हाल ही में ‘कच्चातिवु द्वीप’ राजनैतिक विवाद के रूप में चर्चा में रहा है।
वर्तमान मुद्दा
मार्च 2024 में भारतीय प्रधानमंत्री ने कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने में कथित लापरवाही के लिए कांग्रेस पार्टी की आलोचना की।
उनकी टिप्पणी एक ‘आरटीआई सूचना’ के जवाब में आई, जिसमें पता चला कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 1974 में द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था।
पृष्ठभूमि
कच्चातिवु ऐतिहासिक रूप से आधुनिक तमिलनाडु में रामनाथपुरम् के राजाओं के नियंत्रण में था।
ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान, इस द्वीप पर भारत और श्रीलंका (तब सीलोन के नाम से जाना जाता था) दोनों का शासन था।
वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद, श्रीलंका ने अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण इस द्वीप पर दावा किया, और इस मुद्दे पर वर्ष 1974 से पहले कई बार चर्चा हुई थी।
श्रीलंका को हस्तांतरण
भारत-श्रीलंका समुद्री समझौता: वर्ष 1974 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव और पड़ोसी देशों से समर्थन जुटाने की आवश्यकता के बीच, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।
इस कदम को श्रीलंका के समर्थन को सुरक्षित करने के प्रयास के रूप में देखा गया, क्योंकि देश वर्ष 1976 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला था और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के अध्यक्ष के रूप इसका प्रतिनिधित्व करने की संभावना थी।
कच्चातिवु द्वीप
14वीं शताब्दी के ज्वालामुखी विस्फोट के कारण उत्पन्न कच्चातिवु द्वीप का इतिहास भू-गर्भिक कालक्रम में अपेक्षाकृत नवीन है।
कच्चातिवु द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित 285 एकड़ का एक निर्जन स्थान है।
इसकी लंबाई लगभग 1.6 किमी. है और यह 300 मीटर से थोड़ा अधिक चौड़ा है।
यह भारतीय तट से लगभग 33 किमी. दूर, रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
यह जाफना से लगभग 62 किमी. दक्षिण-पश्चिम में, श्रीलंका के उत्तरी सिरे पर स्थित है, और श्रीलंका के बसे हुए डेल्फ्ट द्वीप से 24 किमी. दूर है।
विवाद
कच्चातिवु को श्रीलंका में स्थानांतरित करने से भारतीय मछुआरों के लिए कई समस्याएँ पैदा हो गई हैं।
हालाँकि वर्ष 1974 के समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को अपने जाल सुखाने और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए द्वीप के चर्च का उपयोग करने का अधिकार सुरक्षित प्रदान किया था।
परंतु वर्ष 1976 में ‘समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UNCLOS) की आवश्यकता के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) के परिसीमन ने वर्ष 1974 के समझौते को समाप्त कर दिया, जिससे द्वीप पर इन गतिविधियों में शामिल होने के भारतीय मछुआरों के अधिकारों को प्रभावी ढंग से रद्द कर दिया गया।
भारत में कच्चातिवु के हस्तांतरण को अवैध माना जाता है, क्योंकि इसे भारतीय संसद द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी संघ मामले (1960) में निर्णय सुनाया कि भारतीय क्षेत्र को दूसरे देश में दिए जाने को संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
इसलिए, भारत में कुछ लोगों द्वारा कच्चातिवु के स्थानांतरण को असंवैधानिक और अवैध माना जाता है।
श्रीलंका का पक्ष
पिछले कुछ वर्षों में, श्रीलंका ने द्वीप पर भारतीय मछुआरों के अधिकारों से इनकार करते हुए कच्चातिवु पर अपना दावा जताया है।
श्रीलंकाई सरकार का कहना है कि भारतीय न्यायालय वर्ष 1974 के समझौते को रद्द नहीं कर सकता है और उनका दावा है कि उन्होंने बदले में भारत को “वेजबैंक” (Wedgebank) नामक एक द्वीप दिया था।
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