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आईआईटी संबंधी अतिशयता के कारण छात्रों में असंतोष की प्रवृत्ति

Lokesh Pal April 10, 2024 05:30 131 0

संदर्भ:

प्रमुख संस्थानों में हाल ही में कई छात्रों द्वारा किये गए आत्महत्याओं ने एक अंतर्निहित समस्या की ओर इशारा किया है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में छात्रों की आत्महत्या- कारण और समाधान ।

छात्रों की आत्महत्या के पीछे विभिन्न कारक:

  • उच्च प्रतिस्पर्धा: इस क्षेत्र में मिलने वाले अधिक वेतन संबंधी अंधता का सीधा परिणाम इस परीक्षा की प्रतिस्पर्धा को बढ़ा देता है।
  • भावनात्मक लगाव की कमी: उनके कोचिंग के वर्ष उनकी प्रारंभिक किशोरावस्था तक उन्हें सामाजिक और नैतिक पहलुओं, मानवीय संबंधों के आदान-प्रदान और यहाँ तक ​​कि इस विचार से भी अलग रखते हैं कि मानव मूल्य को मापने के अन्य तरीके भी हो सकते हैं। .
    • उन्हें योग्यता का केवल एक ही पैमाना सिखाया जाता है जो उनकी प्रवेश परीक्षा में सफलता से तय होता है ।
  • आश्चर्यजनक तथ्य : गौरतलब है कि जनमानस में आईआईटी सिर्फ शिक्षा के लिए ही नहीं बल्कि नौकरियों के लिए भी विख्यात है। मीडिया के द्वारा इस क्षेत्र के शुरुआती लुभावने वेतन संबंधी तथ्यों को बढ़-चढ़ कर प्रचारित किया जाता है लेकिन उत्कृष्ट शिक्षण संबंधी तथ्यों पर जोर नहीं दिया जाता ।
    • हालाँकि, जेईई उम्मीदवारों का केवल एक छोटा-सा प्रतिशत ही इस क्षेत्र में प्रवेश कर पाता है और उनमें से केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही अधिक वेतन अर्जित कर पाता है ।
  • उच्च रिटर्न: माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को इस क्षेत्र में शामिल होने के लिये प्रेरित किया जाता है, क्योंकि कोई अन्य स्ट्रीम और कॉलेज करियर संबंधी उचित परिणाम की इतनी त्वरित  गारंटी नहीं देता है।
  • तुलना और दबाव: लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा और खराब प्लेसमेंट संबंधी आकांक्षाओं के चलते एक त्रुटिपूर्ण तंत्र के भीतर उन्हें स्वयं द्वारा निर्मित विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • इसके अलावा, आमतौर पर इन बच्चों के माता-पिता द्वारा दूसरे बच्चों के साथ उनके बच्चों के शुरुआती वेतन संबंधी तुलना भी सोच का विषय है ।

आगे की राह :

  • संस्थानों द्वारा सहयोग और कार्रवाई: परेशान छात्रों पर नजर रखने वाले छात्र वॉलंटियर्स एवं परामर्शदाताओं और मनोचिकित्सकों द्वारा इन छात्रों की मदद की जा सकती है और संस्थानों द्वारा छात्रों को उनकी डिग्री पूरी करने के लिए समय सीमा दी जा सकती है एवं साथ ही परेशान छात्रों के लिए ट्यूशन की भी व्यवस्था की जा सकती है।
  • अंतर को समझना : माता-पिता, छात्रों और आम तौर पर विश्व को भी इस समझ को विकसित करने में सहयोग करने की जरुरत है कि एक आईआईटियन की वास्तविक  संभावनाएं क्या हो सकती हैं और उसका करियर क्या हो सकता है।
  • वास्तविक समझ के लिए संलग्नता : वास्तविक करियर के वर्णन और प्रचार-प्रसार को कम करने के लिए माता-पिता के साथ प्रेस की संलग्नता भी  जरूरी है ताकि उन्हें और अधिक समझने में मदद मिल सके।
  • छात्र-विशिष्ट प्रावधान: छात्रों हेतु कैरियर संबंधी कार्यालय आवश्यक हैं न कि प्लेसमेंट कार्यालय। उनके लिये छोटी-छोटी कक्षाओं की आवश्यकता है जहाँ शिक्षक व्यक्तिगत रूप से छात्रों को पुनः जान सके।
    • शिक्षण परिसर में दयालु और बुद्धिमान वयस्कों की आवश्यकता है जिनके साथ छात्र बातचीत कर सकें।

निष्कर्ष:

ध्यातव्य है कि शिक्षण संस्थान सीखने की जगह होती है न कि प्लेसमेंट एजेंसी । जब व्यवहार्य विकल्पों को पहचाना और महत्त्व दिया जाता है, जब उम्मीदें यथार्थवादी होती हैं और जब हितधारकों का शिक्षा में अधिक विश्वास होता है तब शिक्षण परिसरों में छात्रों की नाखुशी दूर होनी शुरू हो जाएगी।

News Source: The Indian Express

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