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सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के लिए एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन दृष्टिकोण

Lokesh Pal March 23, 2024 05:34 169 0

संदर्भ

काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (International Centre for Integrated Mountain Development- ICIMOD) और ऑस्ट्रेलियन वॉटर पार्टनरशिप (Australian Water Partnership- AWP) की हालिया रिपोर्ट में एशिया में जलवायु परिवर्तन को तीन प्रमुख नदी बेसिन (सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र) पर सहयोग के लिए तत्काल उत्प्रेरक के रूप में वर्णित किया गया है।

एकीकृत पर्वतीय विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्रके बारे में

(International Centre for Integrated Mountain Development- ICIMOD) 

  • ICIMOD एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी शिक्षण और ज्ञान-साझाकरण केंद्र है जो हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र के आठ क्षेत्रीय सदस्य देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान) को सेवा प्रदान करता है।
  • स्थापना: वर्ष 1983 में।

संबंधित तथ्य 

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग्लेशियरों के सिकुड़ने से सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र (Indus, Ganges and Brahmaputra-IGB) जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा।

रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष

  • नदियों पर अत्यधिक निर्भरता: भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल और भूटान में लोग अपने भोजन और जल सुरक्षा के लिए इन तीन सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र (IGB) नदियों पर निर्भर हैं।
  • विकेंद्रीकृत शासन: सामूहिक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता के बावजूद, इन बेसिनों के लिए विकेंद्रीकृत शासन की स्थिति बनी हुई है, जिसमें सीमित बहुपक्षीय समझौते बेसिन क्षेत्र में सहयोग की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का कोई समाधान नहीं: मौजूदा संधियाँ एवं समझौते अक्सर जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभावों को संबोधित करने या हाशिए पर पड़े हितधारकों को शामिल करने में विफल रहे हैं।
  • कोई बहुपक्षीय संधि नहीं: भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि या भारत तथा चीन के बीच नदी संबंधी जल डेटा का साझाकरण एवं ब्रह्मपुत्र पर समझौते जैसी द्विपक्षीय संधियाँ हैं, हालाँकि, कोई बहुपक्षीय समझौता या संधियाँ मौजूद नहीं हैं।
    • 600 मिलियन भारतीय, नेपाल के 29 मिलियन और बांग्लादेश के लाखों लोग गंगा नदी बेसिन क्षेत्र में रहते हैं। हालाँकि, नेपाल, भारत और बांग्लादेश से जुड़ा कोई समझौता नहीं है।
  • डेटा और ज्ञान का अंतर: सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय वास्तविकताओं तथा यहाँ तक कि जल के उपयोग के संबंध में गंगा नदी बेसिन में पर्याप्त डेटा एवं ज्ञान का अंतर था।
  • बहुआयामी चिंताएँ: एलिवेटिंग रिवर बेसिन गवर्नेंस एंड कोऑपरेशन इन द हिंदूकुश हिमालय रीजन (Hindu Kush Himalaya Region- HKH) रिपोर्ट शृंखला प्रमुख आर्थिक, पारिस्थितिक, ऊर्जा, सामाजिक, भू-राजनीतिक और शासन संबंधी मुद्दों पर केंद्रित है।
  • इस क्षेत्र में सामूहिक कार्रवाई जोखिम भरी है, लेकिन सरकारों की पानी, भोजन, ऊर्जा और सुरक्षा रणनीतियाँ जोखिमयुक्त होने के कारण यह ‘अत्यंत आवश्यक’ भी है।

नदी बेसिन के बारे में

  • यह एक नदी और उसकी सभी सहायक नदियों द्वारा सिंचित क्षेत्र है।
  • यह कई अलग-अलग जलसंभरों (Watersheds) से मिलकर बना होता है।

  • जलसंभर (Watershed): यह नदी बेसिन का एक छोटा संस्करण है।

नदी बेसिन और खतरे

  • तीन नदियाँ- सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र एशिया के कुछ सबसे संवेदनशील समुदायों को खाद्य और जल सुरक्षा प्रदान करती हैं, साथ ही दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में से एक में औद्योगिक एवं आर्थिक नीतियों को रेखांकित करती हैं।
  • गंगा नदी बेसिन: भारतीय उपमहाद्वीप के 600 मिलियन से अधिक लोगों अपनी आजीविका के लिए गंगा नदी बेसिन पर निर्भर हैं।
    • खतरे: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मौजूदा चुनौतियों को बढ़ा रहे हैं, विशेषकर बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि और सूखे की घटनाओं में बढ़ोतरी।
      • मानसूनी वर्षा के कारण विनाशकारी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जबकि शुष्क मौसम में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, विशेषकर बांग्लादेश जैसे निचले इलाकों में।
      • मानवजनित गतिविधियाँ: तीव्र औद्योगीकरण, शहरीकरण और गहन कृषि पद्धतियाँ नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रही हैं।
        • सीवेज और औद्योगिक कचरे का अंधाधुंध निर्वहन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण जोखिम पैदा करता है।
      • संवेदनशील समूहों पर प्रभाव: ये जलवायु संबंधी खतरे संवेदनशील समूहों को प्रभावित करते हैं, जिनमें महिलाएँ, दिव्यांग लोग और हाशिए पर रहने वाले समुदाय शामिल हैं।
  • सिंधु नदी बेसिन: सिंधु नदी पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान और चीन में 268 मिलियन से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित करती है।
    • इसकी जलविद्युत क्षमता 35,700 मेगावाट है, जिसका केवल 12% वर्तमान में दोहन किया जा रहा है और यह भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन की ऊर्जा रणनीतियों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • खतरे: जलवायु परिवर्तन के कारण यहाँ चरम मौसमी स्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
      • बढ़ता तापमान, अनियमित मानसून और पर्यावरणीय गिरावट सिंधु नदी बेसिन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।

      • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जल सुरक्षा को बाधित कर रहा है।
      • मानसूनी वर्षा के समय और वर्षा की तीव्रता में भिन्नता तथा बढ़ते कृषि एवं औद्योगिक प्रदूषण सहित पर्यावरणीय गिरावट, मीठे पानी के मत्स्यपालन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है और नदी के पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य को नष्ट कर रही है।
      • संवेदनशील समूहों पर प्रभाव: सामाजिक-आर्थिक संकट के साथ ये चुनौतियाँ हाशिए पर रहने वाले समुदायों की गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं।

एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन (IRBM) के बारे में

  • संदर्भ: IRBM नदी नियोजन के लिए एक बेसिन-व्यापी दृष्टिकोण को संदर्भित करता है, जो सभी हितधारकों के बीच जल उपलब्धता, जैव विविधता और प्रदूषण पर गुणवत्ता डेटा साझाकरण द्वारा समर्थित है।
  • समन्वित प्रबंधन: IRBM किसी दिए गए नदी बेसिन के भीतर सभी क्षेत्रों में जल, भूमि और संबंधित संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन तथा विकास के समन्वय की प्रक्रिया है, ताकि जल संसाधनों से प्राप्त आर्थिक एवं सामाजिक लाभों को समान रूप से अधिकतम किया जा सके व जहाँ आवश्यक हो मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित किया जा सके।
  • भविष्य में सहयोग की राह: तटवर्ती देशों को साझा चुनौतियों एवं अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • उपयुक्तता: यह मुख्य रूप से भारत और अन्य विकासशील देशों के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता सुनिश्चित करते हुए सामाजिक-आर्थिक लाभों को समान रूप से अधिकतम करने की परिकल्पना की गई है।
  • इससे संबंधित समझौते: यह जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों की पहचान करने, विभिन्न तकनीकी, सामाजिक और वित्तीय बाधाओं के अधीन, विकास के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इसकी स्थानिक तथा अस्थायी परिवर्तनशीलता पर नियंत्रण पाने से संबंधित है।

इसके सात प्रमुख कारक हैं:

  • नदी बेसिन के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण, जिस पर सभी प्रमुख हितधारक सहमत हों।
  • गरीबी उन्मूलन रणनीतियों सहित उद्योग, कृषि, शहरी विकास, नेविगेशन, मत्स्य प्रबंधन और संरक्षण जैसे क्षेत्रीय हितों में नीतियों, निर्णयों और लागतों का एकीकरण।
  • नदी बेसिन पैमाने पर रणनीतिक निर्णय लेना, जो उप-बेसिन या स्थानीय स्तर पर कार्यों का मार्गदर्शन करता हो।
  • प्रभावी समय निर्धारण, रणनीतिक ढाँचे के भीतर काम करते समय उत्पन्न होने वाले अवसरों का लाभ उठाना।
  • पारदर्शी योजना और निर्णय लेने में सभी प्रासंगिक हितधारकों की सक्रिय भागीदारी हो।
  • नदी बेसिन योजना और भागीदारी प्रक्रियाओं की क्षमता में सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठनों द्वारा पर्याप्त निवेश।
  • नदी बेसिन और इसे प्रभावित करने वाली प्राकृतिक और सामाजिक-आर्थिक ताकतों के ज्ञान का एक ठोस आधार।

एक बहुविषयक दृष्टिकोण (Multidisciplinary Approach)

  • यह क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और संभवतः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकीकरण का आह्वान करता है। यह नदी बेसिन में जल संसाधनों से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण सक्षम बनाता है।
  • इसके प्रमुख निर्देश
    • जल विज्ञान (Hydrology): समय और स्थान में प्राकृतिक जल वितरण की मात्रा निर्धारित करने (जल संसाधनों का आकलन) से संबंधित।
    • हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग (Hydraulic Engineering): संरचनात्मक उपायों के डिजाइन और प्रबंधन से संबंधित है, जिससे जल को समय और स्थान पर संगृहीत एवं वितरित किया जा सके।
    • पर्यावरण इंजीनियरिंग (Environmental Engineering): समय और स्थान में जल की गुणवत्ता की मात्रा निर्धारित करने और अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रियाओं से संबंधित है, जिससे इसे नदी जल आदि के लिए जल गुणवत्ता मानकों के अनुरूप बदला जा सकता है।
    • सामाजिक विज्ञान: विकास के उद्देश्यों को तैयार करने, जल की माँग के आकलन और जल प्रशासन तथा सार्वजनिक भागीदारी से संबंधित है।
    • सिस्टम विश्लेषण: उपरोक्त विषयों की परस्पर क्रिया भूमिकाओं का सबसे अच्छा अध्ययन सिस्टम विश्लेषण के माध्यम से किया जा सकता है।

  • ब्रह्मपुत्र बेसिन: यह बांग्लादेश, भारत, चीन और भूटान के 114 मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित करती है तथा भारत के मीठे पानी के स्रोतों का 30% हिस्सा इस बेसिन से संबंधित है।
    • इसमें अत्यधिक जलविद्युत क्षमता मौजूद है, जिसका दोहन करना चीन और भारत दोनों देशों का लक्ष्य है।
    • खतरे: बाँधों और विकास कार्यों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और सूखे की स्थिति बढ़ रही है, विशेषकर इसके निचले बेसिन में।
      • हालाँकि वर्तमान में बेसिन में कोई बड़ा जल परिवर्तन नहीं हुआ है, अपस्ट्रीम बाँध निर्माण और जलवायु परिवर्तन के अनुमानों से डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में शुष्क मौसम के प्रवाह में कमी आने की संभावना है, जिससे लाखों लोगों का जीवन प्रभावित होगा।
      • हिमनदों के पिघलने की दर में वृद्धि के साथ, पूरे क्षेत्र में पानी की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है।
      • संवेदनशील समूहों पर प्रभाव: अनुमानित जलवायु प्रभावों के साथ बदलते सामाजिक आर्थिक चालकों के साथ महिलाओं, गरीबों तथा स्वदेशी एवं हाशिए पर रहने वाले समुदायों की भेद्यता बढ़ रही है।

रिपोर्ट की सिफारिशें एवं आगे की राह

  • बॉटम-अप दृष्टिकोण और स्वदेशी ज्ञान का उपयोग करने की आवश्यकता: यह प्रभावी जलवायु अनुकूलन के लिए आवश्यक है। सरकारों को बढ़ती अनिश्चितता का सामना करने के लिए स्थानीय समुदायों को ज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
    • किसी संकट के दौरान स्थानीय समुदाय समस्याओं को शीघ्र और प्रभावी ढंग से हल करने के लिए कार्य कर सकते हैं।
    • इंडस कॉलिंग’ (Indus Calling) जैसे कार्यक्रम समुदायों को बेहतर जल प्रबंधन और लचीलापन निर्माण के लिए जानकारी तथा उपकरणों के साथ सशक्त बनाते हैं।
  • डेटा विकास और संवर्द्धन: बेहतर जल प्रबंधन, प्रारंभिक चेतावनी और आपदा प्रबंधन की सुविधा के लिए नदी घाटियों पर डेटा अंतराल को हल करने की आवश्यकता है।
    • संपूर्ण बेसिनअनुसंधान दृष्टिकोण का उपयोग करके डेटा विकसित करने से अतिरिक्त लाभ मिलेंगे जैसे- विश्वसनीय जल लेखांकन एवं जल आपूर्ति, रणनीतिक बेसिन योजना को रेखांकित करना, जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों की सीमा पार समझ में वृद्धि आदि।
  •  IRBM  दृष्टिकोण पर बातचीत: विशेष रूप से एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन(Integrated River Basin Management-IRBM) दृष्टिकोण के माध्यम से मौजूदा संधियों एवं सहयोग के संभावित नए तरीकों को पुनर्स्थापित करके संबंधित देशों के मध्य वार्ता के लिए एक मंच स्थापित करना और नई आम सहमति बनाना।
  • क्षेत्रीय सहयोग: जलवायु प्रभावों की सीमा पार प्रकृति होती है, जिसके लिए क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।
    • ‘HKH कॉल टू एक्शन जैसी पहल सहयोगात्मक कार्रवाई के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है, नदी बेसिन से संबंधित राष्ट्रों के बीच विश्वास को बढ़ावा देती है और साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने की जानकारी प्रदान करती है।
  • दीर्घकालिक रणनीतिक और समावेशी दृष्टिकोण अपनाएँ: विविध दृष्टिकोण और विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए बेसिन प्रशासन के लिए अधिक समावेशी तथा लचीला दृष्टिकोण अपनाना।
    • दीर्घकालिक रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें जलवायु संबंधी अनिश्चितताओं के बीच विश्वसनीय जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अनुकूली बुनियादी ढाँचे, लचीली शासन संरचनाओं और समावेशी नीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • विश्वास निर्माण: देशों के बीच विश्वास बनाने और अधिक संवाद की दिशा में आगे बढ़ने के लिए शोधकर्ताओं के मध्य अधिकहाइड्रो-सॉलिडैरिटीतथा जलवायु कूटनीति की आवश्यकता है।

  • हाइड्रो-सॉलिडैरिटी: यह जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए एक तेजी से एकीकृत दृष्टिकोण का वर्णन करता है, जो सामुदायिक हितधारकों, जल-संबंधी प्रबंधन एजेंसियों और स्थानीय, राज्य तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय देशों के बीच भागीदारी और समन्वय पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
  • जलवायु कूटनीति: यह एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन व्यवस्था बनाने और उसके प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करने की प्रथा एवं प्रक्रिया है।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों पर मौजूदा दबाव बढ़ रहा है और बाढ़, मृदा अपरदन और लवणता जोखिम बढ़ रहा है, इसलिए तीन महत्त्वपूर्ण IGB नदी बेसिनों के अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, नागरिक समाज, समुदायों और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि IGB नदी बेसिनों में पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान, नेपाल, भारत, बांग्लादेश और भूटान शामिल हैं तथा “विशाल एवं बढ़ते” मानवीय, पारिस्थितिक और आर्थिक जोखिमों को रोकने के लिए एकजुट हुए हैं।

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