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आपदा राहत निधि के संबंध में उच्चतम न्यायालय का मत

Lokesh Pal April 10, 2024 06:18 162 0

संदर्भ 

सूखा प्रभावित राज्य कर्नाटक द्वारा राहत संबंधी अनुरोध पर ध्यान नहीं दिए जाने पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को आगाह किया है।

संबंधित तथ्य 

तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे कई अन्य राज्यों ने भी केंद्र से आपदा राहत निधि मिलने में विलंब तथा कथित उपेक्षा के कारण केंद्र सरकार के विरुद्ध मामले दर्ज किए हैं।

राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ मामले दर्ज करवाने की वजह 

  • आपदा राहत निधि प्रदान करने में विलंब: NDRF के प्रावधानों के तहत, सूखा राहत के लिए कर्नाटक का 18,171.44 करोड़ रुपये का अनुरोध छह महीने से लंबित है, जिसके कारण राज्य में 35,162.05 करोड़ रुपये की फसल नष्ट हो गई है।
  • आपदा प्रबंधन कानूनों के तहत दायित्वों को पूरा करने में केंद्र की विफलता: कर्नाटक ने कहा है कि केंद्र ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act) का उल्लंघन किया है तथा आदेशानुसार एक महीने के अंदर NDRF सहायता पर उचित निर्णय नहीं लिया है।
  • नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: कर्नाटक सरकार का तर्क है कि केंद्र की निष्क्रियता के कारण जरूरतमंदों को सहायता प्रदान नहीं की जा सकी, जो नागरिकों के जीवन के अधिकार (अनुच्छेद-21) और समानता के अधिकार (अनुच्छेद-14) का उल्लंघन है।
  • केंद्र सरकार द्वारा अधिकारों का उल्लंघन: केरल ने केंद्र पर उसकी शुद्ध उधार की सीमा (Net Borrowing Limit) में हस्तक्षेप करने तथा राज्य को वित्तीय आपातकाल की ओर धकेलने का भी आरोप लगाया है।

राज्यों हेतु आपदा राहत निधि के वितरण में केंद्र की भूमिका

  • भारत सरकार दो प्रकार के आपदा राहत माध्यमों से राज्य सरकार को सहायता प्रदान करती है
    • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund- SDRF)
      • इस कोष में केंद्र और राज्य सरकारों का योगदान 75:25 के अनुपात में होता है।
      • इसके अंतर्गत, उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्य शामिल नहीं हैं, जिनके लिए केंद्र एवं राज्यों के योगदान का अनुपात 90:10 है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund- NDRF)
      • इस कोष में केंद्र सरकार का पूर्ण योगदान होता है।
      • इसके तहत, किसी व्यक्ति अथवा संस्था से अंशदान/अनुदान प्राप्त करने का अतिरिक्त प्रावधान है।
      • योगदान विभिन्न माध्यमों से स्वीकार किए जाते हैं।
      • इस कोष का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 (1) (b) के अनुसार किया गया है।

वर्ष 2021 में 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अतिरिक्त दो शमन निधि का गठन किया गया।

  • राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (National Disaster Mitigation Fund- NDMF): केंद्र ने आपदा जोखिमों के निपटने के लिए इस कोष की स्थापना की है।
  • राज्य आपदा न्यूनीकरण कोष (State Disaster Mitigation Fund- SDMF): आपदा जोखिमों के निपटने के लिए इस कोष की स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
    • SDMF के प्रावधानों के तहत, राज्यों की हिस्सेदारी के रूप में केंद्रीय फंड से 75% का योगदान केंद्र द्वारा किया जाएगा जबकि उत्तर-पूर्वी एवं हिमालयी राज्यों के कोष में 90% योगदान केंद्र द्वारा दिया जाएगा।

राहत राशि देने में केंद्र की विफलता का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • प्रतिक्रिया करने की सीमित क्षमता: राहत राशि के अभाव में कई राज्यों में प्रभावित लोगों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, परिणामस्वरूप प्रभावित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है।
  • राज्यों पर वित्तीय दबाव: यदि राहतकोष को अस्वीकृत या विलंबित कर दिया जाता है तो राज्यों को महत्त्वपूर्ण सेवाओं पर खर्च में कटौती करनी पड़ती है या दूसरे विकल्प के रूप में अधिक कर्ज लेना पड़ सकता है, इसके फलस्वरूप बजट पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा।
  • आय और उत्पादकता में कमी: सूखे से प्रभावित किसान तथा बाढ़ या चक्रवात से प्रभावित सामान्य लोगों की आय में कमी आ सकती है। इस प्रकार किसान एवं असंगठित क्षेत्र के लोग अर्थव्यवस्था में कम योगदान दे सकेंगे।
  • कृषि उत्पादन में गिरावट: उचित सहायता के अभाव में सूखे से प्रभावित किसानों की कृषि उत्पादकता में गिरावट आ सकती है, जिसका असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा और अंततः खाद्यान्नों का मूल्य बढ़ेगा।

इस मामले में उच्चतम न्यायालय की भूमिका 

भारत में सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण के रूप में उच्चतम न्यायालय का स्थान है।

  • कानूनी मिसाल: इन मामलों में न्यायालय के निर्णयों के अनुसार, आपदा राहत निधि के संबंध में राज्यों और केंद्र के बीच भविष्य के विवादों के लिए कानूनी सिद्धांत स्थापित किए जा सकते हैं।
    • यह आपदा प्रबंधन कानूनों के तहत केंद्र के दायित्वों तथा राज्यों की माँग संबंधी अधिकारों को स्पष्ट कर सकता है।
  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: केंद्र के निर्णयों और कार्यों की समीक्षा करने के पश्चात, न्यायालय उचित प्रक्रियाओं का पालन करने तथा आपदाग्रस्त राज्यों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सरकार को जवाबदेह ठहरा सकता है।
  • संसाधनों के निष्पक्ष आवंटन को बढ़ावा देना: केंद्र द्वारा आपदा राहत निधि के निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण आवंटन को न्यायालय द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके माध्यम से राज्यों के मध्य आर्थिक भेदभाव को कम किया जा सकता है।
  • संघीय ढाँचे को कायम रखना: राज्यों और केंद्र के बीच विवादों को न्यायिक प्रक्रिया द्वारा सुलझाया जा रहा है ताकि भारत के संघीय ढाँचे को कायम रखा जा सके तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन को सुनिश्चित किया जा सके।
  • संविधान की व्याख्या: संविधान सुनिश्चित करता है कि केंद्र और राज्य सरकारों को संविधान के तहत निर्मित कानूनों का पालन करना होगा।
    • संघ और राज्यों के बीच असहमति को आंतरिक रूप से निपटाने के लिए न्यायालय जोर देता रहा है।
  • सरकारी कार्यों की समीक्षा: उच्चतम न्यायालय सरकारी नीतियों और निर्णयों की जाँच करता है तथा सुनिश्चित करता है कि न्यायालय की सारी प्रक्रियाएँ संविधान एवं अन्य प्रासंगिक कानूनों में उल्लिखित सिद्धांतों के अनुरूप हो रही हों।

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