पिछले 10 वर्षों में भारतीय मुद्रा में डॉलर के मुकाबले तुलनात्मक रूप से अधिक गिरावट देखी गई है, किंतु ‘वास्तविक’ रूप में रुपया मजबूत हुआ है।
संबंधित तथ्य
पिछले 10 वर्षों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 27.6% गिरकर 60.34 रुपये प्रति डॉलर से 83.38 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया है।
NEER में गिरावट: प्राप्त आँकड़ों से पता चलता है कि रुपये की 40-मुद्रा बास्केट आधारित NEER में वर्ष 2004-05 और 2023-24 के बीच लगभग 32.2% (133.8 से 90.8 तक) की गिरावट आई है।
मुद्रा टोकरी-6 में गिरावट 40.2% (139.8 से 83.7 तक) के लगभग हुई है।
इसी अवधि के दौरान, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की औसत विनिमय दर 45.7% गिरकर 44.9 रुपये प्रति डॉलर से 82.8 रुपये प्रति डॉलर हो गई।
मूल्य में उतार-चढ़ाव: रुपये का मूल्य और विनिमय दर न केवल अमेरिकी डॉलर बल्कि अन्य वैश्विक मुद्राओं पर भी निर्भर करता है।
भारतीय रुपये की मजबूती: वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष के रूप में लिया गया है तथा यह देखा जा सकता है कि समय के साथ रुपया वास्तविक रूप से मजबूत हुआ है।
मूल्यह्रास का कारण: इसका कारण है कि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम कमजोर हुआ है।
रुपये की ‘प्रभावी विनिमय दर’ (Effective Exchange Rate- EER)
परिचय: EER भारत के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की मुद्राओं की तुलना में रुपये की विनिमय दरों के भारित औसत का सूचकांक है।
मुद्रा भार (Currency Weights) भारत के कुल विदेशी व्यापार में अलग-अलग देशों की हिस्सेदारी से प्राप्त होता है, जैसे CPI में प्रत्येक वस्तु का उपभोग उनके सापेक्ष महत्त्व पर आधारित होता है।
मापन: EER को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) के समान सूचकांक द्वारा मापा जाता है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) एक निश्चित आधार अवधि में वस्तुओं और सेवाओं के प्रतिनिधि उपभोक्ताओं के उपभोग का औसत खुदरा मूल्य है।
EER के दो तरीकों से मापा जाता है-
NEER (Nominal EER)
वास्तविक EER (Real EER- REER)
सांकेतिक EER (Nominal EER- NEER)
परिचय: NEER विदेशी मुद्राओं के संदर्भ में घरेलू मुद्रा की सांकेतिक विनिमय दर प्रणाली का भारित औसत है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने छह और 40 मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले रुपये के NEER सूचकांक का निर्माण किया है।
छह टोकरी वाले समूह में रुपया अन्य छह मुद्राओं के साथ विनिमय करता है, जिसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और हांगकांग डॉलर शामिल हैं।
दूसरा सूचकांक 40 देशों की मुद्राओं की एक बड़ी टोकरी को शामिल करता है, जो भारत के वार्षिक व्यापार प्रवाह का लगभग 88% हिस्सा है।
आधार बिंदु का संदर्भ: NEER सूचकांक को वर्ष 2015-16 के आधार पर 100 अंक पर निर्धारित किया गया है।
इस सूचकांक में वृद्धि अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपये की प्रभावशीलता का संकेत देती है तथा इसमें गिरावट समग्र विनिमय दर में ह्रास का संकेत देती है।
मुद्रास्फीति और क्रय शक्ति: NEER एक सारांश सूचकांक है, जो वैश्विक मुद्राओं की तुलना में रुपये के मूल्य में उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। हालाँकि, NEER सूचकांक में मुद्रास्फीति को शामिल नहीं किया जाता है, जो रुपये के आंतरिक मूल्य में परिवर्तन को दर्शाता है।
उदाहरण के तौर पर, पिछले एक वर्ष में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इंडोनेशियाई रुपया 8.5% गिरा है। इस अवधि के दौरान भारतीय रुपये में मात्र 1.7% की गिरावट आई है। लेकिन भारत की वार्षिक CPI मुद्रास्फीति दर 4.9% (मार्च के लिए) रही, जो इंडोनेशिया की मुद्रास्फीति दर (3.1%) से ऊपर रही।
इस प्रकार, इंडोनेशियाई मुद्रा की घरेलू क्रय शक्ति को उसकी अंतरराष्ट्रीय क्रय शक्ति की तुलना में कम क्षरण का सामना करना पड़ा है, जबकि रुपये के लिए यह विपरीत रहा है।
वास्तविक EER (Real EER- REER)
परिचय: REER मूल रूप से NEER है, जिसे घरेलू और उसके विदेशी व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति के अंतर के लिए समायोजित किया जाता है।
यदि किसी देश की सांकेतिक विनिमय दर उसकी घरेलू मुद्रास्फीति दर से कम हो जाती है, तो मुद्रा का मूल्य वास्तव में बढ़ता है।
महत्त्व: REER में किसी भी प्रकार की वृद्धि का तात्पर्य है कि भारत से निर्यात किए जा रहे उत्पादों की लागत देश में आयात की कीमतों से अधिक बढ़ी है तथा एक अन्य स्थिति इसके एकदम विपरीत भी हो सकती है।
REER में वृद्धि के परिणामस्वरूप व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी आई है, जो लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह है।
विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा अवमूल्यन का नुकसान
मुद्रास्फीति (Inflation): मुद्रा अवमूल्यन से मुद्रास्फीति दर में वृद्धि हो सकती है क्योंकि आवश्यक रूप से आयातित जैसे तेल आदि के मूल्यों में वृद्धि होगी। इस अवस्था में माँग-प्रेरित मुद्रास्फीति (Demand-pull Inflation) की स्थिति भी बन सकती है।
क्रय शक्ति (Purchasing Power): इससे देश के नागरिकों की क्रय शक्ति कम हो जाती है तथा विनिमय दर प्रणाली के अनुसार विदेशी सामान अधिक महँगे हो जाते हैं।
आर्थिक विकास: भारतीय मुद्रा के त्वरित अवमूल्यन से घरेलू अर्थव्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास कम हो सकता है।
विदेशी निवेशकों को सरकारी ऋण का उपयोग कम करेंगे क्योंकि अवमूल्यन के कारण उनकी हिस्सेदारी का मौद्रिक मूल्य कम हो जाएगा।
मुद्रा का अवमूल्यन उन निगमों और व्यक्तियों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिन पर विदेशी मुद्रा में ऋण है।
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