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हिमानी झील में बाढ़

Lokesh Pal April 05, 2024 06:43 247 0

संदर्भ

उत्तराखंड सरकार ने हिमालय में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Floods- GLOFs) से प्रभावित पाँच हिमानी झीलों के खतरे का आकलन करने के लिए विशेषज्ञ टीमों का गठन किया है।

संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने 188 हिमालयी हिमनदीय झीलों की पहचान की है, जिनके भारी वर्षा के कारण फटने का खतरा है।
  • इनमें से 13 झीलें उत्तराखंड में हैं।
    • इन झीलों को GLOFs के प्रति उनकी संवेदनशीलता के आधार पर तीन जोखिम स्तरों में वर्गीकृत किया गया है: ‘A’, ‘B’ और ‘C’।
  • GLOFs के बढ़ते जोखिम के कारण पाँच हिमनद झीलों को अत्यधिक संवेदनशील (‘A’ श्रेणी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • इन झीलों में चमोली जिले में धौलीगंगा बेसिन में ‘वसुधारा ताल’ शामिल है।
    • चार झीलें पिथौरागढ जिले में हैं:
      • लस्सार यांगती घाटी (Lassar Yangti Valley) में माबन झील (Maban Lake), दारमा बेसिन (Darma Basin) में प्युंगरू झील (Pyungru Lake)।
      • दो अवर्गीकृत झीलें दारमा एवं कुथी यांगती घाटी (Kuthi Yangti Valley) में हैं।
        • इन पाँचों झीलों का क्षेत्रफल 0.02 से 0.50 वर्ग किलोमीटर तक है।
        • वे समुद्र तल से 4,351 मीटर से लेकर 4,868 मीटर तक की ऊँचाई पर अवस्थित हैं।

हिमानी झील (Glacial Lake) क्या है?

  • हिमानी झीलें ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली जलराशि हैं।
  • झीलों का वितरण: हिमानी झीलें आमतौर पर ग्लेशियरों एवं बर्फ की चादरों के किनारों के निकट अवस्थित होती हैं।
  • आइस-कांटेक्ट लेक्स (Ice-Contact Lakes): प्रारंभ में, ये झीलें बर्फ से संबद्ध होती हैं, जिन्हें ‘आइस-कांटेक्ट लेक्स’ के रूप में जाना जाता है।
  • आइस-डिस्टल लेक्स (Ice-Distal Lakes): जैसे-जैसे ग्लेशियर का विस्तार होता है या उनमें संकुचन होता है, तो ये झीलें बर्फ से पृथक हो जाती हैं तथा आइस-डिस्टल लेक्स में परिवर्तित हो जाती हैं।

  • तलछट के प्रकार: इन झीलों में जैविक कीचड़ (Organic Muds), हिमनदीय मृदा (Glacial Clays), गादयुक्त मृदा (Silty Clays)  एवं रेत (Sands) जैसे तलछट शामिल होते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनका गठन कैसे और कब हुआ था।
  • तलछट के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक: आसपास के जल निकासी बेसिन एवं जल की रासायनिक संरचना।

‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ क्या हैं?

  • परिभाषा: ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOFs) प्राकृतिक अवरोधों जैसे मोरेन या हिमनद द्वारा अवरुद्ध झीलों से जल एवं तलछट का अचानक निष्कासन है।
  • भूदृश्यों का निर्माण: वे कटाव, तलछट निर्माण एवं नदी मार्गों में परिवर्तन करके भूदृश्यों को नया आकार देते हैं।
  • विस्तार का कारण बनने वाले कारक: जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का  संकुचन हो रहा है एवं हिमनद झीलों का विस्तार हो रहा है, GLOFs से उत्पन्न होने वाला जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है।

GLOF के कारण

  • बाँध निर्माण: इन झीलें का निर्माण तब होता है जब ग्लेशियरों के पिघलने से जल ग्लेशियरों की गतिविधि (जैसे- चट्टानों, तलछट एवं बर्फ) के कारण बने गड्ढों में एकत्रित होता है।
  • ट्रिगरिंग घटनाएँ: GLOFs अक्सर बर्फ या चट्टान गिरने, भूकंप या भारी वर्षा, प्राकृतिक बाँधों को कमजोर करने या तोड़ने एवं अचानक जल प्रवाह जैसी घटनाओं से ट्रिगर होते हैं।
  • वैश्विक तापमान: बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण GLOFs की घटनाओं में वृद्धि हुई है क्योंकि गर्म तापमान जल को रोकने वाली बर्फ या तलछट अवरोधों को कमजोर कर सकता है, जिससे उनके टूटने की संभावना अधिक हो जाती है।
    • ‘लॉक्ड हाउस, फैलो लैंड्स (Locked Houses, Fallow Lands): क्लाइमेट चेंज एंड माइग्रेशन इन उत्तराखंड, इंडिया’ शीर्षक से वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत के पहाड़ी क्षेत्रों का वार्षिक औसत अधिकतम तापमान 1.6-1.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
      • तापमान में यह वृद्धि वर्ष 2021 से 2050 के बीच होने का अनुमान है।

GLOF शमन उपाय

  • GLOF शमन उपायों का उद्देश्य बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए जल की मात्रा को कम करना है।
  • विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके इसे कम किया जा सकता है।
    • मोराइन बाँध पर नियंत्रण: मोराइन बाँध को नियंत्रित तरीके से खोलने एवं बंद करने से हिमानी झील से जल के निष्कासन को नियंत्रित किया जा सकता है।
    • आउटलेट नियंत्रण संरचना का निर्माण: इस तकनीक में आउटलेट नियंत्रण संरचना का निर्माण शामिल है। यह संरचना जल को नियंत्रित करने और जल निष्कासन को नियंत्रित करने में सहायता करती है।
    • जल को पंप करना: जल को कम करने के लिए पंपों का उपयोग करने से जल की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इस तरह, यह मोराइन बाँध पर हाइड्रोस्टैटिक दबाव को कम करता है, जो GLOF घटना की तीव्रता को कम करता है।
    • मोराइन बैरियर या बर्फीले बाँँध के नीचे सुरंग बनाना: यह तकनीक जल के प्रवाह के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करती है, जिससे GLOF घटनाओं के अचानक विस्फोट में कमी आती है।
  • GLOF शमन के लिए प्रयुक्त तंत्र
    • प्रारंभिक चेतावनी/निगरानी: प्रारंभिक चेतावनी, आपदा के जोखिम को कम करने के लिए संस्थानों द्वारा समय पर और प्रभावी जानकारी का प्रावधान है।
    • निगरानी उपग्रह इमेजरी और हवाई सर्वेक्षण जैसी रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकियों के माध्यम से हिमनद झीलों की अस्थिरता का पता लगाने में मदद करती है।
    • प्रभावी निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ आपदा के लिए समय रहते तैयारी करने में मदद करती हैं।
      • भारत में, सतलज नदी बेसिन पर विभिन्न उपाय स्थापित किए गए हैं।
      • इसी तरह, सुमदो (Sumdo) और खाब (Khaab) में, जहाँ नदियाँ मिलती हैं, टेलीमेट्री स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
      • उपरोक्त के अलावा, डुबलिंग में नेप्था-झाकरी परियोजना जल स्तर की निगरानी में मदद करती है।

उत्तराखंड में GLOFs घटनाएँ

  • उत्तराखंड में अब तक दो महत्त्वपूर्ण GLOFs घटनाएँ देखी गईं:-
    • केदारनाथ घाटी: जून 2013 में GLOF के कारण केदारनाथ घाटी प्रभावित हुई।
    • चमोली जिला: फरवरी 2021 में GLOF के कारण ग्लेशियर झील के फटने से चमोली जिले में अचानक बाढ़ आ गई।

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