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दक्षिण चीन सागर विवाद

Lokesh Pal March 28, 2024 05:47 303 0

संदर्भ

फिलीपींस और चीनी नौसेना बलों के बीच बढ़े तनाव की पृष्ठभूमि में भारत के विदेश मंत्री ने फिलीपींस की आधिकारिक यात्रा की। 

संबंधित तथ्य

  • सेकंड थॉमस शोल पर विवाद: वर्तमान में, सेकंड थॉमस शोल (Second Thomas Shoal) को लेकर चीन और फिलीपींस के मध्य दक्षिण चीन सागर (SCS) में तनावपूर्ण विवाद की स्थिति बनी हुई है। दोनों देश इस सेकंड थॉमस शोल के स्वामित्व पर अपना-अपना दावा करते हैं।

  • चीनी तट रक्षक बलों की आक्रामक कार्रवाइयाँ: चीनी तट रक्षक बलों द्वारा आक्रामक समुद्री कार्रवाई स्प्रैटली द्वीपसमूह (Spratly Islands) में बीआरपी सिएरा माद्रे जहाज पर सवार सैनिकों को आपूर्ति पहुँचाने के उद्देश्य से एक फिलिपिनो जहाज (Filipino Vessel) के विरुद्ध की गई थी।
    • चीनी तट रक्षक बलों ने दावा किया कि वह वैध रूप से ‘विदेशी जहाज’ से ‘चीनी जल क्षेत्र’ की रक्षा कर रहा था।

बैठक के मुख्य निष्कर्ष

  • आधिकारिक यात्रा का एजेंडा: इसके एजेंडे में पेशेवर आदान-प्रदान, क्रॉस-डेक यात्राएँ, संयुक्त अभ्यास के साथ-साथ क्षमता निर्माण सुविधाओं सहित आधिकारिक एवं सामाजिक गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • मनीला की खाड़ी में भारतीय तट रक्षक जहाज का दौरा: विदेश मंत्री ने भारतीय तट रक्षक (ICG) जहाज समुद्र पहरेदार (Samudra Paheredar) का दौरा किया, जो एक विशेष प्रदूषण नियंत्रण पोत है, जो आसियान देशों में विदेशी तैनाती के हिस्से के रूप में फिलीपींस में मनीला की खाड़ी में मौजूद है।
  • साझा चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया: उन्होंने जहाज की यात्रा के महत्त्व पर जोर दिया, जिसने भारत और फिलीपींस के सामने आने वाली ‘साझा चुनौतियों’ को रेखांकित किया।
    • इन चुनौतियों में समुद्री प्रदूषण, अवैध मछली पकड़ना और पर्यावरण संरक्षण शामिल हैं।
    • ICG के पास फिलीपींस और वियतनाम के तट रक्षकों के साथ समुद्री सहयोग, सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक समझौता किया है।
  • फिलीपींस की संप्रभुता के लिए भारत का समर्थन: विदेश मंत्री ने SCS पर बीजिंग के साथ विवाद के बीच फिलीपींस की संप्रभुता के लिए भारत का अटूट समर्थन व्यक्त किया।

समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS)

  • परिचय: UNCLOS, जिसे ‘समुद्री संधि का कानून’ भी कहा जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो विश्व के समुद्रों और महासागरों के उपयोग के लिये एक नियामक ढाँचा प्रदान करती है, जिसे 16 नवंबर, 1994 से प्रभावी बनाया गया। यह समुद्री संसाधनों और समुद्री पर्यावरण के संरक्षण तथा समान उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करता है।

  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: भारत ने  फिलीपींस के साथ विशेष रूप से रक्षा और सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने में भारत के प्रयासों पर जोर दिया।
    • उन्होंने भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के लिए ‘समान विचारधारा वाले देशों’ के महत्त्व पर भी जोर दिया।
  • बढ़ते सहयोग के अन्य क्षेत्र: दोनों देशों के बीच सहयोग के अन्य क्षेत्रों पर भी चर्चा हुई।
    • इसमें व्यापार, डिजिटल बुनियादी ढाँचे में क्षमता निर्माण, इंडो-पैसिफिक, म्याँमार, यूक्रेन युद्ध सहित क्षेत्रीय मुद्दे और संयुक्त राष्ट्र और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement- NAM) सहित आम मंचों पर सहयोग शामिल हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन का महत्त्व: विदेश मंत्री ने समुद्र के कानून पर वर्ष 1982 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) पर जोर दिया, जो ‘समुद्र का संविधान’ है, और सभी पक्षों को इसका पूरी तरह से पालन करना चाहिए’

दक्षिणी चीन सागर (South China Sea) के बारे में

  • अवस्थिति: दक्षिण चीन सागर पश्चिमी प्रशांत महासागर (Western Pacific Ocean) का सीमांत सागर (Marginal Sea) है।
    • सीमांत सागर (Marginal Sea): सीमांत सागर एक प्रकार का समुद्र है, जो आंशिक रूप से भूमि से घिरा होता है और एक बड़े महासागर या समुद्र से जुड़ा होता है।
    • दक्षिण चीन सागर ताइवान जलडमरूमध्य (Taiwan Strait) द्वारा पूर्वी चीन सागर से और लूजॉन जलडमरूमध्य (Luzon Strait) द्वारा फिलीपीन सागर (Philippine Sea) से जुड़ा हुआ है। 
  • सीमावर्ती राष्ट्र और क्षेत्र: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान), फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम। 
    • थाईलैंड की खाड़ी (Gulf of Thailand) और टोंकिन की खाड़ी (Gulf of Tonkin) भी दक्षिण चीन सागर का हिस्सा हैं। 
  • विशेषताएँ: इसके दो प्रमुख समूह हैं।
    • पारासेल (Paracel): इनमें मुख्य रूप से द्वीप और चट्टानें शामिल हैं।
      • चट्टानें पानी की सतह पर या उसके निकट चट्टानों या मूंगे की शृंखलाएँ हैं।
    • स्प्रैटली (Spratly): उनके पास कुछ द्वीप हैं, लेकिन ज्यादातर रीफ और चट्टानें हैं जो उच्च ज्वार के समय पानी के ऊपर दिखाई भी नहीं देती हैं।
  • स्थलाकृति (Topography): इनमें से अधिकांश द्वीप कृषि के लिए उपयोगी नहीं हैं, यहाँ स्थायी फसलों की खेती संभव नहीं है और इनमें कोई घास के मैदान, चरागाह या जंगल नहीं हैं। हालाँकि, आसपास तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज और समुद्री उत्पाद प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं।

दक्षिण चीन सागर का महत्त्व

  • रणनीतिक स्थान: यह रणनीतिक रूप से प्रमुख समुद्री व्यापार मार्गों के चौराहे पर स्थित है, जो प्रशांत महासागर को हिंद महासागर से जोड़ता है।
  • वैश्विक शिपिंग लेन: इसके जल क्षेत्र से सालाना 3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार होता है।
    • यह अंतरराष्ट्रीय शिपिंग और वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्त्वपूर्ण पारगमन बिंदु के रूप में कार्य करता है।
      • मात्रा के हिसाब से वैश्विक व्यापार का 80% और मूल्य के हिसाब से 70% व्यापार समुद्र के द्वारा किया जाता है। कुल मात्रा का 60% एशिया से होकर गुजरता है, SCS वैश्विक शिपिंग का अनुमानित एक-तिहाई हिस्सा वहन करता है।
  • प्राकृतिक संसाधन: अनुमान लगाया जाता है कि इस समुद्र में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन हैं, जिनमें मत्स्यपालन और संभावित तेल और गैस भंडार शामिल हैं।
    • मछली पकड़ने का क्षेत्र: यह मछली पकड़ने का समृद्ध क्षेत्र है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है और लाखों लोग अपने भोजन और आजीविका के लिए इस समुद्री जल क्षेत्र पर निर्भर हैं।
    • ऊर्जा भंडार: यहाँ तेल और गैस के प्रचुर भंडार मौजूद होने के साक्ष्य मिले हैं।
    • ऊर्जा मार्ग: यह पूर्वी एशियाई देशों के लिए तेल और प्राकृतिक गैस के परिवहन के लिए महत्त्वपूर्ण ऊर्जा मार्ग है।

भारत के लिए SCS का महत्त्व

  • आर्थिक महत्त्व 
    • वैश्विक व्यापार: हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ भारत का 55% व्यापार SCS के जल क्षेत्र से होकर गुजरता है।
    • संचार के समुद्री मार्ग (Sea Lanes of Communication- SLOCs): भारत का लगभग 55% व्यापार इसके माध्यम से होता है।
    • ऊर्जा संसाधन: भारत इस क्षेत्र में तेल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार का पता लगाना चाहता है।
    • समुद्री कनेक्टिविटी: SCS भारत की एक्ट ईस्ट नीति में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
  • सुरक्षा 
    • सामरिक जलमार्ग: SCS एक रणनीतिक जलमार्ग है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है।
    • नौवहन की स्वतंत्रता: भारत नौवहन की स्वतंत्रता का समर्थक है।
    • चीन के विस्तारवाद का मुकाबला: भारत अपनी समुद्री क्षमताओं को मजबूत करके और क्षेत्रीय भागीदारों के साथ अपने संबंधों को गहरा करके इसे संतुलित करना चाहता है।
    • हिंद महासागर के हितों की रक्षा: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के हितों की सुरक्षा के लिए दक्षिण चीन सागर में एक स्थिर और नियम आधारित व्यवस्था बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।

नाइन-डैश लाइन (Nine-Dash Line)

  • बीजिंग अधिकांश SCS क्षेत्र पर अपना दावा करता है और इस दावे के केंद्र में U-आकार की ‘नाइन-डैश लाइन’ है जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक जल क्षेत्र शामिल है।
  • यह लाइन 1940 के दशक में चीनी मानचित्रों से अपनाई गई थी, और यह समुद्र और इस रेखा के भीतर मौजूद सभी भूमि विशेषताओं पर बीजिंग के दावे का प्रतिनिधित्व करती है।
  • यह चीन के दक्षिणी हैनान द्वीप (Hainan Island) के दक्षिण और पूर्व में सैकड़ों किलोमीटर तक फैला है, जो रणनीतिक पारासेल (Paracel) और स्प्रैटली द्वीप शृंखलाओं को कवर करता है।

  • भू-राजनीतिक महत्त्व
    • एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरना: इंडो-पैसिफिक व्यवस्था को आकार देने में इस क्षेत्र में भारत एक अहम् भूमिका निभा सकता है।
    • वैश्विक गठबंधनों को मजबूत करना: अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और आसियान देशों के साथ विभिन्न गठबंधनों को मजबूत करना।
    • नियम आधारित आदेश को बढ़ावा देना: अंतरराष्ट्रीय कानून और मानदंडों की व्यापकता के लिए नियम आधारित आदेश को बढ़ावा देना।
      • भू-राजनीति में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व बढ़ रहा है।

दक्षिण चीन सागर विवाद के बारे में

  • परिचय: इस विवाद में क्षेत्र के कई संप्रभु राष्ट्रों के द्वीप और समुद्री दावे शामिल हैं, जो ऐसे क्षेत्र पर चीन के दावे का विरोध करते हैं।
    • एशिया मैरीटाइम ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव (Asia Maritime Transparency Initiative- AMTI) के अनुसार, लगभग 70 विवादित चट्टानें और टापू विवाद में हैं।
    • चीन, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ताइवान ने इन विवादित क्षेत्रों पर 90 से अधिक चौकियाँ बनाई हैं।
  • विवाद के पक्ष: इसमें ब्रुनेई, ताइवान, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम शामिल हैं, जो चीन के साथ दक्षिण चीन सागर विवाद में सीधे तौर पर शामिल हैं।
  • चीन: यह अपने ऐतिहासिक ‘नाइन-डैश लाइन’ दावे के आधार पर लगभग पूरे SCS पर दावा करता है, जिसमें पारासेल द्वीपसमूह (Paracel Islands), स्प्रैटली द्वीपसमूह (Spratly Islands), स्कारबोरो शोल (Scarborough Shoal) और क्षेत्र के अन्य द्वीपसमूह शामिल हैं।

स्कारबोरो शोल (Scarborough Shoal) के बारे में 

  • यह फिलीपींस से 220 किलोमीटर दूर स्थित SCS का सबसे बड़ा एटाॅल है।
  • शोल फिलीपींस के EEZ के अंदर स्थित है, लेकिन 13वीं शताब्दी से चीन इस पर अपना ऐतिहासिक क्षेत्र होने का दावा करता रहा है।
  • चीन, फिलीपींस और ताइवान द्वारा दावा किया गया, इसे चीन द्वारा हुआंगयान द्वीप (Huangyan Island) और फिलीपींस द्वारा पनाटैग शोल (Panatag Shoal) कहा जाता है।

  • ताइवान: आधिकारिक तौर पर चीन गणराज्य (ROC) के रूप में जाना जाता है, जो पारासेल द्वीपसमूह, स्प्रैटली द्वीपसमूह और स्कारबोरो शोल सहित SCS पर चीन के समान क्षेत्रीय दावों का दावा करता है।

  • वियतनाम: यह SCS में पारासेल द्वीप और स्प्रैटली द्वीपसमूह पर संप्रभुता का दावा करता है। यह विवादित जल क्षेत्र में चीन के दावों और गतिविधियों का भी विरोध करता है।
  • फिलीपींस: यह स्कारबोरो शोल सहित स्प्रैटली द्वीपसमूह पर अपना दावा करता है, जो इसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर स्थित है।
  • मलेशिया: यह स्प्रैटली द्वीपसमूह में कई विशेषताओं का दावा करता है, जिनमें लेयांग-लेयांग रीफ (Layang-Layang Reef), स्वैलो रीफ (Swallow Reef) और इन्वेस्टिगेटर शोल (Investigator Shoal) शामिल हैं।
  • ब्रुनेई: ब्रुनेई स्प्रैटली द्वीपसमूह के एक हिस्से पर दावा करता है, लेकिन इसका दावा अन्य दावेदार देशों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा है।

SCS विवाद पर चीन का रुख

  • चीन की संप्रभुता का दावा: हालाँकि ये देश इस क्षेत्र पर चीन की संप्रभुता के दावे पर सवाल उठाते हैं, चीन उन्हें मान्यता नहीं देता है और दावा करता है कि द्वीप और समुद्री मार्ग नाइन-डैश लाइन के भीतर हैं और उसके अपने क्षेत्र का हिस्सा हैं।
    • चीन SCS के ‘जल और द्वीपों’ पर अपने ‘ऐतिहासिक अधिकारों’ पर जोर देता है।
  • SCS विवादों के अंतरराष्ट्रीयकरण का विरोध: चीन SCS विवादों के अंतरराष्ट्रीयकरण का विरोध करता है।
    • इसकी माँग है कि इस तरह के संघर्ष को किसी अन्य देश या बहुपक्षीय संस्थानों के हस्तक्षेप या मध्यस्थता के बिना द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए।

क्षेत्र में हालिया प्रगति

  • 10-डैश लाइन: चीन ने वर्ष 2023 के लिए एक नया मानक मानचित्र प्रकाशित किया, जिसे अक्सर 10-डैश लाइन के रूप में जाना जाता है, जो अपने क्षेत्रीय दावों को उसके मान्यता प्राप्त EEZ से कहीं आगे तक फैलाता है।
  • गश्त: चीनी नौसैनिक जहाजों द्वारा गश्त और लाइवफायर अभ्यास में वृद्धि की गई है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: चीन द्वारा दावा किए गए एटाॅल पर कर्मियों की संभावित दीर्घकालिक तैनाती के लिए रनवे, बंकर और आवास का निर्माण।
    • बाधाएँ: चीनी तट रक्षक जहाजों ने फिलीपींस से नावों के प्रवेश को रोकने के लिए 300 मीटर लंबा अवरोध लगाया।
    • कृत्रिम द्वीपों का निर्माण: वर्ष 2013 से, चीन स्प्रैटली द्वीप समूह में अभूतपूर्व ड्रेजिंग और कृत्रिम द्वीप-निर्माण में लगा हुआ है, जिससे 3,200 एकड़ नई भूमि का निर्माण हो रहा है, साथ ही पारासेल्स में अपनी उपस्थिति का पर्याप्त विस्तार किया है।
  • ग्रे जोन गतिविधियाँ: ये धीमी तीव्रता वाले संघर्ष का एक रूप है, जिसे चीन ने SCS में अपने क्षेत्रीय दावों पर दावा करने के लिए पिछले वर्ष में तेजी से नियोजित किया है।
  • अन्वेषण: चीनी अन्वेषण और ड्रिलिंग जहाज विवादित जल में अन्य तटीय देशों के जहाजों के साथ आक्रामक रूप से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।

दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के विस्तार/चुनौतियों से चिंताएँ

  • मछली पकड़ने पर प्रतिबंध: सतत मत्स्यन प्रथाओं को बढ़ावा देने और समुद्री पारिस्थितिकी में सुधार के बहाने वर्ष 1999 से चीन द्वारा मनमाने ढंग से प्रतिबंध लगाया गया है।
    • प्रतिबंध में भूमध्य रेखा के 12 डिग्री उत्तर में जल क्षेत्र शामिल है और इसमें वियतनाम के 200 मील EEZ और पारासेल द्वीपसमूह के हिस्से शामिल हैं।
  • कानूनी कार्रवाइयाँ: जनवरी 2021 में चीन में प्रख्यापित तट रक्षक कानून का अनुच्छेद-22 चीन तट रक्षक बल (CCG) को उन विदेशी संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ हथियारों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है, जो समुद्र में चीन के संप्रभु अधिकारों और अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करते हैं।
  • छद्म युद्ध: CCG के समर्थन से चीनी समुद्री मिलिशिया द्वारा की गई कार्रवाइयों का उद्देश्य विदेशी जहाजों को घेरना, टक्कर मारना और विवादित क्षेत्रों तक उनकी पहुँच को अवरुद्ध करना है।
    • चीन और फिलीपींस के बीच हालिया तनातनी से यह छद्म युद्ध स्पष्ट हुआ है।
    • CCG ने फिलीपीन तट रक्षक जहाज के खिलाफ ‘सैन्य-ग्रेड’ लेजर का उपयोग किया, जिससे सेकंड थॉमस शोल के पास पुनः आपूर्ति मिशन बाधित हो गया।
  • समुद्री कूटनीति पर प्रश्न उठना: चीन के ’10-डैश लाइन’ मानचित्र के प्रकाशन ने चीन के अंतरराष्ट्रीय कानून और कूटनीति के पालन पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
    • इस विवाद का क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापक अमेरिकी-चीन संबंधों पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की मुखरता का जवाब देते हैं।
  • मिलिशिया जहाजों को ट्रैक करना: चीन के मिलिशिया जहाज आमतौर पर अपनी स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) को बंद कर देते हैं या उसमें हेरफेर करते हैं अथवा उनके पास कम दूरी का ट्रांसमीटर होता है, इसलिए उनका पता लगाना मुश्किल होता है।
  • चीन-अमेरिकी सेना और अर्द्धसैनिक प्रतिस्पर्द्धा का प्रबंधन: इस क्षेत्र में चीन के विस्तार के साथ, क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य भागीदारी काफी हद तक बढ़ गई है, जिससे क्षेत्र का सैन्यीकरण हो गया है।
    • अमेरिका ने दक्षिण-पूर्व एशिया में सहयोगियों के साथ सैन्य अभ्यास के पैमाने का विस्तार किया है और अपने ‘नेविगेशन संचालन की स्वतंत्रता’ (Freedom of Navigation Operations- FONOPs) की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की है।
    • इसने बड़ी मात्रा में उन्नत हथियार तैनात किए हैं और क्षेत्रीय राज्यों के साथ सैन्य संबंधों को मजबूत किया है।

विवाद सुलझाने का प्रयास

  • UNCLOS का विवाद निपटान तंत्र: फिलीपींस ने विवादित स्प्रैटली द्वीप समूह के संबंध में चीन की ‘नाइन डैश लाइन’ की वैधता का परीक्षण करने के लिए वर्ष 2013 में UNCLOS के विवाद निपटान तंत्र को लागू किया।
  • स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) द्वारा फैसला: हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने अपने वर्ष 2016 के निर्णय में फैसला सुनाया कि इस लाइन का ‘कोई कानूनी आधार नहीं है।’
    • और चीन ने इस निर्णय को ‘अमान्य और निरर्थक’ बताकर खारिज कर दिया।
  • आसियान की भूमिका: वर्ष 2002 में, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) और चीन ने विवादों के प्रबंधन और समाधान के प्रयास में SCS में पक्षों की आचार संहिता पर घोषणा पर हस्ताक्षर किए।

SCS विवाद पर भारत का रुख

  • विवाद का पक्ष नहीं: भारत ने हमेशा कहा है कि वह SCS विवाद में एक पक्ष नहीं है और SCS में उसकी उपस्थिति चीन को रोकने के लिए नहीं बल्कि अपने स्वयं के आर्थिक हितों को सुरक्षित करने हेतु है।
  • नियम आधारित व्यवस्था की माँग: भारत SCS में चीन के बढ़ते आक्रामक व्यवहार की आलोचना करता रहा है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था की माँग करता रहा है।

दक्षिण चीन सागर विवाद को सुलझाने में चुनौतियाँ

  • अपरिभाषित भौगोलिक दायरा: SCS की सटीक भौगोलिक सीमाओं और दायरे को लेकर दावेदार देशों तथा अन्य हितधारकों के बीच असहमति है, जो विवाद को और जटिल बनाती है।
  • विवाद निपटान तंत्र पर असहमति: SCS में विवादों को कैसे निपटाया जाए, इस पर आम सहमति का अभाव है।
    • संघर्षों को सुलझाने के तंत्रों और मंचों के संबंध में विभिन्न देशों की प्राथमिकताएँ अलग-अलग हैं।
  • आचार संहिता (COC) की कानूनी स्थिति: आसियान और चीन के बीच सीओसी के लिए बातचीत चल रही है, लेकिन सीओसी की कानूनी स्थिति और प्रवर्तनीयता अपरिभाषित है।
  • ऐतिहासिक जटिलताएँ: विविध इतिहास और सुदूर, बड़े पैमाने पर निर्जन द्वीपसमूह के प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रीय दावे।

क्षेत्र में अपने हितों को देखते हुए भारत के लिए विकल्प

  • रक्षा कूटनीति: चूँकि SCS भारत से माल लेकर आता-जाता है। इस प्रकार, SCS में भारत की हिस्सेदारी है, जैसे हिंद महासागर में चीन की है। इसलिए, भारत को इंडो पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रक्षा कूटनीति को सक्रिय रूप से जारी रखना चाहिए:
    • सैन्य प्रशिक्षण में वृद्धि करना और जटिलता के उच्च स्तर पर अभ्यास और आदान-प्रदान करना।
    • मानवीय सहायता और आपदा राहत गतिविधियों का विस्तार करना।
    • तटीय देशों के साथ मलक्का जलडमरूमध्य में साझा निगरानी करना आदि।
  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी का विस्तार: भारत ने ऑस्ट्रेलिया, जापान, इंडोनेशिया, अमेरिका और वियतनाम के साथ जो व्यापक रणनीतिक साझेदारी संपन्न की है, उसे मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और सिंगापुर तक बढ़ाया जा सकता है।
  • ANC को मजबूत बनाना: भारत को त्रि-सेवा अंडमान और निकोबार कमांड (Andaman and Nicobar Command-ANC) की सैन्य क्षमताओं को भी मजबूत करना चाहिए।

आगे की राह 

  • कूटनीति और जुड़ाव
    • बहुपक्षीय वार्ता: पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने और राष्ट्रों के बीच समझ को बढ़ावा देने के लिए विवाद में शामिल सभी पक्षों को शांतिपूर्ण, खुली और बहुपक्षीय वार्ता में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • नियमित संवाद: ये संवाद तात्कालिक चिंताओं को दूर करने और गलतफहमियों को संघर्ष में बदलने से रोकने में मदद कर सकते हैं।
  • आचार संहिता (COC): SCS के लिए एक मजबूत और कानूनी रूप से बाध्यकारी आचार संहिता को अंतिम रूप देने तथा उसके पालन को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना।
    • इस COC को विवाद समाधान तंत्र, समुद्री सुरक्षा प्रोटोकॉल और पर्यावरण सुरक्षा सहित क्षेत्र में व्यवहार के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।
  • संघर्ष की रोकथाम और प्रबंधन
    • विश्वास-निर्माण के उपाय: समुद्री घटनाओं के मामले में तत्काल संचार की सुविधा के लिए सैन्य और सरकारी अधिकारियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करना।
    • समुद्री सहयोग: सहयोग और पारस्परिक लाभ को बढ़ावा देने के लिए समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान, पर्यावरण संरक्षण और मत्स्यपालन प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में संयुक्त प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
    • अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और कानूनी तंत्र: विशिष्ट विवादों को संबोधित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और कानूनी तंत्र का उपयोग करने हेतु शामिल देशों को प्रोत्साहित करना।
      • विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के आधार के रूप में अंतरराष्ट्रीय फैसलों, जैसे कि फिलीपींस बनाम चीन मामले में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले का समर्थन और सम्मान करना।

भारत द्वारा उपाय

  • विवादों का अंतरराष्ट्रीयकरण: एक्ट ईस्ट नीति के एक प्रमुख तत्त्व के रूप में, भारत ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में विवादों का अंतरराष्ट्रीयकरण शुरू कर दिया है।
  • क्वाड सदस्यता: भारत क्वाड पहल (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का हिस्सा है, जो भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच है।
  • SCS में भारतीय नौसेना की तैनाती: भारत ने संचार के समुद्री मार्गों (SLOC) की सुरक्षा के लिए SCS में वियतनाम के साथ अपनी नौसेना भी तैनात की है।
  • सॉफ्ट पॉवर डिप्लोमेसी: भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के साथ मजबूत संबंध बनाने के लिए सॉफ्ट पॉवर डिप्लोमेसी का उपयोग कर रहा है।

  • दक्षिण चीन सागर विवाद को सुलझाने में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता और क्षेत्रीय सहयोग की भूमिका
    • तटस्थ मध्यस्थ: संयुक्त राष्ट्र, आसियान, या अन्य सम्मानित अंतरराष्ट्रीय निकायों जैसे तटस्थ तृतीय पक्ष मध्यस्थों को शामिल करना। ये मध्यस्थ बातचीत को सुविधाजनक बना सकते हैं, विशेषज्ञ सलाह दे सकते हैं और चर्चा के दौरान निष्पक्षता बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।
    • क्षेत्रीय भागीदारी: आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठनों की सक्रिय भागीदारी और समर्थन को प्रोत्साहित करना, जो विवादित पक्षों के बीच मध्यस्थता तथा बातचीत को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • सामान्य हितों को बढ़ावा देना
    • साझा समृद्धि: दक्षिण चीन सागर में शामिल देशों के साझा आर्थिक और पर्यावरणीय हितों पर जोर देना। सहयोग के लाभों पर प्रकाश डालते हुए सतत् विकास, आपदा प्रबंधन और समुद्री संसाधनों की सुरक्षा के लिए संयुक्त पहल को प्रोत्साहित करना।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: आपसी सम्मान को बढ़ावा देने और पूर्वाग्रहों को कम करने के लिए राष्ट्रों के बीच लोगों-से-लोगों के बीच आदान-प्रदान, सांस्कृतिक समझ और शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देना।

News Source: Indian Express

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