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भारत में स्वास्थ्य समता

Lokesh Pal April 09, 2024 05:49 169 0

संदर्भ

प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस (World Health Day) मनाया जाता है, जिसमें वैश्विक स्वास्थ्य और न्याय के लिए स्वास्थ्य समानता के मुद्दे पर जोर दिया जाता है। 

  • वर्ष 2024 के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस (World Health Day) की थीम ‘मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार’ (My Health, My Right) है।

संबंधित तथ्य 

  • स्वास्थ्य मौलिक मानव अधिकार: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य को मौलिक मानव अधिकार घोषित किया है।
  • स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में असमानता: हालाँकि, स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में एक चिंताजनक अंतर है, जो कि COVID-19 महामारी, पर्यावरणीय संकट और बढ़ते सामाजिक-आर्थिक अंतर के कारण उजागर हुआ है।
  • उल्लेखनीय है कि 140 से अधिक देश स्वास्थ्य को एक संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता देते हैं, ‘सभी के लिए स्वास्थ्य के अर्थशास्त्र’ (Economics of Health for All) पर WHO परिषद की रिपोर्ट है कि दुनिया की आधी से अधिक आबादी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पूर्ण पहुँच की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य और विकास का अंतर्संबंध

  • किसी भी देश में जनसंख्या का स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिए एक मूलभूत आवश्यकता है।
  • इसलिए, किसी राष्ट्र का विकास उसके लोगों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने की क्षमता पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इससे न केवल उत्पादकता बढ़ती है और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा मिलता है, बल्कि एक कुशल कार्यबल भी तैयार होता है, जिससे अंततः जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार होता है।

स्वास्थ्य समता (Health Equity)

  • परिचय: यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी उच्चतम स्वास्थ्य क्षमता प्राप्त करने का समान अवसर मिले, चाहे उनकी परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
  • स्वास्थ्य असमानता के मूल कारण को संबोधित करना: यह गरीबी, भेदभाव, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक सीमित पहुँच, स्वस्थ आहार, स्वच्छ जल, ताजी हवा और आवास जैसी स्वास्थ्य असमानताओं के मूल कारणों को संबोधित करता है और केवल स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच प्रदान करता है।
    • उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी में पैदा हुए बच्चे को स्वच्छ जल, पौष्टिक भोजन या टीकाकरण तक पहुँच उपलब्ध नहीं होती है, जो पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं की नींव रखता है।
    • यह अंतराल महामारी, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक-राजनीतिक अशांति से और भी बदतर हो गए हैं।
  • मानव अधिकार के रूप में स्वास्थ्य: मानव अधिकार के रूप में स्वास्थ्य को स्वतंत्रता के रूप में देखा जाना चाहिए, जहाँ प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक स्वास्थ्य तक पहुँच के अपने अधिकारों के हिस्से के रूप में स्वास्थ्य और कल्याण प्राप्त करने की संभावना है।

संवैधानिक प्रावधान: संविधान के भाग IV में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) स्वास्थ्य के अधिकार के लिए एक आधार प्रदान करते हैं। 

  • अनुच्छेद-39 (e): यह राज्य को श्रमिकों के स्वास्थ्य को सुरक्षित करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद-42: यह काम और मातृत्व राहत की उचित एवं मानवीय स्थितियों पर जोर देता है।
  • अनुच्छेद-47: यह राज्य पर पोषण स्तर और जीवन स्तर को बढ़ाने एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के कर्तव्य को संबोधित करता है।
  • अनुच्छेद-243G: संविधान न केवल राज्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का आदेश देता है, बल्कि अनुच्छेद-243G के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए पंचायतों एवं नगर पालिकाओं को भी अधिकार देता है।

भारत की स्वास्थ्य समता संबंधी चुनौती

  • खराब बजटीय फंडिंग: केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और आयुष मंत्रालय का संयुक्त बजट वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमान का केवल 0.27% है।
    • विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि स्वास्थ्य बजट GDP का कम-से-कम 3 प्रतिशत होना चाहिए।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में वर्ष 2025 तक बजट को सकल घरेलू उत्पाद का कम-से-कम 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। 
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में अस्पताल के बिस्तरों का घनत्व 1.3 बिस्तरों/1,000 जनसंख्या है, जो अनुशंसित 3 बिस्तरों/1,000 जनसंख्या के मानक से काफी कम है अर्थात्  लगभग 24 लाख बिस्तरों की कमी है।
    • शहरी क्षेत्रों में, पिछले दशक में 70 प्रतिशत से अधिक बिस्तर क्षमता विस्तार निजी क्षेत्र द्वारा किया गया है।
    • इसके अलावा, नए निवेश में मंदी है, विशेषकर टियर 2, टियर 3 शहरों और उससे आगे के शहरों में।

स्वास्थ्य समानता में निजी क्षेत्र की भूमिका

  • किसी कंपनी के कार्यबल और आपूर्ति शृंखला के अंतर्गत स्वास्थ्य समता को संबोधित करना।
  • यह सुनिश्चित करना कि उत्पाद एवं सेवाएँ ग्राहकों की स्वास्थ्य समता का समर्थन करें।
  • कंपनी के पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance- ESG) कार्यक्रम के अंतर्गत स्वास्थ्य समता को शामिल करना और स्वास्थ्य समता की प्राप्ति सुनिश्चित करना सामाजिक प्रभाव रणनीति का हिस्सा है।

  • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में असमानताएँ
    • ग्रामीण-शहरी विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच महानगरीय क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है। सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ इस असमानता को बढ़ाती हैं।
      • भारत स्वास्थ्य सूचकांक (Bharat Health Index- BHI) 2023 नामक एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में केवल 25 प्रतिशत अर्द्ध-ग्रामीण और ग्रामीण आबादी के पास अपने इलाकों में आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच है।
    • जाति और लैंगिक असमानताएँ: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) -5 (2019-21) डेटा इंगित करता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में उच्च बाल मृत्यु दर और कम टीकाकरण दर को देखा गया है।
      • इसके अलावा, सबसे निचले धनी वर्ग में 59% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
    • शहरी मलिन बस्तियों में स्वास्थ्य असमानताएँ: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, शहरी मलिन बस्तियाँ भारत के महानगरीय क्षेत्रों का 17% से अधिक हिस्सा बनाती हैं, और गंभीर स्वास्थ्य असमानताएँ प्रदर्शित करती हैं।
      • भीड़भाड़, खराब स्वच्छता और स्वच्छ जल तक सीमित पहुँच से स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं।
      • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, तपेदिक जैसी संक्रामक बीमारियाँ गैर-झुग्गी बस्तियों की तुलना में मलिन बस्तियों में 1.5 गुना अधिक आम हैं।
    • भारत में एक बड़ी प्रवासी आबादी है: जनगणना 2011 के अनुसार, अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों की कुल संख्या लगभग 41 मिलियन थी और कुल प्रवासन दर 28.9% थी। (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2020-21)
    • स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की कमी: सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर स्वीकृत पदों के मुकाबले बड़ी संख्या में रिक्तियाँ हैं।
      • 75% से अधिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर महानगरीय क्षेत्रों में काम करते हैं, जो आबादी का केवल 27% है; कमी विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गंभीर है।
      • डॉक्टरों की गंभीर कमी इन मुद्दों को बढ़ा देती है, WHO के आँकड़ों के अनुसार प्रति 1,000 लोगों पर केवल 0.8 डॉक्टर हैं, जो अनुशंसित अनुपात से कम है।
    • निजी क्षेत्र का अपर्याप्त विनियमन: देश में स्वास्थ्य देखभाल के उपयोग में निजी स्वास्थ्य सेवा का योगदान लगभग 70% है और इसे उच्च लाभ कमाने की अनुमति है, क्योंकि यह अपर्याप्त रूप से विनियमित है और अक्सर रोगियों से अत्यधिक शुल्क वसूलता है।
      • क्लिनिकल प्रतिष्ठान (केंद्र सरकार) नियम, 2012 निर्दिष्ट करते हैं कि सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अपनी दरें प्रदर्शित करनी चाहिए और समय-समय पर सरकार द्वारा निर्धारित मानक दरों पर शुल्क लेना चाहिए।
      • हालाँकि, इन कानूनी प्रावधानों को अभी भी लागू किया जाना बाकी है।
    • मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे: युवाओं में आत्महत्या का मुद्दा, भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। सभी आत्महत्याओं में से 1% आत्महत्याएँ 30 वर्ष से कम उम्र के युवाओं से संबंधित होती हैं।
      • दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्याएँ भारत में होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट है कि वर्ष 2022 में 1.71 लाख लोगों की मृत्यु का कारण आत्महत्या थी।
    • छिपी हुई भूख का मुद्दा: केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, एनीमिया की व्यापकता है:
      • 6-59 महीने के बच्चों में 58.6 प्रतिशत
      • 15-49 वर्ष की महिलाओं में 53.1 प्रतिशत
      • 15-49 वर्ष की आयु की गर्भवती महिलाओं में 50.4 प्रतिशत
      • 15-49 वर्ष की आयु के पुरुषों में 22.7 प्रतिशत।

सरकारी पहल 

  • आयुष्मान भारत कार्यक्रम (Ayushman Bharat Programme): यह समग्र और एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करता है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage- UHC) प्राप्त करने का प्रमुख माध्यम है। घटकों में शामिल हैं:
    • स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र घटक (AB-HWC): यह टीकाकरण और पोषण सहित मातृ, नवजात और बाल स्वास्थ्य सेवाओं जैसी आवश्यक प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करता है।
    • एबी-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY): यह लगभग 500 मिलियन गरीबों और वंचित लोगों को माध्यमिक और तृतीयक अस्पताल में भर्ती देखभाल के लिए मुफ्त तथा कैशलेस देखभाल प्रदान करती है।
    • कैंसर के लिए तृतीयक देखभाल योजना का सुदृढ़ीकरण: इसे देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य कैंसर संस्थानों (State Cancer Institutes- SCI) और तृतीयक देखभाल कैंसर केंद्रों (Tertiary Care Cancer Centres- TCCC) की स्थापना में सहायता के लिए कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • वित्तीय सहायता: राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi- RAN), स्वास्थ्य मंत्री कैंसर रोगी निधि (Health Minister’s Cancer Patient Fund- HMCPF) और स्वास्थ्य मंत्री विवेकाधीन अनुदान (Health Minister’s Discretionary Grant- HMDG) जैसी योजनाओं के तहत जीवन-घातक बीमारियों के लिए गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले मरीजों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • उपचार के लिए सस्ती दवाएँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण (अमृत) दीनदयाल आउटलेट: इन्हें हृदय रोगों (Cardiovascular Diseases- CVDs), कैंसर और मधुमेह के लिए मरीजों को रियायती कीमतों पर दवाएँ और प्रत्यारोपण उपलब्ध कराने के लिए खोला गया है।
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (Janani Shishu Suraksha Karyakram- JSSK): इसके तहत मुफ्त दवाएँ, निदान, रक्त और आहार, घर से संस्थान तक मुफ्त परिवहन प्रदान किया जाता है।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (Rashtriya Bal Swasthya Karyakram- RBSK): यह नवजात और बाल स्वास्थ्य जाँच और जन्म दोषों, बीमारियों, कमियों तथा विकास संबंधी देरी के लिए प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाएँ निःशुल्क प्रदान करता है।
  • भारत के लिए राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति: इसका लक्ष्य मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए शैक्षणिक संस्थानों एवं युवा संगठनों का लाभ उठाकर वर्ष 2030 तक आत्महत्या को 10% तक कम करना है।

स्वास्थ्य परिणामों में सुधार में प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • स्वास्थ्य मैट्रिक्स पर नजर रखना: मोबाइल ऐप्स और रिमोट मॉनिटरिंग उपकरणों के उपयोग से, व्यक्ति आसानी से अपनी स्वास्थ्य मैट्रिक्स को ट्रैक कर सकते हैं और डॉक्टर के पास जाए बिना व्यक्तिगत सिफारिशें प्राप्त कर सकते हैं।
    • इससे समय और धन की बचत होती है और पुरानी स्थितियों का बेहतर प्रबंधन संभव हो पाता है।
  • डेटा विश्लेषण के माध्यम से निवारक देखभाल को बढ़ावा देना: फिटनेस ट्रैकर, स्मार्ट स्केल और रक्त ग्लूकोज मॉनिटर जैसे विभिन्न स्रोतों से वास्तविक समय डेटा एकत्र करके और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा मशीन लर्निंग के उपयोग से, उन पैटर्न की पहचान की जा सकती है, जो संभावित स्वास्थ्य जोखिमों का संकेत देते हैं।
    • इस जानकारी का उपयोग व्यक्तियों द्वारा जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन करने के लिए किया जा सकता है या इसे अधिक लक्षित उपचार योजनाओं के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ साझा किया जा सकता है।
  • निदान और उपचार: उदाहरण के लिए, MRI और सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग प्रौद्योगिकियाँ पहले से कहीं अधिक सटीकता के साथ बीमारियों का पता लगाने की अनुमति देती हैं।
    • रोबोटिक सर्जरी तकनीकों ने आक्रामकता को कम करते हुए सटीकता बढ़ाकर सर्जिकल परिणामों में सुधार किया है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 (National Health Policy, 2017)

यह अपने लक्ष्य के रूप में ‘अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर की प्राप्ति, और बिना किसी को वित्तीय कठिनाई का सामना किए अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच’ को स्पष्ट करता है, जो UHC लक्ष्य के अनुरूप है।

आगे की राह

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) का कार्यान्वयन: यह देखते हुए कि स्वास्थ्य एक राज्य का विषय है और यूएचसी नीति की परिकल्पना राष्ट्रीय स्तर पर की गई है, कार्यान्वयन रणनीतियों पर चर्चा की आवश्यकता है।
  • जेब से होने वाले खर्च को कम करना: जेब से होने वाले खर्च को कम करने के लिए प्रतिपूर्ति प्रक्रियाओं को सरल बनाने की आवश्यकता है।
    • भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में नकद हस्तांतरण और प्रतिपूर्ति के डिजाइन को प्रवासी तथा हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए अनुकूलन की आवश्यकता है।
  • मजबूत स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचा: इसमें अत्याधुनिक अस्पतालों का निर्माण, स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क का विस्तार और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि स्वास्थ्य सेवाएँ सभी नागरिकों के लिए सुलभ हों।
  • स्वास्थ्य साक्षरता बढ़ाना: स्वास्थ्य समानता हासिल करने के लिए स्वास्थ्य साक्षरता बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत को एनएचएम में स्वास्थ्य शिक्षा को शामिल करके स्वास्थ्य समानता को एक साझा, समुदाय-संचालित लक्ष्य में बदलना चाहिए, जिससे अपने लोगों को न्यायसंगत देखभाल प्राप्त करने और शिक्षित स्वास्थ्य निर्णय लेने में सक्षम बनाया जा सके।
  • निवारक देखभाल में निवेश: बीमारियों के बोझ को कम करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के लिए निवारक देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
    • इन पहलों में टीकाकरण अभियान, रोग निगरानी और स्वास्थ्य शिक्षा अभियान शामिल हैं, जो विभिन्न आयु समूहों और समुदायों को लक्षित करते हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल दरों की पारदर्शिता सुनिश्चित करना: अब समय आ गया है कि स्वास्थ्य देखभाल दरों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और दरों के मानकीकरण को उचित तरीके से लागू किया जाए।
    • यह तब सुनिश्चित किया जा सकता है जब क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट नियम लागू किए जाएँ या जब राज्य सरकारें स्वयं के बेहतर अधिनियम अपनाएँ।
  • अतार्किक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेपों की जाँच के लिए मानक प्रोटोकॉल: अतार्किक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेपों की जाँच करने के लिए मानक प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है, जिन्हें वर्तमान में व्यावसायिक विचारों के कारण व्यापक पैमाने पर प्रचारित किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए, भारत में निजी अस्पतालों (48%) में सिजेरियन डिलीवरी का अनुपात सार्वजनिक अस्पतालों (14%) की तुलना में तीन गुना अधिक है।
    • निजी अस्पतालों में, सिजेरियन सेक्शन के लिए यह हिस्सा चिकित्सकीय रूप से अनुशंसित मानक (सभी प्रसवों का 10-15%) से कहीं अधिक है।
  • रोगी अधिकार चार्टर का प्रवर्तन: संपूर्ण रोगी अधिकार चार्टर को देश भर में सभी स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए, ताकि रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों को अनुकूल वातावरण में देखभाल मिल सके।
  • समुदाय आधारित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल: समुदाय आधारित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को शहरी और उप-शहरी क्षेत्रों में निर्बाध रेफरल प्रणालियों के साथ लागू किया जाना चाहिए। इसमें शामिल हो सकते हैं:
    • 1.7 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (अब इसका नाम बदलकर आयुष्मान आरोग्य मंदिर कर दिया गया है।) के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करना।
    • स्वास्थ्य बीमा के तहत ओपीडी देखभाल को कवर करने के लिए एक तंत्र बनाना।
  • शिकायत निवारण प्रणाली: निजी अस्पतालों से संबंधित गंभीर शिकायतों वाले मरीजों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर से ऊपर तक उपयोगकर्ता-अनुकूल शिकायत निवारण प्रणाली संचालित की जानी चाहिए।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • थाईलैंड: यह एक सार्वभौमिक कवरेज योजना के माध्यम से स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करता है, जो सामान्य सर्दी से लेकर अंग प्रत्यारोपण तक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं की पूरी शृंखला के लिए उत्तरदायी है।
  • कनाडा: इसमें एक विकेंद्रीकृत, सार्वभौमिक, सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य प्रणाली है, जिसे कैनेडियन मेडिकेयर कहा जाता है।

निष्कर्ष

स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है। यह न केवल व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है बल्कि अधिक न्यायसंगत, लचीला और टिकाऊ समुदाय बनाने में भी योगदान देता है।

  • परस्पर अंतर्संबंधित दुनिया में, स्वास्थ्य देखभाल में वैश्विक सहयोग के महत्त्व को पहचानना आवश्यक है। विभिन्न देशों के सामूहिक ज्ञान, संसाधनों और सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ, हम सभी के लिए एक स्थायी भविष्य प्राप्त कर सकते हैं।

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