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डॉ अंबेडकर की 134वीं जयंती

Lokesh Pal April 16, 2024 06:09 176 0

संदर्भ

14 अप्रैल, 2024 को डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन (DAF) ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से 134वीं डॉ. अंबेडकर जयंती मनाई।

‘महू’ को आधिकारिक तौर पर ‘डॉ. अंबेडकर नगर’ के नाम से जाना जाता है। 

डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में

  • उन्हें बाबासाहब अंबेडकर के नाम से जाना जाता है।
  • उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को इंदौर, अब मध्य प्रदेश के महू में हुआ था।
  • उन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों की वकालत की, जिन्हें पहले अछूत माना जाता था।
  • डॉ. अंबेडकर भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।
    • उन्हें ‘भारतीय संविधान के जनक’ के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में कार्य किया।
      • बाद में हिंदू कोड बिल पर मतभेद के कारण उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
  • बौद्ध धर्म: वर्ष 1956 में, उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया।
    • उसी वर्ष उन्होंने अपना अंतिम लेखन ‘बुद्ध एवं उनका धर्म‘ पूरा किया।

प्रमुख योगदान

  • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
  • उन्होंने दलितों एवं अन्य धार्मिक समूहों के लिए आरक्षण की शुरुआत की।
  • डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-32 को ‘संविधान की आत्मा’ कहा। 
  • उन्हें पता था कि जातिगत भेदभाव स्थानीय एवं प्रांतीय स्तर पर अधिक मजबूत है, जहाँ ऊँची जातियाँ सरकार पर निचली जाति के हितों की उपेक्षा करने का दबाव डाल सकती हैं। इसलिए वे केंद्र में एक मजबूत सरकार के पक्षधर थे।
    • उनके अनुसार, राष्ट्रीय सरकार, ऐसे दबावों से कम प्रभावित होकर, निचली जाति के अधिकारों की बेहतर रक्षा कर सकती है।
    • अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा: उनका मानना ​​था कि लोकतंत्र का ‘एक व्यक्ति एक वोट’ सिद्धांत पर्याप्त नहीं था क्योंकि अल्पसंख्यक देश में सबसे कमजोर समूह था।
      • उन्होंने सुनिश्चित किया कि ‘बहुसंख्यकवाद’ को रोकने के लिए अल्पसंख्यकों को सत्ता में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
    • लोकतंत्र का संसदीय स्वरूप: वे संसदीय लोकतंत्र के समर्थक थे। उन्होंने राजनीति से परे, व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं तक विस्तार करते हुए ‘लोकतंत्र को एक जीवन शैली के रूप में’ पर जोर दिया।

उनके नेतृत्व में प्रमुख सामाजिक सुधार आंदोलन और पहल

  • बहिष्कृत हितकारिणी सभा या बहिष्कृत कल्याण संघ: वर्ष 1923 में, डॉ. अंबेडकर ने दलित समुदायों के बीच शिक्षा एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस सभा की स्थापना की।
    • उद्देश्य: उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करना एवं उचित मंचों पर उनके मुद्दों को संबोधित करना।
    • महाड़ मार्च: वर्ष 1927 में, अंबेडकर ने चौदार टैंक में महाड़ मार्च का आयोजन किया। और जातिगत भेदभाव एवं पुरोहित वर्चस्व के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
      • महाड़ सत्याग्रह को ‘चवदार तले सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है।
        • उद्देश्य: इस सत्याग्रह का उद्देश्य अछूतों को महाड (वर्तमान में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले) में एक सार्वजनिक टैंक में जल का उपयोग करने की अनुमति देना था।
    •  20 मार्च को भारत में सामाजिक अधिकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • मंदिर प्रवेश आंदोलन: इसकी शुरुआत डॉ. अंबेडकर ने वर्ष 1930 में कालाराम मंदिर में की थी।
    • इस आंदोलन की माँग थी कि निचली जाति के लोग मंदिरों में प्रवेश करें एवं मंदिर के कुओं का उपयोग करें।
    • इस आंदोलन के माध्यम से डॉ. अंबेडकर ने निचली जाति के लोगों के लिए समान दर्जे की वकालत की।
      • उद्देश्य: इस आंदोलन का उद्देश्य जाति-आधारित भेदभाव को चुनौती देकर हिंदू समाज में सुधार करना था।
  • तीन गोलमेज सम्मेलन (1930-32): डॉ. अंबेडकर लंदन में तीनों गोलमेज सम्मेलन (1930-32) में गए, जहाँ उन्होंने ‘अछूतों’ के अधिकारों की पुरजोर वकालत की।

पृथक निर्वाचन क्षेत्र ऐसे चुनाव हैं, जहाँ अल्पसंख्यक अपने प्रतिनिधियों को व्यक्तिगत रूप से चुनते हैं, जबकि संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र में सामूहिक रूप से प्रतिनिधियों का चयन होता है।

  • गांधी जी के साथ पूना समझौता: डॉ. अंबेडकर रैमसे मैकडोनाल्ड द्वारा घोषित ‘सांप्रदायिक पंचाट’ के तहत ‘दलित वर्गों’ सहित कई समुदायों के लिए एक अलग निर्वाचन क्षेत्र के पक्ष में थे।
    • हालाँकि, वर्ष 1932 में गांधी ने यरवदा सेंट्रल जेल में उपवास करके सांप्रदायिक पंचाट के अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध किया।
      • इसके परिणामस्वरूप पूना समझौता हुआ, जहाँ गांधी ने अपना उपवास समाप्त कर दिया एवं अंबेडकर ने अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग वापस ले ली।
      • इसके बजाय, ‘दलित वर्ग’ के लिए एक निश्चित संख्या में सीटें आरक्षित की गईं।
  • इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी एवं प्रांतीय चुनाव: वर्ष 1936 में डॉ. अंबेडकर ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का गठन किया।
  • उन्होंने प्रांतीय चुनावों में भाग लिया एवं बॉम्बे विधानसभा में एक सीट जीती।
    • इस दौरान उन्होंने ‘जागीरदारी’ प्रथा को समाप्त करने की वकालत की एवं श्रमिकों के हड़ताल के अधिकारों का समर्थन किया।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध: वर्ष 1939 में, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, डॉ. अंबेडकर ने भारतीयों को नाजीवाद के खिलाफ लड़ने के लिए सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसे वे फासीवाद (Fascism) के समान मानते थे।
  • सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का निर्माण: एक अर्थशास्त्री के रूप में, उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे अब भारतीय रिजर्व बैंक कहा जाता है।

वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता

डॉ. अंबेडकर की विरासत आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

  • संवैधानिक मूल्य: भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में, उन्होंने भारत के कानूनी ढाँचे में मौलिक अधिकारों, लोकतांत्रिक सिद्धांतों एवं धर्मनिरपेक्षता को शामिल किया।
    • ये मूल्य प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार देते हैं जो उन्हें शोषण, सामाजिक अन्याय और लिंग, जन्म स्थान, जाति, नस्ल एवं धर्म जैसे कुछ आधारों पर भेदभाव से बचाते हैं।
  • सामाजिक न्याय: डॉ. अंबेडकर ने अधिक समावेशी समाज की स्थापना के लिए जाति-भेदभाव, असमानता एवं अस्पृश्यता के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
    • उन्होंने समाज के व्यवस्थित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया एवं हाशिए पर पड़े समाज के उत्थान के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए। यह उन्हीं का प्रयास है जिसके कारण अब तक वंचित समूहों के अधिकार सुरक्षित रहे हैं।
  • नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक: अंबेडकर के सिद्धांत एवं सामाजिक संरचनाओं तथा लोकतंत्र के बारे में उनकी स्पष्टता नीति निर्माताओं को सामाजिक मुद्दों एवं हाशिए पर रहने वाले समूहों के संघर्षों की जमीनी हकीकत को समझने में मदद करती है।
    • उनकी अंतर्दृष्टि दुनिया भर में सामाजिक न्याय को संतुलित करते हुए नीति निर्माण, आर्थिक परिवर्तन एवं वैश्विक एकीकरण में बहुत उपयोगी है।

डॉ. अंबेडकर के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य

  • रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान
  • ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन और वित्त
  • ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास
  • मूक नायक (साप्ताहिक) 1920
  • जनता (साप्ताहिक) 1930
  • जाति का विनाश (1936)
  • अछूत (1948)
  • बुद्ध या कार्ल मार्क्स 1956, आदि।

‘सामाजिक न्याय का वर्ष’

  • बाबासाहब के सम्मान में 14 अप्रैल, 1990 से 14 अप्रैल, 1991 के बीच के समय को ‘सामाजिक न्याय वर्ष‘ के रूप में नामित किया गया था।

पुरस्कार एवं श्रद्धांजलि

  • उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  • 10 रुपये एवं 125 रुपये के सिक्के: भारत सरकार ने अंबेडकर के सम्मान में 125वीं जयंती मनाने के लिए वर्ष 2015 में 10 रुपये एवं 125 रुपये के सिक्के जारी किए।
  • ज्ञान दिवस (ज्ञान दिवस): वर्ष 2017 में, महाराष्ट्र सरकार ने अंबेडकर की स्मृति के सम्मान में 14 अप्रैल को ज्ञान दिवस के रूप में घोषित किया।

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