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भारत में वनों की कार्बन अवशोषण क्षमता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

Lokesh Pal March 22, 2024 06:18 123 0

संदर्भ

हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि भारत के वन बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा एवं वनों की कटाई के कारण एकसाइलेंट क्राइसिसका सामना कर रहे हैं, जो वनों की कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करने तथा प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया एवं कार्बन ग्रहण (Carbon Uptake) करने की क्षमता को उजागर करता है।

संबंधित तथ्य

  • इसरो, देश में 12 विभिन्न प्रकार के वनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए अपने जियोस्फीयर-बायोस्फीयर कार्यक्रम के तहत कई दीर्घकालिक अध्ययन कर रहा है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) पर बढ़ते तापमान का प्रभाव
    • प्रारंभिक CO2-प्रेरित वृद्धि के बावजूद, बढ़ता तापमान एंजाइम वृद्धि में बाधा डालता है, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • तापमान में वृद्धि और बदलता वर्षा पैटर्न एवं जल संकट इस महत्त्वपूर्ण कार्य को बाधित करता है।

कार्बन सिंक के लिए भारत का जलवायु लक्ष्य

  • अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के अनुसार, देश का महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्य “वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंकस्थापित करना है।

  • कार्बन अवशोषण में कमी:  पूर्वोत्तर, प्रायद्वीपीय भारत एवं पश्चिमी घाट के प्रमुख वन क्षेत्रों में, हरित आवरण में वृद्धि के बावजूद, पिछले दो दशकों (2001-2019) में CO2 अवशोषण में कमी आई है।
  • लीफ एरिया इंडेक्स (Leaf Area Index- LAI) एवं शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता पर प्रभाव की जाँच की गई:
    • लीफ एरिया इंडेक्स (LAI) किसी क्षेत्र के कुल हरित आवरण की माप है।
    • शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (NPP) श्वसन को ध्यान में रखते हुए पौधों द्वारा अवशोषित कुल CO2 को संदर्भित करता है।
    • प्रजातियों एवं कैनोपी की विविधता के आधार पर: प्रजातियों के प्रकार तथा कैनोपी संरचनाओं में भिन्नता प्रकाश संश्लेषक दक्षता को प्रभावित करती है।
      • प्रकाश संश्लेषक स्थान में वृद्धि के कारण सिंगल-कैनोपी वनों की तुलना में कई परतों वाली कैनोपियाँ प्रकाश संश्लेषण में बेहतर होती हैं।
    • वन के प्रकारों के आधार पर: उष्णकटिबंधीय वन के पेड़ों की प्रकाश संश्लेषक क्षमता आमतौर पर तब विफल होने लगती है,  जब पत्तियों का तापमान 46.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
      • इसमें कहा गया है कि औसत वायुमंडलीय तापमान में 4°C तापमान वृद्धि से उष्णकटिबंधीय वृक्षों में प्राथमिक पोषण उत्पादन रुक सकता है।

इसरो-जियोस्फीयर बायोस्फीयर प्रोग्राम (इसरो-जीबीपी)

  • आरंभ: अगस्त 1990।
  • उद्देश्य: वैश्विक जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई विज्ञान प्रश्नों का समाधान करना।
  • प्राथमिक उद्देश्य: वायुमंडलीय एरोसोल, ट्रेस गैसों, GHG, पेलियोक्लाइमेट, भूमि कवर परिवर्तन, वायुमंडलीय सीमा परत गतिशीलता, वनस्पति प्रणालियों में ऊर्जा और बड़े पैमाने पर आदान-प्रदान, राष्ट्रीय कार्बन परियोजना (NCP) और क्षेत्रीय जलवायु मॉडलिंग (RCM) को समझना और संबोधित करना।
    • बदलती जलवायु के वैज्ञानिक पहलुओं को समझने के लिए, पिछले ढाई दशकों में बहु-संस्थागत भागीदारी के साथ इसरो-जीबीपी के तहत कई अध्ययन किए गए हैं।

  • पत्ती जीर्णता (leaf Senescence) की प्रक्रिया में देरी: वर्ष 2018-19 की सर्दियों की तुलना में वर्ष 2019-20 की सर्दियों के दौरान, पत्तियों के जीर्ण होने की प्रक्रिया में देरी हुई।
  • जीव-जंतुओं पर फेनोलॉजिकल परिवर्तन
    • जलवायु-प्रेरित फेनोलॉजिकल परिवर्तन न केवल पौधों बल्कि पक्षियों एवं जानवरों को भी प्रभावित करते हैं। फेनोलॉजिकल घटनाओं में बेमेल पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकता है, जिससे व्यापक प्रभाव पड़ सकते हैं। 
  • विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता: हालाँकि यह एक जमीनी स्तर का अध्ययन है, जो वनों पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल प्रभावों को उजागर करता है। वनों पर जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव को समझने एवं प्रभावी शमन रणनीतियाँ तैयार करने के लिए दीर्घकालिक अवलोकन संबंधी अध्ययन की आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय वन दिवस

  • हाल ही में 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस (International Forest Day) मनाया गया, जिसकी थीम वन एवं नवाचार: एक बेहतर दुनिया के लिए नए समाधान’ (Forests and Innovation: New Solutions for a Better World) थी
  • पहली बार कब मनाया गया: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2012 से इसे मनाने की घोषणा की।
  • तारीख 21 मार्च क्यों तय की गई है: यह क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में वसंत विषुव और शरद विषुव के साथ संरेखित होती है।

निष्कर्ष

भारत के वनों को जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी बहुमुखी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रभावी शमन रणनीतियों के लिए बढ़ते तापमान, CO2 स्तर एवं वन पारिस्थितिकी तंत्र के बीच जटिल अंतःक्रिया को समझना आवश्यक है।

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