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20वाँ G-20 शिखर सम्मेलन, 2025

Lokesh Pal November 25, 2025 01:44 6 0

संदर्भ

हाल ही में G-20 शिखर सम्मेलन 2025 दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित किया गया, जो पहली बार है कि किसी अफ्रीकी देश द्वारा G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की गई है।

20वें G-20 शिखर सम्मेलन, 2025 के बारे में

  • स्थान: जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका (22–23 नवंबर, 2025)।
  • विषय: एकजुटता, समानता, स्थिरता (ग्लोबल साउथ, विशेष रूप से अफ्रीकी देशों की विकास प्राथमिकताओं पर प्रकाश डाला गया)।

G-20 शिखर सम्मेलन 2025 की मुख्य विशेषताएँ

G-20 शिखर सम्मेलन में शामिल वैश्विक नेताओं की घोषणा (जिसे शीघ्र ही अपनाया गया, जिससे आम सहमति का संकेत मिलता है) में समावेशी, स्थायी और नियम-आधारित बहुपक्षवाद के लिए मजबूत जनादेश प्रतिबिंबित हुआ।

  • भू-राजनीतिक एवं संस्थागत परिणाम
    • अफ्रीका-केंद्रित अधिदेश: शिखर सम्मेलन ने अफ्रीकी विकासात्मक आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करने और ‘उबुंटू’ (“मैं हूँ क्योंकि हम हैं”) के मूल दर्शन को बढ़ावा देने के लिए एक सशक्त मंच प्रदान किया।
    • बहुपक्षवाद और स्थिरता: नियम-आधारित व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि, साथ ही आतंकवाद की स्पष्ट निंदा और भू-राजनीतिक विखंडन पर चिंता।
    • वैश्विक शासन सुधार: अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक संस्थाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में परिवर्तनकारी सुधार का जोरदार आह्वान।
  • जलवायु, ऊर्जा और वित्त
    • जलवायु महत्त्वाकांक्षा: वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता सुधार की वार्षिक दर को दोगुना करने का संकल्प लेकर स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाने की प्रतिबद्धता।
    • अनुकूलन: जलवायु अनुकूलन को एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता मानते हुए, वर्ष 2027 तक सार्वभौमिक पूर्व चेतावनी प्रणालियों का कवरेज प्राप्त करने का संकल्प।
    • ऋण स्थिरता: वैश्विक ऋण स्थिरता तंत्र को मजबूत करके और विकास के लिए ऋण/जलवायु विनिमय जैसे नवीन वित्तपोषण साधनों की खोज करके निम्न-आय वाले देशों को प्राथमिकता देना।

COP30: बेलेम जलवायु अधिदेश (2025)

  • जोहान्सबर्ग में आयोजित G-20 शिखर सम्मेलन का जलवायु एजेंडा, ब्राजील के बेलेम (पूर्ववर्ती G-20 मेजबान देश) में आयोजित 30वें पक्षकारों के सम्मेलन (COP30) के परिणामों से ठीक पहले तैयार किया गया था और इन्हीं परिणामों के आधार पर तैयार किया गया था।
  • इस अभिसरण ने ‘कार्यान्वयन का COP’ (The COP of Implementation) विषय को सुदृढ़ किया और G-20 की जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं के लिए मानक निर्धारित किए।
COP-30 के मुख्य परिणाम G-20 एजेंडे की प्रासंगिकता
ट्रिपल अनुकूलन वित्त प्रतिज्ञा
  • G-20 को नव वित्तपोषण के लिए वित्तीय तंत्र निर्माण के लिए प्रत्यक्ष राजनीतिक अधिदेश के तहत रखा गया था, जिससे विकास बैंकों और ऋण पर G-20 वित्त निगरानी चर्चाओं पर प्रभाव पड़ा।
ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी (TFFF)
  • वैश्विक आर्थिक नियोजन में प्रकृति-आधारित समाधान और जैव विविधता संरक्षण (महत्त्वपूर्ण खनिजों पर चर्चा से जुड़ा हुआ) को एकीकृत करने की G-20 की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
बेलेम स्वास्थ्य कार्य योजना
  • जलवायु-अनुकूल प्रणालियों के निर्माण के लिए G-20 की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ किया गया तथा वैश्विक स्वास्थ्य सेवा प्रतिक्रिया टीम के लिए भारत के आह्वान को मजबूत किया गया।
जीवाश्म ईंधन संक्रमण रोडमैप को आगे बढ़ाना
  • यद्यपि COP-30 में असफलता मिली, फिर भी मेजबान देश (ब्राजील) ने जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक बाध्यकारी रोडमैप के लिए G-20 नेताओं पर दबाव डालना जारी रखा, जिससे ऊर्जा परिवर्तन पर G-20 के भीतर भिन्न प्राथमिकताओं पर वार्ता हुई।
जलवायु न्याय की माँग
  • BASIC समूह (G-20 सदस्य) के नेतृत्व में विकासशील देशों ने वित्तीय वितरण (पेरिस समझौते के अनुच्छेद-9.1) पर बाध्यकारी समय सीमा पर जोर दिया तथा CBAM जैसे एकतरफा व्यापार उपायों पर चिंता जताई।

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  • प्रौद्योगिकी और समावेशिता
    • महत्त्वपूर्ण खनिज: भविष्य की प्रौद्योगिकियों के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों के रणनीतिक महत्त्व को मान्यता, संसाधन-समृद्ध देशों में समान मूल्य-साझाकरण और स्थानीय औद्योगीकरण को समर्थन देने पर जोर दिया।
    • महिला-नेतृत्व विकास: परिवर्तन के वाहक और नेतृत्वकर्ता के रूप में महिलाओं की समान और सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करने की स्पष्ट प्रतिबद्धता।

G-20 जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन, 2025 में भारत की भूमिका

भारतीय प्रधानमंत्री की भागीदारी ने ‘वाइस ऑफ ग्लोबल साउथ’ और एक सेतु निर्माता के रूप में भारत की भूमिका को सुदृढ़ किया, जो विकास और प्रौद्योगिकी के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण का समर्थन करता है।

  • मूल नीति दर्शन
    • एकात्म मानववाद: प्रधानमंत्री द्वारा समर्थित, यह एक समग्र विकास मॉडल को संदर्भित करता है, जो व्यक्ति, समाज, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को एकीकृत करके प्रगति तथा पृथ्वी के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।
      • इसके लिए समानता और स्थिरता पर आधारित नए विकास मानदंडों की आवश्यकता है।
    • प्रौद्योगिकी प्रतिमान: महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों (AI, डिजिटल) का ध्यान विशिष्ट या वित्त-केंद्रित बिंदुओं के स्थान पर ‘मानव-केंद्रित’ (Human-Centric) और ‘मुक्त-स्रोत’ (Open-Source) बिंदुओं पर केंद्रित करने का प्रस्ताव, ताकि व्यापक जनसंख्या को लाभ सुनिश्चित हो सके।
  • व्यापक प्रौद्योगिकी और भविष्य कौशल दृष्टि: भारत की रणनीति ने प्रौद्योगिकी और श्रम के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण में एक मौलिक परिवर्तन को बढ़ावा दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह मानव कल्याण के लिए कार्य करे और विश्व को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करे।

नीतिगत क्षेत्र मूल सिद्धांत/पहल नीतिगत परिणाम / महत्त्व
प्रौद्योगिकी मॉडल मानव-केंद्रित तकनीक मॉडल

समावेशी डिजिटल विकास और पहुँच सुनिश्चित करने के लिए कल्याण-केंद्रित, न्यायसंगत प्रौद्योगिकी ढाँचे का समर्थन करना।

AI गवर्नेंस ग्लोबल AI कॉम्पैक्ट

मानवीय निरीक्षण, सुरक्षा डिजाइन, पारदर्शिता, तथा AI के दुरुपयोग (डीपफेक, आतंक) पर प्रतिबंध के आधार पर जिम्मेदार AI मानदंडों को अपनाने का आह्वान।

घरेलू रणनीति इंडिया–AI मिशन संपूर्ण समाज में समान पहुँच, व्यापक कौशल विकास और जिम्मेदार AI के प्रयोग पर ध्यान केंद्रित करना।
वैश्विक सम्मलेन AI इंपैक्ट समिट, 2026

समावेशी AI पर वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत “सर्वजनम् हिताय, सर्वजनम् सुखाय” थीम के तहत शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।

श्रम एवं नवप्रवर्तन कौशल गतिशीलता ढाँचा

G-20 से आग्रह किया गया कि वे वर्तमान रोजगार से हटकर भविष्य की क्षमताओं की ओर कदम बढ़ाएँ, ताकि वैश्विक ढाँचे के माध्यम से नवाचार के लिए तैयार कार्यबल गतिशीलता को सक्षम बनाया जा सके।

  • जलवायु, खाद्य सुरक्षा और आपदा प्रतिरोधक क्षमता: भारत के प्रस्तावों में विकसित देशों की जवाबदेही और पारंपरिक ज्ञान आधारित समाधानों पर जोर दिया गया।
    • जलवायु और वित्तीय प्रतिबद्धताएँ: वहनीय वित्त और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की सुनिश्चित उपलब्धता के लिए विकसित देशों से आग्रह को पुनः दोहराया गया।।
      • ऐतिहासिक जलवायु प्रतिबद्धताओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का आग्रह किया।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR): DRR के लिए एक सक्रिय, विकास-प्रथम दृष्टिकोण का समर्थन किया।
      • आपदा रोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (CDRI) को एक आदर्श के रूप में रेखांकित किया।
    • खाद्य सुरक्षा रोडमैप: वैश्विक पोषण और जलवायु अनुकूलन के लिए बाजरा (श्री अन्न) पर जोर दिया।
    • G-20 खाद्य रोडमैप: एकीकृत G-20 रोडमैप के आधार के रूप में खाद्य सुरक्षा पर ‘दक्कन सिद्धांतों’ को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
    • ‘वाइस ऑफ ग्लोबल साउथ’ को मजबूत करना: भारतीय प्रधानमंत्री ने वैश्विक संस्थानों में ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व का विस्तार करने का आग्रह किया।
      • अफ्रीकी संघ को G-20 के एक स्थायी सदस्य के रूप में ऐतिहासिक रूप से शामिल करने के आधार पर, वैश्विक निर्णय लेने में निष्पक्षता और समावेशिता को मजबूत किया गया।

रणनीतिक द्विपक्षीय संबंध- भारत की वैश्विक पहुँच को बढ़ाना

समकक्ष देश मुख्य फोकस / परिणाम
इटली

आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए भारत-इटली संयुक्त पहल का शुभारंभ किया गया; आतंकवाद-निरोध, रक्षा, व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी, AI और अंतरिक्ष में सहयोग बढ़ाया गया।

जापान

विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी की पुष्टि की गई; रक्षा, सुरक्षा, महत्त्वपूर्ण खनिजों तथा अर्द्धचालकों में समझौतों के तेजी से निष्पादन को प्राथमिकता दी गई।

कनाडा

रक्षा, अंतरिक्ष और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति निर्धारित हुई; व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा हुई।

यूनाइटेड किंगडम

द्विपक्षीय संबंधों में नई गति को मान्यता दी गई; व्यापार, प्रौद्योगिकी, निवेश, जलवायु और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।

फ्राँस 

साझेदारी को वैश्विक कल्याण का एक माध्यम बताया; रणनीतिक सहयोग, प्रौद्योगिकी और साझा वैश्विक प्राथमिकताओं पर कार्य किया।

दक्षिण कोरिया

आर्थिक, व्यापार और निवेश साझेदारी को बढ़ाने के अवसरों की खोज की गई; विशेष रणनीतिक साझेदारी में प्रगति को स्वीकार किया गया।

ब्राजील, अंगोला, मलेशिया, इथियोपिया, वियतनाम और संयुक्त राष्ट्र

व्यापार, निवेश, विकासात्मक सहयोग, जलवायु सहयोग, तथा ग्लोबल साउथ एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ संबंधों को मजबूत करने पर उत्पादक चर्चाएँ की गईं।

G-20 के बारे में 

  • स्थापना: G-20 की स्थापना वर्ष 1997-98 के वित्तीय संकट के बाद वर्ष 1999 में हुई थी, जिसका प्रभाव एशियाई टाइगर्स (पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई) देशों पर पड़ा था।
    • शुरुआत में, यह प्रमुख औद्योगिक और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता था।
  • नेतृत्त्व स्तर तक उन्नयन: वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, G-20 का उन्नयन किया गया और इसमें राष्ट्राध्यक्षों या शासनाध्यक्षों को शामिल किया गया।
    • वर्ष 2009 तक, इसे ‘अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए प्रमुख मंच’ (Premier forum for international economic Cooperation) के रूप में नामित किया गया था।
  • सदस्यता: G-20 में 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं, जिसमें हाल ही में अफ्रीकी संघ भी शामिल हुआ है।
    • इसके सदस्य अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
  • गैर-बाध्यकारी प्रकृति: G-20 एक परामर्शदात्री मंच के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि इसके निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं और सदस्य देश उन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
  • कोई स्थायी सचिवालय नहीं: G-20 का कोई स्थायी सचिवालय नहीं है; इसका संचालन एक वार्षिक रूप से चक्रीय अध्यक्षता द्वारा संचालित होता है, जिसका चयन चक्रीय उद्देश्यों के लिए बनाए गए पाँच क्षेत्रीय समूहों में से किया जाता है।
  • पाँच क्षेत्रीय समूह: 19 सदस्य देशों को पाँच समूहों (प्रत्येक में अधिकतम चार) में विभाजित किया गया है; समूह 1 और समूह 2 को छोड़कर, जिनमें विभिन्न क्षेत्रों के देश शामिल हैं, अधिकांश क्षेत्रीय हैं।
    • समूह 1: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमेरिका
    • समूह 2: भारत, रूस, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किए
    • समूह 3: अर्जेंटीना, ब्राजील, मैक्सिको
    • समूह 4: फ्राँस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम
    • समूह 5: चीन, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य
    • यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ: किसी भी समूह का हिस्सा नहीं।
  • अध्यक्षता चक्र: प्रत्येक वर्ष, किसी भिन्न समूह का एक देश अध्यक्ष बनता है; उस समूह के सभी देश समान रूप से इसके हकदार होते हैं; चक्रीय अध्यक्षता एजेंडा तैयार करती है और वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर प्रतिक्रियाओं का समन्वय करती है।
  • ट्रोइका प्रणाली (Troika System): पिछले, वर्तमान और अगले अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान निरंतरता सुनिश्चित करती है; दक्षिण अफ्रीका के कार्यकाल के दौरान, ट्रोइका में ब्राजील (पूर्व), दक्षिण अफ्रीका (वर्तमान) और अमेरिका (अगला) शामिल हैं।
  • G-20 संरचना (ट्रैक)
    • शेरपा ‘ट्रैक’: जलवायु, स्वास्थ्य, कृषि, डिजिटल अर्थव्यवस्था और शिक्षा जैसे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित। शेरपा वार्ता का समन्वय करते हैं और शिखर सम्मेलन का एजेंडा निर्धारित करते हैं।
    • वित्त ‘ट्रैक’: वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के नेतृत्व में, यह राजकोषीय और मौद्रिक नीति पर चर्चा करता है और आमतौर पर विश्व बैंक और IMF सम्मेलनों के साथ आयोजित होता है।

G20 की भूमिका और महत्त्व

  • वैश्विक आर्थिक संचालन एवं संकट प्रबंधन
    • समष्टि आर्थिक समन्वय: वैश्विक आर्थिक नीतियों और विनियमों को संरेखित करने, मजबूत, सतत् और संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करता है।
    • संकट प्रतिक्रिया प्राधिकरण: वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान वर्ष 2008 में इसे शिखर सम्मेलन के स्तर पर पदोन्नत किया गया। जिससे समन्वित कार्रवाई संभव हुई जिससे वैश्विक मंदी को रोका जा सका।
    • वित्तीय विनियमन सुधार: बेसल III जैसे संकटोत्तर सुधारों का प्रमुख वास्तुकार, वैश्विक वित्तीय अनुकूलन, नियामक मानकों और पर्यवेक्षी सहयोग को बढ़ाता है।
    • आर्थिक महाशक्ति: G-20 सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85%, वैश्विक व्यापार का 75% से अधिक और विश्व की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • समावेशी एवं प्रतिनिधि वैश्विक शासन
    • वैश्विक उत्तर-दक्षिण विभाजन को पाटना: उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और प्रमुख उभरते बाजारों, दोनों को एकीकृत करता है, विकसित और विकासशील देशों के बीच एक महत्त्वपूर्ण सेतु प्रदान करता है।
    • संवर्द्धित वैधता: अफ्रीकी संघ को एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने से प्रतिनिधित्व क्षमता मजबूत होती है और अफ्रीका की विकासात्मक प्राथमिकताओं को मुख्यधारा में लाया जाता है।
    • विविध प्रतिनिधित्व: विविध दृष्टिकोणों और समाधानों के लिए एक मंच प्रदान करता है, जिससे वैश्विक निर्णय लेने की वैधता और समावेशिता बढ़ती है।
    • कार्यसूची का विस्तार: हालाँकि वित्त पर आधारित, G-20 अब जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास, वैश्विक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं और भ्रष्टाचार-विरोधी मुद्दों पर चर्चाओं का नेतृत्व करता है।
  • नीति समन्वय एवं वैश्विक लक्ष्य निर्धारण
    • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) का उत्प्रेरक: वर्ष 2030 के सतत् विकास लक्ष्यों के वित्तपोषण और उन्हें गति देने के लिए एक राजनीतिक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
    • जलवायु कार्रवाई नेतृत्व: जलवायु वित्त, नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और पेरिस समझौते जैसे वैश्विक समझौतों के समर्थन पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामूहिक जलवायु प्रतिक्रिया का समन्वय करता है।
    • ऋण स्थिरता: वैश्विक ऋण प्रबंधन और पुनर्गठन ढाँचों को मजबूत करने के लिए कार्य करता है, जिससे निम्न-आय आधारित अर्थव्यवस्थाओं को सहायता मिलती है।
    • वैश्विक मुद्दों पर ध्यान: अपने वित्त और शेरपा ट्रैक्स के माध्यम से, G-20 महत्त्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों का समाधान करता है, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक मानदंडों और मानकों को आकार देना
    • अनौपचारिक मानदंड निर्धारक: कानूनी रूप से बाध्यकारी प्राधिकरण के बिना भी, G-20 की प्रतिबद्धताएँ वैश्विक मानदंडों और IMF, विश्व बैंक, WTO और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसी प्रमुख संस्थाओं को प्रभावित करती हैं।
    • बहु-स्तरीय सहभागिता: वित्तीय ट्रैक, शेरपा ट्रैक और कई सहभागिता समूहों (B20, C20, T20, W20, Y20) के माध्यम से संचालित होता है, जिसमें व्यवसाय, नागरिक समाज, शिक्षा जगत, महिलाओं और युवाओं के दृष्टिकोण शामिल होते हैं।
    • वैश्विक शासन केंद्र: अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करता है, जो वैश्विक शासन ढाँचों की दिशा निर्धारित करता है।

प्रमुख G-20 शिखर सम्मेलन और परिणाम

वर्ष एवं शिखर सम्मेलन स्थान मुख्य परिणाम / पहल नीति का महत्त्व और प्रभाव
वर्ष 2009 (लंदन, यू.के.) मजबूत, सतत् और संतुलित विकास के लिए रूपरेखा

वर्ष 2008 के संकट के बाद समन्वित वैश्विक राजकोषीय प्रोत्साहन और बैंकिंग सुधार; वैश्विक वित्तीय प्रणाली को स्थिर किया।

वर्ष 2010 (सियोल, दक्षिण कोरिया) बेसल III मानदंड

कठोर पूँजी पर्याप्तता आवश्यकताएँ, तरलता कवरेज अनुपात तथा ‘लीवरेज’ अनुपात लागू किए गए, जिससे वैश्विक बैंकिंग प्रणाली अधिक सुदृढ़ हुई।

वर्ष 2010 (एकाधिक शिखर सम्मेलन) जलवायु परिवर्तन कार्य योजना

प्रमुख उत्सर्जकों के बीच निम्न-कार्बन रणनीतियों को प्रोत्साहित किया; वर्ष 2015 पेरिस समझौते के लिए आधार तैयार किया।

वर्ष 2017 (हैंबर्ग, जर्मनी) डिजिटल अर्थव्यवस्था कार्य योजना

डिजिटल व्यापार, साइबर सुरक्षा, डेटा प्रवाह और तकनीक शासन पर उन्नत वैश्विक सहयोग।

वर्ष 2020 (वर्चुअल / रियाद प्रेसीडेंसी) ऋण सेवा निलंबन पहल (DSSI)

कोविड-19 महामारी के दौरान कम आय वाले देशों को अस्थायी ऋण राहत प्रस्तुत की गई, जिससे व्यापक आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने में मदद मिली।

वर्ष 2021 (रोम, इटली) वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स (15%)

लाभ स्थानांतरण पर अंकुश लगाने के लिए 15% न्यूनतम कर का समर्थन किया गया; वैश्विक कॉरपोरेट कराधान मानदंडों में प्रमुख सुधार।

वर्ष 2023 (नई दिल्ली, भारत) वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA)

सतत् जैव ईंधन को अपनाने को बढ़ावा दिया गया; वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण प्रयासों को बढ़ावा दिया गया।

वर्ष 2023 (नई दिल्ली, भारत) भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) वैश्विक व्यापार, ऊर्जा प्रवाह और रणनीतिक एकीकरण को बढ़ाने वाला प्रमुख मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी कॉरिडोर।
वर्ष 2024 (रियो डी जनेरो, ब्राजील) भुखमरी और गरीबी के खिलाफ वैश्विक गठबंधन

500 मिलियन लोगों को सहायता प्रदान करने का लक्ष्य; वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 150 मिलियन लोगों को भोजन उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता।

वर्ष 2025 (जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका) मानव-केंद्रित AI के लिए वैश्विक समझौता।

सुरक्षित, पारदर्शी और जिम्मेदार AI के लिए वैश्विक मानदंड स्थापित करता है; खुले स्रोत, समावेशी, मानव-केंद्रित तकनीक विकास को बढ़ावा देता है।

G-20 के समक्ष चुनौतियाँ

  • प्रतिनिधित्व और वैधता की कमी: G20 की विशिष्ट सदस्यता, जिसमें सार्वभौमिक जनादेश का अभाव है, अधिकांश संयुक्त राष्ट्र राज्यों की उपेक्षा करती है, जिससे इसके निर्णयों की वैधता, निष्पक्षता और वैश्विक स्वीकृति कम हो जाती है।
  • पारदर्शिता, समावेशिता और जवाबदेही की कमी: स्थायी सचिवालय की अनुपस्थिति, कमजोर परामर्श और अपारदर्शी प्रक्रियाओं के कारण, प्रमुख वैश्विक नीतियों को आकार देने के बावजूद, G20 में संस्थागत स्मृति, समावेशिता और जवाबदेही की कमी देखी जाती है।
  • सीमित नीति प्रभावशीलता: प्रतिबंधित सदस्यता और विकसित देशों का प्रभुत्व, दृष्टिकोण को सीमित करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन, महामारी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) शासन और ऋण संकट जैसे सार्वभौमिक मुद्दों से निपटने की G-20 की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • भिन्न प्राथमिकताएँ: वित्त, प्रौद्योगिकी, जलवायु और व्यापार पर उन्नत और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के परस्पर विरोधी लक्ष्य आम सहमति में बाधा डालते हैं, जिससे समानता, जलवायु न्याय और निष्पक्ष वैश्विक शासन की प्रगति धीमी हो जाती है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: अमेरिका-चीन तनाव, रूस-पश्चिम टकराव और क्षेत्रीय संघर्ष सहयोग को खंडित करते हैं, जबकि बहिष्कार और नेताओं की अनुपस्थिति सामूहिक कार्रवाई को कमजोर करती है।
  • कमजोर बहुपक्षवाद और कार्यान्वयन अंतराल: आधिकारिक विकास सहायता (ODA) में गिरावट, जलवायु वित्त में देरी और गैर-बाध्यकारी प्रतिबद्धताएँ कार्यान्वयन में बड़े अंतराल पैदा करती हैं, जिससे ऋण राहत, खाद्य सुरक्षा और डिजिटल कराधान पर किए गए वादे अधूरे रह जाते हैं।

वर्ष 2025 के जोहान्सबर्ग G-20 शिखर सम्मेलन का अमेरिका द्वारा बहिष्कार

  • दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 2025 के G-20 शिखर सम्मेलन का अमेरिका द्वारा बहिष्कार (जो राजनीतिक और वैचारिक तनावों पर आधारित था) एक निर्णायक क्षण बन गया, जिसने ‘ग्लोबल साउथ’ द्वारा संचालित आम सहमति को संभव बनाया और प्रमुख पश्चिमी शक्तियों की सर्वसम्मति के बिना G-20 के कार्य करने की क्षमता का संकेत दिया।

अमेरिका ने शिखर सम्मेलन का बहिष्कार क्यों किया?

  • वैचारिक संघर्ष: अमेरिकी राष्ट्रपति ने दक्षिण अफ्रीका की अश्वेत-बहुल सरकार पर श्वेत अफ्रीकी लोगों पर अत्याचार करने का आरोप लगाया, हालाँकि दक्षिण अफ्रीका ने इन दावों को खारिज कर दिया।
  • नीतिगत टकराव: अमेरिका ने दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति पद की प्राथमिकताओं का विरोध किया, जिनमें शामिल हैं:
    • जलवायु प्रतिबद्धताएँ (नवीकरणीय ऊर्जा, अनुकूलन वित्त)
    • ऋण राहत और असमानता में कमी
    • ग्लोबल साउथ की ओर रुझान।
      • अमेरिका ने चेतावनी दी कि उसकी अनुपस्थिति में किसी भी नेतृत्त्वकारी घोषणा-पत्र को नहीं अपनाया जाना चाहिए।

अमेरिकी अनुपस्थिति से प्राप्त परिणाम

  • नेताओं के घोषणा-पत्र को शीघ्र अपनाना: एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए, शिखर सम्मेलन की शुरुआत में ही घोषणा-पत्र को मंजूरी दे दी गई, जिससे भविष्य में अमेरिका के वीटो पर रोक लग गई और जलवायु एवं विकास संबंधी भाषा को मजबूती मिली।
  • समर्थित ग्लोबल साउथ पर ध्यान: घोषणा-पत्र में इन बातों पर जोर दिया गया:-
    • जलवायु न्याय, नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार, पूर्व-चेतावनी प्रणालियाँ
    • ऋण सुधार, बहुपक्षवाद और विकास वित्त
    • अमेरिकी आपत्तियों के बावजूद, सदस्यों ने एक ठोस आम सहमति वाला प्रस्ताव पारित किया।
  • कूटनीतिक नतीजा
    • प्रोटोकॉल विवाद: दक्षिण अफ्रीका ने केवल एक प्रभारी राजदूत भेजने के अमेरिकी प्रस्ताव को प्रोटोकॉल का अपमान बताते हुए अस्वीकार कर दिया। अमेरिका ने प्रिटोरिया पर G-20 की अध्यक्षता को एक उपकरण के रूप में प्रयोग करने का आरोप लगाया।
    • प्रतीकात्मक तनाव: राष्ट्रपति रामफोसा की यह टिप्पणी-जिसमें उन्होंने अनुपस्थित प्रतिनिधि की ‘खाली कुर्सी को प्रतीकात्मक रूप से हथौड़ा सौंपने’ की बात कही-दोनों पक्षों के बीच उभरती कूटनीतिक दरार को स्पष्ट रूप से उजागर करती है।

G-20 पर प्रभाव 

  • संस्थागत लचीलापन: शिखर सम्मेलन ने G-20 की किसी बड़ी शक्ति के बिना भी कार्य करने की क्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे गतिरोध से बचा जा सका।
  • ‘ग्लोबल साउथ’ का अभिकथन: अफ्रीकी और विकासशील देशों के नेतृत्व ने गति पकड़ी, जिससे निम्नलिखित आह्वानों को बल मिला:
    • जलवायु वित्त सुधार
    • ऋण न्याय
    • समावेशी बहुपक्षवाद।
  • सत्ता की गतिशीलता में बदलाव: इस घटना ने बहुपक्षीय समूहों में पश्चिमी वीटो के घटते प्रभाव और वैश्विक शासन में बढ़ते बहुध्रुवीय प्रभाव का संकेत दिया।

अधिक प्रभावी G-20 के लिए आगे की राह 

  • समावेशन हेतु क्षेत्रीय परामर्शदात्री समूह (RCGs): विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय स्थिरता बोर्ड-शैली के RCGs संरचित क्षेत्रीय संवाद को सक्षम बनाते हैं, प्रतिनिधित्व का दायरा विस्तृत करते हैं, वैधता को सुदृढ़ करते हैं और गैर-सदस्य देशों की प्राथमिकताओं को G-20 के निर्णय-निर्माण में एकीकृत करते हैं।
  • औपचारिक ग्लोबल साउथ भागीदारी: स्थायी पर्यवेक्षक और आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ), CARICOM (कैरेबियन समुदाय), PIF (प्रशांत द्वीपसमूह मंच), और ECOWAS (पश्चिम अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक समुदाय) के साथ जुड़ाव, मुद्दों को व्यापक बनाते हैं और प्रतिनिधित्व के अंतराल को कम करते हैं।
  • मजबूत संस्थागत ढाँचा: एक स्थायी G-20 सचिवालय, सुदृढ़ ‘ट्रोइका’ तंत्र, और जलवायु वित्त, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ऋण राहत तथा भुखमरी जैसे विषयों पर नए कार्यसमूह निर्णय-प्रक्रिया में निरंतरता बढ़ाते हैं, प्रतिबद्धताओं की निगरानी को मजबूत करते हैं और समन्वित वैश्विक कार्रवाई को संभव बनाते हैं।
  • समतामूलक विकास और जलवायु न्याय: बाध्यकारी जलवायु-वित्त समय सीमा, G-20 हरित विकास कोष, सुधारित वैश्विक ऋण संरचना और विस्तारित IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) विशेष आहरण अधिकार (SDR) विकासशील देशों के लिए उचित संसाधन प्रवाह सुनिश्चित करते हैं।
  • भूख और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देना: भुखमरी-विरोधी गठबंधनों का विस्तार, बाजरा जैसी जलवायु-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना, पोषण प्रणालियों को मजबूत करना और ‘दक्कन सिद्धांतों’ को अपनाना वैश्विक खाद्य अनुकूलन बढ़ाता है।
  • मानव-केंद्रित प्रौद्योगिकी और AI शासन: सुरक्षित, पारदर्शी, जवाबदेह AI के लिए वैश्विक मानदंड, डीपफेक और साइबर दुरुपयोग का विनियमन और ओपन-सोर्स डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं को बढ़ावा देना समतामूलक, मानव-संरेखित तकनीक विकास सुनिश्चित करते हैं।

निष्कर्ष

वर्ष 2025 के शिखर सम्मेलन ने समता, स्थिरता और बहुपक्षीय सुधार को बढ़ावा देने में G-20 की भूमिका को और सशक्त बनाया। अब इसकी विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपनी प्रतिबद्धताओं का प्रभावी क्रियान्वयन कर पाए, ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व को सुदृढ़ बनाए, और मानव-केंद्रित वैश्विक शासन मॉडल को आगे बढ़ा सके।

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