाति, नस्ल और धर्म, जन्म स्थान या लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार करना), अनुच्छेद-19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), अनुच्छेद-21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) और अनुच्छेद-32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। 
  • भावी पीढ़ी पर प्रभाव: हिंसा से पीड़ित महिलाएँ कई बार आत्महत्या का प्रयास करती है या अपने बच्चों के साथ घर से भागने का प्रयास भी करती हैं और ऐसे माहौल में उन्हें धमकियों आदि का सामना करना पड़ता है।
    • अपने बेघर होने के दौरान, उन्हें प्रत्येक दिन जीवित रहने, भोजन और आराम करने के लिए सुरक्षित स्थान खोजने के कठिन कार्य का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • एक सहायता नेटवर्क की स्थापना: घरेलू भूमिकाओं में महिलाओं को उनके अवैतनिक श्रम के लिए पहचानने और मुआवजा देने की आवश्यकता है तथा महिलाओं के लिए सहायक नेटवर्क एवं वैकल्पिक पारिवारिक संरचनाओं को खोजने के लिए जगह बनाने की आवश्यकता है,  जो सुरक्षा एवं शरण प्रदान कर सकें।
    • उदाहरण: भारत में, आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (112) घरेलू हिंसा के मामलों में तत्काल सहायता के लिए एक एकीकृत आपातकालीन नंबर है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना: बुनियादी आय, आवास और भूमि स्वामित्व तक पहुँच सुनिश्चित करने से आर्थिक स्वतंत्रता मिल सकती है और बेघर होने की संभावना कम हो सकती है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक बदलाव: ऐसे मूल्यों को पर्यावरण में शामिल किया जाना चाहिए, विशेष रूप से शिक्षा पाठ्यक्रम में जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुकाबला करने और समानता का सम्मान करने में मदद करता है।
  • नीतियों और हस्तक्षेपों की आवश्यकता: ऐसी नीतियों और हस्तक्षेपों को लागू करने की आवश्यकता है, जो प्रारंभिक वर्षों में ही हिंसा को कम कर दें।
  • लैंगिक-आधारित कानून: कानून बनाने और लागू करने एवं महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करके लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों को विकसित और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय योजनाएँ और नीतियाँ बनाई जानी चाहिए।
    • उदाहरण: बीजिंग घोषणा-पत्र और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन को महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए सबसेप्रगतिशील ब्लूप्रिंट माना जाता है।
      • यह प्रत्येक जगह सभी महिलाओं के लिए समानता, विकास और शांति के लक्ष्यों पर केंद्रित है।
  • सर्वेक्षण और निगरानी गुणवत्ता में वृद्धि: इस महिला हिंसा मुद्दे से निपटने के लिए, महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर अपराध निगरानी डेटा एकत्र करने की प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • लैंगिक आधारित सर्वेक्षण एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराए जाने चाहिए।
    • केंद्र, राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध पर व्यापक और व्यवस्थित अनुसंधान तथा  विश्लेषण की आवश्यकता है।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों को सँभालने के लिए सेवा प्रदाताओं और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • परामर्श और मैत्रीपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करना: इस बात के प्रमाण हैं कि सिफारिश एवं सशक्तीकरण परामर्श हस्तक्षेप, साथ ही घरों में हिंसा संबंधी जाँच महिलाओं के खिलाफ अंतरंग साथी द्वारा की गई हिंसा को रोकने या कम करने में सहायक हो सकती है।
    • सस्ती और सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवा सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। यहाँ आशा कार्यकर्ता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं और यह महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना
    • जाँच की आवश्यकता: मूल कारणों के बारे में चर्चा करने के बजाय, मानसिक स्वास्थ्य के आसपास के जटिल पहलुओं की जाँच करने की आवश्यकता है।
      • इसके लिए नए रास्ते खोलने की आवश्यकता है, जिसमें विविध पेशेवर, नवीन अनुसंधान और जीवंत अनुभव वाले लोगों की सार्थक भागीदारी शामिल हो।
    • अधिक ज्ञान और समझ: मुद्दों की अधिक खोज और मानसिक स्वास्थ्य पर उनका प्रभाव, अंतर्विरोध की भूमिका, विषमताएँ और विज्ञान एवं जानने के तरीकों को आगे बढ़ाने में नारीवादी दृष्टिकोण सिद्धांत का उपयोग आवश्यक है।

निष्कर्ष

एक महिला के हिंसा से मुक्त रहने के अधिकार को अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन पर वर्ष 1993 के संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र द्वारा बरकरार रखा गया है। सामूहिक कार्रवाई के साथ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक निकटतम पहुँच बढ़ाने के लिए निवेश की तत्काल आवश्यकता है, जो हिंसा को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सके।

Read More About: Elimination of Violence Against Women

News Source: The Hindu

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