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नगर निगम चुनावों में सुधार

Lokesh Pal April 22, 2024 05:51 159 0

संदर्भ

चंडीगढ़ मेयर चुनाव पर उच्चतम न्यायालय के फैसले ने नगर पालिकाओं के चुनावों के बारे में अधिक व्यापक रूप से सोचने का एक अवसर देता है।

संबंधित तथ्य  

  • चंडीगढ़ मेयर चुनाव मामले में उच्चतम न्यायालय ने चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर पद के चुनाव के नतीजे को इस आधार पर रद्द कर दिया कि पीठासीन अधिकारी ने जानबूझकर आठ वोटों को विकृत कर दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत पूर्ण न्याय करने की अपनी जिम्मेदारी पर जोर दिया। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनावी प्रक्रिया के सभी स्तरों पर चुनावी लोकतंत्र की प्रक्रिया को किसी भी तरह से बाधित न किया जाए।

मेयर के बारे में

  • मेयर का चुनाव नगर निगम या परिषद के सदस्यों द्वारा किया जाता है और वह शहरी स्थानीय निकाय के नेता के रूप में कार्य करता है।
  • वह शहर या कस्बे के निवासियों के लिए आवश्यक सेवाओं और बुनियादी ढाँचे की देखरेख करता है। साथ ही स्थानीय सरकार के औपचारिक प्रमुख के रूप में भी कार्य करता है।
  • किसी शहर के मेयर को चुनने की प्रक्रिया और उसके कार्यकाल की प्रक्रिया पूरे भारत में अलग-अलग होती है।
    • उदाहरण: बेंगलूरु में मेयर के लिए एक वर्ष के कार्यकाल के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव होता है जबकि मुंबई में 2.5 वर्ष के कार्यकाल के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव होता है।

अनुच्छेद-142 के बारे में

  • विवेकाधीन शक्तियाँ: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-142 सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है।
  • इससे संबंधित: यह न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक डिक्री पारित करने अथवा आदेश देने का अधिकार देता है।

भारत में नगरपालिका

  • उत्पत्ति एवं विकास: यह संस्था ब्रिटिश काल से ही भारत में अस्तित्व में है।
    • अंग्रेजों के द्वारा पहली बार वर्ष 1687 में मद्रास में नगर निगम की स्थापना की गई थी।
    • लॉर्ड रिपन के वर्ष 1882 के प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन के ‘मैग्नाकार्टा’ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है तथा उन्हें भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है।
    • विकेंद्रीकरण पर रॉयल कमीशन वर्ष 1907 में नियुक्त किया गया था और इसने वर्ष 1909 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की (इसके अध्यक्ष हॉबहाउस थे)।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1919: इस अधिनियम द्वारा, प्रांतों में शुरू की गई द्वैधात्मक योजना के तहत, स्थानीय स्वशासन एक हस्तांतरित विषय बन गया।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1935: इस अधिनियम द्वारा स्थानीय स्वशासन को प्रांतीय विषय घोषित किया गया।
    • 74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम: यह वर्ष 1992 में पारित किया गया और शहरी स्थानीय सरकार के लिए एक समान कानून प्रदान किया गया।
      • 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया भाग IX-A जोड़ा है, जिसका शीर्षक ‘नगरपालिकाएँ’ है तथा  इसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
      • इस अधिनियम ने संविधान में एक नई बारहवीं अनुसूची भी जोड़ी है। इसमें नगरपालिकाओं की 18 कार्यात्मक वस्तुएँ शामिल हैं।
        • यह अनुच्छेद 243-W से संबंधित है।
      • इस अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया और इसे संविधान के न्यायसंगत हिस्से के दायरे में लाया है।
  • कार्यकाल: 74वें CAA  के अनुच्छेद-243U  में कहा गया है कि शहरी स्थानीय सरकारों की अवधि पाँच वर्ष है तथा शहरी स्थानीय सरकार के गठन के लिए चुनाव ‘अवधि समाप्त होने से पहले’ पूरा कर लिया जाना चाहिए।
    • इसके अलावा, राज्य द्वारा निर्वाचित परिषद को भंग करने की स्थिति में, चुनाव उसके विघटन की तारीख से छह महीने की अवधि की समाप्ति से पहले होना चाहिए।
  • चुनाव आयोजित: राज्य चुनाव आयोग (State Election Commissions -SEC)
  • भारत में शहरी स्थानीय सरकार की संरचना: शहरी स्थानीय निकाय 8 प्रकार के हैं:
    • नगर निगम: ये आमतौर पर बेंगलूरु, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि जैसे बड़े शहरों में पाए जाते हैं।
      • नगर निगम भारत में एक प्रकार की स्थानीय सरकार है, जो दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरी क्षेत्रों का प्रशासन करती है।
    • नगरपालिका: ये आमतौर पर छोटे शहरों में पाए जाते हैं और इन्हें अक्सर अन्य नामों से भी पुकारा जाता है, जैसे– नगरपालिका परिषद, नगरपालिका समिति, नगरपालिका बोर्ड आदि।
      • नगरपालिका एक शहरी स्थानीय निकाय है, जो न्यूनतम 1,00,000 लेकिन 10,00000 से कम आबादी वाले छोटे शहरी क्षेत्र का प्रशासन करती है।
    • अधिसूचित क्षेत्र समिति: ये तेजी से विकसित हो रहे कस्बों और बुनियादी सुविधाओं की कमी वाले कस्बों के लिए स्थापित की जाती हैं।
    • टाउन एरिया कमेटी: टाउन एरिया कमेटी छोटे शहरों में पाई जाती है। इसके पास स्ट्रीट लाइटिंग, जल निकासी सड़कें और संरक्षण जैसे न्यूनतम अधिकार हैं।
    • छावनी बोर्ड: यह आमतौर पर छावनी क्षेत्र में रहने वाली नागरिक आबादी के लिए स्थापित किया गया है।
    • टाउनशिप: प्लांट के निकट स्थापित कॉलोनियों में रहने वाले कर्मचारियों और श्रमिकों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना शहरी सरकार का दूसरा रूप है।
    • पोर्ट ट्रस्ट: ये मुंबई, चेन्नई, कोलकाता आदि बंदरगाह क्षेत्रों में स्थापित हैं।
    • विशेष प्रयोजन एजेंसी: ये एजेंसियाँ नगर निगमों या नगरपालिकाओं से संबंधित निर्दिष्ट गतिविधियों अथवा विशिष्ट कार्यों को करती हैं।

नगर निगम चुनाव से संबंधित मुद्दे

  • राज्य सरकारों द्वारा गैर-अनुपालन: सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) में उच्चतम न्यायालय के यह कहने के बावजूद कि यह संवैधानिक आदेश उल्लंघन योग्य है, राज्य सरकारें शहरी स्थानीय सरकारों के लिए समय पर चुनाव नहीं कराती हैं।

    • जनाग्रह के वार्षिक सर्वेक्षण ऑफ इंडियाज सिटी-सिस्टम्स, 2023 अध्ययन के अनुसार, सितंबर 2021 तक 1,400 से अधिक नगरपालिकाओं में निर्वाचित परिषदें नहीं थीं।
    • 74वें संविधान संशोधन अधिनियम (74वें CAA) के कार्यान्वयन पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से पता चला कि, वर्ष 2015 तथा  2021 के बीच, 1,500 से अधिक नगर पालिकाओं में निर्वाचित परिषदें नहीं थीं।
        • चेन्नई, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में चुनाव कराने में महीनों से लेकर वर्षों तक की देरी का सामना करना पड़ा।
  • परिषद गठन में देरी: शहरी स्थानीय सरकारों के चुनावों के कुछ मामलों में, परिषदों का गठन नहीं किया गया था और महापौरों, उपमहापौरों तथा स्थायी समितियों के चुनावों में देरी हुई थी।

    • कर्नाटक में, अधिकांश नगर निगमों में चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद निर्वाचित परिषदों के गठन में 12-24 महीने की देरी हुई।
  • चुनाव प्रक्रिया पर: मैनुअल बैलेट पेपर आधारित प्रक्रिया है, जो चुनाव प्रक्रिया की जवाबदेही और पारदर्शिता पर चिंता पैदा करती है।
  • जवाबदेही पर चिंता: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के विपरीत, जहाँ विधायिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट अंतर होता है, नगरपालिका के मामले में, महापौर शहर सरकार के निर्वाचित और प्रशासनिक दोनों विंगों का प्रमुख होता है।
    • पीठासीन अधिकारी की स्वतंत्रता पर भी चिंता है।
  • मेयर के कार्यकाल पर: शहरी स्थानीय सरकारों की अवधि पाँच वर्ष है और शहरी स्थानीय सरकार के गठन के लिए चुनाव “इसकी अवधि समाप्त होने से पहले” पूरा किया जाना चाहिए।
    • हालाँकि, महापौरों, उप-महापौरों और स्थायी समितियों का कार्यकाल पाँच वर्ष से कम होना एक चिंताजनक चुनौती है।
    • भारत में, आठ सबसे बड़े शहरों में से पाँच सहित 17% शहरों में मेयर का कार्यकाल पाँच साल से कम है।
  • वार्ड परिसीमन पर (On Ward Delimitation): भारत में वार्ड परिसीमन के संचालन पर विभिन्न चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • मेघालय को छोड़कर, सभी राज्यों ने SEC का गठन किया है, केवल 11 ने उन्हें वार्ड परिसीमन करने का अधिकार दिया है।
    • नगरपालिका क्षेत्रों को क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा, जिन्हें वार्ड के रूप में जाना जाएगा।

आगे की राह

  • नीतिगत सुधार: समय पर, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए एक सुधार रोडमैप की बहुत आवश्यकता है।
  • कार्यकाल का मानकीकरण: पाँच वर्ष के महापौर कार्यकाल के मानकीकरण की आवश्यकता है।
    • मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समितियों का कार्यकाल पाँच वर्ष से कम होना एक चिंताजनक चुनौती है, जिस पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
  • मूल्यांकन और जवाबदेही: चुनाव निर्धारित करने में सरकारी अधिकारियों के विवेक, पीठासीन अधिकारी की पहचान करने, चुनाव में देरी करने के लिए अधिकारियों पर अनुचित प्रभाव, पीठासीन अधिकारी की स्वतंत्रता और मैनुअल मतपत्र-आधारित प्रक्रिया जैसे मुद्दों से निपटने के लिए कार्रवाई की आवश्यकता है।
    • मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समितियों के चुनाव में SEC की संभावित भूमिका का मूल्यांकन करने का भी यह सही समय है।
  • राज्य चुनाव आयोगों (Election Commissions-SEC) को सशक्त बनाएँ: SEC  को अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि संविधान के भाग IX और भाग IXA के तहत पंचायतों और शहरी स्थानीय सरकारों के चुनावों के क्षेत्र में, SEC को भारत के चुनाव आयोग के समान दर्जा प्राप्त है।
  • वार्ड परिसीमन के लिए SEC का सशक्तीकरण: वार्डों और इसकी परिसीमन प्रक्रिया को सशक्त और मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • भूमिकाओं पर स्पष्ट अंतर: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की तरह, विधायिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट अंतर की आवश्यकता है।
  • न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: चंडीगढ़ मेयर मामले के समान, सर्वोच्च न्यायालय को ऐसी स्वतंत्र कार्रवाई करने की आवश्यकता है। न्यायपालिका नगरपालिका चुनावों को अधिक महत्त्व दे सकती है।
    • समय पर चुनाव कराने की आवश्यकता है तथा  जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के साथ दृढ़ प्रवर्तन की आवश्यकता है।

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