100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

बिरसा मुंडा की 124वीं पुण्य तिथि

Lokesh Pal June 11, 2024 06:03 66 0

संदर्भ

भारतीय आदिवासी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा का 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 9 जून, 2024 को उनकी 124वीं पुण्य तिथि मनाई गई।

प्रारंभिक जीवन एवं पृष्ठभूमि

  • बिरसा मुंडा के बारे में: बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता एवं धार्मिक सुधारक थे, जो वर्तमान झारखंड तथा ओडिशा के छोटानागपुर के मुंडा जनजाति से संबंधित थे। 
  • जन्म: बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को खूँटी के मुंडारी रियासत के उलिहातू गाँव में हुआ था।
  • आदिवासियों की स्थिति: उनका पालन-पोषण ऐसे समय में हुआ जब मुंडा लोग ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन, साहूकारों एवं जमींदारों (दिकुओं) द्वारा बढ़ते शोषण तथा विस्थापन का सामना कर रहे थे।

विद्रोह की भूमिका तैयार करना

  • पूर्व-औपनिवेशिक भूमि स्वामित्व: मुंडाओं ने औपनिवेशिक शासन से पहले प्रथागत अधिकारों पर आधारित ‘खुंटकट्टी’ प्रणाली का पालन किया।
  • वर्ष 1793 का स्थायी बंदोबस्त अधिनियम (Permanent Settlement Act) का प्रभाव: स्थायी बंदोबस्त अधिनियम के अधिनियमन ने भूमि स्वामित्व को बदल दिया, जमींदारी प्रणाली की शुरुआत की। इसने भूमि-स्वामी जमींदारों (बाहरी या ‘दिकु’ माने जाने वाले) एवं स्वदेशी निवासियों (‘रैयत’) के बीच एक विभाजन उत्पन्न कर दिया।
  • विस्थापन एवं अधिकारों से इनकार: इस अधिनियम ने दिकुओं को स्वामित्व अधिकारों का दावा करने की अनुमति दी, स्वदेशी निवासियों को विस्थापित किया एवं उन्हें पीढ़ियों तक खेती योग्य भूमि तक पहुँच से वंचित कर दिया।
  • अन्य कमजोर करने वाली नीतियाँ: भूमि मुद्दों के अलावा, आदिवासी समुदायों को जबरन श्रम (‘बेगार’ प्रणाली), ऋण के लिए साहूकारों पर निर्भरता एवं पारंपरिक परिषदों के स्थान पर औपनिवेशिक न्यायालयों के माध्यम से शोषण का सामना करना पड़ा।
  • अकाल: 1896-97 एवं 1899-1900 में अकाल की शुरुआत ने चुनौतियों को और बढ़ा दिया, जिससे आदिवासी समुदायों में बड़े पैमाने पर भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई।

उलगुलान (Ulgulan) आंदोलन क्या था?

  • वर्ष 1899 के उलगुलान आंदोलन ने विदेशियों को बाहर निष्कासित करने के लिए हथियारों एवं गुरिल्ला युद्ध का भी इस्तेमाल किया। 
  • मुंडा ने आदिवासियों को औपनिवेशिक कानूनों का पालन करने एवं लगान देने से इनकार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

सरदारी आंदोलन: ब्रिटिश शासन के विरुद्ध ओराँव एवं मुंडा जनजातियों के नेतृत्व में इस आंदोलन की प्रकृति शांतिपूर्ण थी।

  • मुंडा ने 1886 एवं 1890 ई. के बीच अपना अधिकांश समय चाईबासा में बिताया, जो सरदारी आंदोलन के केंद्र के करीब था।
  • सरदारों की गतिविधियों ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने मिशनरी-विरोधी एवं सरकार-विरोधी कार्यक्रमों में भाग लिया और ‘उलगुलान’, या ‘द ग्रेट ट्यूमुल्ट’ नामक एक आंदोलन शुरू किया। 
  • मुंडा जल्द ही एक आदिवासी नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने इन मुद्दों पर लड़ने के लिए लोगों को एक साथ लाए। 

धार्मिक सुधार आंदोलन

  • प्रारंभिक शिक्षा: मुंडा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में प्राप्त की। 
  • ईसाई धर्म में परिवर्तन: बिरसा ने जर्मन मिशन स्कूल में प्रवेश के लिए ईसाई धर्म अपना लिया। लेकिन बाद में, जब उन्हें एहसास हुआ कि अंग्रेज स्वदेशी लोगों को शिक्षित करके उनका धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं, तो उन्होंने अपना जर्मन मिशन स्कूल छोड़ दिया एवं एक आदिवासी धार्मिक व्यवस्था में वापस आ गए।
  • बिरसाइत की स्थापना: 19वीं सदी के अंत में, बिरसा मुंडा ने ‘मुंडावाद,’ ‘किसांगवाद,’ या ‘बिरसाइत संप्रदाय’ नामक एक नए धार्मिक आंदोलन की स्थापना की।
    • ‘बिरसाइत’ के विश्वास का नेतृत्व करते हुए, वह एक ईश्वर-सदृश्य व्यक्ति बन गए, जिन्हें उनके अनुयायियों द्वारा ‘भगवान’ एवं ‘धरती अब्बा’ (पृथ्वी का पिता) कहा जाने लगा।
    • इस आंदोलन का उद्देश्य पारंपरिक मुंडा रीति-रिवाजों एवं मान्यताओं को पुनर्जीवित करना तथा मुंडा लोगों को उनके उत्पीड़कों के खिलाफ एकजुट करना था।
  • शिक्षाएँ और सिद्धांत: जैसे-जैसे अनुयायी नए धर्म की ओर बढ़ते गए, बिरसा ने अंधविश्वास के विरुद्ध सिफारिश की एवं अपने लोगों से भीख माँगने तथा पशु बलि छोड़ने का आग्रह किया एवं उनसे केवल एक भगवान की पूजा करने के लिए कहा। 
    • बिरसा की शिक्षाओं में आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय एवं उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध के महत्त्व पर जोर दिया गया। 
  • ब्रिटिश गतिविधियों का प्रभाव एवं चुनौती: इस प्रक्रिया में, मुंडा एवं ओराँव समुदायों के सदस्य ब्रिटिश रूपांतरण गतिविधियों को चुनौती देते हुए, बिरसाइत संप्रदाय में शामिल हो गए।

गिरफ्तारी एवं मृत्यु

  • गिरफ्तारी : अंग्रेज, सेना के माध्यम से जल्द ही आंदोलन पर नियंत्रण पाने में सक्षम हो गए। 
    • 3 मार्च, 1900 को मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
  • मृत्यु: ऐसा माना जाता है कि 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की छोटी उम्र में एक बीमारी के कारण रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई। 

उल्लेखनीय उपलब्धि

  • बिरसा मुंडा द्वारा आदिवासी समुदाय को उनके भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट करना उल्लेखनीय था।
  • खुंटखट्टी प्रणाली की पुनर्स्थापन: आंदोलन ने सरकार द्वारा बेगार प्रणाली को निरस्त करने में भी योगदान दिया और किरायेदारी अधिनियम (Tenancy Act), 1903 के तहत जिसने खुंटखट्टी प्रणाली को मान्यता दी गई। 
  • छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम, 1908: इस अधिनियम ने आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी लोगों को हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगा दिया।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.