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जीआई टैग प्राप्त ओडिशा के 7 उत्पाद (7 Odisha products that have bagged GI tags)

Samsul Ansari January 08, 2024 05:49 260 0

संदर्भ

ओडिशा के सात उत्पादों, जिनमें लाल बुनकर चींटियों से बनी सिमिलिपाल काई चटनी से लेकर कढ़ाईदार कपडगंडा शॉल तक शामिल हैं, ने राज्य के लिए उनकी विशिष्टता की मान्यता में प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त किया है।

संबंधित तथ्य

भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त करने वाले ओडिशा के सात उत्पाद

  • कपडगंडा शॉल (Kapdaganda shawl)

  • संबंधित क्षेत्र एवं समुदाय: ओडिशा के रायगढ़ा और कालाहांडी जिलों की नियमगिरि पहाड़ियों में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTGs) डोंगरिया कोंड जनजाति की महिलाओं द्वारा बुना और कढ़ाई किया गया यह शॉल डोंगरिया कोंड की समृद्ध आदिवासी विरासत को दर्शाता है।
  • बनावट की विधि
    • इस शॉल में एक श्वेताभ मोटे कपड़े पर लाल, पीले और हरे रंग के धागों से कढ़ाई की जाती है, जिसमें प्रत्येक रंग का अपना महत्त्व होता है। 
      • हरा रंग, पहाड़ों और पहाड़ियों का प्रतीक है। 
      • पीला रंग, शांति और खुशी का प्रतीक है।
      • लाल रंग, रक्त का प्रतीक है।
    • शॉल में ज्यादातर रेखाएँ और त्रिभुज होते हैं जो समुदाय के लिए पहाड़ों के महत्त्व को दर्शाते हैं। 
    • शॉल को पुरुष और महिलाएँ दोनों धारण करते हैं और डोंगरिया इसे अपने परिवार के सदस्यों को प्यार और स्नेह के प्रतीक के रूप में उपहार में देते हैं।
  • लांजिया सौरा चित्रकला (पेंटिंग) (Lanjia Saura Painting)

  • सबसे पुरानी जनजातीय कला रूपों में से एक इस पेंटिंग को इडिटल के नाम से भी जाना जाता है। 
  • संबंधित समुदाय एवं क्षेत्र: यह कला लांजिया सौरा समुदाय से संबंधित है जो एक PVTG है 
    • यह समुदाय मुख्य रूप से ओडिशा के रायगढ़ा जिले में निवास करता है। 
  • विशेषता 
    • ये कलाकृतियाँ अपनी सुंदरता, परंपरागत छवि तथा रूपांकन के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • ये पेंटिंग घरों की मिट्टी की दीवारों पर चित्रित बाह्य भित्तिचित्रों के रूप में पाई जाती हैं। 
  • लाल-महरून पृष्ठभूमि पर सफेद पेंटिंग बनाई जाती है।
  • ऐसा माना जाता है कि लांजिया सौरा अपने देवताओं और पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने और अपने समुदाय की भलाई के लिए अपनी दीवारों को इडिटल कलाकृतियों से रंगते हैं। 
  • प्रकृति के प्रति आदिम जनजातियों के प्रेम और स्नेह को दर्शाते हुए, उनमें आदिवासी मानव, पेड़, जानवर, पक्षी, सूर्य और चंद्रमा जैसे विषय शामिल होते हैं।

3. कोरापुट काला जीरा चावल (Koraput Kala Jeera Rice)

  • यह काले रंग के चावल की किस्म है जिसे ‘चावल का राजकुमार’ भी कहा जाता है,  जो अपनी सुगंध, स्वाद, बनावट और पोषण मूल्य के लिए प्रसिद्ध है। 
  • संबंधित क्षेत्र एवं समुदाय: कोरापुट क्षेत्र के आदिवासी किसानों ने लगभग 1,000 वर्षों से चावल की किस्म को संरक्षित रखा है। 
  • विशेषताएँ
    • इस चावल के दाने जीरे के समान होते हैं इसलिए इसे ‘काला जीरा’ भी कहा जाता है। 
    • इसका सेवन हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है और शरीर में चयापचय में सुधार करता है।
    • कोरापुट काला जीरा चावल के किसान और उत्पादक खेती में पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं का पालन करते आए हैं।

4. सिमिलीपाल काई चटनी (Similipal Kai chutney)

  • रेड वीवर चींटियों से बनी चटनी ओडिशा के मयूरभंज जिले के आदिवासियों का पारंपरिक व्यंजन है। 
  • संबंधित क्षेत्र: चींटियाँ मयूरभंज के जंगलों में पाई जाती हैं, जिनमें सिमिलिपाल के जंगल भी शामिल हैं जो एशिया का दूसरा सबसे बड़ा जीवमंडल है। 
  • औषधीय और पोषण मूल्य से भरपूर चटनी प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन B-12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम आदि पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत मानी जाती है।

5. नयागढ़ कांटेईमुंडी बैंगन (Nayagarh Kantei Mundi Brinjal)

  • नयागढ़ कांटेईमुंडी बैंगन तनों और संपूर्ण पौधे पर कांटों के लिए जाना जाता है।
  •  इसके हरे और गोल फलों में अन्य जीनोटाइप की तुलना में अधिक बीज होते हैं। 
  • यह अपने अनूठे स्वाद और अपेक्षाकृत कम समय में पकने के लिए प्रसिद्ध है। 
  • पौधे प्रमुख कीटों के प्रति प्रतिरोधी हैं और इन्हें न्यूनतम कीटनाशकों के साथ उगाया जा सकता है।
  • ऐतिहासिक अभिलेखों से यह भी पता चलता है कि स्थानीय लोगों को यह बैंगन पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त हुआ था। 

6. ओडिशा खजूरी गुड़ (Odisha Khajuri Guda)

  • संबंधित क्षेत्र: ओडिशा का ‘खजुरी गुड़ा’ खजूर के पेड़ों से निकाला गया एक प्राकृतिक स्वीटनर है और इसकी उत्पत्ति गजपति जिले से हुई है। 
  • परंपरागत रूप से इस गुड़ को ‘पाटली गुड़’ नामक समलम्बाकार रूप में तैयार किया जाता है और यह प्रकृति से जैविक होता है। यह गहरे भूरे रंग का होता है और इसका स्वाद अनोखा होता है।

7. ढेंकनाल मगजी (Dhenkanal Magji)

  • ढेंकनाल मगजी एक प्रकार की मिठाई है जो भैंस के दूध के पनीर से बनाई जाती है, जो दिखने में स्वाद, सुगंध, आकार और आकृति की दृष्टि से विशिष्ट विशेषताओं वाली होती है।
  • संबंधित क्षेत्र: गोंदिया ब्लॉक के मंदार-सादंगी क्षेत्र को मीठे पदार्थ की उत्पत्ति का केंद्र माना जाता है, जो अब पूरे जिले में फैल गया है।
  •  इसमें अद्वितीय पोषण मूल्य भी हैं जो इसे अन्य पनीर-आधारित मिठाइयों से अलग करते हैं।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: कहा जाता है कि ब्रिटिश काल के दौरान हजारों लोग पशुपालन, विशेषकर भैंस पालन के माध्यम से अपनी आजीविका कमा रहे थे। यह क्षेत्र भैंस के दूध उत्पादन का आंतरिक क्षेत्र था और दूध एवं दही के बाद पनीर का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक था।

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