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वन्य जीवों को ‘पकड़ना’ और उनका ‘बचाव’

Lokesh Pal April 13, 2024 05:15 141 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और 2022, वन्य जीवों का बचाव और उन्हें पकड़ने संबंधी दिशानिर्देश

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मानव-पशु संघर्ष

संदर्भ:

भारत में मानव-वन्यजीव संपर्क संबंधी बारंबारता में वृद्धि हो रही है। वन्यजीवों के साथ होने वाले संघर्ष को कम करने के लिए प्रतिक्रियात्मक बंदीकरण और पुनर्वास से इतर समाधान की आवश्यकता है।

वन्यजीवों को पकड़ना और उनका बचाव :

  • बचाव (Rescue): यह संकट में पड़े जंगली जानवरों की सहायता संबंधी कार्यों को संदर्भित करता है, उदाहरणस्वरुप  घायल और अनाथ जीव या खतरनाक स्थिति में फँसे हुए जीव।
  • पकड़ना (Capture) : इसके तहत जंगली जानवरों को अपने कब्जे में लेने का कार्य किया जाता है, जो आम तौर पर मनुष्यों के साथ जानवरों के आमना-सामना होने की स्थिति में किया जाता है, उदाहरणस्वरूप जब कोई जानवर मानव सुरक्षा या संपत्ति के लिये खतरा बनता है तो अधिग्रहण संबंधी कार्य किये जाते हैं। इसमें वन्य जीवों को पकड़ना, बेहोश करना या शारीरिक रूप से उसे अक्रिय करना शामिल होता है।

केस स्टडीज़:

  • दक्षिण भारत में हाथी से संबंधित घटना: दक्षिण भारत के एक हाथी, जिसे कथित तौर पर एक कॉफी बागान से बचाया गया था, को छुटने के बाद दुखद परिणामों का सामना करना पड़ा।
  • बलरामपुर (UP) में तेंदुए से मुठभेड़: एक कृषि क्षेत्र से ‘बचाए’ गए  तेंदुएं की कुछ ही घंटों में मृत्यु हो गयी, जिससे प्रत्येक अधिग्रहण को ‘बचाव’ का नाम देने संबंधी भ्रांति उजागर हुई ।

प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण की चुनौतियाँ

  • प्रतिक्रियाशील उपायों की अधारणीयता: बंदीकरण और पुनर्वास जैसे उपाय जानवरों के लिए अधारणीय या हानिकारक सिद्ध होते हैं। वन्यजीव बचाव और उनके अधिग्रहण के मध्य अंतर करना एक सूक्ष्म चुनौती प्रस्तुत करता है।
  • सफलतापूर्वक बंदीकरण की जटिलताएँ: सफलपूर्ण बंदीकरण के अंतर्गत रासायनिक और भौतिक गतिहीनता शामिल होती हैं। जानवरों को सुरक्षित रूप से पकड़ने के लिए विशिष्ट भूमिकाओं वाली विशेषज्ञ टीमों का होना आवश्यक है।
  • बचाव स्थितियों के उदाहरण: वन्य जीवों के बचाव संबंधी स्थितियों के तहत कई बार कुएं, टैंक या घरों में फंसे तेंदुए, हाथी और साँप जैसे जानवरों से संबंधित दुविधापूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ता  है।
  • बचाव : कई बार वन्य जीवों के सामान्य आवास के बाहर उनके साथ होने वाली मुठभेड़ में तत्काल बचाव की आवश्यकता नहीं पड़ती है। घरेलु पशुओं का शिकार या फसल क्षति जैसे छोटे-मोटे व्यवधानों के तहत वन्य जीवों को पकड़ने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए ।
  • संघर्ष संबंधी कुशल समाधान: प्रभावी संघर्ष प्रबंधन के तहत कभी भी वन्य जीवों के बंदीकरण या पुनर्वास का सहारा नहीं लिया जाता है। इस सक्रिय दृष्टिकोण का उद्देश्य पशु कल्याण की सुरक्षा करते हुए तनावपूर्ण स्थितियों को दूर करना है।
  • स्थापित दिशानिर्देशों की अवहेलना: आधिकारिक दिशानिर्देश के तहत तेंदुए या हाथियों जैसे जानवरों को केवल देखे जाने के आधार पर पकड़ने संबंधी प्रक्रियाओं को हतोत्साहित किया जाता है और प्राथमिक दृष्टिकोण के रूप में निवारक उपायों की अनुशंसा की जाती है एवं वन्य जीव संबंधी अधिग्रहण को अंतिम उपाय के रूप में सुरक्षित रखा जाता है।
    • जब तक अत्यंत आवश्यक न हो वन्य जीवों को पकड़ने से बचने संबंधी प्रथा, की उपेक्षा की जाती है और हाल की घटनाएँ इस सलाह की उपेक्षा के परिणामों को रेखांकित भी करती हैं।

साँप प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ:

  • ग़लतफ़हमियाँ और भ्रम: साँप संघर्ष प्रबंधन में पकड़ने, हटाने और बचाव के मध्य  का अंतर अक्सर धुंधला हो जाता है।
  • परस्पर-क्रिया संबंधी उच्च आवृत्ति: साँपों का अक्सर मनुष्यों से मुठभेड़ होता है, जिसके कारण प्रबंधन संबंधी विभिन्न चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • प्रबंधन और निष्कासन से संबंधित मुद्दे: परस्पर-क्रियाओं में वृद्धि के कारण कथित ‘बचाव’ अभियानों के दौरान अपर्याप्त प्रबंधन देखने को मिलता है। साँपों को अनावश्यक रूप से हटाने और स्थानांतरित करने से स्थिति और गंभीर हो जाती है।
  • पुनर्वास के पश्चात् अस्तित्व के लिए संघर्ष: स्थानांतरित साँपों को अपरिचित वातावरण में जीवित रहने हेतु विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
  • साँपों पर हानिकारक प्रभाव: ‘बचाव’ अभियानों के कारण अक्सर साँपों को शारीरिक आघात, चोट और तनाव पहुँचता है। ये प्रतिकूलताएँ जानवरों को मुक्त किये जाने के पश्चात् उनके जीवित रहने की संभावना को कम कर देती हैं।

‘बचाव’ की धारणा पर पुनर्विचार:

  • शब्दावली का पुनर्मूल्यांकन: ‘बचाव’ शब्द का तात्पर्य प्रजातियों के मध्य या मानवीय गतिविधियों के साथ संघर्ष से है। इस तरह की रूपरेखा के कारण कुछ पक्षों की छवि धूमिल हो सकती है और वह संरक्षण संबंधी प्रयासों को कमजोर कर सकती है।
  • समग्र सामुदायिक एकीकरण को अपनाना: विभाजन को बढ़ावा देने के बजाय, सामुदायिक प्रबंधन के अंतर्गत  मानव और वन्यजीवों दोनों की जरूरतों को एकीकृत करना चाहिए। सतत संरक्षण के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है जो सभी हितधारकों के कल्याण के लिए हो ।

कर्नाटक मॉडल:

  • व्यावहारिक संघर्ष समाधान: यह मॉडल स्थिति के व्यावहारिक मूल्यांकन के साथ संघर्ष संबंधी समाधान प्रदान करता है ।
    •  इसमें मुद्दों की पहचान करना, वन्य जीवों से सम्बंधित तनाव को कम करना, सक्रिय उपायों को अपनाना और नैतिक विचारों से सम्बंधित हस्तक्षेप शामिल हैं ।
  • सक्रिय शमन पहल: संघर्षों को रोकने के लिए सक्रिय उपायों पर जोर देने की आवश्यकता है।
    • उदाहरणों के तहत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तैनात करना, नियमित निगरानी करना, बाड़ लगाना, प्रकाश व्यवस्था में सुधार करना, जनता को शिक्षित करना और कचरे का प्रबंधन करना शामिल है।
  • पुनर्वास पर पुनर्विचार करना : वन्य जीवों का स्थानांतरण पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करने के साथ पशु हित पर भी प्रभाव डालता है। प्रभावी संघर्ष समाधान के तहत पुनर्वास रणनीतियों के साथ-साथ पशु कल्याण पर भी विचार करना चाहिए।
  • दोनों पक्षों को लाभ पहुँचाने संबंधी समाधान की तलाश: ऐसे संघर्ष-समाधान दृष्टिकोण को अपनाने का प्रयास किया जाना चाहिए जो मनुष्यों और जानवरों दोनों को लाभ पहुँचाए। विचारशील और नैतिक हस्तक्षेपों के माध्यम से सभी को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए ।

निष्कर्ष

भारत में वन्यजीवों के “अधिग्रहण ” और “बचाव” के मध्य धुंधली रेखाओं के संबंध में बातचीत करने हेतु मानव-पशु संघर्ष के सहानुभूतिपूर्ण और सफल प्रबंधन संबंधी आश्वासन के साथ-साथ उन्नत प्रशिक्षण, आवास बहाली, अनुसंधान और सहयोग महत्त्वपूर्ण आयाम सिद्ध हो सकते हैं।

Source: The Hindu

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