हाल ही में वनों को सुरक्षित करने से संबंधित चिपको आंदोलन (Chipko Movement) के पचास वर्ष पूर्ण हुए हैं।
चिपको आंदोलन
स्थान: 26 मार्च, 1974 को, जब वृक्ष काटने के लिए कुछ आदमी रेनी के जंगलों की ओर बढ़े, तो गाँव की महिलाएँ, गौरा देवी के नेतृत्व में, लगभग 5 किमी. दौड़ीं और उन्होंने वृक्षों की रक्षा के लिए पेड़ों के चारों ओर मानव-ढालें बनाईं।
नामकरण: इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ‘वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिए उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिए इस आंदोलन को जाना जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
इसका सबसे बड़ा लक्ष्य लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे जमीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
सुंदरलाल बहुगुणा (1927-2021)
परिचय
इन्होंने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
इसके अलावा इन्हें चिपको का नारा ‘पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है’ गढ़ने के लिए जाना जाता है।
1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारितंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिए।
भागीरथी नदी पर टिहरी बाँध के विरुद्ध अभियान चलाया, जो विनाशकारी परिणामों वाली एक मेगा परियोजना है। उन्होंने आजादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक समय तक लंबा उपवास किया।
पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा (पैदल मार्च) की।
उन्हें वर्ष 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
भारत में अन्य पर्यावरणीय आंदोलन
साइलेंट वैली प्रोजेक्ट
वर्ष: 1978
स्थान: केरल में कुंतीपुझा नदी
प्रमुख: केरल शास्त्र साहित्य परिषद सुगाथाकुमारी
विवरण: केरल में साइलेंट वैली मूवमेंट कुद्रेमुख परियोजना के तहत कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली बांँध के निर्माण के विरुद्ध था।
बिशनोई आंदोलन
वर्ष: 1700
स्थान: राजस्थान का खेजड़ी, मारवाड़ क्षेत्र
प्रमुख: अमृता देवी
अप्पिको आंदोलन
वर्ष: 1983
स्थान: कर्नाटक
प्रमुख: लक्ष्मी नरसिम्हा
विवरण: पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए। सागौन और नीलगिरि के पेड़ों की व्यावसायिक वानिकी के विरुद्ध।
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