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जल: विश्व शांति स्थापित करने के एक साधन के रूप में

Lokesh Pal March 22, 2024 05:15 151 0

संदर्भ:

प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस (World Water Day) के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व जल दिवस की थीम “शांति के लिए जल (Water for Peace)” है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : भारत में स्वच्छ जल की उपलब्धता तथा विश्व जल दिवस के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : भारत में जल संकट के कारण और प्रभाव तथा इसका समाधान ।

मुख्य तथ्य : 

  • भारत में जल की उपलब्धता: भारत में जल की उपलब्धता पहले से ही इतनी कम है कि इसे जल संकटग्रस्त श्रेणी में रखा जा सकता है।
    • संभावना है कि भारत में कुल जल की उपलब्धता के वर्ष 2025 तक घटकर 1341m3 और वर्ष 2050 तक इसके 1140m3 तक हो जाने की संभावना है।
    • भारत में कुल जल के 72% का उपयोग कृषि कार्यों, 16% का नगर पालिकाओं द्वारा घरों संबंधी कार्यों में एवं 12% का उपयोग उद्योगों इत्यादि संबंधी कार्यों में किया जाता है ।
  • भारत में जल संकट के कारण: भारत में जल संकट के लिए जिम्मेदार कारक निम्नलिखित हैं- 
    • तेजी से होता शहरीकरण।
    • औद्योगीकरण।
    • अस्थिर कृषि पद्धतियाँ।
    • जलवायु परिवर्तन।
    • अनियमित वर्षा पैटर्न। 
    • पानी का अत्यधिक उपयोग और अकुशल जल प्रबंधन।
    • प्रदूषण एवं अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा ।
    • मिट्टी के कटाव और अवसादन के साथ-साथ उच्च वर्षा के कारण अपवाह।

जल की कमी से संबंधित मुद्दे:

  • ख़राब कार्यप्रणाली: इससे भोजन और जल सुरक्षा से संबंधित समस्या उत्पन्न होती है जो कि आम जन की  शांति को प्रभावित करती है।
  • संघर्ष और अशांति: विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार, विश्व के तकरीबन 17 देश जल तनाव के ‘अत्यंत उच्च’ स्तर का सामना कर रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप लोगों के मध्य संघर्ष, अशांति और शांति का खतरा बढ़ गया है। 
    • भारत भी इन समस्याओं से अछूता नहीं है।

भारत में जल तनाव के कारण और प्रभाव:

  • वर्तमान भारत के लगभग प्रत्येक शहर और राज्य में भूजल की कमी एक प्रमुख मुद्दा है।
  • कई बारहमासी नदियों में जल की कमी हो गई है या वे सूखने के कगार पर हैं।
  • भारत में वर्षा आधारित क्षेत्रों में 48% से अधिक भूमि क्षेत्र शामिल हैं।
  • जलग्रहण उपचार उपायों की कमी या खराब डिजाइन और जल निकायों के खराब रखरखाव के कारण अधिकांश जलाशयों/जल निकायों/आर्द्रभूमियों में गाद जमा हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप जल की भंडारण क्षमता कम हो गई है।

समाधान:

  • टिकाऊ कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों और आईओटी आधारित स्वचालन के साथ जल संसाधनों को एकीकृत करने जैसी कुशल सिंचाई तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
    • कम जल की आवश्यकता वाली फसलों को बढ़ावा देना।
    • एकीकृत कृषि प्रणाली का उपयोग करना।
    • वर्षा जल संचयन (इन-सीटू और एक्स-सीटू) और छत पर वर्षा जल संचयन।
    • विभिन्न कार्यक्रमों के तहत ‘प्रति बूंद अधिक फसल’, ‘गाँव का पानी गाँव में’, ‘खेत का पानी खेत में’, ‘हर मेड़ प्रति पेड़’ पर सरकार का जोर जल संचयन की दिशा में एक बड़ा कदम है।
    • भूजल स्तर की निगरानी करना और नदियों तथा जलाशयों की जल गुणवत्ता में सुधार करना।
  • जल मूल्य निर्धारण और एक चक्रीय जल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: 
    • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन करना। 
    • घरेलू उद्देश्यों के लिए जल के उपयोग को कम करने के लिए जल मीटर स्थापित करना।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से संबंधित समस्या का समाधान करना और जल, जो एक सीमित संसाधन है, के प्रबंधन के लिए एक एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण अपनाकर बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करना।
  • जल हानि में कमी: जल वितरण प्रणालियों से और अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग को बढावा देना।
  • जल का अलवणीकरण करना।
  • जल के सुरक्षित और किफायती उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नई प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान, उद्योग और शिक्षा जगत के साथ एकीकरण और सहयोग करना ।

निष्कर्ष: निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जल से संबंधित प्रमुख समस्याओं के समाधान को ध्यान में रखते हुए और किफायती रूप से जल के इस्तेमाल  को बढ़ावा देकर ही विश्व जल दिवस 2024 की थीम के उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त भारत को एक जल सुरक्षित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए विविध समाधानों के साथ-साथ जल उपयोग की दिशा में नई प्रोद्योगिकियों खासकर आईओटी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता इत्यादि को अपनाना सहायक सिद्ध हो सकता है। अंततः जल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए जल संकट की समस्या का समाधान करना तथा सबके लिए सुचारू रूप से जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था के लिए आवश्यक है ।

News Source: The Hindu

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