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ट्रांसजेंडरों की भिक्षावृत्ति को प्रतिबंधित करना क्रूर और अवैध है

Lokesh Pal April 23, 2024 05:36 138 0

संदर्भ 

पुलिस आयुक्त ने सार्वजनिक स्थानों पर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध लगाने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत एक आदेश जारी किया है।

संबंधित तथ्य 

रोजगार के अन्य अवसरों की कमी के कारण ट्रांसजेंडर पारंपरिक रूप से आजीविका के साधन के रूप में शुभ अवसरों पर भिक्षा माँगते रहे हैं।

ट्रांसजेंडर (Transgender)

  • परिभाषा: ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार, जन्म के समय से ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का लिंग-निर्धारण नहीं किया जा सकता है, अर्थात् उन्हें पारंपरिक पुरुष या महिला के ढाँचे में शामिल नहीं किया जा सकता है।
    • इसके अंतर्गत ट्रांस-पुरुष, ट्रांस-महिलाएँ, इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति, लिंग-क्वीर, किन्नर और हिजड़ा जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति शामिल हैं।
  • जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में ट्रांसजेंडर की संख्या 4.88 लाख है।

भिक्षावृत्ति (Begging)

  • भिक्षावृत्ति: इसे पैनहैंडलिंग (Panhandling) के रूप में भी जाना जाता है, इसमें दूसरों से भिक्षा या अन्य प्रकार की मदद माँगने की प्रथा है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 4,13,670 भिखारी और खानाबादोश लोग हैं।
  • पृष्ठभूमि: भारत में भिक्षावृत्ति हमेशा से नेक कार्य तथा सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा रहा है।
    • भिक्षा (Bhiksha): हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में भिक्षा एक लंबे समय से चली आ रही धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा है तथा इसे आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • जकात (Zakat): समाज में संतुलन बनाने के लिए अमीरों द्वारा अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा दान करने की प्रथा इस्लामी धर्म का मूल सिद्धांत रहा है।

भिखारियों की स्थिति

  • पश्चिम बंगाल में भिखारियों की संख्या सर्वाधिक (81,000) है।
  • भारत में 4,13,670 भिखारी और खानाबादोश लोग हैं और इनमें 2,21,673 पुरुष तथा 1,91,997 महिलाएँ हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना में पिछली जनगणना की तुलना में भिखारियों की संख्या में 41% की कमी आई है, ज्ञात हो कि वर्ष 2001 की जनगणना में भिखारियों की संख्या 6.3 लाख दर्ज की गई थी।
  • भिखारियों का धर्म: 72.2% भिखारी हिंदू हैं, जबकि 24.9% भिखारी मुस्लिम हैं।

भीख माँगने का कारण

  • आर्थिक स्थिति: गरीबी, बेरोजगारी, अल्प-रोजगार, आय में कमी आदि जैसे आर्थिक कारणों की वजह से व्यक्ति भीख माँगने के लिए विवश होता है।
    • इसे अक्सर कुछ लोगों द्वारा जीविकोपार्जन हेतु आसान साधन के रूप में देखा जाता है तथा इसे एक पेशे के रूप में भी अपना लिया जाता है।
  • रोजगार के अवसरों की कमी: सामान्य तौर पर, ट्रांसजेंडर तथा सामाजिक रूप से बहिष्कृत अन्य लोगों के पास विशेष रूप से रोजगार के अवसरों की कमी होती है, फलस्वरूप वे भीख माँगने के लिए मजबूर होते हैं।
  • शहरीकरण और प्रवासन: तीव्र शहरीकरण और प्रवासन भी भिक्षावृत्ति की समस्या में योगदान देता है। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग व्यवसाय के बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं तथा अवसर की तलाश के दौरान भीख माँगनी पड़ती है।
  • प्राकृतिक त्रासदियाँ: अकाल, भूकंप, सूखा, बवंडर तथा बाढ़ के कारण निजी संपत्ति एवं कृषि भूमि की हानि होती है, जिसके कारण लोगों को अपने घरों से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है तथा साथ ही भूख की पीड़ा से निपटने के लिए भीख माँगनी पड़ती है।
  • मनोवैज्ञानिक मुद्दे: भिक्षावृत्ति कभी-कभी किसी व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक अवस्था के कारण भी हो सकती है। उन कारणों में निराशा, श्रम के प्रति अनिच्छा और एकांत की ओर रुझान शामिल हो सकता है।
  • सामाजिक मुद्दे: पारिवारिक विघटन, विधवा, अनाथ, सामाजिक बहिष्कार आदि जैसे सामाजिक कारकों के कारण भी भीख माँगने की स्थिति में वृद्धि होती है।
  • शारीरिक दिव्यांगता: भारत में अंधे, बहरे, गूंगे या शारीरिक रूप से विकलांगों के इलाज तथा सामाजिक पुनर्वास के लिए उपयुक्त सरकारी प्रावधानों का अभाव है। किसी अन्य विकल्प के अभाव में ऐसे लोग भीख माँगने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
  • जबरन भीख माँगना: वर्तमान समय में भारत के महत्त्वपूर्ण शहरों जैसे दिल्ली, बेंगलूरु, मुंबई, कोलकाता आदि में भीख माँगना एक प्रमुख प्रवृत्ति बन गई है। दिनभर की आय को भिखारियों के बीच वितरित किया जाता है तथा भिखारियों के प्रत्येक समूह को एक निश्चित कार्य-क्षेत्र आवंटित रहता है।
  • बेघर, बेरोजगार और मानसिक रूप से पीड़ित लोगों के लिए सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों की अपर्याप्त पहुँच के कारण में इसमें वृद्धि होती है।

भिक्षावृत्ति का प्रकार

  • स्पष्ट भिक्षावृत्ति (Apparent Panhandle): खराब सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और दिव्यांगता को प्रदर्शित करते हुए भीख माँगना।
  • अस्पष्ट भिक्षावृत्ति (Unapparent Panhandle): इसके अंतर्गत छुपी हुई भिक्षावृत्ति आती है, जिसके अंतर्गत भिखारी प्रतीकात्मक सेवाओं जैसे कारों, ट्रेन के डिब्बों की सफाई आदि के बदले भीख माँगते हैं।
  • मौसमी भिक्षावृत्ति (Seasonal Panhandle): कुछ खास मौसमों और अवसरों पर भीख माँगना।
  • परिस्थितिजन्य भिक्षावृत्ति (Circumstantial Panhandle): तत्काल और असामान्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भीख माँगना।
  • पेशेवर भिक्षावृत्ति (Professional Panhandle): नियमित पेशे के रूप में भीख माँगना।
  • असमर्थ व्यक्ति द्वारा भिक्षावृत्ति: किसी रोगी या मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति द्वारा भीख माँगना।
  • आक्रामक भिक्षावृत्ति (Aggressive Panhandle): चोरी जैसे आपराधिक कृत्यों के साथ भीख माँगना।

भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण का इतिहास

  • औपनिवेशिक काल के दौरान 
    • यूरोपीय खानाबादोश अधिनियम, 1869 (European Vagrancy Act): भारतीयों द्वारा यूरोपीय लोगों से भीख माँगने की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस कानून को पारित किया गया था। इस अधिनियम से ही भारत में भिक्षावृत्ति के विरुद्ध औपचारिक कानूनों की शुरुआत हुई थी।
    • आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 (Criminal Tribes Act): इस अधिनियम ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों के कुछ व्यवहारों को अपराधीकरण की श्रेणी में शामिल कर दिया गया, विशेष रूप से ‘हिजड़े’ (Transgender) को सार्वजनिक प्रदर्शन करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
  • स्वतंत्रता-पूर्व अधिनियम (Pre-Independence Acts): भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने के लिए स्वतंत्रता-पूर्व कई कानूनों को पारित किया गया था। उदाहरण के लिए-
    • बंगाल खानाबादोश अधिनियम, 1943 (Bengal Vagrancy Act)
    • बॉम्बे भिखारी अधिनियम, 1945 (Bombay Beggars Act)
    • मद्रास भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1945 (Madras Prevention of Begging Act)
  • स्वतंत्रता के बाद: बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 के प्रावधान बॉम्बे भिखारी अधिनियम, 1945 के आधार पर निर्मित किए गए हैं, यह अधिनियम देश भर में आदर्श भिक्षावृत्ति विरोधी कानून हैं। गुजरात जैसे कुछ राज्यों ने इस अधिनियम को सीधे तौर पर लागू कर दिया है।
  • समसामयिक कानून: कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों ने अपने स्वयं के भिक्षावृत्ति विरोधी अधिनियम पारित किए हैं।
    • हालाँकि इन कानूनों के विपरीत, राजस्थान भिखारी या निर्धन पुनर्वास अधिनियम, 2012 (Rajasthan Rehabilitation of Beggars or Indigents Act) के माध्यम से राजस्थान सरकार भीख माँगने पर प्रतिबंध लगाए बिना उनके पुनर्वास की बात करती है।

भिक्षावृति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • राज्य सूची की 9वीं प्रविष्टि: ‘विकलांगों एवं बेरोजगारों की राहत’ को राज्य-सूची के अंतर्गत रखा गया है।
  • राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत अनुच्छेद-41 के तहत, राज्य अपनी क्षमता के अनुरूप जरूरतमंदों के लिए कल्याणकारी उपाय कर सकता है।
  • संविधान का अनुच्छेद-23 मानव तस्करी, भिखारियों और जबरन श्रम को प्रतिबंधित करता है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 363-A अपहरण के कृत्यों या व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से अपंग बनाने को अपराध मानती है।
  • अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21: भिक्षावृत्ति-विरोधी कानूनों को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया है कि ऐसे कानून भेदभावपूर्ण हैं तथा गरिमा के साथ जीवन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण पर न्यायिक घोषणा

  • सुहैल रशीद भट बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य (2019): जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों की संचार गतिविधियों पर प्रतिबंध को निरस्त कर दिया है तथा कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद-19(1)(d) के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
  • हर्ष मांदर बनाम भारत संघ (2018): दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में लागू बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 (Bombay Prevention of Begging Act) को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि भिक्षावृत्ति कोई अपराध नहीं है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि सामान्य तौर पर भीख माँगना सामाजिक-आर्थिक अभाव का परिणाम होता है।
    • न्यायमूर्ति गीता मित्तल ने अपने निर्णय में कहा है कि ‘भिक्षावृत्ति सामाजिक बीमारी का लक्षण है तथा भिखारी इस सामाजिक जाल में फँस चुका है।’
  • जनहित याचिका (2021): उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 प्रकोप के बीच सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों को प्रतिबंधित करने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने भिक्षावृत्ति को एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा माना है, जिसे केवल राज्य के सुधारात्मक कार्यक्रमों द्वारा ही संबोधित किया जा सकता है।
  • भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करना जीवन के अधिकार के विरुद्ध: भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने से अपराध की प्रवृत्ति तथा भुखमरी में वृद्धि होगी, जो अनुच्छेद-21 यानी जीवन के अधिकार के विरुद्ध है।

भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण से ट्रांसजेंडरों पर प्रभाव

  • आर्थिक कठिनाई: पारंपरिक प्रथाओं जैसे चोला (भीख माँगना), बधाई आदि पर निर्भर रहने वाले ट्रांसजेंडरों को भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण के कारण अत्यधिक नुकसान होगा, क्योंकि यह उनकी आजीविका के प्राथमिक साधनों को प्रतिबंधित करता है।
    • उदाहरण के तौर पर, बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 (Bombay Prevention of Begging Act) का उपयोग शादियों और प्रसव समारोहों में पारंपरिक भिक्षावृत्ति की गतिविधियों में शामिल ट्रांसजेंडरों को लक्षित करने के लिए किया गया है, जिन्हें ‘माँगती’ (Mangti) और ‘टोली-बधाई’ (Toli-badhai) के नाम से जाना जाता है।
  • मनमाना हिरासत और पुलिस दुर्व्यवहार: भिक्षावृत्ति विरोधी कानून के प्रावधानों के अनुसार, पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं, फलस्वरूप ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जाता है। इन व्यक्तियों को प्रायः हिरासत में रहते हुए उत्पीड़न और कभी-कभी शारीरिक यातना का भी सामना करना पड़ता है।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ इन कानूनों को लागू करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो न्यायालय की विभिन्न न्यायिक घोषणाओं से परिलक्षित होता है।
  • कलंक और भेदभाव: भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध और अपराधीकरण से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ नकारात्मक विचार तथा भेदभाव को बढ़ावा मिलता है।
  • औपनिवेशिक पूर्वाग्रह और संरचनात्मक भेदभाव: ट्रांसजेंडरों को नैतिक रूप से जागृत करने की प्रवृत्ति तथा भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करना आदि औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों में निहित है, जिसके कारण ट्रांसजेंडर समुदाय को हिंसा का सामना करना पड़ता है।
  • समावेशन और समर्थन में बाधा: भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करना ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक समावेशन और आर्थिक सशक्तीकरण में बाधा है। उचित समर्थन के बजाय सरकार दंडात्मक उपायों पर ध्यान केंद्रित करती रही है, परिणामस्वरूप सरकार भिक्षावृत्ति के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करने में असमर्थ रही है।

ट्रांसजेंडरों की अधिकार-यात्रा 

  • सक्रियता की शुरुआत (1992-1999): समलैंगिक अधिकार सक्रियता वर्ष 1992 में शुरू हुई तथा वर्ष 1999 में कोलकाता में समलैंगिक गौरव परेड का भव्य आयोजन हुआ।
  • कानूनी पड़ाव: वर्ष 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाज फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार के मामले की सुनवाई करते हुए उनके संवैधानिक अधिकारों पर जोर दिया तथा सहमति से किए गए समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया।
  • सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामला: वर्ष 2013 में उच्चतम न्यायालय ने धारा 377 को वैध कर दिया है। समलैंगिकता को वैध करने के लिए सांसद शशि थरूर ने वर्ष 2015 में एक बिल पेश किया था, किंतु उसे लोकसभा ने अस्वीकृत कर दिया था।
  • वर्ष 2014 का नालसा मामला: राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NLSA) बनाम भारत संघ मामले में, न्यायालय ने अपने फैसले में ट्रांसजेंडर को कानूनी मान्यता दी तथा न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि उन्हें भारत के अन्य नागरिकों की तरह सभी मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
  • के.एस. पुट्टास्वामी मामला: वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
  • वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना: वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने अंततः धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है।
  • ट्रांसजेंडरों के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम: वर्ष 2019 में संसद ने ट्रांसजेंडरों के अधिकारों की सुरक्षा, उनके कल्याण और अन्य संबंधित मामलों को संबोधित करने के लिए इस अधिनियम को पारित किया है।

भिक्षावृत्ति का व्यक्ति और समाज पर प्रभाव

  • समाज पर प्रभाव
    • आर्थिक तनाव: भिक्षावृत्ति से गरीबी चक्र और आर्थिक तनाव बना रहता है। यह सार्वजनिक धारणा को भी प्रभावित कर सकता है तथा प्रभावित क्षेत्रों में पर्यटन और निवेश को नुकसान पहुँचाता है।
    • सामाजिक मुद्दे: भिक्षावृत्ति शोषण, मानव तस्करी और बाल श्रम जैसी विभिन्न सामाजिक बुराइयों से जुड़ा हुआ है। ये प्रथाएँ सामाजिक मानदंडों और नैतिक मूल्यों के पतन का कारण भी है, जिससे निर्भरता और दुरुपयोग का चक्र बना रहता है।
    • भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार: भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों को भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है, खासकर अगर उनमें स्पष्ट शारीरिक या मानसिक विकलांगता न हो।
    • कानूनी और नीतिगत चुनौतियाँ: भारत में भिक्षावृत्ति से संबंधित कानूनी ढाँचा जटिल है, क्योंकि प्रत्येक राज्यों का अलग-अलग कानून है। भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून अक्सर गिरफ्तारी और रिहाई के चक्र को जन्म देते हैं, परिणामस्वरूप ऐसे कानून अंतर्निहित सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने में असमर्थ हैं।
  • व्यक्तियों पर प्रभाव
    • स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: आम तौर पर, भिक्षावृत्ति से जुड़े लोगों की जीवनशैली अस्वच्छ होती है तथा स्वास्थ्य देखभाल तक उनकी पहुँच सीमित होती है। इसके अलावा, कई मामलों में शारीरिक अपंगता के कारण उन्हें गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
    • शोषण के प्रति संवेदनशीलता: इस कार्य से जुड़े विशेष रूप से महिलाएँ, बच्चे और विकलांग व्यक्ति विभिन्न प्रकार के शोषण के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। इसमें शारीरिक शोषण, यौन शोषण और संगठित आपराधिक समूह द्वारा भीख माँगने के लिए मजबूर किया जाना शामिल है।
      • भारत के रजिस्ट्रार जनरल के आँकड़ों के आधार पर, भिक्षावृत्ति में शामिल बच्चों की संख्या उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक (10,167) है, इसके बाद राजस्थान (7,167), बिहार (3,396), और पश्चिम बंगाल (3,216) का स्थान है।
    • बुनियादी सेवाओं तक पहुँच का अभाव: सामान्य तौर पर, भिखारियों के पास सुरक्षित आश्रय, पौष्टिक भोजन, स्वच्छ पानी और शैक्षिक अवसरों जैसी बुनियादी जीवन सेवाओं तक पहुँच का अभाव है। यह अभाव न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि उनके भविष्य के अवसरों को भी सीमित कर देता है।

आगे की राह 

  • भिक्षावृत्ति विरोधी कानूनों में सुधार: भिखारियों के विरुद्ध उठाए गए दंडात्मक उपायों को कम करने तथा पुनर्वास एवं समाज में एकीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसके लिए कानूनी ढाँचे में सुधार की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए, ट्रांसजेंडरों के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 2019 का कार्यान्वयन इस दिशा में सकारात्मक प्रगति का उदाहरण है, जिसका उद्देश्य भिक्षावृत्ति से संलग्न कमजोर आबादी की सुरक्षा करना है।
  • नीतिगत पहल: भिखारियों और कमजोर आबादी की सुरक्षा, सशक्तीकरण और पुनर्वास के उद्देश्य से योजनाओं तथा नीतियों के निर्माण की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के तौर पर, स्माइल (SMILE) योजना कमजोर वर्गों के लिए चिकित्सा सुविधाओं, परामर्श, शिक्षा और कौशल विकास सहित व्यापक पुनर्वास पर केंद्रित है।
    • आजीविका और उद्यम हेतु सीमांत व्यक्तियों का समर्थन (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE)।
  • समुदाय और NGO की भागीदारी: भिक्षावृत्ति के कारणों और वास्तविकताओं के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए NGO द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए, जिसके माध्यम से जनता की भागीदारी, ट्रांसजेंडरों के प्रति सामाजिक हीनता तथा सार्वजनिक धारणाओं को बदल जा सकता है।
  • आर्थिक एकीकरण: भिक्षावृत्ति का सहारा लेने वाले व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर और कौशल विकास प्रदान करने की आवश्यकता है, जिसके परिणामस्वरूप भिखारियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था: भिक्षावृत्ति से जुड़े लोगों को बुनियादी आय और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रदान करने के लिए सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करने की आवश्यकता है। इससे वित्तीय उपलब्धता के लिए भिक्षावृत्ति में संलिप्तता को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष

राज्य सरकारों को भिक्षावृत्ति के मूल कारणों को संबोधित करने के लिए दंडात्मक उपायों के बजाय सकारात्मक योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है ताकि इसके माध्यम से उनके सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके।

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