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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal October 19, 2024 05:17 116 0

असम का होलोंगापार गिब्बन अभयारण्य (Hollongapar Gibbon Sanctuary)

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) ने असम के होलोंगापार गिब्बन अभयारण्य  में तेल अन्वेषण के लिए वेदांता की सहायक कंपनी के प्रस्ताव को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है।

होलोंगापार गिब्बन अभयारण्य के बारे में

  • अवस्थिति: असम, भारत में अवस्थित है।
  • पूर्व में नाम: पूर्व में इसे ‘गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य’ या ‘होलोंगापार आरक्षित वन’ के रूप में जाना जाता था।
  • स्थापना: आधिकारिक तौर पर वर्ष 1997 में गठित किया तत्पश्चात् इसका नाम बदला गया।

वनस्पति और जीव

  • हूलॉक गिब्बन: भारत की एकमात्र वानर और गिब्बन प्रजाति का आवास।
  • यह भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में नागालैंड, मणिपुर, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और त्रिपुरा में पाया जाता है।
  • संरक्षण स्थिति: IUCN की रेड लिस्ट में
  • हूलॉक गिब्बन (पूर्वी)- सुभेद्य (Vulnerable)
  • हूलॉक गिब्बन (पश्चिमी)- लुप्तप्राय (Endangered)
  • ये दोनों प्रजातियाँ भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में हैं।
  • बंगाल स्लो लोरिस (Bengal Slow Loris): यहाँ पूर्वोत्तर भारत का एकमात्र रात्रिचर प्राइमेट भी पाया जाता है।
  • वनस्पति
  • ऊपरी कैनोपी: होलोंग वृक्षों [डिप्टरोकार्पस रेटुसस (Dipterocarpus Retusus)] का प्रभुत्व है।
  • मध्य कैनोपी: नाहर वृक्षों [मेसुआ फेरिया (Mesua ferrea)] का प्रभुत्व है।
  • निचली कैनोपी: सदाबहार झाड़ियाँ एवं जड़ी-बूटियाँ शामिल हैं।

आवास के लिए खतरा

  • अवैध कटाई: पेड़ों की अनाधिकृत कटाई के कारण इसके आवास के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है।
  • मानव अतिक्रमण: वन क्षेत्र में मानव बस्तियों के विस्तार के कारण इसके आवास नष्ट हो रहे हैं।
  • आवास का विखंडन: वन का छोटे, पृथक टुकड़ों में विकेंद्रित होना।

मृग (Antelope) और हिरण (Deer) के बीच अंतर को समझना

 

हाल ही में मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता बाबा सिद्दीकी की दुखद हत्या के बाद काला हिरण (Blackbuck) और चिंकारा (Chinkara) चर्चा में हैं।

मृग और हिरण के बीच मुख्य अंतर

  • वर्गीकरण
    • हिरण और मृग दोनों ही किंगडम एनीमेलिया (kingdom Animalia) और आर्टियोडैक्टाइला (Artiodactyla)  (इवेन-टॉड अंगुलेट्स) क्रम से संबंधित हैं।
    • हिरण सर्विडी (Cervidae) परिवार से संबंधित हैं, जबकि मृग बोविडी (Bovidae) परिवार का हिस्सा हैं (जिसमें मवेशी, भैंस, बकरियाँ आदि भी शामिल हैं)।
  • भौतिक विशेषताएँ
    • हिरणों के एंटलर्स (Antlers) (बारहसिंगे की सींग की एक शाखा) होते हैं: शाखायुक्त, किरेटिनस वृद्धि जो केवल नर में पाई जाती है और ये प्रत्येक वर्ष टूट कर गिर जाती हैं।
    • मृगों के सींग होते हैं: इनमें सींग स्थायी और बिना शाखा वाले, मजबूत, और एक बोनी कोर (Bony Core) के साथ एक चिटिनस खोल (Chitinous Shell) से बने होते हैं, जो नर एवं मादा दोनों में पाए जाते हैं।
  • शारीरिक संरचना
    • मृग: आम तौर पर इनके पैर लंबे और शरीर पतला होता है, जो खुले आवासों में गति और चपलता के लिए अनुकूल होता है।
    • हिरण: कई मृग प्रजातियों की तुलना में इनके शरीर का आकार मोटा और पैर छोटे होते हैं।

मृग का भौगोलिक वितरण

  • वितरण: दुनिया भर में मृगों की 91 प्रजातियाँ हैं, मुख्य रूप से अफ्रीका और एशिया में, जहाँ अफ्रीका ‘मृगों का स्वर्ग’ (Antelope Haven) है।
  • भारत में मृग: भारत में मृगों की छह प्रजातियाँ हैं: तिब्बती मृग, तिब्बती गजेल, नीलगाय, काला हिरण, चिंकारा और चौसिंघा।
  • मृगों की आबादी के लिए खतरे: शिकार, आवास विनाश, पशुधन के साथ प्रतिस्पर्द्धा और तनाव एवं संघर्ष।

हिरणों का वैश्विक वितरण

  • अमेरिका से लेकर यूरेशिया तक विभिन्न क्षेत्रों में हिरणों की 43 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • मूस (Moose): उत्तरी अमेरिका में पाई जाने वाली सबसे बड़ी हिरण प्रजाति [यूरेशिया में इसे एल्क (Elk) कहा जाता है]।
    • पुडु (Pudu): दक्षिण अमेरिका की मूल निवासी सबसे छोटी हिरण प्रजाति।
  • भारत में हिरण: भारत में हिरणों की 12 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • इंडियन माउस डियर (Indian Mouse Deer) (सबसे छोटा)
    • साँभर (Sambar) (सबसे बड़ा)।

किंग कोबरा प्रजाति का पुनर्वर्गीकरण

हाल ही में वैज्ञानिकों ने किंग कोबरा (King Cobra) को चार अलग-अलग प्रजातियों में पुनः वर्गीकृत किया है।

किंग कोबरा के बारे में

  • यह दुनिया का सबसे लंबा और सबसे अधिक विषैला सर्प है।
  • किंग कोबरा के काटने से मस्तिष्क में वायु का प्रवाह नहीं हो पाता हैं, हृदय गति रुक ​​जाती है और घातक न्यूरोटॉक्सिक प्रभाव हो सकता है।

विशिष्ट विशेषता

  • घोंसला बनाना: किंग कोबरा एकमात्र ऐसा साँप है, जो अंडे देने के लिए घोंसला बनाता है, जिसकी वे तब तक कड़ी सुरक्षा करते हैं, जब तक कि बच्चे बाहर नहीं निकल आते हैं।
  • आवास: वर्षावनों, बाँस के घने जंगल, मैंग्रोव दलदल, उच्च ऊँचाई वाले घास के मैदान और नदियों आदि सहित विभिन्न आवासों के लिए अनुकूल।
  • खतरे: वनों की कटाई, अंतरराष्ट्रीय पालतू व्यापार, वन्यजीव तस्करी, मनुष्यों द्वारा उत्पीड़न, त्वचा, भोजन और औषधीय प्रयोजनों के लिए शोषण आदि।
  • संरक्षण स्थिति
    • IUCN की रेड लिस्ट में: सुभेद्य (Vulnerable)
    • CITES: परिशिष्ट II (Appendix II)
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची II (Schedule II)
  • चार विशिष्ट प्रजातियों में पुनः वर्गीकरण: किंग कोबरा को अब चार प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है:
    • मेनलैंड एशिया नार्दन किंग कोबरा (Mainland Asia Northern King Cobra) और ओफियोफैगस हन्नाह (Ophiophagus Hannah): पूर्वी पाकिस्तान से उत्तरी भारत होते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है।
    • सुंडा किंग कोबरा (Sunda King Cobra) या ओफियोफैगस बंगारस (Ophiophagus Bungarus): मलेशिया और कुछ दक्षिणी फिलीपींस द्वीपों सहित क्रा इस्थमस (Kra Isthmus) के दक्षिण के क्षेत्रों में पाया जाता है।
    • पश्चिमी घाट किंग कोबरा (Western Ghats king cobra) या ओफियोफैगस कालिंगा (Ophiophagus Kaalinga): भारत के पश्चिमी घाटों में पाया जाने वाला यह कोबरा, मध्य-ऊँचाई वाले वर्षावनों और तलहटी में पाया जाता है।
    • लूजोन किंग कोबरा (Luzon King Cobra) या  ओफियोफैगस साल्वाटाना (Ophiophagus Salvatana): उत्तरी फिलीपींस के लूजोन द्वीप तक ही सीमित, अन्य द्वीपों पर इसकी संभावित अज्ञात आबादी।
  • उनके पुनर्वर्गीकरण से किंग कोबरा संरक्षण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा तथा इससे उनके काटने से होने वाली मृत्यु दर को कम करने में भी मदद मिलेगी।

जियांगमेन भूमिगत न्यूट्रिनो वेधशाला (Jiangmen Underground Neutrino Observatory- JUNO)

वर्षों के निर्माण के बाद, चीन के दक्षिणी गुआंग्डोंग प्रांत में 300 मिलियन डॉलर की लागत से निर्मित जियांगमेन भूमिगत न्यूट्रिनो वेधशाला (Jiangmen Underground Neutrino Observatory- JUNO) जल्द ही न्यूट्रिनो, जो परमाणु अभिक्रियाओं का एक उत्पाद है, पर डेटा एकत्र करना शुरू कर देगी, जिससे कण भौतिकी के सबसे बड़े रहस्यों में से एक को सुलझाने में मदद मिलेगी।

जियांगमेन भूमिगत न्यूट्रिनो वेधशाला (JUNO) के बारे में

  • स्थान: दक्षिणी गुआंग्डोंग प्रांत, चीन।
  • लागत: $300 मिलियन।
  • उद्देश्य: कण भौतिकी और ब्रह्मांड को समझने के लिए परमाणु अभिक्रियाओं से उप-परमाणु कणों, न्यूट्रिनो का अध्ययन करना।
  • निर्माण: प्रकाश-संसूचक नलियों से युक्त एक विशाल गोला, जो 700 मीटर नीचे, 12 मंजिला पानी के कुंड में रखा हुआ है।
  • परिचालन: वर्ष 2025 में शुरू होने की उम्मीद है।
  • वैज्ञानिक उद्देश्य
    • न्यूट्रिनो द्रव्यमान पदानुक्रम (Neutrino Mass Hierarchy): JUNO का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि कौन-से न्यूट्रिनो प्रकार सबसे हल्के और सबसे भारी हैं, जो कण भौतिकी में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है।
    • सौर प्रक्रियाओं का अध्ययन (Study of Solar Processes): सौर ऊर्जा उत्पादन में अंतर्दृष्टि के लिए सूर्य से न्यूट्रिनो का वास्तविक समय अवलोकन करना।
    • पृथ्वी अध्ययन: टेक्टॉनिक प्लेट की गति को समझने के लिए पृथ्वी के मेंटल में रेडियोधर्मी क्षय से न्यूट्रिनो की जाँच करना।
    • परमाणु ऊर्जा संयंत्र: जूनो दो निकटवर्ती परमाणु संयंत्रों से न्यूट्रिनो का छह वर्ष तक विश्लेषण करेगा।

न्यूट्रिनो के बारे में

  • उप-परमाण्विक कण का प्रकार।
  • द्रव्यमान और आवेश: इनमें विद्युत आवेश नहीं होता, इनका द्रव्यमान कम होता है, और ये लेफ्ट हैंडेड होते हैं (भौतिकी का एक शब्द ‘लेफ्ट हैंडेड’ जिसका अर्थ है कि इनके घूमने की दिशा इनकी गति की दिशा के विपरीत होती है)।
  • न्यूट्रिनो की प्रचुरता: फोटॉन (प्रकाश के कण) के बाद दूसरे सबसे प्रचुर कण और पदार्थ बनाने वाले कणों में सबसे प्रचुर कण।
  • प्रकार: तीन प्रकार – इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो, टाऊ न्यूट्रिनो और म्यूऑन न्यूट्रिनो।
  • न्यूट्रिनो दोलन: ये दोलन करते समय एक स्थिति से दूसरे स्थिति में बदल सकते हैं। यह एक असामान्य क्वांटम घटना है।
    • उदाहरण: सूर्य से आने वाले न्यूट्रिनो प्रारंभ में इलेक्ट्रॉन-न्यूट्रिनो होते हैं, लेकिन पृथ्वी पर उनमें से कई को म्यूऑन-न्यूट्रिनो के रूप में पाया जाता है।
  • अवलोकन: न्यूट्रिनो का कमजोर आवेश और लगभग नगण्य द्रव्यमान के कारण वैज्ञानिकों के लिए उनका अवलोकन करना बेहद कठिन हो गया है।
    • उन्हें केवल तभी देखा जा सकता है जब वे अन्य कणों के साथ परस्पर अभिक्रिया करते हैं।

भारत की न्यूट्रिनो परियोजना (Neutrino Project)

  • भारत-आधारित न्यूट्रिनो वेधशाला (India-based Neutrino Observatory- INO): यह परियोजना भारत के तमिलनाडु में तैयार की गई है।
  • स्थान: INO सहयोग ने तमिलनाडु के थेनी जिले में ‘बोडी वेस्ट हिल्स’ (Bodi West Hills- BWH) क्षेत्र में एक साइट पर निर्णय लिया है।
  • वित्त पोषण एवं सहायता: भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा वित्त पोषित।
  • वर्तमान स्थिति: प्रक्रियात्मक मुद्दों और राजनीतिक समर्थन की कमी के कारण अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है।

वालोंग की लड़ाई
(Battle of Walong)

चीन के साथ वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान वालोंग की लड़ाई (Battle of Walong) की 62वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए, भारतीय सेना 17 अक्टूबर से 14 नवंबर तक एक महीने तक चलने वाले स्मृति कार्यक्रमों की शृंखला की योजना बना रही है।

वालोंग की लड़ाई के बारे में

  • वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, भारतीय सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के वालोंग सेक्टर में आगे बढ़ती चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People’s Liberation Army- PLA) को 27 दिनों तक रोके रखा।
  • 11 इन्फेंट्री ब्रिगेड ने 800 सैनिकों के साथ PLA के खिलाफ मोर्चा  सँभाला और 4,000 PLA सैनिकों को रोक दिया और चीन को 15,000 सैनिकों की अतिरिक्त डिवीजन तैनात करने के लिए मजबूर किया गया।
  • भौगोलिक चुनौतियाँ
    • यह युद्ध 3,000 से 14,000 फीट की ऊँचाई पर, ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों में लड़ा गया।
    • यह क्षेत्र पूरी तरह से हवाई रखरखाव पर निर्भर था और इसमें सड़क संपर्क का अभाव था, जिससे भारतीय सेना के लिए रसद संबंधी चुनौतियाँ बढ़ गईं।
  • यह युद्ध भारतीय सेना की बहादुरी का प्रमाण था, भले ही वे संख्या में कम और संसाधन रहित थे। टाइम मैगजीन (वर्ष 1963) ने भारतीय सैनिकों के ‘साहस’ की प्रशंसा की।

स्मरणोत्सव कार्यक्रम (Commemoration Events), 2024

  • नवनिर्मित वालोंग युद्ध स्मारक (शौर्य स्थल) और प्रमुख सीमा अवसंरचना परियोजनाओं का उद्घाटन किया जाएगा।
  • वालोंग दिवस: पुष्पांजलि समारोह, युद्ध की कथाएँ और स्थानीय जनजातियों (मिश्मी एवं मेयोर नर्तक) द्वारा अरुणाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हुए पारंपरिक प्रदर्शन किया जाएगा।

सारथी (SARTHI) या सोलर असिस्टेड रीफर ट्रांसपोर्टेशन विद हाइब्रिड कंट्रोल्स एंड इंटेलिजेंस  (Solar Assisted Reefer Transportation with Hybrid controls and Intelligence)

हाल ही में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान, कुंडली (NIFTEM-K) ने ‘सोलर असिस्टेड रीफर ट्रांसपोर्टेशन विद हाइब्रिड कंट्रोल्स एंड इंटेलिजेंस’ (Solar Assisted Reefer Transportation with Hybrid Controls and Intelligence) या सारथी (SARTHI) की शुरुआत की है।

सारथी (SARTHI) के बारे में

  • सारथी (SARTHI), एक ऐसी प्रणाली है, जो फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के मद्देनजर जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों के परिवहन के लिए ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ (IoT), सेंसर और सौर ऊर्जा का उपयोग करती है।

सारथी की विशेषताएँ

  • दोहरे डिब्बे: फलों और सब्जियों को अलग-अलग तापमान पर स्टोर करता है।
  • वास्तविक समय की निगरानी: सेंसर तापमान, आर्द्रता, एथिलीन और CO2 के स्तर को मापते हैं।
  • मोबाइल ऐप: उत्पाद की गुणवत्ता के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करता है।
  • सौर ऊर्जा से चलने वाली ‘एयर हैंडलिंग यूनिट’: यह वाहन के रुकने पर तापमान नियंत्रण बनाए रखती है।

महत्त्व

  • सारथी, उत्पाद की शेल्फ लाइफ बढ़ाने और नमी की कमी या ठंड के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने में मदद कर सकता है।
  • यह ट्रांसपोर्टरों को सूचित निर्णय लेने में भी मदद कर सकता है, जैसे कि अगर उत्पाद खराब हो जाता है तो उसे नजदीकी बाजारों में भेजना।
    • इससे कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा की बर्बादी को कम करने में मदद मिल सकती है।

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