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22वाँ आसियान-भारत शिखर सम्मेलन

Lokesh Pal October 28, 2025 02:32 56 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने मलेशिया के कुआलालंपुर में आयोजित 22वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में वर्चुअल माध्यम से भाग लिया।

आसियान का विस्तार 

  • पूर्वी तिमोर (तिमोर-लेस्ते) आधिकारिक तौर पर आसियान का 11वाँ सदस्य बन गया है।
  • 1990 के दशक के बाद से यह आसियान का पहला विस्तार है। आसियान में शामिल होने वाला अंतिम देश वर्ष 1999 में कंबोडिया था।
  • पूर्वी तिमोर ने वर्ष 2011 में आसियान की सदस्यता के लिए आवेदन किया था, उसे वर्ष 2022 में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया और 14 वर्ष के इंतजार के बाद वर्ष 2025 में उसे पूर्ण सदस्यता प्राप्त हुई।

पूर्वी तिमोर (तिमोर-लेस्ते) के बारे में

  • वर्ष 2002 में स्वतंत्रता प्राप्त पूर्वी तिमोर (तिमोर-लेस्ते) दक्षिण-पूर्व एशिया में एक संप्रभु द्वीपीय राष्ट्र और दुनिया के सबसे युवा गणराज्यों में से एक है।
  • यह पहले एक पुर्तगाली उपनिवेश था और बाद में वर्ष 1975 से वर्ष 1999 तक इंडोनेशिया के कब्जे में रहा था।
  • यह मलय द्वीपसमूह में तिमोर द्वीप के पूर्वी भाग में स्थित है, जिसके पश्चिम में इंडोनेशिया और दक्षिण में तिमोर सागर (ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में) स्थित है।

संबंधित तथ्य

  • इस बैठक में आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी की प्रगति की समीक्षा की गई और भावी सहयोग पर चर्चा की गई।
  • इस वर्ष के आसियान शिखर सम्मेलन का विषय: ‘समावेशीपन और स्थिरता (Inclusivity and Sustainability) था।

21वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ

  • 10-सूत्री योजना: भारतीय प्रधानमंत्री ने 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में आसियान-भारत व्यापक साझेदारी को मजबूत करने के लिए एक 10-सूत्री योजना का अनावरण किया।
  • समुद्री सहयोग: आसियान और भारत ने आसियान आउटलुक ऑन द इंडो-पैसिफिक (AOIP) और इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI) के बीच सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।
  • आसियान-भारत कार्य योजना: नेताओं ने आसियान-भारत साझेदारी की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए एक नई आसियान-भारत कार्य योजना (2026-2030) बनाने पर सहमति व्यक्त की।
  • आतंकवाद-विरोधी सहयोग: इस शिखर सम्मेलन ने वर्ष 2024-2027 के लिए आतंकवाद-विरोधी आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM)-प्लस विशेषज्ञों के कार्य समूह में भारत की सह-अध्यक्षता को रेखांकित किया।
  • AITIGA की समीक्षा: दोनों पक्षों ने आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की समीक्षा में तेजी लाने की आवश्यकता पर बल दिया।

22वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ

  • आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना: नेताओं ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी को लागू करने के लिए आसियान-भारत कार्य योजना (2026-2030) को अपनाया।
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने दोहराया कि आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की समीक्षा से साझेदारी की पूर्ण आर्थिक क्षमता का दोहन होगा।
  • समुद्री और रक्षा सहयोग
    • ब्लू इकोनॉमी में साझेदारी बढ़ाने के लिए वर्ष 2026 को आसियान-भारत समुद्री सहयोग वर्ष घोषित किया जाएगा।
    • समुद्री क्षेत्र में जागरूकता और सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए द्वितीय आसियान-भारत रक्षा मंत्रियों की बैठक और द्वितीय आसियान-भारत समुद्री अभ्यास आयोजित करने का प्रस्ताव दिया गया।
    • गुजरात के लोथल में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन समुद्री विरासत महोत्सव और समुद्री सुरक्षा सहयोग पर एक सम्मेलन की घोषणा की गई है।

पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) के बारे में 

  • स्थापना: वर्ष 2005 में आसियान के नेतृत्व वाली एक पहल के रूप में।
  • उद्देश्य: यह समावेशिता, अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान और आसियान की केंद्रीयता पर जोर देता है, जिसमें आसियान प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करता है।
  • सदस्यता: इसके 18 सदस्य हैं: 10 आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम) और आठ गैर-आसियान सदस्य देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका)।

त्वरित प्रभाव परियोजनाएँ (QIPs) क्या हैं?

  • QIPs ऐसी पहल हैं, जो स्थानीय समुदायों को कम समय में प्रत्यक्ष और ठोस लाभ पहुँचाने के लिए डिजाइन की गई हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बुनियादी ढाँचे और सामाजिक विकास की आवश्यकताएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
  • ये पहल उन आवश्यकताओं और तात्कालिक मुद्दों पर केंद्रित हैं, जिनका समुदाय पर महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।


  • समावेशी एवं सतत् विकास: आसियान-भारत पर्यटन वर्ष (2025) के एक भाग के रूप में सतत् पर्यटन पर आसियान-भारत संयुक्त नेताओं के वक्तव्य को अपनाना।
    • भारत ने तिमोर-लेस्ते में त्वरित प्रभाव परियोजनाओं (QIPs) का विस्तार किया और आसियान पॉवर ग्रिड पहल का समर्थन करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में 400 पेशेवरों के प्रशिक्षण की घोषणा की।
  • शिक्षा, अनुसंधान और मानव विकास: क्षेत्रीय विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में दक्षिण-पूर्व एशियाई अध्ययन केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव रखा।
    • शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, वित्तीय प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक विरासत, अर्द्धचालक और महत्त्वपूर्ण खनिजों में सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
  • वैश्विक शांति एवं सुरक्षा: भारतीय प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता का आह्वान किया और इसे वैश्विक शांति के लिए एक बड़ा खतरा बताया।
    • भारत ने क्षेत्र में संकट के दौरान प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में अपनी भूमिका दोहराई, जिसमें आपदा तैयारी और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) पर ध्यान केंद्रित किया गया।

आसियान-भारत कार्य योजना (2026-2030)

1. राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग

  • आसियान की केंद्रीयता के लिए समर्थन: क्षेत्रीय संरचना में आसियान के नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन को सुदृढ़ करता है।
  • रक्षा एवं सुरक्षा: आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक प्लस (ADMM-Plus), आसियान क्षेत्रीय मंच, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देना, जिसमें समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध, शांति स्थापना और साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • साइबर सुरक्षा एवं आतंकवाद-निरोध: आसियान-भारत साइबर नीति संवाद के माध्यम से सहयोग में वृद्धि और आसियान के आतंकवाद-रोधी ढाँचों के लिए समर्थन करता है।

2. आर्थिक सहयोग

  • व्यापार एवं निवेश: AITIGA की त्वरित समीक्षा करके इसे सरल, अधिक व्यापार-सुविधाजनक और समावेशी बनाया जाएगा।
    • MSME, स्टार्ट-अप और महिला-नेतृत्व आधारित उद्यमों को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • आसियान-भारत व्यापार परिषद की सहभागिता बढ़ाई जाएगी।
  • ऊर्जा: आसियान पॉवर ग्रिड, ग्रीन फंड परियोजनाओं, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों (हाइड्रोजन, CCUS) और असैन्य परमाणु ऊर्जा में सहयोग को समर्थन प्रदान किया जाएगा।
  • परिवहन संपर्क: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग में तेजी लाई जाएगी, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक विस्तार की संभावना तलाशी जाएगी और समुद्री रसद को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • खाद्य, कृषि एवं वानिकी: आसियान-भारत ग्रीन फंड का उपयोग करते हुए जलवायु-अनुकूल कृषि, डिजिटल खेती और सतत् खाद्य प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

3. डिजिटल, प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग

  • ICT और डिजिटल अर्थव्यवस्था: AI, IoT, 5G, ई-कॉमर्स, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष सहयोग में क्षमता निर्माण करना।
  • डिजिटल परिवर्तन: क्षेत्रीय डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) पहलों के लिए इंडिया स्टैक का उपयोग करना।

4. क्रॉस-पिलर सहयोग

  • इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक (AOIP): AOIP के अंतर्गत समुद्री, कनेक्टिविटी, सतत् विकास लक्ष्य और आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग को गहन करना।
  • कनेक्टिविटी: भारत की एक्ट ईस्ट नीति और सागर विजन को आसियान की कनेक्टिविटी रणनीतिक योजना (ACSP) से जोड़ना।
  • स्मार्ट शहर: लचीले और नवोन्मेषी शहरों के लिए आसियान स्मार्ट सिटी नेटवर्क (ASCN) के साथ सहयोग।

आसियान-भारत वार्ता संबंधों का विकास

  • 1990 के दशक की शुरुआत: भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए पूर्व की ओर देखो नीति शुरू की।
  • प्रारंभिक विकास (1992-2002)
    • आसियान-भारत संबंध वर्ष 1992 में एक क्षेत्रीय संवाद साझेदारी के रूप में शुरू हुए, जो वर्ष 1995 तक पूर्ण संवाद साझेदारी में परिवर्तित हो गए।
    • पहला आसियान-भारत शिखर सम्मेलन वर्ष 2002 में आयोजित हुआ, जिससे उनके सहयोग में तीव्र प्रगति हुई।
  • रणनीतिक साझेदारी (2012)
    • वर्ष 2012 में, आसियान और भारत के बीच संवाद के 20 वर्ष पूरे होने पर, संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक पहुँचाया गया।
    • संबंधों की समीक्षा और उन्हें मजबूत बनाने के लिए आसियान-भारत प्रख्यात व्यक्ति समूह का गठन किया गया।
  • एक्ट ईस्ट नीति: एक्ट ईस्ट नीति एक अधिक सक्रिय दृष्टिकोण पर जोर देती है, जिसमें न केवल आसियान देशों को शामिल किया जाता है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों को भी शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी (2022)
    • वर्ष 2022 में, दोनों पक्षों ने आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी की स्थापना की और पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी के 30 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया।

आसियान-दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संघ के बारे में

  • स्थापना: 8 अगस्त, 1967 को बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान घोषणा-पत्र (बैंकॉक घोषणापत्र) पर हस्ताक्षर के साथ।
  • संस्थापक सदस्य: इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड।
  • आदर्श वाक्य: ‘एक दृष्टि, एक पहचान, एक समुदाय’
  • सदस्य: 11 सदस्य
    • इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई दारुस्सलाम (1984), वियतनाम (1995), लाओस और म्याँमार (1997), कंबोडिया (1999) और पूर्वी तिमोर (2025)
  • अध्यक्षता: सदस्य देशों के अंग्रेजी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर, अध्यक्षता प्रतिवर्ष बदलती रहती है। 

भारत-आसियान साझेदारी का महत्त्व

  • आर्थिक महत्त्व
    • व्यापार: वर्ष 2024 में, आसियान से भारत के कुल निर्यात का 9.8 प्रतिशत और आयात का 10 प्रतिशत हिस्सा रहा, जिससे इसका कुल व्यापार में योगदान लगभग 9.9 प्रतिशत था।
      • वर्ष 2024 में आसियान से भारत के आयात में मशीनरी और बिजली के सामान का हिस्सा 23 प्रतिशत था।
      • निर्यात के संदर्भ में, भारत का व्यापार क्षेत्र ईंधन, रसायन और धातुओं पर केंद्रित है, जिनका कुल निर्यात में 45 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।

      • पिछले दशक में भारत-आसियान व्यापार दोगुना होकर 130 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है।
      • आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाया है और दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 123 अरब अमेरिकी डॉलर (2024-25) है।
        • आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (AITGA) एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिस पर वर्ष 2009 में व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे।
      • सिंगापुर, आसियान में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • सामरिक महत्त्व
    • चीन के प्रभाव का मुकाबला: आसियान भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है, विशेषकर चीन के साथ बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के मध्य।
    • भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का आसियान के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण के साथ संरेखण: भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और आसियान का ‘हिंद-प्रशांत पर दृष्टिकोण’ क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समान दृष्टिकोण साझा करते हैं।
    • क्षेत्रीय सुरक्षा में भारत की भूमिका: भारत पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और आसियान क्षेत्रीय मंच जैसे मंचों के माध्यम से आसियान के साथ जुड़ता है ताकि स्वयं को एक व्यापक सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित कर सके।
  • क्षेत्रीय संपर्क: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना जैसी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ये परियोजनाएँ इस क्षेत्र में चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल के विकल्प के रूप में भी कार्य करती हैं।
  • रक्षा सहयोग: भारत और आसियान ने आसियान-भारत समुद्री अभ्यास जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यासों और आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक प्लस (ADMM+) में भागीदारी के माध्यम से रक्षा संबंधों को मजबूत किया है।
    • भारत, आसियान को क्षेत्रीय सुरक्षा और विकास के लिए अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति का केंद्र मानता है, जिसका प्रतिनिधित्व सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) पहल द्वारा किया जाता है।
  • अन्य
    • वित्तपोषण और वित्तीय सहायता: भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से आसियान देशों को आसियान-भारत सहयोग निधि, आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास निधि और आसियान-भारत हरित निधि जैसी विभिन्न निधियों के माध्यम से सहायता प्रदान की है।
    • शिक्षा और अनुसंधान: भारत ने आसियान-भारत संबंधों पर अध्ययन को सुगम बनाने के लिए विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (RIS) में आसियान-भारत केंद्र की स्थापना की है।
    • HADR में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता: भारत इस क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) प्रदान करने वाले प्रथम प्रतिक्रियाकर्ताओं में से एक रहा है।
      • उदाहरण: भारत ने अपनी दीर्घकालिक ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अनुरूप, टाइफून यागी के कारण आई भीषण बाढ़ के जवाब में लाओस, म्याँमार और वियतनाम में आपदा राहत पहुँचाने के लिए ऑपरेशन सद्भाव शुरू किया था।

ADMM-प्लस: आसियान रक्षा मंत्रियों और आठ संवाद साझेदारों (भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका) के बीच संवाद और व्यावहारिक सहयोग के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।

भारत-आसियान संबंधों में चुनौतियाँ

  • बाजार पहुँच का अभाव: उच्च टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं जैसे कारकों के कारण कुछ भारतीय उत्पादों की आसियान देशों में बाजार पहुँच नहीं है।
    • पेशेवर सेवाओं में पारस्परिक मान्यता समझौतों का अभाव कुशल पेशेवरों की गतिशीलता को प्रतिबंधित करता है।
    • वर्ष 2009 के AITIGA के बावजूद, भारत को आसियान बाजारों तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कई सदस्यों ने कम टैरिफ उदारीकरण की प्रस्तुत की है, उदाहरण के लिए, भारत ने 71% टैरिफ लाइनें खोलीं, जबकि इंडोनेशिया ने केवल 41% खोलीं।
    • इस विषमता ने भारत के निर्यात को सीमित कर दिया है और एक असंतुलित मुक्त व्यापार समझौते की धारणा को गहरा कर दिया है।
  • बाहरी टैरिफ दबावों का प्रभाव: भारतीय वस्तुओं पर 25% अमेरिकी टैरिफ (अतिरिक्त 25% टैरिफ) लगाने से भारत की कमजोरी उजागर हुई है और आसियान तथा अन्य मुक्त व्यापार समझौतों के माध्यम से व्यापार में विविधता लाने की आवश्यकता फिर से बढ़ गई है।
    • आसियान निर्यातकों को कम अमेरिकी शुल्क दरों (सिंगापुर के लिए लगभग 10 प्रतिशत से लेकर म्याँमार और लाओस के लिए 40 प्रतिशत तक) का लाभ प्राप्त होता है, जिससे उन्हें वैश्विक बाजार में भारतीय वस्तुओं पर प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलती है।
  • आसियान के मूल स्थान के कठोर नियम: भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में मूल स्थान के कठोर नियम हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों के लिए टैरिफ कटौती के लिए अर्हता प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • आसियान FTA का दुरुपयोग: ऐसी खबरें हैं कि चीन से आसियान देशों के माध्यम से न्यूनतम मूल्यवर्द्धन के साथ माल भेजा जा रहा है, जिससे FTA के लाभों का दुरुपयोग हो रहा है।
    • भारत ने AITIGA के मूल स्थान के नियमों (ROO) के दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई है, क्योंकि चीनी माल न्यूनतम मूल्यवर्द्धन के साथ आसियान के माध्यम से भेजा जा रहा है, जिससे भारत के घरेलू उद्योग को नुकसान हो रहा है।
    • इससे अनुचित प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हुई है और वास्तविक आसियान-मूल की वस्तुओं के लिए टैरिफ लाभों की प्रभावशीलता कम हो गई है।
  • व्यापार असंतुलन: वर्ष 2010 में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लागू होने के बाद से आसियान के साथ भारत का व्यापार घाटा दोगुने से भी अधिक हो गया है, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में, क्योंकि कार्यान्वयन, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं और गैर-टैरिफ बाधाओं आदि से जुड़ी समस्याओं के कारण ऐसा हुआ है।
    • वर्ष 2016-17 में व्यापार घाटा 9.66 अरब डॉलर था, जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 45.2 अरब डॉलर हो गया।
  • भारत का RCEP से बाहर होना: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से भारत के बाहर होने के निर्णय से आसियान सदस्यों में आर्थिक रूप से काफी निराशा हुई है।
  • बुनियादी ढाँचे से जुड़ी चुनौतियाँ: भौतिक बुनियादी ढाँचे के संपर्क अभी भी अविकसित हैं।
    • उदाहरण: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग में अत्यधिक विलंब हुआ है और यह अधूरा पड़ा है।
  • चीन कारक: क्वाड गठबंधन के माध्यम से चीन को संतुलित करने के भारत के प्रयासों को आसियान देशों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। 
    • दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों (जिनमें से कई फिलीपींस और ब्रुनेई जैसे आसियान सदस्यों के दावों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं) और इसके सदस्य देश म्याँमार में सैन्य संघर्ष के मुद्दे से भी सहयोग प्रभावित हुआ है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) आसियान सदस्यों और मुक्त व्यापार समझौता (FTA) भागीदारों के बीच एक आर्थिक समझौता है।

  • सदस्य: 15 सदस्य देश, जैसे चीन, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और आसियान राष्ट्र (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम)।

भारत-आसियान संबंधों में सुधार के उपाय

  • आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (AIFTA) का पुनर्मूल्यांकन: व्यापार असंतुलन को दूर करने और फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र तथा सेवाओं के लिए बेहतर बाजार पहुँच जैसे प्रमुख क्षेत्रों में संतुलित टैरिफ कटौती पर वार्ता करने के लिए AIFTA की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की कनेक्टिविटी बढ़ाना: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी प्रमुख परियोजनाओं में तेजी लाना और इसे कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक विस्तारित करना।
    • आसियान के कनेक्टिविटी मास्टर प्लान 2025 के अनुरूप एक ‘कनेक्टिविटी मास्टर प्लान’ विकसित करना, जिसमें भारत-आसियान सबमरीन केबल परियोजना जैसी डिजिटल पहल शामिल हों।
  • विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना: आसियान व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण उद्योगों में प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार करना।
  • QUAD का QUAD+ तक विस्तार: क्वाड की अवधारणा का विस्तार आसियान देशों को शामिल करने के लिए किया जाना चाहिए, जिससे एक QUAD+ व्यवस्था का निर्माण होगा।
  • आसियान में सेमीकंडक्टर कूटनीति का विस्तार: भारत को मलेशिया और सिंगापुर के साथ अपनी सेमीकंडक्टर कूटनीति का विस्तार करते हुए अन्य आसियान देशों को भी इसमें शामिल करना चाहिए तथा सेमीकंडक्टर निर्माण में सहयोग बढ़ाना चाहिए।
  • सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना: पर्यटन, सिनेमा, संगीत तथा टेलीविजन में सहयोगात्मक प्रस्तुतियों, भारत में आसियान भाषाओं के लिए भाषा पाठ्यक्रम प्रदान करना आदि के माध्यम से संबंधों को और गहरा किया जा सकता है।

निष्कर्ष 

22वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन ने स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और आर्थिक संतुलन से प्रेरित सहयोग के एक नए चरण की शुरुआत की। आसियान-भारत कार्य योजना (2026-2030) के कार्यान्वयन के साथ, दोनों पक्षों का लक्ष्य एक स्थिर, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र का निर्माण करना है।

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