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हिंद महासागर सुनामी के 20 वर्ष

Lokesh Pal December 27, 2024 03:33 12 0

संदर्भ

26 दिसंबर, 2024 को वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आए भूकंप और सुनामी को 20 वर्ष पूर्ण हो गए हैं।

वर्ष 2004 की हिंद महासागर सुनामी 

  • वर्ष 2004 की सुनामी 26 दिसंबर को सुंडा गर्त (Sunda Trench) में 9.1 तीव्रता के भूकंप के कारण आई थी।
  • इस आपदा ने इंडोनेशिया, श्रीलंका, भारत और थाईलैंड सहित 14 देशों को प्रभावित किया था।

  • 2,27,000 से अधिक लोगों की जान चली गई, जिससे यह इतिहास की सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में से एक बन गई।
  • हिंद महासागर में आई सुनामी का स्रोत
    • यह वर्ष 1900 के बाद से तीसरी सबसे बड़ी सुनामी थी, जो सुंडा गर्त (Sunda Trench) में समुद्र तल से 30 किमी. नीचे उत्पन्न हुई।
    • इसने सुमात्रा से कोको द्वीप (Coco Islands) तक फैली प्लेट सीमा के 1,300 किमी. हिस्से को तोड़ दिया।
    • इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट बर्मा माइक्रोप्लेट के नीचे धंस गई, जो यूरेशियन (Eurasian) प्लेट का हिस्सा है, जिससे सुनामी उत्पन्न हुई।

सुंडा गर्त (Sunda Trench) 

  • सुंडा गर्त हिंद महासागर का सबसे गहरा समुद्री गर्त है।
  • स्थान: पूर्वी हिंद महासागर में जावा और सुमात्रा के द्वीपों के दक्षिण और पश्चिम में स्थित है।

  • यह अंडमान द्वीपसमूह से लेकर जावा के पार, सुमात्रा के दक्षिणी तट के आसपास और सुंडा द्वीप समूह तक विस्तृत है।
  • लंबाई: 3200 किलोमीटर (2,000 मील) लंबी।
  • गहराई: अधिकतम गहराई 7,290 मीटर (23,920 फीट) है।
  • गठन: ऑस्ट्रेलियाई-कैप्रीकॉर्न प्लेटें (Australian-Capricorn Plates) यूरेशियन प्लेट के नीचे दबने से निर्मित हुई है।
  • भूकंपीय गतिविधि: सुंडा गर्त प्रशांत रिंग ऑफ फायर का हिस्सा है और भूकंपीय रूप से सक्रिय है।

सुनामी 

  • परिभाषा: भूकंप, भूस्खलन या ज्वालामुखी विस्फोट जैसी जल के अंदर की विकृतियों के कारण उत्पन्न होने वाली बड़ी समुद्री लहरों की शृंखला।
  • व्युत्पत्ति: जापानी शब्दों ‘त्सू’ (Tsu) (बंदरगाह) और ‘नामी’ (nami) (लहर) से व्युत्पन्न।

  • सुनामी के कारण
    • सबमरीन भूकंप (Submarine Earthquakes): सबसे सामान्य कारण (उदाहरण के लिए वर्ष 2004 में 9.1 तीव्रता के भूकंप के कारण हिंद महासागर में आई सुनामी)।
    • ज्वालामुखी विस्फोट: विस्फोट के कारण जल का अचानक विस्थापन [उदाहरण के लिए वर्ष 1883 में क्राकाटोआ (Krakatoa) विस्फोट]।
    • भूस्खलन: तटीय या पनडुब्बी भूस्खलन सुनामी उत्पन्न कर सकते हैं। [उदाहरण के लिए, वर्ष 2017 में कर्राट फजॉर्ड (Karrat Fjord) भूस्खलन, ग्रीनलैंड]।
    • क्षुद्रग्रह संघट्ट (Asteroid Impacts): दुर्लभ लेकिन विनाशकारी; विशाल लहरें उत्पन्न कर सकते हैं।

  • विशेषताएँ
    • गठन और उत्प्रेरण: प्राथमिक तंत्र में जल की एक बड़ी मात्रा का अचानक विस्थापन शामिल है।
    • गति और प्रसार: गहरे समुद्र में, सुनामी 800 किमी./घंटा तक की गति से यात्रा कर सकती है, जो जेट विमान की गति के बराबर है।
      • गति जल की गहराई पर निर्भर करती है, जो सुनामी के उथले तटीय जल के पास पहुँचने पर कम हो जाती है।
    • तरंग गुण 
      • तरंगदैर्ध्य: सुनामी की तरंगदैर्ध्य बहुत लंबी होती है, जो प्रायः 500 किमी. से अधिक होती है।
      • तरंग अवधि: तरंगों के बीच का समय 10 मिनट से लेकर 2 घंटे तक हो सकता है।
      • तरंग आयाम (ऊँचाई): गहरे जल में, तरंग की ऊँचाई आमतौर पर छोटी (30-60 सेमी.) होती है, जिससे उन्हें जहाजों द्वारा नहीं देखा जा सकता।
    • शोलिंग प्रभाव (Shoaling Effect): जैसे ही सुनामी उथले जल में प्रवेश करती है, उनकी गति कम हो जाती है और ऊर्जा संरक्षण के कारण तरंगों की ऊँचाई नाटकीय रूप से बढ़ जाती है।
      • इस परिवर्तन के कारण समुद्र तट के पास लहरों की ऊँचाई 10-30 मीटर या उससे अधिक हो सकती है।
    • अनेक तरंगें: एकल तरंग नहीं बल्कि तरंगों की एक शृंखला, जिसे तरंग शृंखला के रूप में जाना जाता है।
      • पहली तरंग प्रायः सबसे बड़ी नहीं होती, बाद की लहरें संभावित रूप से अधिक विनाश का कारण बनती हैं।
    • ऊर्जा संरक्षण: अपनी लंबी तरंगदैर्ध्य के कारण महासागरों में विस्तार के बाद वे न्यूनतम ऊर्जा खो देती हैं, जिससे वे विशाल दूरी तक नुकसान पहुँचाने में सक्षम होती हैं।
  • सुनामी हॉटस्पॉट: सुनामी प्रायः प्रशांत महासागर के ‘रिंग ऑफ फायर’ के समानांतर देखी जाती है, विशेष रूप से अलास्का, जापान, फिलीपींस और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य द्वीपों, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्याँमार, श्रीलंका और भारत के तट पर।

सुनामी का पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव

  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश: मैंग्रोव, कोरल रीफ और वन जैसे प्राकृतिक अवरोधों के नष्ट होने से भविष्य में तटीय खतरों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
      • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी ने इंडोनेशिया में प्रवाल भित्तियों और मैंग्रोव को बहुत नुकसान पहुँचाया, कुछ क्षेत्रों में 90% तक मैंग्रोव नष्ट हो गए।
    • मृदा एवं जल का प्रदूषण: अपशिष्ट के साथ मिश्रित खतरनाक पदार्थों से होने वाले प्रदूषण ने पर्यावरण को और भी अधिक बदतर बना दिया है।
      • लवणीय जल का अतिक्रमण: वर्ष 2004 की सुनामी ने लवणीय जल के प्रदूषण के कारण श्रीलंका में 62,000 कुओं को अनुपयोगी बना दिया। लवणीकरण और मलबे के कारण कृषि भूमि बंजर हो गई।
    • समुद्री प्रदूषण: सुनामी ने प्लास्टिक और खतरनाक सामग्रियों सहित टनों अपशिष्ट को समुद्र में बहा दिया। इंडोनेशिया के बांदा आचे (Banda Aceh) में सुनामी के अपशिष्ट ने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को काफी प्रभावित किया।
    • जैव विविधता का नुकसान: वर्ष 2004 की सुनामी ने बड़े पैमाने पर आवास विनाश का कारण बना, जिससे तटीय और समुद्री प्रजातियों की आबादी में गिरावट आई।
    • भौगोलिक बदलाव: वर्ष 2004 की सुनामी ने उत्तरी ध्रुव को 2.5 सेमी. तक स्थानांतरित कर दिया और दिन की लंबाई 2.68 माइक्रोसेकंड तक कम कर दी।
      • अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में 1.25 मीटर तक भूस्खलन हुआ।
  • आर्थिक प्रभाव
    • आजीविका का नुकसान: भारत के तमिलनाडु में वर्ष 2004 की सुनामी के दौरान 30,000 से ज्यादा मछली पकड़ने वाली नावें नष्ट हो गईं, जिससे मछुआरा समुदाय के उद्योग के समक्ष संकट उत्पन्न हो गया।
      • इंडोनेशिया और श्रीलंका में कृषि भूमि के लवणीकरण के कारण फसल की पैदावार कम हो गई।
    • बुनियादी ढाँचे को नुकसान: सुनामी ने बंदरगाहों, सड़कों और इमारतों सहित बुनियादी ढाँचे को भारी नुकसान पहुँचाया।
      • वर्ष 2004 के हिंद महासागर भूकंप और सुनामी आपदा से कुल आर्थिक नुकसान 10 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें से 75% नुकसान इंडोनेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका और भारत में हुआ है।
    • पर्यटन क्षेत्र में गिरावट: सुनामी सीधे तौर पर पर्यटन स्थलों, जैसे होटल, रिसॉर्ट और अन्य व्यवसायों को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता: अस्थायी आश्रयों में भीड़भाड़ और अपर्याप्त जल और स्वच्छता के कारण जल जनित बीमारियों और श्वसन रोगों का सुनामी जोखिम।
      • श्रीलंका में दूषित जल स्रोतों और क्षतिग्रस्त स्वच्छता सुविधाओं के कारण जलजनित बीमारियाँ फैल रही हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवा व्यय में वृद्धि हुई है।
      • वर्ष 1998-2017 के बीच, सुनामी के कारण दुनिया भर में 2,50,000 से अधिक मौतें हुईं, जिनमें वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के कारण हुई 2,27,000 से ज्यादा मौतें शामिल हैं।
    • अपशिष्ट प्रबंधन की लागत: इंडोनेशिया के बांदा आचे (Banda Aceh) में मिश्रित अपशिष्ट की विशाल मात्रा के कारण पर्यावरण की दृष्टि से उचित निपटान के लिए व्यापक संसाधनों की आवश्यकता थी। 

सुनामी से निपटाने की तैयारी के लिए उठाए गए कदम

सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ

  • वैश्विक सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
    • प्रमुख संगठन और पहल
      • प्रशांत सुनामी चेतावनी केंद्र (Pacific Tsunami Warning Center-PTWC)
        1. वर्ष 1949 में हवाई में स्थित।
        2. प्रशांत महासागर में भूकंपीय गतिविधियों पर नजर रखता है।
      • यूनेस्को-आईओसी वैश्विक नेटवर्क (UNESCO-IOC Global Network)
        1. वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद दुनिया भर में क्षेत्रीय चेतावनी प्रणाली स्थापित करने के लिए बनाया गया।
        2. इसमें हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली (Indian Ocean Tsunami Warning and Mitigation System-IOTWMS) और कैरेबियन सुनामी चेतावनी प्रणाली शामिल हैं।
      • हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली (Indian Ocean Tsunami Warning and Mitigation System-IOTWMS)
        1. यूनेस्को के समन्वय के तहत वर्ष 2004 के हिंद महासागर सुनामी की प्रतिक्रिया के रूप में वर्ष 2005 में स्थापित।
        2. भारत, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में क्षेत्रीय केंद्रों द्वारा समर्थित।
    • तकनीकी घटक
      • सुनामी का गहरे समुद्र में आकलन और रिपोर्टिंग (Deep-Ocean Assessment and Reporting of Tsunamis-DART)
        1. सुनामी तरंगों का पता लगाने के लिए समुद्र तल पर जल के दाब में परिवर्तन को मापता है।
        2. वर्तमान में, 75 DART बोयस (Buoys) वैश्विक स्तर पर संचालित हैं, जो वास्तविक समय डेटा प्रदान करते हैं।
      • समुद्र स्तर निगरानी स्टेशन
        1. वर्ष 2004 में इनकी संख्या1,000 से बढ़कर विश्व स्तर पर 14,000 से अधिक हो गई।
    • क्षमताएँ
      • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ अब भूकंप के 5-7 मिनट के भीतर अलर्ट जारी करती हैं, जबकि वर्ष 2004 में यह 15-20 मिनट में जारी होती थी।
      • वास्तविक समय डेटा एकीकरण सटीक सुनामी मॉडलिंग और तीव्र प्रसार को सक्षम बनाता है।

आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 भारत में आपदाओं के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय, राज्य, जिला और स्थानीय स्तर पर संस्थागत, कानूनी, वित्तीय और समन्वय तंत्र निर्धारित करता है।
  • इसे वर्ष 2004 की सुनामी के मद्देनजर पारित किया गया था।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय गृह मंत्रालय देश के व्यापक आपदा प्रबंधन की देखरेख करता है।
  • उद्देश्य
    • देश के लिए सभी स्तरों (राष्ट्रीय, राज्य, जिला) पर एक कुशल और विकेंद्रीकृत आपदा प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना, जिसमें संगत भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ हों।
    • यह अधिनियम आपदा को समग्र रूप से शमन पहलू (क्षमता निर्माण) से लेकर जोखिम आकलन और संकट प्रबंधन पहलू तक राहत, पुनर्वास और प्रतिक्रिया उपायों को कवर करता है।

  • भारतीय सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली (Indian Tsunami Early Warning System-ITEWS)
    • इसकी स्थापना वर्ष 2007 में भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), हैदराबाद में की गई।
      • यह 28 हिंद महासागर रिम देशों के लिए सुनामी सेवा प्रदाता (Tsunami Service Provider-TSP) के रूप में कार्य करता है।

    • हिंद महासागर सुनामी चेतावनी एवं शमन प्रणाली (IOTWMS) का भाग 
    • मुख्य घटक
      • भूकंपीय निगरानी नेटवर्क (Seismic Monitoring Network)
        1. राष्ट्रीय और वैश्विक नेटवर्क से डेटा को एकीकृत करते हुए, वास्तविक समय में भूकंपीय गतिविधियों पर नजर रखता है।
      • बॉटम प्रेशर रिकॉर्डर (Bottom Pressure Recorders-BPRs)
        1. जल दबाव में सूक्ष्म परिवर्तन का पता लगाने वाली; हिंद महासागर में 12 BPR स्थापित।
      • ज्वार मापक और रडार प्रणालियाँ (Tide Gauges and Radar Systems)
        1. सुनामी की उपस्थिति की पुष्टि के लिए तटीय जल स्तर की निगरानी करना।
      • निर्णय समर्थन प्रणाली (Decision Support System-DSS)
        1. SMS, ईमेल और मोबाइल एप्लिकेशन (जैसे, SAMUDRA ऐप) के माध्यम से स्वचालित रूप से अलर्ट उत्पन्न और प्रसारित करता है।
    • तैयारी के उपाय
      • नियमित मॉक ड्रिल और क्षमता निर्माण कार्यशालाएँ।
      • यूनेस्को-आईओसी सुनामी तैयारी कार्यक्रम का कार्यान्वयन
        1. ओडिशा के वेंकटरायपुर और नोलियासाही जैसे गाँवों को वर्ष 2020 में ‘सुनामी रेडी’ (Tsunami Ready) के रूप में मान्यता दी गई थी।
    • उपलब्धियाँ
      • भारत अब अमेरिका, जापान, चिली और ऑस्ट्रेलिया के साथ उन्नत सुनामी चेतावनी प्रणाली वाले पाँच देशों में से एक है।
      • भूकंप आने के 10 मिनट के भीतर सुनामी संबंधी चेतावनी जारी की जा सकती है।
    • सहयोग और प्रौद्योगिकी
      • INCOIS संचार प्रणालियों को बेहतर बनाने के लिए ISRO और NDMA के साथ सहयोग करता है।
      • NAVIC सैटेलाइट एकीकरण (NAVIC Satellite Integration): तटीय समुदायों के लिए वास्तविक समय पर अलर्ट सुनिश्चित करता है।

आईओसी-यूनेस्को और सुनामी तैयारी मान्यता कार्यक्रम (TRRP) 

  • यूनेस्को का अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC/UNESCO) महासागर, तटों और समुद्री संसाधनों के प्रबंधन में सुधार के लिए समुद्री विज्ञान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है। 
  • IOC सतत् विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र महासागर विज्ञान दशक 2021-2030, ‘महासागर दशक’ (Ocean Decade) के समन्वय का प्रभारी है।
  • यूनेस्को-आईओसी सुनामी तैयारी मान्यता कार्यक्रम (TRRP): TRRP शिक्षा, प्रशिक्षण और प्रतिक्रिया योजना के माध्यम से सुनामी के लिए सामुदायिक तैयारी को बढ़ाता है।
    • समुदायों का मूल्यांकन IOC-UNESCO द्वारा 12 विशिष्ट संकेतकों पर किया जाता है। 

पूर्व चेतावनी प्रणालियों से संबंधित चुनौतियाँ

  • निकटवर्ती क्षेत्र में सुनामी का पता लगाने की सीमाएँ: तटीय क्षेत्रों के निकट उत्पन्न सुनामी का पता लगाने और चेतावनी प्रसारित करने के लिए न्यूनतम समय मिलता है।
    • वर्ष 2022 में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी विस्फोट (Hunga Tonga-Hunga Ha’apai Volcanic Eruption) से ऐसी लहरें उठीं, जो कुछ ही मिनटों में आस-पास के द्वीपों तक पहुँच गईं, जिससे चेतावनी प्रणाली पर असर पड़ा।
  • कुछ क्षेत्रों में कवरेज की कमी: कई तटीय देशों में व्यापक सुनामी चेतावनी प्रणाली नहीं है।
    • पूर्वी अफ्रीका में, सीमित निगरानी क्षमताओं के कारण सोमालिया जैसे देश असुरक्षित बने हुए हैं।
  • तकनीकी और रखरखाव चुनौतियाँ: DART बोयस (Buoys) और ज्वार गेज जैसी प्रणालियों को नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है, जो महंगा और तार्किक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • वर्ष 2018 में हिंद महासागर में कई DART बोयस के कार्य न करने की सूचना मिली थी, जिससे चेतावनियों की प्रभावशीलता कम हो सकती है।
  • संचार और निर्णय लेने में देरी: पूर्व चेतावनी प्रणालियों को अधिकारियों और जनता को तुरंत अलर्ट प्रसारित करने के लिए कुशल संचार नेटवर्क की आवश्यकता होती है।
    • हिंद महासागर में व्यापक सुनामी अभ्यास (IOWave23) के दौरान, स्थानीय स्तर की संचार प्रणालियों में कमियों की पहचान की गई, जिससे क्षेत्रीय केंद्रों तक चेतावनियाँ पहुँचने के बावजूद निकासी के आदेशों में देरी हुई।
  • जन जागरूकता और प्रतिक्रिया अंतराल: समय पर चेतावनी के बावजूद, अप्रस्तुत समुदाय उचित तरीके से प्रतिक्रिया करने में विफल हो सकते हैं।
    • वर्ष 2004 की सुनामी के दौरान श्रीलंका और थाईलैंड के कुछ हिस्सों में, लोगों ने प्राकृतिक चेतावनी संकेतों को नहीं पहचाना, जैसे कि समुद्र का कम होना, जिसके कारण हताहतों की संख्या अधिक थी।
  • कई स्रोतों से डेटा का एकीकरण: भूकंपीय स्टेशनों, BPR और ज्वार गेज से वास्तविक समय के डेटा को संयोजित करना जटिल है और इससे देरी हो सकती है।
    • लघु सुनामी के दौरान डेटा व्याख्या में असंगतताएँ झूठे प्रतीकों को जन्म दे सकती हैं, जिससे चेतावनी प्रणाली में जनता का विश्वास समाप्त हो सकता है।
    • अलास्का भूकंप 2021 के बाद, 8.2 तीव्रता के भूकंप के बाद जारी की गई सुनामी की चेतावनी से दहशत फैल गई, लेकिन बाद में कोई महत्त्वपूर्ण तरंगें नहीं देखे जाने पर इस चेतावनी को रद्द कर दिया गया।

सुनामी प्रभावों के प्रबंधन और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाने की दिशा में आगे की राह

  • निगरानी अवसंरचना को मजबूत करना: भूकंपीय स्टेशनों, ज्वार मापकों और डार्ट बुआ के नेटवर्क का विस्तार करना, विशेष तौर पर पूर्वी अफ्रीका और अरब सागर जैसे कम सेवा वाले क्षेत्रों में।
    • वास्तविक समय में सुनामी मॉडलिंग और बेहतर पूर्वानुमान सटीकता के लिए AI तथा मशीन लर्निंग जैसी उन्नत तकनीकों को शामिल करना।
  • सामुदायिक लचीलापन बढ़ाना: कमजोर तटीय क्षेत्रों में नियमित मॉक ड्रिल, जन जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण कार्यशालाएँ आयोजित करना।
    • हिंद महासागर के पार के देशों में यूनेस्को-आईओसी सुनामी रेडी पहल जैसे सफल कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना।
  • प्रकृति आधारित समाधानों को एकीकृत करना: सुनामी तरंगों की ऊर्जा को कम करने के लिए मैंग्रोव, कोरल रीफ और बालुका स्तूपों जैसी प्राकृतिक बाधाओं को पुनर्स्थापित करना और उनकी रक्षा करना।
    • मैंग्रोव की मौजूदगी ने भारत के ओडिशा जैसे क्षेत्रों में वर्ष 2004 की सुनामी के दौरान होने वाले प्रभावों को काफी सीमा तक कम किया है।
  • क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना: हिंद महासागर रिम देशों के बीच डेटा-साझाकरण और संयुक्त तैयारी अभ्यास को बढ़ावा देना।
    • भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (ITEWC) जैसे क्षेत्रीय केंद्रों के माध्यम से समन्वय को मजबूत करना। 
  • तटीय विकास में जोखिम न्यूनीकरण को शामिल करना: शहरी नियोजन और तटीय विकास परियोजनाओं में सुनामी जोखिम आकलन को एकीकृत करना।
    • विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में, ऊँचे आश्रयों और सुनामी प्रतिरोधी संरचनाओं सहित लचीले बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
  • वित्तीय जोखिम कम करना: जोखिम कम करने के लिए, आपदा बॉण्ड जैसे तंत्र विकसित करना।
    • आपदा बॉण्ड एक वित्तीय साधन है, जो प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम से जुड़े वित्तीय जोखिम को पूँजी बाजार के निवेशकों को हस्तांतरित करता है।

निष्कर्ष 

सुनामी के प्रभावों को कम करने और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी, प्राकृतिक बाधाओं, सार्वजनिक भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सम्मिलित कर एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है। तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमताओं को मजबूत करने से तटीय समुदायों के लिए दीर्घकालिक लचीलापन सुनिश्चित होगा।

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