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दादाभाई नौरोजी की 200वीं जयंती

Lokesh Pal September 08, 2025 03:48 102 0

संदर्भ 

4 सितंबर, 2025 को, राष्ट्र ने दादाभाई नौरोजी को उनकी 200वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्हें ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया’ के रूप में जाना जाता है।

दादाभाई नौरोजी का प्रारंभिक जीवन और करियर

  • जन्म: 4 सितंबर, 1825 को बंबई (मुंबई) में एक पारसी परिवार में जन्म हुआ।

  • शिक्षा: एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की उसके पश्चात् ‘क्लेयर’ छात्रवृत्ति प्राप्त की और वर्ष 1845 में एलफिंस्टन कॉलेज में पहले भारतीय प्रोफेसर बने।
  • कॅरियर: लंदन में कामा एंड कंपनी में शामिल हुए और वर्ष 1859 में अपनी स्वयं की फर्म, नौरोजी एंड कंपनी की स्थापना की।
  • शैक्षणिक भूमिका: यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में गुजराती के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।

दादाभाई नौरोजी (वर्ष 825-1917) के प्रमुख योगदान

साहित्यिक योगदान

  • पॉवर्टी ऑफ इंडिया  (वर्ष 1876)
  • पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया (1901)
  • द वांट एंड मीन्स ऑफ इंडिया 
  • यूरोपीयन एंड एशियन  रेस 
  • पारसी धर्म

राजनीतिक योगदान

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: तीन बार INC के​​ अधिवेशन की अध्यक्षता की, वर्ष 1886 (कलकत्ता), वर्ष 1893 (लाहौर), वर्ष 1906 (कलकत्ता), जहाँ उन्होंने स्वराज की माँग की घोषणा की)।
    • उदारवादी नेता: याचिका, प्रार्थना-पत्र और विरोध प्रदर्शन जैसे संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीकों का समर्थन किया।
  • ईस्ट इंडिया एसोसिएशन (वर्ष 1867): ब्रिटिश जनता के समक्ष भारतीयों की स्थिति को उजागर करने के लिए लंदन में स्थापित संस्था।
  • प्रथम भारतीय सांसद (वर्ष 1892): ब्रिटिश संसद में फिन्सबरी सेंट्रल का प्रतिनिधित्व किया और कराधान, प्रशासनिक सुधारों एवं भारतीय प्रतिनिधित्व के मुद्दों को उठाया।

ब्रिटिश शासन पर विचार

  • औपनिवेशिक नीतियों के आलोचक: भारत में ब्रिटिश शासन की शोषणकारी प्रकृति का कठोर विरोध किया।
  • धन निकासी का सिद्धांत: उन्होंने बताया कि कैसे ब्रिटेन ने उच्च प्रशासनिक लागतों, अनुचित व्यापार नीतियों, विदेशियों को पेंशन और ऋण चुकौती के माध्यम से भारत की संपत्ति को व्यवस्थित रूप से हड़प लिया।
  • आर्थिक प्रभाव: उन्होंने दिखाया कि कैसे इन प्रथाओं ने भारतीय उद्योगों का दमन कर दिया, गरीबी एवं बेरोजगारी को बढ़ावा दिया। उनकी आलोचना ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक मजबूत आर्थिक आधार प्रदान किया।

  • घरेलू सुधार: बॉम्बे नगर निगम (वर्ष 1875) और बॉम्बे विधान परिषद (वर्ष 1885) के सदस्य रहे। बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन (वर्ष 1885) की स्थापना में मदद की।
  • समानता की सिफारिश: शासन और सिविल सेवाओं में भारतीयों के लिए समान अवसरों का निरंतर समर्थन किया।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

  • भारतीय अभिव्यक्ति: भाषणों, लेखों और संगठनों के माध्यम से भारत के आर्थिक शोषण को उजागर किया।
  • बड़ौदा के दीवान (वर्ष 1874): शासन में सुधार के लिए कुछ समय तक बड़ौदा के दीवान के रूप में सेवा की, लेकिन महाराजा के साथ मतभेदों के कारण त्याग-पत्र दे दिया।
  • राष्ट्रीय योजना: स्वदेशी उद्योगों और समतामूलक नीतियों की वकालत की, जिसका प्रभाव गांधी और नेहरू जैसे  नेताओं पर पड़ा।
  • गठबंधन: आंदोलन को मजबूत करने के लिए ए.ओ. ह्यूम, गोपाल कृष्ण गोखले और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे सुधारकों के साथ सहयोग किया।

समाज सुधार

  • महिला शिक्षा: महिला शिक्षा का समर्थन किया और एलफिंस्टन कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में इसे सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया।
  • समाचार-पत्र: पारसी समुदाय में सुधार को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1854 में गुजराती पाक्षिक पत्रिका ‘रफ्त गोफ्तार’ (सत्यवक्ता) का प्रकाशन शुरू किया।
  • समानता और न्याय: सभी समुदायों में निष्पक्षता, समावेशिता और सम्मान पर आधारित समाज का समर्थन किया।

विरासत और प्रभाव

  • आर्थिक राष्ट्रवाद: धन निकासी का सिद्धांत उपनिवेश-विरोधी संघर्षों का एक केंद्र बिंदु बन गया।
  • स्वराज: स्वशासन का आह्वान करने वाले पहले लोगों में से एक, जिन्होंने भावी स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।
  • सांस्कृतिक सेतु: भारतीय आकांक्षाओं और ब्रिटिश राजनीति के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य किया, जिससे आपसी समझ और गठबंधन बनाने में मदद मिली।
  • प्रेरणा: उनके समर्पण ने गांधी, नेहरू और तिलक जैसे नेताओं को प्रभावित किया और भारत के राष्ट्रवादी विचारों को आकार दिया।

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