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‘10,000 जीनोम’ परियोजना

Lokesh Pal February 29, 2024 05:17 180 0

संदर्भ

भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT) ने आधिकारिक तौर पर ‘10,000 जीनोमपरियोजना (10,000 Genome Project) के पूरा होने की घोषणा की।

संबंधित तथ्य

  • यह परियोजना भारत से बाहर संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमों का एक रिफरेंस डेटाबेसबनाने का प्रयास करती है।
  • इस परियोजना के तहत नमूने 20 केंद्रों में वितरित 99 जातीय समूहों से लिए गए थे।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन एवं चीन एकमात्र ऐसे देश हैं जिनके पास कम-से-कम 1,00,000 जीनोम को अनुक्रमित (Sequence) करने से संबंधित कार्यक्रम है।

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (Genome India Project) की पृष्ठभूमि

  • इस पहल के चरण 1 को कम-से-कम 10,000 भारतीय जीनोम को अनुक्रमित करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
    • उद्देश्य: कई उच्च प्राथमिकता वाली बीमारियों तथा अन्य असामान्य आनुवंशिक विकारों के लिए पूर्वानुमानित निदान संकेतक विकसित करना।
  • चरण 2 में परियोजना तीन व्यापक श्रेणियों – हृदय रोग (Cardiovascular Diseases), मानसिक बीमारी (Mental illness) एवं कैंसर (Cancer) के रोगियों के आनुवंशिक नमूने एकत्र करेगी।

जीनोम इंडिया प्रोजेक्टके बारे में

  • अनुसंधान: जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान का मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (Indian Institute of Science’s Centre for Brain Research) के नेतृत्व में एक शोध पहल है तथा इसमें देश भर के 20 से अधिक विश्वविद्यालय शामिल हैं।
  • उद्देश्य: नमूने इकट्ठा करना, डेटा संकलित करना, अनुसंधान करना एवं एक इंडियन रेफरेंस जीनोमग्रिड बनाना।
  • अनुप्रयोग: कैंसर तथा मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए कृषि, बायोटेक एवं स्वास्थ्य देखभाल को उन्नत करता है।

10,000 जीनोम प्रोजेक्ट 

  • पहल: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार)
  • उद्देश्य: 10,000 भारतीय जीनोम को अनुक्रमित करना।
  • उद्देश्य: रोगों का निदान करने के लिए भारतीय जीन में भिन्नता को समझना।

जीनोम अनुक्रमण क्या है?

  • सभी जीवों (बैक्टीरिया, सब्जियाँ, स्तनधारी) में एक अद्वितीय आनुवंशिक कोड या जीनोम होता है, जो न्यूक्लियोटाइड क्षार (A, T, C और G) से बना होता है।
  • यदि किसी जीव में क्षारों के अनुक्रम की जानकारी रहती है तो वह उसके अद्वितीय DNA फिंगरप्रिंट या पैटर्न की पहचान कर सकता है।
    • क्षारों का क्रम निर्धारित करना ‘अनुक्रमण’ (Sequencing) कहलाता है।
  • संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण एक प्रयोगशाला प्रक्रिया है, जो एक प्रक्रिया में किसी जीव के जीनोम में क्षारों का क्रम निर्धारित करती है।

संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण कैसे काम करता है?

  • वैज्ञानिक इन चार मुख्य चरणों का पालन करके संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण करते हैं:
    • DNA शियरिंग (DNA Shearing): वैज्ञानिक DNA, जो लाखों न्यूक्लियोटाइड क्षारों (A’s, C’s, T’s, और G’s) से बना होता है, को काटने के लिए आणविक कैंची (Molecular Scissors ) का उपयोग करते हैं।
      • एडेनिन (A), साइटोसिन (C), गुआनिन (G), तथा थाइमिन (T) न्यूक्लियोटाइड क्षार हैं।
    • DNA बारकोडिंग: वैज्ञानिक यह पहचानने के लिए DNA टैग या बार कोड के छोटे टुकड़े जोड़ते हैं कि विखंडित हुए DNA का कौन सा टुकड़ा किस बैक्टीरिया से संबंधित है। यह उसी तरह है जैसे किराने की दुकान पर बारकोड किसी उत्पाद की पहचान करता है।
    • DNA अनुक्रमण: कई जीवाणुओं से बारकोडित DNA को संयोजित किया जाता है एवं एक DNA अनुक्रमक में रखा जाता है।
      • सीक्वेंसर A’s, C’s, T’s, और G’s, या उन क्षारों की पहचान करता है जिनमें प्रत्येक जीवाणु अनुक्रम शामिल होता है। सीक्वेंसर बार कोड का उपयोग यह ट्रैक करने के लिए करता है कि कौन सा क्षार किस बैक्टीरिया का है।
    • डेटा विश्लेषण: वैज्ञानिक कई जीवाणुओं के अनुक्रमों की तुलना करने एवं अंतरों की पहचान करने के लिए कंप्यूटर विश्लेषण उपकरणों का उपयोग करते हैं। अंतरों की संख्या वैज्ञानिकों को बता सकती है कि बैक्टीरिया कितने निकट से संबंधित हैं एवं उनके एक ही प्रकोप का हिस्सा होने की कितनी संभावना है।

परियोजना का महत्त्व 

  • शोधकर्ताओं को आनुवंशिक वेरिएंट की पहचान करने में मदद मिली: केवल 5,750 जीनोम के विश्लेषण से शोधकर्ताओं को भारत में 135 मिलियन आनुवंशिक वेरिएंट की पहचान करने में मदद मिली है।
  • रोग के इतिहास को उजागर करना: डेटा भंडार वैज्ञानिकों को वेरिएंट का संकेत देने वाली बीमारियों की पहचान करने में मदद कर सकता है।
  • प्रतिरोध-संकेत देने वाले वेरिएंट की पहचान करना: यह प्रतिरोध-संकेत देने वाले वेरिएंट की पहचान करने में भी मदद कर सकता है, जैसे कि- जीन, जो कुछ दवाओं को अप्रभावी बना सकते हैं।
    • यह निदान तथा उपचार विज्ञान के लिए लक्ष्यों की पहचान करने में भी मदद कर सकता है।
  • IBDC की स्थापना: संपूर्ण डेटासेट को भारतीय जैविक डेटा केंद्र (Indian Biological Data Centre- IBDC) में संगृहीत  किया जाएगा तथा डिजिटल सार्वजनिक वस्तु या अनुसंधान के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा।
    • वर्ष 2022 में उद्घाटन किया गया, IBDC देश का एकमात्र डेटाबैंक है।
    • इससे पहले भारतीय शोधकर्ताओं को अपने जैविक डेटासेट को अमेरिकी या यूरोपीय सर्वर पर होस्ट करना पड़ता था।

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