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दालों के उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता

Lokesh Pal April 17, 2024 05:30 191 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: फसल पैटर्न, मुद्रास्फीति, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: दालों की खेती से जुड़ी चुनौतियाँ और भारत में दालों के उत्पादन की स्थिति।

संदर्भ:

हाल के दौर में भारत दालों के उत्पादन में लगातार कमी की समस्या का सामना कर रहा है।

परिचय

  • फसल उत्पादन में गिरावट: कृषि और किसान कल्याण विभाग के अनुसार, फसल वर्ष 2023-24 के दौरान उत्पादन में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है, जो कि वर्ष 2022-23 में लगभग 260 लाख टन और 2021-22 में 273 लाख टन से लगभग 234 लाख टन हो गया है।
  • मुद्रास्फीति में वृद्धि: वर्तमान में मुद्रास्फीति में वृद्धि दर्ज की गई है, जो अगस्त 2023 में लगभग 13 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर 2023 में 20 प्रतिशत से अधिक हो गई है।

दलहन उत्पादन और मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति का विश्लेषण:

  • मुद्रास्फीति दरों में कमी: आयात, ताजा बाजार आगमन और स्टॉक सीमा को लागू करने के माध्यम से आपूर्ति में वृद्धि के साथ मार्च 2024 में दालों की कीमतें थोड़ी कम होकर लगभग 17 प्रतिशत पर आ गई हैं ।
  • प्रमुख दलहनों की खेती में गिरावट: सभी प्रमुख दलहनों की खेती में गिरावट दर्ज की गई है।
    • मूंग (हरा चना) के रकबे में 40 प्रतिशत से अधिक और उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई।
    • उड़द (काला चना) के रकबे और उत्पादन में 2023-24 में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जिसका मुख्य कारण प्रमुख उत्पादक राज्यों में वर्षा की कमी है।
    • चना और तुअर के रकबे में क्रमशः 2.6 प्रतिशत और 0.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है ।
  • मूल्य प्रवृत्तियों में असमानता: पिछले छह माह के दौरान तुअर की कीमतों में मूंग और उड़द की कीमतों में 10-14 प्रतिशत की तुलना में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • प्रोटीन स्रोतों तक पहुँच पर प्रभाव: दालों की कीमतों में कोई भी वृद्धि गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित करती है, जिससे वे संतुलित आहार से वंचित रह जाते हैं।
  • माँग को पूरा करने में देरी: प्रमुख अनाजों के विपरीत, दालों का घरेलू उत्पादन – पिछले दशक के दौरान उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद 2014-15 में लगभग 171 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में लगभग 234 लाख टन होने के बावजूद – माँग में कमी बनी हुई है।
  • आयात पर बढ़ती निर्भरता: घरेलू खपत माँग को पूरा करने के लिए भारत पिछले पाँच वर्षों के दौरान प्रति वर्ष औसतन 25 लाख टन दालों के आयात पर निर्भर रहा है।
    • हालाँकि, घरेलू उत्पादन में कमी के साथ, 2023-24 में दालों के आयात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-जनवरी 2023-24 के दौरान दालों का कुल आयात लगभग 60 प्रतिशत बढ़कर 32.5 लाख टन हो गया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में लगभग 20.3 लाख टन था।

दलहनों आयात से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • अल्पावधि दलहन आयात में चुनौतियाँ: तिलहन के विपरीत, अल्पावधि में आयात के माध्यम से दालों की आपूर्ति बढ़ने की संभावना सीमित है क्योंकि भारत वैश्विक स्तर पर दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता वाला देश है।
  • पारंपरिक आयात स्रोत: म्यांमार तुअर, मूंग और उड़द के आयात का पारंपरिक स्रोत रहा है, जबकि मटर के लिए कनाडा और ऑस्ट्रेलिया हैं।
  • उभरते आयात स्रोत: हालाँकि, हाल के वर्षों में तंजानिया, मोज़ाम्बिक, मलावी और केन्या सहित कुछ अफ्रीकी देश आयात के स्रोत बन गए हैं।
  • निर्यातक देशों में मूल्य गतिशीलता: इन निर्यातक देशों में कीमतें भारत में कमी से प्रभावित हो सकती हैं और घरेलू स्तर पर उत्पादित दालों की तुलना में बहुत महंगी हो सकती हैं।
  • दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में गिरावट: 1960 के दशक के बाद से उत्पादन में धीमी वृद्धि के कारण दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1961 में लगभग 25 किलोग्राम से लगातार घटकर 2021 में 16 किलोग्राम हो गई है।
  • फसल पैटर्न में बदलाव: अनाज-दाल से अनाज की ओर फसल पैटर्न में बदलाव आया है।
  • सिंचित क्षेत्र में असमानता: अर्थशास्त्र विभाग सांख्यिकी, कृषि मंत्रालय के अनुसार, गन्ना, गेहूं और चावल के लिए सिंचित क्षेत्र की सीमा क्रमशः 96 प्रतिशत, 95 प्रतिशत और 65 प्रतिशत है, जबकि दालों के लिए सिंचित क्षेत्र केवल 23 प्रतिशत है।
    • परिणामस्वरूप, दालों की पैदावार और उत्पादन कम बना हुआ है।

आगे की राह:

  • उत्पादन घाटे का वहनीयता पर प्रभाव: घरेलू उत्पादन में लगातार कमी और इसके परिणामस्वरूप कीमतों में वृद्धि इसे गरीबों के लिए अप्रभावी बना रही है।
  • आपूर्ति की कमी को दूर करने के उपाय: जबकि सरकार द्वारा आयात और स्टॉक-होल्डिंग पर सीमाओं के साथ अल्पावधि में खुले बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन लंबी अवधि में उत्पादन बढ़ाना जरूरी है।
  • दलहन की खेती को बढ़ावा देना: उपजाऊ और सिंचित क्षेत्रों में दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, इनपुट प्रोत्साहन और सुनिश्चित लाभकारी मूल्य प्रदान किए जाने चाहिए।
  • सतत कृषि के लिए दलहन की खेती के लाभ: इसके अलावा, दलहन की खेती न्यूनतम सिंचाई और कम फसल अवधि के साथ मिट्टी की उर्वरता को समृद्ध करके और पानी का संरक्षण करके टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे सकती है।
  • कृषि विस्तार प्रणालियों में जागरूकता सृजन: कृषि विस्तार प्रणाली को दालों की खेती के सकारात्मक पहलुओं के बारे में किसानों के मध्य जागरूकता बढाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

भारत सरकार को दलहन किसानों के लिए ऋण, बीमा कवरेज और विस्तार सेवाओं तक पहुँच सहित व्यापक सहायता कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता है। किसानों को सामूहिक रूप से सशक्त बनाने और बाजार में उनकी सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाने के लिए किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को मजबूत करने की आवश्यकता है।

Source: The Hindu

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : 

  1. भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ,वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय क अंतर्गत आता है|
  2. 1961 में  दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 16 किलोग्राम थी,  जो  2021 में बढकर 25 किलोग्राम तक हो गयी है |
  3. फसल वर्ष 2021-22 और 2022-23 की तुलना में, फसल वर्ष 2023-24 के दौरान दलहन फसल के  उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है|

उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2 

(c) केवल 3

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर-c

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