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CITES के 50 वर्ष

Lokesh Pal July 04, 2025 02:20 12 0

संदर्भ 

वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) ने वर्ष 1975 में लागू होने के बाद से 50 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं, जो वन्यजीवों को व्यापार-संचालित विलुप्ति से बचाने में एक महत्त्वपूर्ण संस्था सिद्ध हुई।

  • इसकी परिकल्पना मूलतः वर्ष 1963 में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की बैठक में की गई थी।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) विश्व का अग्रणी पर्यावरण प्राधिकरण है, जो वैश्विक पर्यावरण एजेंडा स्थापित करता है। 
  • इसका मुख्य लक्ष्य पर्यावरण देखभाल में नेतृत्व प्रदान करना और साझेदारी को प्रोत्साहित करना है। 
  • इसकी स्थापना 5 जून, 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर की गई थी और इसका मुख्यालय नैरोबी, केन्या में है।

CITES के बारे में

  • यह सरकारों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को कोई खतरा न हो।
  • प्रस्ताव: CITES का मसौदा वर्ष 1963 में IUCN सदस्यों की एक बैठक में अपनाए गए प्रस्ताव के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था, और यह 1 जुलाई, 1975 को लागू हुआ।
  • शामिल पक्ष: 185 पक्ष (राज्य या क्षेत्रीय आर्थिक संगठन)।
    • भारत ने वर्ष 1976 में CITES का अनुसमर्थन किया।
  • कानूनी रूप से बाध्यकारी: CITES सभी पार्टियों (सम्मिलित देश) पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है, लेकिन यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि CITES को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए, प्रत्येक पार्टी को अपना स्वयं का घरेलू कानून अपनाना चाहिए।
  • परिशिष्ट: CITES में शामिल की गई प्रजातियों को उनकी सुरक्षा की आवश्यकता के अनुसार तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है
    • परिशिष्ट-I में विलुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं। इन प्रजातियों का व्यापार केवल असाधारण परिस्थितियों में ही अनुमत है।
      • उदाहरण के लिए गोरिल्ला, समुद्री कछुए, ‘लेडी स्लिपर ऑर्किड’ और जाइंट पांडा शामिल हैं।
    • परिशिष्ट II: इसमें वे प्रजातियाँ शामिल हैं, जो विलुप्त होने की कगार पर नहीं हैं, लेकिन जिनके व्यापार को नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि उनके अस्तित्व के साथ असंगत उपयोग से बचा जा सके।
      • उदाहरण में पैडल फिश, शेर, अमेरिकन एलिगेटर, महोगनी आदि शामिल हैं।
      • निर्यात या पुनः निर्यात परमिट के साथ व्यापार की अनुमति है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह प्रजातियों के अस्तित्व को हानि नहीं पहुँचाता है।
    • परिशिष्ट III: इसमें कम-से-कम एक देश में संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं, जिसके व्यापार को नियंत्रित करने में सहायता के लिए अन्य CITES दलों से अनुरोध किया गया है।
      • उदाहरणों में मैप टर्टल, वालरस और केप स्टैग बीटल शामिल हैं।
      • इस परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर केवल उचित परमिट या प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने पर ही अनुमति दी जाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), जिनेवा, स्विट्जरलैंड द्वारा प्रशासित। जो IUCN सचिवालय को वैज्ञानिक और तकनीकी सेवाएँ प्रदान करता है।
  • CITES सचिवालय की ओर से निगरानी केंद्र (UNEP-WCMC)।
  • कांफ्रेंस ऑफ पार्टी (CoP): CITES का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय।
    • सदस्य राष्ट्र प्रजातियों की सूची और प्रवर्तन की समीक्षा करने के लिए प्रत्येक 2-3 वर्ष में कांफ्रेंस ऑफ पार्टी (CoP) में मिलते हैं।
    • CoP-3 वर्ष 1981 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था।
  • केवल पक्षकारों के सम्मेलन द्वारा ही प्रजातियों को परिशिष्ट-I और II में जोड़ा या हटाया जा सकता है या उनके बीच स्थानांतरित किया जा सकता है।

महत्त्वपूर्ण पहल

  • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (MIKE) कार्यक्रम: अफ्रीका और एशिया में अवैध रूप से हाथियों की हत्या के रुझानों की निगरानी के लिए CITES के तहत एक साइट-आधारित पहल, जो अब 70 से अधिक स्थानों पर सक्रिय है, जो विश्व की लगभग आधी हाथी आबादी को शामिल करती है।
  • वन्यजीव अपराध का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ (ICCWC)-CITES, INTERPOL, UNODC, विश्व बैंक और WCO के बीच एक वैश्विक साझेदारी, जो अवैध वन्यजीव व्यापार का मुकाबला करने तथा कानून प्रवर्तन को मजबूत करने के लिए मिलकर कार्य करती है।

CITES और भारत

  • भारत को ‘मेगाडाइवर्स’ देशों में से एक माना जाता है, जहाँ दर्ज की गई वैश्विक प्रजातियों में से 7-8% प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • भारत में विश्व के 34 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से 4 मौजूद हैं:
    • हिमालय, इंडो-बर्मा, पश्चिमी घाट और श्रीलंका, और सुंदरलैंड।
  • निर्यात प्रमाण-पत्रों और आयात परमिटों के माध्यम से लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर सक्रिय रूप से प्रतिबंध लगाता है और आक्रामक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित करता है।
  • भारत ने अधिक सुरक्षा के लिए परिशिष्ट-II से परिशिष्ट-I में तीन प्रजातियों को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा:
    • स्माल क्लावड ऑटर (Small-clawed otter) (एओनिक्स सिनेरियस [Aonyx cinereus])
    • स्मूथ कोटेड ऑटर (Smooth-coated otter) (लुट्रोगेल पर्सिपिसिलाटा [Lutrogale perspicillata])
    • इंडियन स्टार टोर्टिस (Indian Star Tortoise) (जियोचेलोन एलिगेंस [Geochelone elegans])

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