बड़े इंजनों को चलाने के लिए हाइड्रोकार्बन का उपयोग हवा और जल को प्रदूषित कर ‘वैश्विक तापन’ या ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की वृद्धि में योगदान देता है।
संबंधित तथ्य
हाइड्रोकार्बन के बारे में: ‘हाइड्रोकार्बन’ शब्द का मतलब केवल कार्बन और हाइड्रोजन के परमाणुओं से बने यौगिकों से है। हाइड्रोकार्बन सभी प्रमुख प्रकार के जीवाश्म ईंधन (जिनमें कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस शामिल हैं) और जैव ईंधन में महत्त्वपूर्ण ऊर्जा भंडारण अणु होते हैं।
ऑक्सीजन (O2) की उपस्थिति में हाइड्रोकार्बन के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) बनता है।
निर्माण प्रक्रिया: पृथ्वी की पर्पटी के अंदर मौजूद भू-गर्भिक शक्तियों द्वारा मृत जीवों के अवशेषों पर पड़ने वाले दबाव एवं उच्च तापमान के परिणामस्वरूप चट्टान संरचनाओं के भीतर हाइड्रोकार्बन का संचय हो गया।
हाइड्रोकार्बन के प्रकार: भूमिगत शैल संरचनाओं में पाए जाने वाले इन हाइड्रोकार्बन्स के सबसे सामान्य रूप प्राकृतिक गैस, कोयला, कच्चा तेल और पेट्रोलियम हैं।
वे आम तौर पर भूमिगत भंडारों में अवस्थित होते हैं, इस प्रकार के भंडार तब बनते हैं जब एक सघन, अधिक टिकाऊ चट्टान की परत कम प्रतिरोधी चट्टान पर टिकी होती है। जिसके कारण यह एक ढक्कन की भाँति कार्य करता है और हाइड्रोकार्बन रिसकर इसके नीचे जमा हो जाते हैं।
ये संरचनाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि इनके बिना, हाइड्रोकार्बन पृथ्वी की सतह पर आकर अनियंत्रित रूप से फैल सकते हैं।
हाइड्रोकार्बन के उपयोग
पेट्रोकेमिकल संयंत्रों में रसायन, प्लास्टिक और सिंथेटिक रबर बनाने के लिए कच्चे माल (Feedstock) के रूप में।
किसी पदार्थ को गर्म करने, खाना पकाने और सुखाने के लिए ईंधन (Fuels) के रूप में।
परिवहन के साधनों में ईंधन (Fuels) के रूप में।
मोटर गैसोलीन उत्पादन के लिए योजक (Additives) के रूप में।
भारी खनिज तेल के परिवहन को सुगम बनाने हेतु डायलुएंट (Diluent) के रूप में।
सरंध्रता और पारगम्यता का आकलन
विशेषज्ञ इन चट्टानों का आकलन करने के लिए पेट्रोलियम भू-विज्ञान के क्षेत्र के उपकरणों, विधियों और तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिसमें इन चट्टानों की सरंध्रता तथा पारगम्यता की जाँच भी शामिल है।
यदि कोई चट्टान अत्यधिक छिद्रपूर्ण है, तो उसमें बड़ी मात्रा में हाइड्रोकार्बन हो सकते हैं। इसी प्रकार, चट्टान जितनी अधिक पारगम्य होगी, हाइड्रोकार्बन उतनी ही आसानी से उसमें प्रवाहित होंगे।
हाइड्रोकार्बन का स्रोत: इस चट्टानी भूमिगत क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन के प्राथमिक स्रोत को केरोजेन (Kerogen) कहा जाता है, जो मूलरूप से कार्बनिक पदार्थों के पिंड होते हैं।
केरोजेन को तीन संभावित स्रोतों से जमा किया जा सकता है: एक झील (लैक्स्ट्रिन) के अवशेष से, एक बड़े समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र से, या एक स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र से।
केरोजेन क्षरण: समय के साथ, केरोजेन भंडार वाली चट्टानों के गर्म होने और उनमें संकुचन की संभावना बनी रहती है। यह दबाव केरोजेन के क्षरण (kerogen ka ksharan) का कारण बनता है।
स्रोत के आधार पर हाइड्रोकार्बन के उत्पादन में अंतर देखा जा सकता है जैसे किलैक्स्ट्रिन केरोजेन से वैक्स तेल (Waxy Oil) निकलता है, समुद्री केरोजेन से तेल व गैस निकलती है, जबकि स्थलीय केरोजेन से हल्के तेल, गैस एवं कोयले का उत्पादन होता है।
उद्गम शैल या सोर्स राॅक मूल्यांकन: केरोजेन युक्त चट्टान को उद्गम शैल या सोर्स राॅक कहा जाता है, और पेट्रोलियम भू-वैज्ञानिकों को इसका पता लगाने, इसकी भू-भौतिकीय तथा तापीय गुणों को समझने एवं हाइड्रोकार्बन उत्पन्न करने की इसकी क्षमता को चिह्नित करने का काम सौंपा जाता है।
वे निरीक्षण डेटा से प्राप्त जानकारी के आधार पर संभावित मॉडल भी तैयार करते हैं और हाइड्रोकार्बन की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए छोटे अन्वेषण कुएँ खोदते हैं। इसके बाद, वे इस जानकारी को संबंधित नियामक निकाय को रिपोर्ट करते हैं।
भारत के अवसादी बेसिनों की हाइड्रोकार्बन क्षमता
श्रेणी-I: ये व्यावसायिक रूप से उत्पादित हाइड्रोकार्बन हैं, जो देश के कुल बेसिन क्षेत्र (1.0 मिलियन वर्ग किमी.) के 30% और 21,487 मिलियन मीट्रिक टन तेल के समतुल्य (Million Metric Ton of oil equivalent- MMTOE) के कुल हाइड्रोकार्बन को कवर करते हैं। जो देश के कुल हाइड्रोकार्बन क्षमता का 86% है। श्रेणी-1 के तहत आने वाले 7 बेसिन निम्नलिखित हैं:
कृष्णा-गोदावरीबेसिन
मुंबई ऑफशोर बेसिन
असम शेल्फ बेसिन
राजस्थान बेसिन
कावेरी बेसिन
असम- अराकान फोल्ड बेल्ट बेसिन
कैम्बे बेसिन
श्रेणी- II बेसिन: इसके तहत वे बेसिन शामिल हैं, जो खोजे गए हैं परंतु अभी इन्हें उत्पादन के लिए विकसित नहीं किया गया है, ये 0.78 मिलियन वर्ग किमी. (कुल बेसिन क्षेत्र का 23%) को कवर करते हैं, जिसमें कुल हाइड्रोकार्बन का 8% (1,951 MMTOE) मौजूद हैं। इनमें सौराष्ट्र बेसिन, कच्छ बेसिन, विंध्य बेसिन, महानदी बेसिन और अंडमान बेसिन शामिल हैं।
हेल्प (HELP) भारत सरकार की एक अन्वेषण और उत्पादन नीति है. जिसने न्यूएक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी(New Exploration Licensing Policy-NELP) को प्रतिस्थापित किया है।
उद्देश्य: अन्वेषण गतिविधियों और निवेश को तेज करके घरेलू तेल तथा गैस उत्पादन को बढ़ाना।
ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी: इसके माध्यम से, एक खोजकर्ता अपने प्रतिस्पर्द्धी लाभ के अनुसार किसी भी ब्लॉक का अन्वेषण और बोली लगा सकता है।
राजस्व साझाकरण मॉडल: यह NELP द्वारा स्थापित लाभ-साझाकरण अनुबंध को प्रतिस्थापित करके खनन कार्यों में लागत दक्षता को प्रोत्साहित करता है।
इसके तहत ठेकेदार अनुबंध के अनुसार अपने राजस्व का एक हिस्सा सरकार को भुगतान करता है।
विपणन और मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता: ठेकेदार पारदर्शी बोली प्रक्रिया के माध्यम से घरेलू बाजार में कच्चा तेल बेच सकता है।
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