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भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश

Lokesh Pal May 15, 2025 02:58 13 0

संदर्भ

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से भारत के दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं, उनसे पहले न्यायमूर्ति केजी बालकृष्णन वर्ष 2007 से वर्ष 2010 के बीच इस पद पर कार्यरत थे।

भारत के मुख्य न्यायाधीश के बारे में

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सर्वोच्च न्यायालय और भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख हैं, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद-124 के तहत नियुक्त किया जाता है।
  • नियुक्ति प्राधिकारी: भारत के राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
  • प्रक्रिया 
    • केंद्रीय कानून मंत्री निवर्तमान CJI से संस्तुति माँगते हैं।
    • संस्तुति प्रधानमंत्री को भेजी जाती है।
    • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को अगला CJI नियुक्त करते हैं
    • परंपरा: सामान्यत: सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। वरिष्ठता सर्वोच्च न्यायालय में सेवा की अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है।
  • शपथ: भारत के राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।
  • प्रथम CJI: हीरालाल जे. कनिया (Harilal J. Kania)।

CJI बनने के लिए पात्रता मानदंड

  • संविधान में मुख्य न्यायाधीश के लिए अलग से पात्रता निर्दिष्ट नहीं की गई है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर कुछ योग्यताएँ लागू होती हैं।
  • अनुच्छेद-124(3) के अनुसार
    • वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
    • कम-से-कम 5 वर्षों तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया हो, या
    • न्यूनतम 10 वर्षों तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य किया हो।

CJI को पद से हटाने की प्रक्रिया

  • संसद द्वारा महाभियोग: संसद के दोनों सदनों द्वारा एक ही सत्र में सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करने के बाद राष्ट्रपति के आदेश द्वारा मुख्य न्यायाधीश को हटाया जा सकता है।
  • यह प्रक्रिया न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 के अनुसार है, जिसमें न्यायिक जाँच समिति शामिल है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियाँ और कर्तव्य

  • प्रशासनिक प्राधिकार: CJI ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के रूप में कार्य करता है, जो मामलों की सुनवाई के लिए बेंच का गठन करने के मुख्य न्यायाधीश के विशेषाधिकार को संदर्भित करता है।
    • CJI सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज का नेतृत्व और देख-रेख करता है।
    • न्यायिक कार्य आवंटित करने और बेंच के गठन के लिए भी जिम्मेदार है।
  • नियुक्तियों में भूमिका: उच्च न्यायपालिका के अंतर्गत न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों में महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है।
  • सलाहकार की भूमिका: प्रमुख कानूनी और न्यायिक मामलों पर सरकार के लिए एक प्रमुख संवैधानिक सलाहकार के रूप में कार्य करता है।
  • विशेष शक्तियाँ
    • अनुच्छेद-128 के तहत, मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की सहमति से, सर्वोच्च न्यायलय  या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अस्थायी रूप से सर्वोच्च न्यायलय  के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त कर सकते हैं। 
      • राष्ट्रपति की मंजूरी से, मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायलय की सीट को दिल्ली से किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर सकते हैं।

न्यायपालिका में विविधता की आवश्यकता / महत्त्व

  1. सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है: SC, ST, OBC, अल्पसंख्यकों और महिलाओं जैसे वंचित  समूहों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
    • वर्ष 2023 तक, सर्वोच्च न्यायलय के 34 में से केवल 1 न्यायाधीश अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से थे।
  2. संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करता है: संविधान में निहित समानता, समावेशिता और बंधुत्व के आदर्शों को कायम रखता है।
    • न्यायमूर्ति वेंकटचलैया आयोग (वर्ष 2002) ने सामाजिक न्याय के संवैधानिक दायित्वों को पूर्ण करने के लिए न्यायिक विविधता की आवश्यकता पर जोर दिया।
  3. वैधता और सार्वजनिक विश्वास को बढ़ाता है: भारत की विविधता को प्रतिबिंबित करने वाली न्यायपालिका नागरिकों के विश्वास और न्याय प्रणाली की कथित निष्पक्षता को बढ़ाती है।
    • सबरीमाला मामले (वर्ष 2018) में एक महिला न्यायाधीश (न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा) को शामिल करने से एक अलग दृष्टिकोण सामने आया, जिसने लैंगिक विविधता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  4. प्रणालीगत पूर्वाग्रह को कम करता है: एक विविधतापूर्ण पीठ विभिन्न दृष्टिकोण लाती है, जिससे अचेतन पूर्वाग्रह को कम करने और निर्णयों को अधिक संतुलित बनाने में मदद मिलती है। 
    • ‘लॉ सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के 90% से अधिक न्यायाधीश उच्च जातियों या कुलीन पृष्ठभूमि से संबंधित हैं, जिससे अभिजात्यवाद की धारणा बनती है।
  5. न्याय की गुणवत्ता में सुधार: विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए न्यायाधीश सामाजिक वास्तविकताओं की अधिक व्यापक समझ में योगदान देते हैं, जिससे निर्णयों में गहराई और सहानुभूति में सुधार होता है।
  6. लोकतंत्र को मजबूत बनाता है: एक विविध न्यायपालिका समावेशी शासन और अधिक उत्तरदायी लोकतांत्रिक प्रणाली में योगदान देती है।
    • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग: न्यायिक समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत सुधारों का आग्रह किया।
  7. वंचित समुदायों का सशक्तीकरण: शीर्ष स्तर पर प्रतिनिधित्व सशक्तीकरण के प्रतीक के रूप में कार्य करता है और कानूनी तथा सार्वजनिक जीवन में भागीदारी को प्रेरित करता है।
    • भारतीय विधि आयोग (214वीं रिपोर्ट, वर्ष 2008): उच्च न्यायपालिका में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार पर जोर दिया।
  8. वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास: अंतरराष्ट्रीय रुझानों को दर्शाता है, जहाँ न्यायालयों में विविधता न्यायिक प्रभावशीलता और समानता से जुड़ी हुई है।
    • न्यायिक सेवा आयोग (दक्षिण अफ्रीका) न्यायिक नियुक्तियों में नृजातीय और लैंगिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।

संबंधित प्रश्न

प्रश्न. विविधता, समानता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायपालिका में वंचित समुदायों को अधिक प्रतिनिधित्व की वांछनीयता पर चर्चा कीजिए। 

(150 शब्द, 10 अंक)

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