प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: विघटनकारी सैन्य प्रौद्योगिकी एवं ड्रोन प्रौद्योगिकी के बारे में ।
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: नई सैन्य प्रौद्योगिकी और रक्षा तैयारियों से संबंधित मुद्दे।
संदर्भ:
भारतीय सेना द्वारा वर्ष 2024 को “प्रौद्योगिकी समावेशन वर्ष (Year of Technology Absorption)” के रूप में मनाया जा रहा है।
हालाँकि मुख्य मुद्दा सेना की आवश्यकताओं को भली-भांति समझते हुए तकनीकी समावेशन को बनाए रखने में निहित है।
विघटनकारी प्रौद्योगिकी (DT-disruptive Technology) के संदर्भ में प्रौद्योगिकी समावेशन क्या है?
इसमें कृत्रिम प्रौद्योगिकी, स्वायत्त हथियार प्रणाली, ड्रोन, सेंसर, रोबोटिक्स, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली ,जिन्हें परंपरागत प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है इत्यादि भी शामिल हैं।
विघटनकारी प्रौद्योगिकियों का रणनीतिक समावेशन:
प्रौद्योगिकियों की क्षमता: ‘प्रौद्योगिकी समावेशन का वर्ष’ पहल भारतीय सेना की कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वायत्त प्रणालियों और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसी विघटनकारी प्रौद्योगिकियों की परिवर्तनकारी शक्ति की स्वीकार्यता को प्रदर्शित करती है।
प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त: सेना को उम्मीद है कि इन प्रौद्योगिकियों को अपनाने संबंधी प्राथमिकता के द्वारा सेना प्रतिद्वंद्वियों पर प्रतिस्पर्धात्मक लाभ बनाए रखने और उभरती समस्याओं से सफलतापूर्वक निपटने की अपनी क्षमता में सुधार ला सकती है।
आत्मनिर्भरता: प्रौद्योगिकी समावेशन पर केन्द्रित यह रणनीति, आत्मनिर्भरता के संबंध में अपनाई जाने वाली समग्र रणनीति के अनुरूप है, जो रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी विकास पर बल देता है।
परंपरागत प्रणाली के साथ एकीकरण:
एकीकरण: विघटनकारी प्रौद्योगिकी को अपनाये जाने के अंतर्गत परंपरागत प्रणालियों और सैन्य संगठनों के साथ अत्याधुनिक नवाचारों को एकीकृत करना शामिल है।
परिवर्तन के बजाय पूरक बनाना: पारंपरिक हथियार प्लेटफार्मों को परिवर्तित करने के बजाय, परिचालन दक्षता और रणनीतिक प्रभावकारिता में सुधार के लिए उन्हें आधुनिक तकनीक के साथ पूरक बनाने पर बल दिया जा रहा है।
निर्बाध परिवर्तन: यह रणनीति मौजूदा सैन्य सिद्धांतों और आगामी तकनीकी सफलताओं के मध्य निरंतरता और तालमेल को बढ़ावा देती है, जिससे सेना का तकनीकी रूप से अधिक उन्नत सेना में सहज परिवर्तन संभव हो पाएगा ।
प्रौद्योगिकी समावेशन की दिशा में चुनौतियाँ:
अनुकूलता चुनौतियाँ: मौजूदा संरचनाओं या प्रणालियों में प्रस्तुत नई तकनीके, जिन्हें कभी-कभी परंपरागत प्रणाली के रूप में जाना जाता है, अनुकूलता संबंधी चिंताओं और अनुकूलन की आवश्यकता के कारण कठिन हो सकती है।
प्रशिक्षण और कौशल विकास पर अधिक समय देना : यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कर्मचारियों को नई प्रौद्योगिकियों को संचालित करने और बनाए रखने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जाए। तकनीकी कौशल और ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय निवेश और समय प्रतिबद्धता की आवश्यकता हो सकती है।
संसाधनों की कमी: सीमित वित्तीय और मानव संसाधन के कारण प्रौद्योगिकी अपनाये जाने की प्रक्रिया सीमित हो सकती हैं, क्योंकि मौजूदा सैन्य व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सेना संबंधी व्यय में वृद्धि की आवश्यकता होती है। इस वजह से सेना के पास प्रौद्योगिकी अपनाने के संबंध में व्यय हेतु अपेक्षाकृत कम निवेश हो पता है।
साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: नई तकनीकों को एकीकृत करने से साइबर खतरों एवं विभिन्न सुभेद्य्ताओं की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में साइबर हमलों से प्रणाली और नेटवर्क की सुरक्षा करना महत्वपूर्ण हो जाता है।
आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन: महत्वपूर्ण घटकों या प्रौद्योगिकियों के लिए वाह्य आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता, उपलब्धता और सुरक्षा से संबंधित खतरा उत्पन्न हो सकता है, उदाहरंस्वरूप अमेरिका से लड़ाकू जेट इंजन का आयात करना ।
तकनीकी समावेशन को व्यवस्थित रूप से नियंत्रित करने की आवश्यकता है:
संवेदनशीलता की पहचान: सैन्य संगठन और गतिविधियों के अंतर्गत वर्तमान कमियों और संवेदनशीलता को पहचानना आवश्यक है। वर्तमान क्षमताओं और भविष्य की आवश्यकताओं के मध्य अंतर को पहचानना जरुरी है ।
नवीनतम तकनीकों की समझ: नवीनतम तकनीकी प्रगति और सैन्य अभियानों में उनके संभावित उपयोग को समझना भी आवश्यक है। साथ ही, उस संदर्भ को भी समझना जरुरी है, जिसमें इन तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
यूनिट स्तर पर एकीकरण: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रौद्योगिकी को सिर्फ कमांड के उच्च स्तर पर अपनाए जाने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि इसे यूनिट स्तर पर भी अपनाया जाना चाहिए । अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग का लोकतंत्रीकरण आवश्यक है ।
मैक्रो-स्तरीय पहलुओं पर ध्यान : इसमें संगठनात्मक पुनर्गठन, मानव संसाधन प्रबंधन, विभिन्न स्तरों पर विशेषज्ञों का विकास, नागरिक-सैन्य संलयन, डेटा इंटीग्रिटी प्रबंधन और रक्षा प्रौद्योगिकियों (DT) के लिए खरीद नियम संबंधी अनुकूलता शामिल हैं।
हालिया युद्धों से सीख: भविष्य की योजना और निर्णय लेने में सुधार के लिए हालिया एवं वर्तमान में चल रहे संघर्षों (जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष) से प्राप्त सबक का विश्लेषण किया जाना चाहिए ।
निष्कर्ष:
गौरतलब है कि भारतीय सेना वांछित दिशा में आगे बढ़ रही है, लेकिन उपयुक्त आवश्यकताओं की सूक्ष्म समझ के साथ इसे बनाए रखना काफी चुनौतीपूर्ण होगा । इस संदर्भ में, हालिया एवं वर्तमान में चल रहे युद्धों से मिले सबकों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
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