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भारतीय शहरों में शहरीकरण और जातिगत गत्यात्मकता पर पुनर्विचार

Lokesh Pal April 15, 2024 05:00 134 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: बी.आर. अम्बेडकर और महात्मा गांधी।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: शहरीकरण के मुद्दे, शहरी क्षेत्रों में जातियों के पृथक्करण का मुद्दा I 

संदर्भ:

दलित मुक्ति आंदोलन ने शहरीकरण को लेकर जो आकांक्षाएँ और अपेक्षाएँ संजोएं थीं, उसे पूरा करने में  भारतीय शहर विफल रहे हैं ।

ग्रामीण जीवन के संबंध में:

  • अम्बेडकर और गांधी के विरोधाभासी विचार: समाज में भारतीय गाँवों की भूमिका पर बी.आर. अंबेडकर और गांधी के विचार अलग-अलग थे।
    • अम्बेडकर ने गाँवों को जातिगत उत्पीड़न के गढ़ के रूप में देखा, जबकि गांधी ने उन्हें न्यायसंगत और आत्मनिर्भर समुदायों के रूप में आदर्श माना।
  • अम्बेडकर का ग्राम स्वायत्तता का विरोध: अम्बेडकर द्वारा संविधान सभा में गाँवों को स्वायत्त प्रशासनिक इकाइयों के रूप में मान्यता देने संबंधी विचार का विरोध किया गया था ।
    •  उनका मानना ​​था कि इस तरह की मान्यता से जाति-आधारित भेदभाव में वृद्धि होगी एवं दलित समुदाय इससे विशेष रूप से प्रभावित होंगे।

मुक्ति के मार्ग के रूप में शहरीकरण:

  • मुक्ति का अवसर: अम्बेडकर ने शहरीकरण को दलित मुक्ति के अवसर के रूप में देखा था , क्योंकि शहर गाँवों में प्रचलित जाति उत्पीड़न की व्यवस्था को कमजोर करते हैं।
  • शहरों में गुमनामी: अम्बेडकर का मानना ​​था कि शहर गुमनामी जाति-आधारित से वर्ग-आधारित सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन का अवसर प्रदान करती है।

भारतीय शहरों में जाति और स्थानिकता:

  • शुद्धता-प्रदूषण: ‘शुद्धता-प्रदूषण’ की अवधारणाओं के माध्यम से शहरी स्थानिकता में जाति का प्रादुर्भाव होता है, जो आवास संबंधी विकल्पों और सार्वजनिक नीति को प्रभावित करती है।
  • अलगाव और भेदभाव: दलितों और मुसलमानों को आवास एवं सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच और पर्यावरण संबंधी गुणवत्ता के मामले में चिन्तनीय रूप से अलग कर दिया जाता है और साथ ही उनके साथ भेदभाव भी किया जाता है।
  • राज्य द्वारा स्वीकृत भेदभाव: जब सरकारों द्वारा ब्राह्मणवादी प्रतिबंध लगाये जाते हैं, तब राज्य द्वारा स्वीकृत भेदभाव को बढ़ावा मिलता है I 
    • उदाहरणस्वरूप मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना तथा  सार्वजनिक व्यवस्था में जाति-आधारित अलगाव को बढ़ावा देना।

शहरी शासन नीतियों का प्रभाव:

  • आवास संकट और अलगाव: शहरी शासन प्रथाएँ जाति-आधारित अलगाव में वृद्धि करती हैं एवं साथ ही ये आवास तक पहुँच  और सार्वजनिक सेवा वितरण को भी प्रभावित करती हैं।
  • बलपूर्वक निष्कासन : जबरन बेदखली का दलितों और मुसलमानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे उनके आवास संबंधी असुरक्षा में वृद्धि होती हैं एवं वे समाज के मुख्य धारा से अलग होकर हाशिए पर चले जाते हैं I
    • भारत में बलपूर्वक निष्कासन के संबंध में हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क की एक हालिया रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि झुग्गी-झोपड़ियों को नष्ट करने संबंधी अभियानों से दलित और मुस्लिम सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
  • भारतीय शहरों की विफलता: भारतीय शहर शहरीकरण के वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप दलित समुदाय समाज के हाशिए पर चले गए और यहूदी बस्तियों (वर्ग विशेष हेतु निर्मित पृथक बस्ती) तक ही सीमित रह गए ।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः अंबेडकर के शहरीकरण द्वारा मुक्ति के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए जाति-आधारित अलगाव और भेदभाव को संबोधित करने के लिए पर्याप्त नीतिगत हस्तक्षेप और सामाजिक परिवर्तन लागू किए जाने चाहिए।

Source: The Hindu 

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न : 

Q- निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही  नहीं है ?

  1. महात्मा गाँधी ने अस्पृश्यता निवारण के लिए ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की |
  2. बी.आर. अम्बेडकर ने  ग्रामीण  स्वायत्त  प्रशासनिक इकाइ सम्बन्धी विचारों का समर्थन किया |
  3. महात्मा गाँधी ने मजदूरों  के हितों की रक्षा के  लिए इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की |

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही विकल्प चुनिए:

  1. केवल 2, और 3
  2. केवल 1 और 3 
  3. केवल 3
  4. उपर्युक्त  सभी

उत्तर-a

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