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महात्मा ज्योतिबा फुले का 200वीं जन्म जयंती समारोह

Lokesh Pal August 18, 2025 05:20 5 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को स्वतंत्रता दिवस के अपने लाल किले से दिए गए संबोधन में महात्मा ज्योतिबा फुले की 200वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में भव्य समारोहों की शुरुआत की घोषणा की, और फुले के आदर्शों को सरकार के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।

  • 11 अप्रैल, 2025 को भारत में समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की 198वीं जयंती मनाई गई थी, जिसे व्यापक रूप से ज्योतिबा फुले जयंती के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा ज्योतिबा फुले (वर्ष 1827-1890) के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
    • पूरा नाम: ज्योतिराव गोविंदराव फुले (जिन्हें महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम से जाना जाता है)
    • जन्म: 11 अप्रैल 1827, पुणे, महाराष्ट्र में माली जाति में।
    • विवाह: वर्ष 1840 में सावित्रीबाई फुले से विवाह हुआ (उनकी आयु 13 वर्ष थी), जो बाद में भारत की पहली महिला शिक्षिका और सामाजिक सुधारक बनीं।
    • शिक्षा: स्कॉटिश मिशन हाईस्कूल, पुणे से शिक्षा प्राप्त की तथा वर्ष 1847 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
    • प्रभाव: थॉमस पेन (द राइट्स ऑफ मैन) और जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे पश्चिमी विचारकों के संपर्क में।
    • वर्ष 1848: एक ब्राह्मण मित्र की शादी में जातिगत भेदभाव का अनुभव, जिसने उन्हें व्यवस्थागत अन्याय के प्रति जागरूक किया।
  • विचारधारा और दृष्टि
    • समानता और न्याय: जाति और लैंगिक भेदभाव से मुक्त समाज का समर्थन किया।
    • तर्कवाद: अंधविश्वास, ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता और अंधविश्वास का खंडन किया।
    • सामाजिक न्याय: जाति या लैंगिक आधार पर भेदभाव किए बिना सभी मनुष्यों की गरिमा पर जोर दिया।
    • धार्मिक बहुलवाद: व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा की (उदाहरण के लिए- पंडिता रमाबाई का ईसाई धर्म अपनाना)।
    • महात्मा की उपाधि: 11 मई, 1888 को सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णजी वंदेकर द्वारा प्रदान की गई।
  • प्रमुख सामाजिक योगदान
    • शैक्षिक सुधार
      • प्रथम बालिका विद्यालय (वर्ष 1848): सावित्रीबाई के साथ मिलकर, पुणे में भारत का पहला बालिका विद्यालय स्थापित किया।
      • दलितों और पिछड़ी जातियों के लिए विद्यालय: वंचित समूहों के लिए शिक्षा की पहुँच का विस्तार किया।
      • रात्रि विद्यालय (वर्ष 1855): श्रमिकों, किसानों और कार्यशील महिलाओं के लिए खोले गए।
      • जातिगत उत्पीड़न के विरुद्ध हथियार के रूप में सार्वभौमिक, अनिवार्य और व्यावहारिक शिक्षा का समर्थन किया।
    • महिला सशक्तीकरण
      • बालिका शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
      • शिशु हत्या विरोधी केंद्र और अनाथालय स्थापित किए।
      • महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया।
    • जाति और सामाजिक सुधार
      • ब्राह्मणवादी प्रभुत्व और अस्पृश्यता के प्रबल आलोचक
      • वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज (सत्य-साधकों का समाज) की स्थापना की
        • समानता, तर्कवाद और अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया।
        • धार्मिक एकाधिकार को चुनौती देने के लिए गैर-ब्राह्मण पुजारियों को प्रशिक्षित किया।
      • दलितों एवं महिलाओं के उत्थान के लिए ब्रिटिश सुधारों के साथ जुड़कर बाल गंगाधर तिलक और विष्णु शास्त्री चिपलूणकर जैसे नेताओं का विरोध किया।
      • वर्ष 1857 के विद्रोह की आलोचना: इसे उच्च जातियों द्वारा ब्राह्मणवादी शासन को पुनर्स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा गया।
    • कृषि और आर्थिक सुधार
      • शेतकार्याचा आसुद (Shetkaryacha Asud) (किसानों का सचेतक, 1881) के लेखक: ब्राह्मण और ब्रिटिश नौकरशाहों द्वारा किसानों के शोषण की आलोचना की।
      • बाँध निर्माण और कृषि शिक्षा का समर्थन किया।
      • ग्रामीण विकास के लिए सैन्य श्रम के उपयोग का सुझाव दिया।
      • शूद्र किसानों के लिए कृषि सुधार को सामाजिक न्याय से जोड़ने का समर्थन किया।
    • श्रम और सार्वजनिक समर्थन
      • शिक्षा में निस्यंदन सिद्धांत का विरोध किया एवं हंटर आयोग को साक्ष्य दिया (वर्ष 1882)।
      • पुणे में नगरपालिका सदस्य के रूप में कार्य किया, जल आपूर्ति, स्वच्छता और श्रमिक अधिकारों का समर्थन किया।
      • श्रमिक आंदोलनों का समर्थन किया: नारायण मेघाजी लोखंडे के साथ मिलकर बॉम्बे मिलहैंड्स एसोसिएशन (भारत का पहला श्रमिक संघ) के गठन में सहायता की।
  • प्रमुख साहित्यिक योगदान
    • गुलामगिरी (दासता, 1873): अफ्रीकी-अमेरिकी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित, भारत में जातिगत उत्पीड़न की तुलना अमेरिकी दासता से की गई।
    • शेतकार्याचा आसुद (किसानों का सचेतक, 1881): कृषि संकट और सुधारों पर।
    • सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक: उनका दार्शनिक वसीयतनामा, सार्वभौमिक मानवतावाद और तर्कवाद का समर्थन किया।
    • सतसार (सत्य का सार): धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा से संवाद, पंडिता रमाबाई का बचाव किया।
    • मानव महम्मद (मुहम्मद द मैन): पैगंबर मुहम्मद की मुक्तिदाता के रूप में प्रशंसा करते हुए एक काव्यात्मक श्रद्धांजलि।
    • अन्य रचनाएँ
      • तृतीया रत्न (1855) – जाति उत्पीड़न पर एक नाटक।
      • पोवाड़ा: छत्रपति शिवाजीराजे भोंसले यांचा (वर्ष 1869) – छत्रपति शिवाजी के सम्मान में एक गीत।
      • सत्याचे भाशन – उनके सुधारवादी विचार को दर्शाता है।
  • संबंधित संगठन एवं पत्र-पत्रिकाएँ
    • सत्यशोधक समाज (वर्ष 1873): यह एक प्रकार का जाति विरोधी एवं तर्कवादी आंदोलन था, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से ब्राह्मणवादी व्यवस्था से शूद्रों (निम्न जातियों) एवं महिलाओं को शोषण एवं भेदभाव से मुक्त करना था।
    • दीनबंधु समाचार पत्र (वर्ष 1877): दीनबंधु समाचार पत्र कृष्णराव पांडुरंग भालेकर द्वारा वर्ष 1877 में शुरू किया गया एक मराठी साप्ताहिक समाचार पत्र था। यह ज्योतिराव फुले द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज के मुद्दों का प्रतिनिधित्त्व करता था और किसानों एवं मजदूरों की समस्याओं पर केंद्रित था।
    • ज्योतिराव फुले-शाहू महाराज (कोल्हापुर के शाहू)- डॉ. बी. आर. अंबेडकर महाराष्ट्र की प्रगतिशील और सुधारवादी परंपरा की त्रिमूर्ति हैं, जो पिछड़े वर्गों एवं महिलाओं पर केंद्रित है।
  • परंपरा
    • भारतीय सामाजिक क्रांति के जनक के रूप में सम्मानित
    • उत्पीड़ित जातियों के लिए दलित शब्द का प्रयोग करने वाले पहले नेता।
    • सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर उन्होंने भारत में महिला शिक्षा और जाति-विरोधी आंदोलनों की नींव रखी।
    • तर्कवाद, सार्वभौमिक मानवतावाद और सामाजिक न्याय के उनके विचार आज भी भारत के संवैधानिक मूल्यों को प्रेरित करते हैं।

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