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वैश्विक लोकतंत्र सूचकांकों को नेविगेट करना

Lokesh Pal April 09, 2024 04:59 218 0

संदर्भ

हाल के वर्षों में लोकतंत्र को मापने वाले वैश्विक सूचकांकों ने भारत की लोकतांत्रिक स्थिति को घटाया है। हालाँकि भारत सरकार ने इन सूचकांकों का खंडन किया है और भारत सरकार अब अपना लोकतंत्र सूचकांक जारी करने की योजना बना रही है। 

निरंकुशता (Autocracy): यह सरकार की एक प्रणाली है, जिसमें पूर्णशक्ति शासक के पास होती है, जिसे निरंकुश कहा जाता है।

वैश्विक सूचकांक मूल्यांकन

  • वी-डेम (V-Dem) इंस्टिट्यूट: हालिया लोकतंत्र सूचकांक में भारत को ‘सबसे खराब निरंकुश देशों में से एक’ की श्रेणी में रखा गया है। इस सूचकांक के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 से लोकतांत्रिक व्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है। 
  • फ्रीडम हाउस (Freedom House): इसने भारत को केवल ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ (Partly Free) के रूप में वर्गीकृत किया है।
  • द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट: इसने भारत को ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ (flawed democracy) के एकमात्र रूप में वर्गीकृत किया।
  • केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया: भारत ने पहले भी लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता से लेकर भूख, मानव विकास और खुशहाली तक भारत की स्थितियों के सभी वैश्विक रेटिंग आकलन की निंदा की है।

भारत में लोकतंत्र सूचकांकों पर नकारात्मक स्थिति का प्रभाव

  • रेटिंग पर प्रभाव: थिंक टैंक और एजेंसियों की नकारात्मक टिप्पणी से भारत की संप्रभु रेटिंग और विश्व बैंक के विश्वव्यापी शासन संकेतकों पर इसकी रैंकिंग के खराब होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • वैश्विक स्तर पर भारत की छवि पर प्रभाव: इस तरह की डाउनग्रेड रैंकिंग का भारत की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, वी-डेम (V-Dem) इंस्टिट्यूट के हालिया लोकतंत्र सूचकांक में भारत को नाइजर (जो एक सैन्य जुंटा द्वारा शासित है) और आइवरी कोस्ट के बीच में तथा फिलिस्तीन के समान श्रेणी में रखा गया है।

लोकतंत्र सूचकांकों का महत्त्व

  • ऐसे सूचकांक लोकतांत्रिक देशों की महत्त्वपूर्ण विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करने के साथ-साथ वहाँ की गतिशीलता एवं रुझानों को दर्शाते हैं। वे राजनीतिक शासनों की ताकत एवं कमजोरियों को मापने के तरीके प्रस्तुत करते हैं।
    • वे अलग-अलग घटकों को समय-समय पर और भौगोलिक क्षेत्रों में तुलनीय बनाते हैं और इन सूचकांकों में ‘मात्रात्मक आकलन का एक संयोजन’ शामिल है। 

वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक

  • वी-डेम (V-Dem) इंस्टिट्यूट
    • इसने वर्ष 1789 से अब तक 202 देशों से संबंधित अपना वार्षिक मूल्यांकन प्रकाशित किया है।
  • द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट
    • यह वर्ष 2006 से लोकतंत्रों की चुनावी, उदार, सहभागी और प्रभावी प्रकृति का आकलन करता है।
  • अमेरिका स्थित फ्रीडम हाउस
    • वर्ष 1973 से, अमेरिका स्थित फ्रीडम हाउस नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों का मूल्यांकन लेकर आया है।
  • अन्य
    • द लेक्सिकल इंडेक्स (The Lexical Index)
    • बोइक्स मिलर रोसाटो कोडिंग (Boix Miller Rosato Coding)
    • बर्टेल्समैन ट्रांसफार्मेशन सूचकांक (Bertelsmann Transformation Index)
    • वर्ल्डवाइड गवर्नेंस इंडिकेटर्स (Worldwide Governance Indicators)
    • इंटरनेशनल आइडिया की ‘ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसीज रिपोर्ट’ (International IDEA’s Global State of Democracies Report)

वैश्विक सूचकांकों की सीमाएँ

  • व्यक्तिपरकता और विश्वसनीयता: व्यक्तिपरकता की एक डिग्री होती है, जो सूचकांकों की विश्वसनीयता और सटीकता को प्रभावित करती है।
    • मूल्यांकन अभी भी ठोस विशेषताओं के बजाय शोधकर्ताओं और कोडर्स के निर्णय पर आधारित हैं।
    • उदाहरण: वी-डेम का ‘समतावादी’ संकेतक राजनीतिक क्षेत्र में सामाजिक समूहों की समानता का आकलन करता है, जैसे कि देश में कितने राजनीतिक दल मौजूद हैं?
  • तटस्थता: डेटा की क्षमता, सुबूत और सर्वेक्षण करने वाले व्यक्तियों (प्रोफेसरों, लेखकों तथा बुद्धिजीवियों) की तटस्थता पर सवाल उठाए गए हैं।
  • त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली: इनकी कार्यप्रणाली त्रुटिपूर्ण है, नमूना आकार अपर्याप्त है और ये सूचकांक वस्तुनिष्ठ मैट्रिक्स पर सांस्कृतिक पूर्वाग्रह और व्यक्तिपरक राय का पक्ष लेते हैं।
    • उदाहरण के लिए, वी-डेम (V-Dem) इंस्टिट्यूट के हालिया लोकतंत्र सूचकांक में भारत को नाइजर (जो एक सैन्य जुंटा द्वारा शासित है) और आइवरी कोस्ट के बीच में और फिलिस्तीन के समान श्रेणी में रखा गया है।
    • हालाँकि, निष्पक्ष चुनाव या चुनावी भागीदारी के मामले में, भारत ‘किसी भी अन्य लोकतंत्र की तरह ही अच्छा प्रदर्शन कर रहा है’
  • चुनावी लोकतंत्र से परे अन्य आयाम: कुछ सूचकांकों में विशेषज्ञों के बीच भिन्नताओं एवं पूर्वाग्रहों को समायोजित करने के लिए ‘विभेदक वस्तु कार्य प्रणाली’ होती है।
    • उदाहरण: वी-डेम के मॉडल के लिए शोधकर्ताओं को अनिश्चितताएँ बताने, विशेषज्ञों के बीच असहमति की तुलना करने और कई संकेतकों के सर्वोत्तम और सबसे खराब अनुमान तैयार करने की आवश्यकता होती है।
  • एकत्रीकरण मॉडल की कार्यप्रणाली: सूचकांक के एकत्रीकरण मॉडल की कार्यप्रणाली पर भी चिंता है। विशेषज्ञों के निर्णय का उपयोग यह तय करने के लिए किया जाता है कि कौन से मैट्रिक्स को शामिल किया जाए और प्रत्येक को उचित तरीके से कैसे मापा जाए?
    • हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि कुछ उपसूचकांकों को क्यों चुना गया और अन्य उपसूचकांकों को कम महत्त्व क्यों दिया गया है?
  • देशों का दायरा: एक और चिंता इन सूचकांकों में शामिल देशों के दायरे को लेकर है। केवल कुछ सूचकांक जैसे फ्रीडम हाउस और लेक्सिकल इंडेक्स गैर-स्वतंत्र और माइक्रोस्टेट्स का सर्वेक्षण करते हैं।
    • इस प्रकार कुछ मामलों में छोटे देशों की अनदेखी की जा सकती है।
  • अनुमानित वैचारिक विसंगति: आंशिक रूप से लोकतंत्र की अस्पष्ट परिभाषा के कारण वैचारिक विसंगति एवं आलोचना की जाती है।
    • उदाहरण: लेसोथो को वर्ष 2014 में सैन्य तख्तापलट का सामना करना पड़ा और उसे भारत से अधिक अंक दिए गए और यदि ब्राजील जैसे आर्थिक रूप से असमान देश लोकतांत्रिक हैं, तो भारत को चुनावी निरंकुशता के रूप में कैसे वर्गीकृत किया जा सकता है?
  • असममित आउटपुट: सूचकांक विभिन्न पैटर्न का उपयोग करते हैं, जैसे- EIU रैंक, जो 0 से 10 के बीच मूल्यांकन पर आधारित है और वी-डेम की रैंक, जो 0 से 1 के बीच मूल्यांकन पर आधारित है। 
    • अन्य संस्थान लोकतंत्र की डिग्री को भी वर्गीकृत करते हैं, निरंकुशता से लेकर अलोकतांत्रिक व्यवस्था तक, राजनीति के सूचकांक में लोकतंत्र तक, आदि।
  • भ्रामक अंतरराष्ट्रीय पैरामीटर्स: भ्रामक पैरामीटर्स का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जैसे कि वे जो बाल्यकाल में शिशुओं में स्टंटिंग, महिला श्रम बल भागीदारी दर और जन्म के समय जीवन प्रत्याशा को मापते हैं।

संभावित दृष्टिकोण जिनका भारत वैश्विक सूचकांकों पर अनुसरण कर सकता है

  • वैश्विक सूचकांकों में परिवर्तन: शासन की जमीनी हकीकत को समझने के लिए सूचकांकों के त्रुटिपूर्ण हिस्सों में संशोधन की आवश्यकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय ने ऐसे मूल्यांकनों को अधिक व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए निर्णय आधारित पद्धति पर अवलोकन, वस्तुनिष्ठ डेटा का उपयोग करने का समर्थन किया है।
  • चर्चा और विचार-विमर्श: रिपोर्टिंग संस्थानों को बेहतर और अधिक स्वीकार्य रिपोर्ट तैयार करने के लिए देशों से सुझाव लेने, मुद्दों पर चर्चा करने और उन्हें दूर करने की आवश्यकता है।
  • एक-दूसरे से सीखने का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है: देशों को एक-दूसरे की सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने की आवश्यकता है और एक बेहतर देश एवं विश्व के लिए बेहतर करने के लिए रैंक को एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए।

भारत में लोकतंत्र

  • संदर्भ: ‘लोकतंत्र’ शब्द ग्रीक शब्द ‘डेमोक्रेटिया’ (Demokratia) से आया है, जिसका अर्थ है ‘लोगों का शासन’ अर्थात् लोकतंत्र में सत्ता जनता के हाथों में होती है।
    • भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप का पालन करता है, जिसमें कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है।
  • परिभाषा: अब्राहम लिंकन के शब्दों में, लोकतंत्र ‘जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए’ शासन है।
    • लोकतंत्र समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, मानवाधिकार, व्यक्तिगत स्वायतता और न्याय के सिद्धांतों को कायम रखता है।
  • भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएँ: लोकप्रिय संप्रभुता, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, कानून का शासन, शक्तियों का पृथक्करण, स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, बहुदलीय प्रणाली, धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्र प्रेस और स्वतंत्र नागरिक समाज।

भारतीय लोकतंत्र के लिए चुनौतियाँ

  • विधायी पतन: सांसदों का निलंबन उन्हें विधायी बहस और चर्चा में भाग लेने के अधिकार से वंचित करता है, जो संसदीय लोकतंत्र की एक मूलभूत विशेषता है।
    • हाल ही में भारत में 140 संसद सदस्यों (सांसदों) को निलंबित कर दिया गया है, जिसे विशेषज्ञ भारत में संसदीय लोकतंत्र के कमजोर होने के रूप में देखते हैं।
  • जातिवाद की चुनौती: भारतीय राजनीति में जातिवाद एक प्रमुख भूमिका निभाता है। कई जातीय दबाव समूह जैसे- शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन आदि अपनी माँगों को पूरा करने के लिए सत्ता में बैठे लोगों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करते हैं।
    • उदाहरण: AIADMK, DMK और BSP जैसे राजनीतिक दल पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा के लिए राजनीतिक तौर पर उभरे हैं।
  • राजनीति में सांप्रदायिकता: यह समुदाय के विशिष्ट हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए दबाव समूहों के गठन एवं विकास की ओर ले जाती है।
    • इससे अन्य समुदायों के सदस्यों के प्रति असहिष्णुता, संदेह और भय भी उत्पन्न होता है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में देश में 2,900 से अधिक सांप्रदायिक हिंसा के मामले दर्ज किए गए।
  • न्यायिक अतिरेक और शक्तियों के पृथक्करण: लोकतंत्र में न्यायिक अतिरेक अवांछनीय है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध है।
    • उदाहरण: श्याम नारायण चौकसे बनाम भारत संघ मामले में, उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाया जाएगा। इसे न्यायिक अतिरेक के उदाहरण के रूप में देखा गया।
  • प्रेस की स्वतंत्रता: इससे समाचारों में आसानी से हेरफेर हो सकता है और गलत सूचना एवं फर्जी समाचारों के प्रसार से जनता का विश्वास कमजोर होता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (World Press Freedom Index) में 180 देशों में भारत 161वें स्थान पर था।
  • लोकतांत्रिक भागीदारी का विस्तार: भारतीय लोकतंत्र की इस चुनौती में निम्नलिखित व्यावहारिक पहलू शामिल हैं:
    • स्थानीय सरकारों को अधिक शक्ति सुनिश्चित करना।
    • संघ की सभी इकाइयों तक संघीय सिद्धांतों का विस्तार।
    • महिलाओं एवं अल्पसंख्यक समूहों का समावेश।
  • राजनीति का अपराधीकरण: भारतीय लोकतंत्र की यह चुनौती धन और बाहुबल, हिंसा, चुनावी नैतिकता की कमी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं जैसे अपर्याप्त सामाजिक भागीदारी आदि को दर्शाती है।
    • वर्ष 2019 के आम चुनाव में लोकसभा के लिए चुने जाने वालों सदस्यों में से 43% पर अपराध के आरोप लगे हैं।
    • भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (Corruption Perceptions Index- CPI), 2023 में, भारत 180 देशों में से 93वें स्थान पर है, जो वर्ष 2022 में इसके 85वें स्थान से थोड़ी गिरावट दर्शाता है।
  • हिंसा की चुनौती: हिंसा भारत के लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, मानवाधिकार, सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 वैश्विक शांति सूचकांक (Global Peace Index- GPI) में भारत 126वें स्थान पर है।
  • अन्य चुनौतियाँ: अशिक्षा, गरीबी, लैंगिक भेदभाव आदि।

लोकतंत्र से जुड़े सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णय

  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य, 1973: भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत दिया, जिसने लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं जैसे- शक्तियों के पृथक्करण, संघवाद और न्यायिक समीक्षा को बरकरार रखा।
  • इंदिरा-नेहरू-गांधी बनाम राज नारायण, 1975: इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को दोहराया गया और ‘कानून के शासन’ को पुनर्स्थापित किया गया।
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ, 1978: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार और कानून की उचित प्रक्रिया मौलिक अधिकार है।
  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ, 1994: भारतीय लोकतंत्र की अर्द्ध-संघीय प्रकृति को कायम रखने से संबंधित था।
  • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत) बनाम भारत संघ, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की गरिमा पर जोर देता है।

आगे की राह

  • लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करना: भारत को संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • संघवाद की रक्षा करना: समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देने के लिए, भारत को संघवाद की रक्षा करने और सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
  • पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया: वर्तमान में पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देशों को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
  • बुनियादी मानवाधिकारों का दृष्टिकोण: भारत के पास प्रत्येक नागरिक को मौलिक मानवाधिकार प्रदान करके सशक्त बनाने के लिए एक तर्कसंगत, योजनाबद्ध और वैज्ञानिक आर्थिक व्यवस्था होनी चाहिए।
  • समावेशी विकास: यह विकास की कुंजी है। समावेशी नीति-निर्माण और नीति कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, नागरिक समाज, निजी एजेंसियों और स्थानीय सरकार को शामिल करने के लिए लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यापक बनाया जाना चाहिए।
  • सहयोगात्मक दृष्टिकोण: वैश्विक स्तर पर, नागरिकों के लिए न्यूनतम नियमों एवं अधिकारों पर व्यापक सहमति के साथ एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण को स्वीकार करने की आवश्यकता है।

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