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स्पुटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी

Lokesh Pal April 09, 2024 06:29 182 0

संदर्भ 

‘भारत TB रिपोर्ट 2024’ के अनुसार, अनुमानतः TB के 79% मामलों का परीक्षण अभी भी दशकों पुराने स्पुटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी के द्वारा किया जा रहा है, जबकि केवल 21% मामलों में आणविक परीक्षण (Molecular Test) का उपयोग हो रहा है।

संबंधित तथ्य 

  • ‘राष्ट्रीय सामरिक योजना 2017-2025’ का लक्ष्य स्पुटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी प्रक्रिया के उपयोगकर्ताओं की संख्या को वर्ष 2015 में 9.1 मिलियन से घटाकर वर्ष 2023 में 5.1 मिलियन करनी थी तथा साथ ही आणविक परीक्षणों की संख्या वर्ष 2015 में 40,000 से बढ़ाकर वर्ष 2023 में 14.7 मिलियन से अधिक करनी थी।
  • हालाँकि भारत TB रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में ‘NSP 2017-2025’ द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य से बहुत दूर था।

अनुमानित TB (Presumptive TB) का तात्पर्य उस रोगी से है, जिसमें TB के लक्षण दिखाई देते हैं (पहले ऐसे रोगियों को TB संदिग्ध के रूप में जाना जाता था)।

स्पुटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी (Sputum Smear Microscopy)

  • फेफड़े के क्षय रोग के इलाज के लिए सामान्य रूप से स्पुटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है।
  • यह सरल, तीव्र और सस्ती तकनीक है, जो क्षय रोग के अत्यधिक प्रसार वाले क्षेत्रों में बहुत प्रचलित है।
  • इस तकनीक के उपयोग से सर्वाधिक संख्या में संक्रमित रोगियों की पहचान की जाती है तथा कई सामाजिक-आर्थिक स्तर (जैसे 3,4,5 स्तर) पर व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जा रहा है। इसलिए यह तकनीक दुनिया भर में TB नियंत्रण के लिए वैश्विक रणनीति का अभिन्न अंग रहा है।

सीमाएँ

  • कम संवेदनशीलता: जब जीवाणु की संख्या एक मिलीलीटर स्पुटम में 10,000 से कम होती है तो परीक्षण की संवेदनशीलता बहुत प्रभावित होती है।

  • अपर्याप्त तकनीक: फेफड़ों से संबंधित विशिष्ट क्षयरोग, बाल क्षय रोग तथा HIV-क्षय रोग से पीड़ितों के परीक्षण में इसका तकनीक का प्रदर्शन बहुत खराब है।
  • बलगम के निरंतर जाँच की आवश्यकता: कुछ मरीज अपने बलगम की जाँच बार-बार नहीं करवाते हैं, जिन्हें ‘नैदानिक दोषी’ (Diagnostic Defaulter) माना जाता है।

वैकल्पिक विधि के रूप में आणविक निदान तकनीक

  • Xpert MTB/ RIF
    • यह आणविक निदान में सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है, जिससे क्षय रोग का परीक्षण होता है।
    • यह एम. ट्यूबरकुलोसिस (M. tuberculosis) और रिफैम्पिन (Rifampin) प्रतिरोध का एक साथ पता लगाने के लिए एक सेमी-नेस्टेड रियल टाइम फ्लोरोसेंट PCR है।
  • लूप-मध्यस्थ समतापीय प्रवर्द्धन (Loop-Mediated Isothermal Amplification): यह एक प्रकार का न्यूक्लिक अम्ल प्रवर्द्धन परीक्षण (NAAT) है, जिसमें रोगी के नमूने से रोगजनक DNA की उपस्थिति का पता लगाने के लिए DNA पोलीमरेज (DNA Polymerase) और विशेष प्राइमरों (Special Primers) का उपयोग किया जाता है।
  • डिजिटल PCR
    • डिजिटल PCR (dPCR) नई प्रकार की न्यूक्लिक अम्ल परिमाणीकरण तकनीक (Nucleic Acid Quantification Technology) है, जिसके लिए बहुत कम मात्रा में अणुओं की आवश्यकता होती है।
    • dPCR एक सटीक और संवेदनशील तकनीक है, जो DNA के नमूनों का पता लगा सकती है।

रोग प्रतिरक्षण निदान तकनीक

  • ट्यूबरकुलिन त्वचा परीक्षण और इंटरफेरॉन-γ जाँच (Tuberculin Skin Test and Interferon-γ Test)
    • खासकर बाल क्षय रोग और क्षय रोग की उचित समय पर पहचान करने में ट्यूबरकुलिन त्वचा परीक्षण (Tuberculin Skin Test) तथा ट्यूबरकुलिन प्रोटीन परीक्षण (Tuberculin Protein Test) की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
    • हालाँकि यह तकनीक BCG टीकाकरण तथा एम. क्षय रोग संक्रमण के कारण होने वाले सकारात्मक परिणामों को प्रभावी ढंग से अलग करने में सक्षम नहीं हैं, साथ ही यह प्रतिरक्षाविहीन TB रोगियों से संबंधित परीक्षणों में विश्वसनीय परिणाम नहीं प्रदान करती है।
  • प्रतिरक्षा-PCR जाँच: प्रतिरक्षा-PCR (I-PCR) जाँच के माध्यम से क्षय रोगियों के शरीर के तरल पदार्थों में माइकोबैक्टीरियल एंटीजन (Mycobacterial Antigens) और एंटीबॉडी (Antibodies) का पता लगाया जाता है। इस प्रकार, यह तकनीक क्षय रोग के निदान के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।
  • लेटरल फ्लो यूरिन लिपोअरबिनोमैनन टेस्ट (Lateral Flow Urine Lipoarabinomannan Test): इस जाँच में एम. क्षयरोग (M. tuberculosis) के प्रतिनिधि संरचनात्मक एपिटोप के साथ-साथ सूक्ष्म-जीवाणु की कोशिका की दीवारों पर मौजूद लिपोपॉलीसैकेराइड (Lipopolysaccharide) का उपयोग किया जाता है।

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