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भारत में घटती प्रजनन दर पर लैंसेट रिपोर्ट

Lokesh Pal March 30, 2024 03:39 407 0

संदर्भ

हाल ही में लैंसेट (Lancet) में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) वर्ष 2050 तक घटकर 1.29 हो जाएगी, जो 2.1 की प्रतिस्थापन सीमा (Replacement Threshold) से काफी नीचे है।

  • उल्लेखनीय है कि कुल प्रजनन दर (TFR) प्रत्येक महिला से पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या को दर्शाती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वैश्विक संदर्भ में
    • कुल प्रजनन दर (TFR) का विकास: वर्ष 1950 एवं 2021 के बीच, वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) आधे से अधिक कम हो गई, जो वर्ष 1950 में प्रति महिला लगभग 5 बच्चों से घटकर वर्ष 2021 में 2.2 बच्चे हो गई।

    • भविष्य का अनुमान: इस रिपोट में अनुमान लगाया गया है कि निरंतर वैश्विक गिरावट जारी रहेगी और वर्ष 2050 (लगभग 76% देशों में TFR प्रतिस्थापन सीमा से नीचे होगा) तक अनुमानित वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) 1.83 एवं वर्ष 2100 (लगभग 97% देशों में TFR प्रतिस्थापन सीमा से नीचे होगा) तक 1.59 हो जायेगी।
  • उप-सहारा अफ्रीका के संदर्भ में कुल प्रजनन दर (TFR) में क्षेत्रीय बदलाव
    • वर्ष 1950 में, वैश्विक स्तर पर शिशु जन्मों का एक-तिहाई दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया एवं ओशिनिया में था। वर्ष 2011 के बाद से, यह आँकड़ा  उप-सहारा अफ्रीका में स्थानांतरित हो गया है, जो वर्ष 1950 में 8% से बढ़कर वर्ष 2021 तक लगभग 30% हो गया है।
  • चीन का उदाहरण: वर्ष 1987 में चीन की कामकाजी उम्र की आबादी 50% से अधिक हो गई, जो महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास की अवधि के साथ मेल खाती थी। हालाँकि, चीन की कुल प्रजनन दर (TFR) रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई है, जिससे कामकाजी उम्र की आबादी में संकुचन हुआ है।
  • भारत के संदर्भ में
    • TFR विकास: भारत में कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 1950 में 6.18 थी, जो वर्ष 1980 में गिरकर 4.60 हो गई एवं बाद में वर्ष 2021 तक घटकर 1.91 हो गई।
    • भविष्य में अनुमान
      • वर्ष 2050 तक, भारत में प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र का होगा, जो वर्तमान में चीन के सामने आने वाली जनसांख्यिकीय चुनौतियों के समान उम्र बढ़ने वाली आबादी की ओर संक्रमण का संकेत है।
      • इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UN Population Fund- UNPF) की ‘इंडिया एजिंग रिपोर्ट’ में भी अनुमान लगाया गया था कि भारत में बुजुर्गों की संख्या वर्ष 2022 में 149 मिलियन से दोगुनी से अधिक होकर सदी के मध्य तक 347 मिलियन हो जाएगी।
      • जनसांख्यिकीय बदलाव (Demographic Shift): भारत के दक्षिण एवं पश्चिमी राज्यों में अलग-अलग TFR दरें उत्तर की तुलना में तेजी से कम हो रही हैं।

कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR)

  • अपना प्रजनन जीवन पूरा करने वाली प्रति महिला जीवित जन्मों की संख्या, यदि प्रत्येक उम्र में उसका बच्चा पैदा करना वर्तमान आयु-विशिष्ट प्रजनन दर (आमतौर पर 15-49 वर्ष) को दर्शाता है।

प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता (Replacement level fertility)

  • यह प्रजनन क्षमता का वह स्तर है जिस पर एक जनसंख्या स्वयं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रतिस्थापित करती है। विकसित देशों में, प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता को प्रति महिला औसतन 2.1 बच्चों की आवश्यकता के रूप में लिया जा सकता है।

NFHS-5, 2019-21

  • कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 2015-16 में 2.2 से घटकर वर्ष 2019-21 में 2.0 हो गई है।
  • राज्यों के अनुसार अधिकतम TFR वाले राज्य: बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) एवं मणिपुर (2.17)।

भारत में प्रजनन दर में गिरावट के कारण

  • स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों का प्रभाव: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पहल जैसे गर्भ निरोधकों की उपलब्धता एवं परिवार कल्याण कार्यक्रम तथा सफल टीकाकरण अभियानों के बारे में जागरूकता में वृद्धि ने बच्चों के अस्तित्व के आश्वासन एवं छोटे परिवार के आकार को बनाए रखने में योगदान दिया है।
  • आर्थिक प्रभाव: अंतर-पीढ़ीगत धन हस्तांतरण की गतिशीलता एवं रहने तथा बच्चे के पालन-पोषण से जुड़े बढ़ते खर्च, जोड़ों को बड़े परिवारों को चुनने से हतोत्साहित कर सकते हैं।
  • महिलाओं का सशक्तीकरण 
    • महिला साक्षरता दर में प्रगति एवं कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने महिलाओं को परिवार नियोजन के बारे में अधिक जानकारीपूर्ण निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाया है।
    • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बदलते परिप्रेक्ष्य: शहरी क्षेत्रों में, महिलाओं में बच्चे के पालन-पोषण को अनिवार्य के बजाय वैकल्पिक के रूप में देखने की प्रवृत्ति है एवं कुछ महिलाएँ गोद लेने जैसे विकल्प तलाश रही हैं। इसी तरह की प्रवृत्ति भारत के ग्रामीण हिस्सों में भी उभर रही है, जो परिवार नियोजन के प्रति सामाजिक मानदंडों एवं दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देती है।

प्रजनन दर में गिरावट के दीर्घकालिक परिणाम

  • कार्यशील आयु वाली जनसंख्या की कमी: जनशक्ति की कमी देश के विकास एवं प्रगति में बाधा उत्पन्न करेगी।
  • बुजुर्ग आबादी में वृद्धि: उन पर आर्थिक निर्भरता एवं स्वास्थ्य देखभाल सुविधा का बोझ बढ़ना।
  • अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति: विकसित देशों के ऐतिहासिक आँकड़ों से पता चलता है कि एक बार जब प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाती है, तो प्रवृत्ति को उलटना बेहद मुश्किल हो जाता है।
  • विषम लिंग अनुपात एवं लैंगिक असंतुलन: निम्न प्रजनन स्तर लिंग अनुपात एवं लैंगिक समानता को खराब कर सकता है।

आगे की राह

  • जनसांख्यिकीय लाभांश को अधिकतम करना: जनसांख्यिकीय लाभांश स्थायी नहीं है। वैश्विक अनुभवों की अंतर्दृष्टि नीति निर्माताओं को रणनीतियों को आकार देने में मार्गदर्शन कर सकती है।
    • भारत के लिए अवसर: UNPF अनुमानों से संकेत मिलता है कि भारत की कामकाजी उम्र की आबादी 2030 के दशक के अंत से 2040 के दशक की शुरुआत में चरम पर होगी।
    • कार्य योजना: नीति निर्माताओं को कौशल अंतराल को संबोधित करने एवं ज्ञान अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए। कृषि के बाहर, विशेषकर औपचारिक क्षेत्र आदि में रोजगार के अवसर पैदा करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • बढ़ती उम्र की आबादी के लिए भविष्य की तैयारी: भविष्य की नीतियों में पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल प्रावधानों को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए तथा बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए उनके कौशल का लाभ उठाना आवश्यक होगा।

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