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जलवायु परिवर्तन और प्रजाति संरक्षण के संदर्भ में एक विशिष्ट अधिकार

Lokesh Pal April 10, 2024 05:00 142 0

संदर्भ :

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि लोगों के पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 द्वारा अभिज्ञात जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने का अधिकार है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21, एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1987) और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संबंध में।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने का अधिकार से संबंधित आवश्यकता और महत्त्व।

पृष्ठभूमि और विकास:

  • उच्चतम न्यायालय ने IUCN रेड लिस्ट में दो गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी प्रजातियों यथा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) और लेसर फ्लोरिकन की सुरक्षा के संबंध में एम. के. रंजीतसिंह और अन्य बनाम भारत संघ एवं  अन्य के मामले में अपना फैसला सुनाया।
    • दोनों पक्षी प्रजातियाँ वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के भाग III के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित प्रजातियाँ हैं।
  • अप्रैल 2021 में, न्यायालय द्वारा ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
    • विशेषज्ञ समिति द्वारा मूल्यांकन: इसके द्वारा केस-टू-केस (प्रत्येक केस पर गौर करते हुए) आधार पर भूमिगत हाई-वोल्टेज लाइनें बिछाने से संबंधित मूल्यांकन के लिए एक समिति नियुक्त की गई थी ।
    • भविष्य में सभी कम वोल्टेज वाली बिजली लाइनों को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के “संभावित” और “प्राथमिकता” वाले आवासों में भूमिगत रूप से बिछाने का निर्देश दिया गया था।
      • मौजूदा बिजली लाइनों के लिए, बर्ड डायवर्टर स्थापित किए जाने थे ।
  • केंद्र सरकार की कार्रवाई: बेंच को तीन केंद्रीय मंत्रालयों यथा पर्यावरण, बिजली और नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दायर याचिका का सामना भी करना पड़ा।
    • चूँकि भारत के प्रमुख सौर और पवन ऊर्जा उत्पादक प्रतिष्ठान राजस्थान और गुजरात क्षेत्र में स्थित हैं, इसलिए केंद्र द्वारा दावा किया गया कि अदालत के निर्देश नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाते हुए कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के संबंध में भारत की वैश्विक प्रतिबद्धताओं को क्षति पहुँचाएंगे।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई कार्रवाई: न्यायालय द्वारा दोनों राज्यों में 80,000 वर्ग किमी से अधिक के क्षेत्र में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करने की आवश्यकता के अपने पूर्ववर्ती आदेश को वापस ले लिया गया।
  • हालिया निर्णय: अप्रैल 2024 में, न्यायालय द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्टों पर विश्वास व्यक्त किया गया था, जिसमें 13,663 वर्ग किमी को “प्राथमिकता क्षेत्र” के रूप में, 80,680 वर्ग किमी “संभावित क्षेत्रों” के रूप में और 6,654 वर्ग किमी के क्षेत्र को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए “अतिरिक्त महत्वपूर्ण क्षेत्र” के रूप में पहचाना गया था।
    • विशेषज्ञ समिति का गठन: पीठ द्वारा एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया जिसमें एक स्वतंत्र विशेषज्ञ, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के सदस्य, बिजली कंपनियों के प्रतिनिधि और पर्यावरण और वन विभाग तथा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के पूर्व और सेवारत नौकरशाह शामिल थे। 
    • उद्देश्य: समिति का गठन दो उद्देश्यों खासकर पक्षी संरक्षण और भारत के सतत विकास लक्ष्यों को संतुलित करने हेतु उपायों की अनुशंसा के लिए किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पीछे तर्क:

  • पर्यावरण, स्वास्थ्य और जीवन का अधिकार: शीर्ष अदालत द्वारा बहुत समय पूर्व ही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छ वातावरण में रहने के अधिकार को जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई थी।
    • एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1987) का  मामला: उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को जीवन के अधिकार का एक हिस्सा माना गया।
    • तब से, सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के तहत यह रेखांकित किया गया है कि लोगों को प्रदूषण रहित हवा में सांस लेने, स्वच्छ जल पीने और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है।
  • बढ़ते जलवायु संबंधी खतरे: न्यायालय द्वारा यह तर्क दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा का अधिकार और एक स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार दोनों ही अविभाज्य हैं और प्रति वर्ष जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता खतरा मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
    • तापमान वृद्धि, तूफान और सूखे से लेकर फसल ख़राब होने के कारण भोजन की कमी और वेक्टर जनित बीमारियों में परिवर्तन जैसे कारकों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • असमानता में वृद्धि का जोखिम: यदि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय ह्रास के कारण किसी विशेष क्षेत्र में भोजन और जल की अत्यधिक कमी हो जाती है तो ऐसी स्थिति में गरीब समुदायों को अमीरों की तुलना में अधिक नुकसान होगा।
    • वंचित समुदायों की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने या इसके प्रभावों से निपटने में असमर्थता जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के साथ-साथ समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करती है।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः सभी संबद्ध हितधारकों को दो उद्देश्यों खासकर पक्षी संरक्षण और भारत के सतत विकास लक्ष्य को संतुलित करने के लिए एक प्रभावी समाधान निकालने हेतु सहयोगात्मक और सक्रिय तरीके से काम करने की आवश्यकता है।

News Source: The Hindu

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