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भारत में मृदा अम्लीकरण

Lokesh Pal April 18, 2024 06:30 192 0

संदर्भ

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, मृदा का अम्लीकरण मृदा में अकार्बनिक कार्बन के क्षरण का कारण बन सकता है।

संबंधित तथ्य

  • अम्लीय मृदा:  एक अनुमान के अनुसार, भारत में 30% से अधिक खेती योग्य भूमि में अम्लीय मृदा पाई जाती है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।
  • SIC का क्षरण: औद्योगिक गतिविधियाँ और गहन खेती भारत में मिट्टी के अम्लीकरण का कारण बन रही है, जिससे संभावित रूप से अगले तीन दशकों में मिट्टी के ऊपरी 0.3 मीटर से 3.3 बिलियन टन मृदा अकार्बनिक कार्बन (Soil inorganic carbon- SIC) का क्षरण हो रहा है।

मृदा अम्लीकरण के बारे में

  • मृदा अम्लीकरण: यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसके कारण मृदा अधिक अम्लीय हो जाती है, इसके तहत आमतौर पर वर्षा और जैविक प्रक्रियाओं जैसे प्राकृतिक कारकों के साथ-साथ औद्योगिक उत्सर्जन तथा नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के व्यापक उपयोग जैसी मानवीय गतिविधियों को शामिल किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया से मिट्टी के pH में कमी आती है, जो पौधों की वृद्धि, पोषक तत्त्वों की उपलब्धता और मिट्टी की जैव संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

भारत में मृदा अम्लीकरण का भौगोलिक प्रसार

  • देश में मिट्टी का अम्लीकरण पहले से ही एक चिंता का विषय है, जिससे 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से लगभग 48 मिलियन हेक्टेयर (mha) प्रभावित हो रही है।
  • भारत में अम्लीय मृदा आर्द्र दक्षिण-पश्चिमी, उत्तर-पूर्वी और हिमालयी क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैली हुई है। विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगभग 95% मृदा में अम्लता दर्ज की गई है।

मृदा अम्लीकरण के कारण

  • प्राकृतिक प्रक्रिया: जैविक अपघटन, अम्लीय वर्षा आदि।
  • दोषपूर्ण कृषि पद्धतियाँ: मोनोक्रॉपिंग, अत्यधिक उर्वरकों का उपयोग आदि।
  • औद्योगिक गतिविधियाँ: प्रदूषक उत्सर्जन, उपोत्पादों का निस्तारण आदि।
  • पर्यावरणीय परिवर्तन: अपक्षय, वनों की कटाई आदि।

मृदा अम्लीकरण का प्रभाव

  • फसल की वृद्धि पर प्रभाव: यह अत्याधिक चिंताजनक है, क्योंकि अम्लीय मृदा पौधों के पोषक तत्त्वों की उपलब्धता को कम करके फसल की वृद्धि और उत्पादकता को प्रभावित करती है।
    • यह पौधों को अन्य जैविक और अजैविक ‘स्ट्रेस’ कारकों के प्रति भी प्रेरित करता है।
  • मृदा अकार्बनिक कार्बन (SIC) की कमी: मृदा के अम्लीकरण से SIC की कमी हो जाती है, क्योंकि अधिकांश SIC (वजन के अनुसार) कार्बोनेट के रूप में होती हैं।
    • अम्लीय मृदा में ठोस कार्बोनेट घुलकर या तो कार्बन डाइऑक्साइड गैस के रूप में निकाल जाती है या सीधे पानी में मिल जाती है।
  • पोषक तत्त्वों के स्तर और कार्बन भंडारण क्षमता पर प्रभाव: मिट्टी का अम्लीकरण न केवल SIC को कम करता है, बल्कि पोषक तत्त्वों के स्तर और कार्बन भंडारण क्षमता को भी प्रभावित करता है, जो पौधों के विकास तथा कार्बन पृथक्करण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • विषाक्त तत्त्वों की घुलनशीलता बढ़ाना: समय के साथ, अम्लीकरण एल्यूमीनियम जैसे संभावित विषाक्त तत्त्वों की घुलनशीलता को बढ़ा सकता है।

SIC और SOC की वैश्विक स्थिति

  • SOC का वैश्विक स्थिति 2 मीटर की गहराई पर 2,376-2,456 पेटाग्राम (Pg = 10^15 ग्राम) होने का अनुमान है।
  • हालाँकि, नए शोध से पता चला है कि वैश्विक मृदा की शीर्ष 2 मीटर की गहराई पर SIC के रूप में 2,305 (± 636) बिलियन टन (1 पेटाग्राम एक बिलियन टन है) कार्बन जमा करती है।

मृदा कार्बन के बारे में

  • मिट्टी में कार्बन: इसे मृदा अकार्बनिक कार्बन या मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) के रूप में संगृहीत किया जा सकता है।
  • मृदा अकार्बनिक कार्बन: इसमें मिट्टी में मूल सामग्री के अपक्षय या वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिट्टी के खनिजों की प्रतिक्रिया से उत्पन्न कैल्शियम कार्बोनेट जैसे कार्बन के खनिज रूप शामिल हैं।
    • SIC मृदा स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और कार्यों के साथ-साथ कार्बन पृथक्करण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • मृदा कार्बनिक कार्बन: यह पोषक तत्त्व चक्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ जैसे पौधों और जानवरों के अपशिष्ट, रोगाणुओं एवं माइक्रोबियल उपोत्पादों का मुख्य घटक है।
    • मिट्टी में वनस्पति में कार्बन की मात्रा से तीन गुना से अधिक या वायुमंडल में कार्बन की मात्रा से दोगुनी मात्रा में कार्बन संगृहीत होता है।
  • SIC के अपेक्षाकृत बड़े भंडार और नाइट्रोजन परिवर्द्धन से जुड़े मृदा अम्लीकरण के प्रसार के कारण भारत के SIC के नुकसान से सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण SIC का क्षरण: विश्व स्तर पर, भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग और मिट्टी के pH में परिवर्तन से विभिन्न परिदृश्यों के तहत मिट्टी के उपरी 0.3 मीटर में SIC में 1.35, 3.45 और 5.83 गीगाटन कार्बन (GtC) की कमी हो जाएगी, जहाँ तापमान लगभग वर्ष 2100 तक क्रमशः 1.8°C,  2.7°C और 4.4 °C तक पहुँच सकता है।
  • अंतर्देशीय जल में SIC का क्षरण: इसके अलावा, प्रति वर्ष लगभग 1.13 बिलियन टन अकार्बनिक कार्बन मृदा से अंतर्देशीय जल में समाहित जाकर नष्ट हो जाती है।

आगे की राह

मृदा के अम्लीकरण और मृदा से SIC और SOC की कमी को संबोधित करने के लिए एक व्यापक मृदा प्रबंधन रणनीति की आवश्यकता है।

  • मृदा pH निगरानी और प्रबंधन: मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिट्टी के पोषक तत्त्वों और pH की स्थिति का आकलन प्रदान करते हैं, जिसका उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता की नियमित निगरानी के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा, अम्लता को बेअसर करने और pH बढ़ाने के लिए मिट्टी को कैल्शियम कार्बोनेट से उपचारित किया जा सकता है।
  • अनुकूलित उर्वरक उपयोग: कंपोस्ट और गोबर जैसे जैविक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देकर करके सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए।
  • फसल चक्र और विविध फसल: चक्रित फसलें और फलियाँ या गहरी जड़ वाले पौधों को फसल चक्र में शामिल करने से मृदा संरचना बढ़ सकती है, जैव विविधता बढ़ सकती है और पोषक चक्र में सुधार हो सकता है, जो स्वस्थ pH संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
  • नियंत्रित जल प्रबंधन: जल प्रबंधन प्रथाओं को लागू करें, जो जलभराव या अत्यधिक सूखापन पैदा किए बिना नमी के स्तर को अनुकूलित करते हैं, जो अम्लीकरण को बढ़ा सकता है।
  • मृदा कार्बनिक पदार्थ प्रबंधन: कार्बनिक पदार्थ के निर्माण और मिट्टी की संरचना में सुधार के लिए किसानों के बीच संरक्षण जुताई और कवर फसल प्रथाओं को बढ़ावा देना।

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