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46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (ATCM-46)

Lokesh Pal June 18, 2024 03:07 156 0

संदर्भ

हाल ही में भारत ने केरल के कोच्चि में 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (Antarctic Treaty Consultative Meeting- ATCM-46) की मेजबानी सफलतापूर्वक संपन्न की।

  • भारत ने अंटार्कटिका में अनियमित पर्यटन के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की, गौरतलब है कि भारत यह मुद्दा वर्ष 2007 से उठा रहा है।

अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (ATCM) के बारे में 

  • परिचय: अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (ATCM) अंटार्कटिक संधि के तहत स्थापित वार्षिक स्तर पर एक निर्णय लेने वाला तंत्र है। 
  • ATCM-46 थीम: ‘वसुधैव कुटुंबकम’ जिसका अर्थ है ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’। 
  • मेजबानी: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (भारत सरकार) ने राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre for Polar and Ocean Research-NCPOR), गोवा के माध्यम से, अर्जेंटीना के अंटार्कटिक संधि सचिवालय के सहयोग से मेजबानी की।
  • पुनः पुष्टि: इस कार्यक्रम में पार्टियों द्वारा अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty, 1959) एवं अंटार्कटिक संधि के पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल (मैड्रिड प्रोटोकॉल, 1991) की पुनः पुष्टि की गई।

  • दक्षिणी ध्रुव पर भारत के दो परिचालन अनुसंधान स्टेशन हैं- मैत्री एवं भारती। 
  • दक्षिण गंगोत्री (Dakshin Gangotri), वर्ष 1985 से पहले बनाया गया पहला स्टेशन, अब मुख्य रूप से माल की आपूर्ति के लिए बेस ट्रांजिट कैंप के रूप में कार्य कर रहा है।
  • मैत्री (Maitri) के बारे में
    • परिचय: भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, मैत्री दक्षिण गंगोत्री के बाद अंटार्कटिका में भारत का दूसरा स्थायी अनुसंधान स्टेशन है।
    • निर्मित: वर्ष 1989 में
    • स्थित: एक चट्टानी पहाड़ी क्षेत्र, जिसे शिरमाकर ओएसिस (Schirmacher Oasis) कहा जाता है।
    • प्रियदर्शिनी झील (Lake Priyadarshini): भारत ने मैत्री के चारों ओर एक मीठे जल की झील भी बनाई, जिसे प्रियदर्शिनी झील के नाम से जाना जाता है।

अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक की मुख्य बिंदु

  • संरक्षित के रूप में नामित क्षेत्र: कोच्चि बैठक में, अंटार्कटिका के अतिरिक्त क्षेत्रों को ‘संरक्षित’ के रूप में नामित किया गया।
  • अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लुएंजा (Highly Pathogenic Avian Influenza- HPAI) के लिए मानक जैव सुरक्षा दिशा-निर्देश निर्धारित करना: बैठक में मनुष्यों के लिए जोखिम को समाप्त करने एवं कम करने के साथ-साथ मानव गतिविधियों के माध्यम से अंटार्कटिका में बीमारी फैलाने के लिए HPAI के लिए मानक जैव सुरक्षा दिशा-निर्देश निर्धारित करने पर जोर दिया गया।
  • सर्व समावेशी शासन: भारत ने ‘सर्व समावेशी’ शासन पर जोर दिया, जो अंटार्कटिका के लिए पर्यटन ढाँचे का मसौदा तैयार करने की पहली शुरुआत एवं पहल है। 
  • मैत्री-II अनुसंधान स्टेशन की स्थापना: भारत ने अपने 35 वर्ष पुराने मैत्री अनुसंधान आधार को एक नई सुविधा, मैत्री-II के साथ बदलने की योजना की घोषणा की। भारत अब मैत्री-II के लिए वास्तुशिल्प एवं पर्यावरण योजनाओं का मसौदा तैयार करना शुरू करेगा तथा उन्हें केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत करेगा। एक बार अंतिम रूप दिए जाने के बाद, पर्यावरण रिपोर्ट को मंजूरी के लिए पर्यावरण संरक्षण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। भारत का लक्ष्य  2030 के दशक की शुरुआत तक मैत्री-II को चालू करना है।
  • अंटार्कटिका पर्यटन के बारे में चिंताएँ: हाल ही में महाद्वीप में आगंतुकों और बाहरी शोधकर्ताओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसे मुख्य रूप से चुनिंदा देशों के निजी टूर ऑपरेटरों द्वारा सुविधा प्रदान की गई है। 
    • अनुमान बताते हैं कि वर्ष 2023 में अंटार्कटिका में 1,00,000 पर्यटक आए।
    • पहली बार, भारत ने इन चिंताओं को दूर करने के लिए अंटार्कटिक पर्यटन पर केंद्रित एक समर्पित कार्य समूह की शुरुआत की।
  • पर्यटन ढाँचे के लिए सहमति: कोच्चि में उपस्थित ‘सभी अंटार्कटिका संधि दल’ पर्यटन के लिए एक ढाँचे की आवश्यकता पर सहमत हुए। 
    • संकल्प और अनुलग्नक पर महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया: कोच्चि में, संकल्प और अनुलग्नक पर महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, जो अंटार्कटिका में गतिविधियों की पर्यावरणीय देयता को संबोधित करेगा।
    • अंटार्कटिक पर्यटन ढाँचे को विकसित करने में चुनौतियाँ: हालाँकि, इस तरह के ढाँचे को विकसित करना एक जटिल एवं लंबी प्रक्रिया है, जिसके लिए 50 से अधिक पक्षों की सहमति की आवश्यकता होती है, जिससे संधि बैठक के कुछ दिनों के भीतर इसे अंतिम रूप देना असंभव हो जाता है।
    • भविष्य के विचार-विमर्श: वर्ष 2025 में इटली में अगले ATCM में पर्यटन ढाँचे पर आगे के विचार-विमर्श की उम्मीद है। 
    • अंटार्कटिक पर्यटन के लिए कड़े नियमों का कार्यान्वयन: एक बार आम सहमति बन जाने के बाद, अंटार्कटिका में पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले कड़े नियम लागू किए जाएँगे।
  • सऊदी अरब का प्रवेश: हाल ही में कोच्चि में संपन्न ATCM-46 में, सऊदी अरब अंटार्कटिक संधि दलों का सबसे नया सदस्य बन गया। 
  • मुख्य चर्चाएँ: बैठक में विभिन्न महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें समुद्री बर्फ में बदलाव, पेंगुइन की सुरक्षा, प्रमुख गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को बढ़ाना एवं अंटार्कटिका में पर्यावरण निगरानी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय ढाँचा विकसित करना शामिल है।

ATCM-46 बैठक में भारत का रुख 

  • समावेशी दृष्टिकोण: भारत ने अंटार्कटिका एवं उसके संसाधनों को संरक्षित करने के लिए ‘सर्व समावेशी’ दृष्टिकोण की सिफारिश की।
  • व्यापक भागीदारी: इसने ‘अंटार्कटिक संधि’ को अधिक देशों के लिए खोलने की आवश्यकता को रेखांकित किया एवं शासन, अनुसंधान एवं कानूनों तथा नीतियों के विकास में साझा जिम्मेदारियों की सिफारिश की।
  • भू-राजनीति-मुक्त शासन: इस बात पर जोर दिया गया कि जब अंटार्कटिका के शासन के मुद्दे की बात आती है तो मुख्य भूमि की भू-राजनीति को बाधा नहीं बनना चाहिए।
  • विशिष्टता के विरुद्ध: परामर्शदात्री पक्षों से आग्रह किया कि वे संधि को चुनिंदा देशों का ‘विशेष क्लब’ मानने से बचें।
  • नए सदस्यों के लिए समर्थन: भारत ने कोच्चि में परामर्शदात्री दलों (जिनके पास मतदान करने एवं निर्णय लेने का अधिकार है) को याद दिलाया कि संधि चुनिंदा देशों के ‘विशेष क्लब’ के रूप में नहीं रह सकती है। उदाहरण- कनाडा एवं बेलारूस संधि में परामर्शदात्री दल बनने की दिशा में कार्य कर रहे हैं,  लेकिन उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिली है।

अंटार्कटिका का अवलोकन 

  • आकार: यह 14 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
  • बर्फ का आवरण: अंटार्कटिका का लगभग 98% भाग मोटी बर्फ की चादरों से ढका हुआ है।
  • मीठे जल का भंडार: पृथ्वी के मीठे जल का लगभग 75% यहीं मौजूद है।
  • पर्यावरण: अपने अद्वितीय वन्य जीवन एवं प्राचीन परिस्थितियों के लिए उल्लेखनीय है।
  • जलवायु: दक्षिणी ध्रुव के निकट स्थित यह क्षेत्र अत्यधिक ठंड, शुष्कता और तूफानी हवाओं से ग्रस्त है।

अंटार्कटिका के समक्ष प्रमुख मुद्दे

  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रतिकूल प्रभाव: ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य के तहत, पृथ्वी के तीन ध्रुव यानी उत्तरी ध्रुव, दक्षिणी ध्रुव एवं हिमालय सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
  • ध्रुवों पर पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की निश्चित दरें: पर्माफ्रॉस्ट सक्रिय बर्फ की चादर के नीचे जमी हुई चट्टान एवं मिट्टी की परतें हैं। 
    • कार्बनिक पदार्थ का अपघटन: बढ़ते तापमान ने इस पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर दिया है, जिसके कारण पौधे जैसे कार्बनिक पदार्थ भी सड़ने लगते हैं।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: यह अपघटन आगे चलकर कार्बन डाइऑक्साइड एवं मेथेन उत्सर्जित करता है, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
    • अंटार्कटिक संरक्षण: पिघलते पर्माफ्रॉस्ट से असुरक्षित स्थितियों के कारण अधिक भौगोलिक क्षेत्रों को ‘संरक्षित’ के रूप में नामित किया गया।
    • प्रबंधन योजनाएँ: इस वर्ष की बैठक में, अंटार्कटिक विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों (Antarctic Specially Protected Areas- ASPA) के लिए 17 संशोधित और नई प्रबंधन योजनाएँ अपनाई गईं।
  • अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लुएंजा (Highly Pathogenic Avian Influenza)- (HPAI) का खतरा: नवीनतम वैज्ञानिक निष्कर्ष बताते हैं कि अंटार्कटिका के ऊपर हवा एवं वातावरण प्रदूषित हो गया है तथा बढ़ते पर्यटन एवं बढ़ती मानव उपस्थिति के कारण HPAI का संभावित खतरा बना हुआ है। यह स्थानीय जीवों को प्रभावित कर रहा है।

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