प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वस्तु एवं सेवा कर और शराब पर वैट
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: शराब नीति से जुड़े मुद्दे
संदर्भ:
हाल ही में, दिल्ली की शराब नीति में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री और कुछ अन्य नेता जेल में हैं।
भारत की वर्तमान शराब नीतियों से संबंधित मुद्दे
अत्यधिक कराधान: भारत में ‘शराब पर कर’ असाधारण रूप से महँगा है, जो घरेलू स्तर पर 200% से अधिक और सीमा शुल्क के लिए 150% से अधिक होता है, जिससे ग्राहकों पर आर्थिक रूप से भार पड़ता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव: उच्च कर ग्राहकों को कम गुणवत्ता वाली सस्ती शराब खरीदने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे विशेष रूप से कम आय वाले व्यक्तियों के लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ जाते हैं।
राज्य के राजस्व पर निर्भरता: राज्य राजस्व के लिए शराब करों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं, लेकिन बिहार में शराबबंदी दर्शाती है कि राज्य के वित्तपोषण के लिए अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।
जटिल कर संरचना: शराब वस्तु एवं सेवा कर (GST) के अधीन नहीं है, जो कर प्रणाली को जटिल बनाती है। इसे शामिल करने से कराधान सरल हो सकता है और इसे सिगरेट जैसी अन्य वस्तुओं के अनुरूप लाया जा सकता है।
बिक्री में सरकारी एकाधिकार: वर्तमान नियमों के परिणामस्वरूप सामान्यतः स्पिरिट (Spirits) की बिक्री पर सरकार का एकाधिकार हो जाता है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है और निजी कंपनियों के लिए बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है।
लाइसेंस आवश्यकताएँ: भोजनालयों और सामाजिक समारोहों में शराब के चलन पर लाइसेंस संबंधी आवश्यकताएँ वस्तुतः कर लगाने वाली, प्रतिबंधात्मक और लोगों को परेशान करने वाली हो सकती हैं।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः लालफीताशाही को कम करने और अधिक सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए, सार्वजनिक क्षेत्रों में मादक पेय पदार्थों की बिक्री और खपत हेतु लाइसेंस आवश्यकताओं को सरल बनाया जाना चाहिए।
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