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आर्य समाज के 150 वर्ष

Lokesh Pal November 04, 2025 02:21 29 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में आर्य समाज की 150वीं वर्षगाँठ और महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर भारतीयता और वैदिक मूल्यों के प्रचार के लिए आर्य समाज की प्रशंसा की।

आर्य समाज के बारे में 

  • स्थापना: इसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में बंबई में की गई थी।
    • बाद में इसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया।
    • इसका उद्देश्य हिंदू धर्म में सुधार लाना और वैदिक मूल्यों का पुनर्जागरण करना था।
  • मुख्य सिद्धांत: ये सिद्धांत एकेश्वरवाद, तर्कशीलता, और सार्वभौमिक मानवतावाद को प्रतिबिंबित करते हैं, जो समाज की गतिविधियों की नैतिक आधार का निर्माण करते हैं। जैसे—
    • ईश्वर सभी सच्चे ज्ञान का स्रोत है।
    • वेद सच्चे ज्ञान के ग्रंथ हैं।
    • धर्म (सत्कर्म) को आचरण का मार्गदर्शक होना चाहिए।
    • संसार के भौतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना चाहिए।
    • सामूहिक हित को व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर रखना चाहिए।
  • सामाजिक और शैक्षिक कार्य
    • सर्वसामान्य शिक्षा, महिला उत्थान और समानता को प्रोत्साहित किया।
    • दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) कॉलेज, लाहौर (वर्ष 1886) की स्थापना की।
    • गुरुकुल कांगड़ी (वर्ष 1902) हरिद्वार के पास तथा कन्या महाविद्यालय (वर्ष 1896) जालंधर में स्थापित किया।
    • विचारधारात्मक विभाजन (1890 दशक)
      • कॉलेज पार्टी: लाला हंसराज और लाला लाजपत राय- अंग्रेजी आधारित आधुनिक शिक्षा का समर्थन करते थे।
      • महात्मा/गुरुकुल पार्टी: स्वामी श्रद्धानंद- पारंपरिक वैदिक शिक्षा पर बल देते थे।
    • शुद्धि आंदोलन: इस आंदोलन का उद्देश्य अन्य धर्मों को अपनाने वाले हिंदुओं को पुनः हिंदू धर्म में वापस लाना तथा हिंदू एकता को सुदृढ़ करना था।

समकालीन भारत में आर्य समाज की प्रासंगिकता 

  • सामाजिक सुधार और समानता:  आर्य समाज का जातिवाद, अस्पृश्यता और सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन पर बल आज भी सामाजिक न्याय और समावेशिता के आंदोलनों को प्रेरित करता है।
  • शिक्षा और महिला सशक्तीकरण का संवर्द्धन: अपने DAV विद्यालयों, महाविद्यालयों और गुरुकुलों के विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से आर्य समाज मूल्य-आधारित, वैज्ञानिक शिक्षा और महिला सशक्तीकरण को प्रोत्साहित करता है, जिससे शैक्षिक और लैंगिक अंतराल को कम करने में सहायता मिलती है।
  • वैदिक आदर्शों और तर्कशील चिंतन का पुनरुत्थान:  संस्था का वेदों के सत्य, तर्क और नैतिक जीवन के सिद्धांतों की ओर लौटने का आह्वान वर्तमान में भी अंधविश्वास, धार्मिक असहिष्णुता और भौतिकवाद का मुकाबला करने में प्रासंगिक है।

स्वामी दयानंद सरस्वती के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन
    • जन्म: वर्ष 1824 में मूलशंकर के नामक रूप में मोरवी (गुजरात) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
    • उन्होंने वर्ष 1845–60 के बीच सत्य की खोज में संन्यास लिया और बाद में स्वामी विरजानंद के अधीन मथुरा में अध्ययन किया।
  • दर्शन और विचारधारा 
    • उन्होंने नारा दिया  “वेदों की ओर लौटो” अर्थात् वैदिक शिक्षा और शुद्धता का पुनर्जागरण, न कि वैदिक युग की पुनर्स्थापना।
    • उन्होंने वेदों को अचूक और हिंदू धर्म की सच्ची नींव माना।
    • वे तर्कसंगत, नैतिक और एकेश्वरवादी धर्म के समर्थक थे।
      • उन्होंने वर्गहीन, जातिविहीन और विदेशी शासन से मुक्त भारत का समर्थन किया।
    • उन्होंने मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, पुरोहितवाद और अंधविश्वास का विरोध किया।
      • उन्होंने पुराणों, मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और पुरोहितीय रूढ़िवादिता को अस्वीकार किया।
  • प्रमुख कृति: ‘सत्यार्थ प्रकाश’ जिसमें उनके सामाजिक और धार्मिक विचारों का विस्तृत वर्णन है।
  • सामाजिक सुधार के विचार
    • उन्होंने जातिगत कठोरता, अस्पृश्यता, मूर्ति पूजा, बाल विवाह और पशु बलि की निंदा की।
    • उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता, विधवा पुनर्विवाह और अंतरजातीय विवाहों का समर्थन किया।
    • उन्होंने चातुर्वर्ण्य को कर्म और योग्यता पर आधारित माना, जन्म पर नहीं।
    • उन्होंने शिक्षा, नैतिकता और राष्ट्रीय पुनर्जागरण पर विशेष बल दिया।

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