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वर्ष 2024 सबसे गर्म वर्ष: कापरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा मूल्यांकन

Lokesh Pal January 13, 2025 02:32 9 0

संदर्भ

कापरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (Copernicus Climate Change Service-C3S) के अनुसार, वर्ष 2024 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के निशान को पार करने वाला पहला वर्ष बन गया है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2024 में औसत वार्षिक वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक समय (वर्ष 1850-1900 की अवधि का औसत) की तुलना में 1.55 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • WMO ने कहा कि उसके द्वारा उपयोग किए गए छह डेटासेटों में से प्रत्येक ने वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष बताया है, लेकिन उनमें से सभी ने तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि दर्ज नहीं की है।

कापरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (C3S) के बारे में

  • उद्देश्य: यूरोपीय संघ का एक प्रमुख कार्यक्रम, C3S जलवायु परिवर्तन की निगरानी एवं अनुकूलन के लिए व्यापक जलवायु डेटा, उपकरण और सेवाएँ प्रदान करता है।
  • डेटा कवरेज: उपग्रह और इन-सीटू डेटा के आधार पर तापमान प्रवृत्तियों, समुद्र तल में परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस सांद्रता सहित वैश्विक तथा क्षेत्रीय जलवायु जानकारी प्रदान करता है।
  • अनुप्रयोग: कृषि, ऊर्जा, जल प्रबंधन और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में नीति-निर्माण, जोखिम आकलन और जलवायु लचीलापन योजना का समर्थन करता है।
  • ओपन एक्सेस: क्लाइमेट डेटा स्टोर (Climate Data Store- CDS) के माध्यम से निशुल्क, खुला और उपयोगकर्ता के अनुकूल डेटा प्रदान करता है, पारदर्शिता एवं वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक सहयोग: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करता है, वैश्विक जलवायु निगरानी और प्रतिक्रिया प्रयासों को बढ़ाता है।

वर्ष 2024 के तापमान वृद्धि के आँकड़ों के बारे में विवरण

  • 15.1 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान के साथ, वर्ष 2024 वैश्विक तापमान रिकॉर्ड में सबसे गर्म वर्ष था, जिसने वर्ष 1850 को पीछे छोड़ दिया।
  • यह वर्ष 1991-2020 के औसत से 0.72 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • यह वर्ष 1850-1900 के तापमान के अनुमान से 1.60 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जिसे ‘पूर्व-औद्योगिक’ स्तर माना जाता है।
  • विशेषज्ञों ने कहा है कि वर्तमान में कार्बन उत्सर्जन की उच्च दर को देखते हुए, वर्ष 2024 का तापमान एक ऐसा बिंदु है, जहाँ से वापसी संभव नहीं है।
  • योगदान देने वाले कारक
    • अल नीनो प्रभाव: यह जून 2023 में शुरू हुआ, वर्ष 2024 तक चला, जिससे गर्मी की प्रवृत्ति और बढ़ गई।
      • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ मिलकर यह तापमान वृद्धि के रिकॉर्ड को पार कर गया। 
    • समुद्र की सतह का तापमान (SST): अतिरिक्त ध्रुवीय SST 20.87°C के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो वर्ष 1991-2020 के औसत से 0.51°C अधिक है।
      • जुलाई से दिसंबर 2024 तक रिकॉर्ड पर दूसरा सबसे गर्म समय रहा है।
  • निहितार्थ
    • तापमान के कम होने का कोई रास्ता नहीं: वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यह मील का पत्थर दर्शाता है कि पृथ्वी वर्ष 2050 तक 2°C से अधिक तापमान वृद्धि की राह पर है।
      • कार्बन उत्सर्जन को कम करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • वैश्विक जलवायु नीति संबंधी चिंताएँ: बाकू में COP29 वार्ता जलवायु जोखिमों को कम करने के लिए वित्तीय सहायता पर सहमत होने में विफल रही है।
      • विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ पर्याप्त समर्थन के बिना असंगत प्रभावों का सामना करती हैं।
  • तापमान की 1.5°C सीमा का महत्त्व 
    • पेरिस समझौता संदर्भ: वर्ष 2015 में अपनाए गए पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2°C से नीचे सीमित करना है, जबकि 1.5°C के भीतर रहने का प्रयास करना है।
      • 1.5°C लक्ष्य को प्राप्त करने से जलवायु परिवर्तन के जोखिम एवं प्रभाव काफी कम हो जाएँगे।
    • दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य: 1.5°C या 2°C लक्ष्य अल्पकालिक या वर्ष-दर-वर्ष भिन्नताओं के बजाय दीर्घकालिक औसत पर आधारित हैं।
  • हाल के वर्षों में कई बार तापमान में 1.5°C का मासिक एवं दैनिक विचलन हुआ है, लेकिन यह पेरिस समझौते की विफलता का संकेत नहीं है।

पेरिस जलवायु समझौते के बारे में

  • अनुकूलन: पेरिस समझौते को 12 दिसंबर, 2015 को UNFCCC के COP21 के दौरान अपनाया गया था तथा यह 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ।
  • वैश्विक तापमान लक्ष्य: इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे, अधिमानतः 1.5°C, पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर सीमित करना है।

  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): देश वैश्विक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में अपडेट की जाने वाली अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए NDC प्रस्तुत करते हैं।
  • विभेदित जिम्मेदारियाँ: सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) को मान्यता देता है, जो विकसित देशों को जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण प्रदान करने के लिए उत्तरदायी बनाता है।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य
    • 21वीं सदी के उत्तरार्द्ध में वैश्विक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करना।
    • जलवायु प्रभावों के लिए अनुकूली क्षमताओं एवं लचीलेपन को बढ़ाना।
  • वित्त एवं समर्थन: विकसित देशों ने विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए वर्ष 2020 तक सालाना 100 बिलियन डॉलर जुटाने का संकल्प लिया, जिसे वर्ष 2025 तक बढ़ा दिया गया है।
  • वैश्विक भागीदारी: अब तक, 195 दलों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से 194 ने इसकी पुष्टि की है, जिससे यह लगभग सार्वभौमिक प्रतिबद्धता बन गई है।
  • निगरानी एवं पारदर्शिता: प्रगति का आकलन करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में वैश्विक स्टॉकटेक लागू किया जाता है।

पेरिस समझौते के तहत भारत के लक्ष्य

  • उत्सर्जन तीव्रता में कमी: वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी लाना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों से 50% संचयी स्थापित क्षमता प्राप्त करना।

  • कार्बन सिंक: वर्ष 2030 तक वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से अतिरिक्त 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य बनाना।
  • नेट जीरो प्रतिबद्धता: ग्लासगो में COP26 में किए गए वादे के अनुसार, वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु लचीलापन पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलवायु क्रियाओं को सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करना।

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