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भारत की विदेश नीति की चुनौतियों एवं अवसरों पर एक नजर

Lokesh Pal June 18, 2024 04:59 11738 0

संदर्भ

भारत की विदेश नीति एक दिलचस्प मोड़ पर है। विशेषज्ञों के अनुसार, 10 वर्षों में पहली बार भारत में गठबंधन सरकार बनने से भारत की विदेश नीति की चुनौतियों का सामना करने में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।

गठबंधन सरकार के सामने विदेश नीतियों को लागू करने की चुनौतियाँ

  • कार्यान्वयन: एक मजबूत नेता, अटूट राजनीतिक समर्थन के साथ, एक कमजोर गठबंधन वाली सरकार की तुलना में बेहतर विदेश नीति परिणामों को प्रभावित कर सकता है। 
  • निर्भरता: आम तौर पर गठबंधन सरकारें प्रतिस्पर्द्धी हितों और गठबंधन की गतिशीलता के कारण मजबूत विदेश नीति का विकल्प चुनने के लिए संघर्ष करती हैं, जिससे सरकार को प्रमुख विदेश नीति पहलों की शुरुआत के लिए समयसीमा सीमित हो जाती है। अर्थात् गठबंधन सरकार को विदेश नीति बनाने में सहयोगी दलों की सहमति और असहमति का सामना करना पड़ता है।  
  • बातचीत: यह भी माना जाता है कि एक दलीय सरकार गठबंधन सरकार की तुलना में विदेशी समकक्षों के साथ बेहतर बातचीत कर सकती है या किसी बाहरी दबाव का अधिक प्रभावी ढंग से सामना कर सकती है।

संबंधित तथ्य 

  • नीतियों की निरंतरता: विदेश मंत्रालय में शीर्ष पर कोई बदलाव न होने से व्यापक निरंतरता का संकेत मिलता है। हालाँकि, बदलती वैश्विक स्थिति और भारतीय रणनीतिक अनिवार्यताओं के आधार पर, विशिष्ट क्षेत्रों के लिए एजेंडे का कुछ अंशांकन और पुनर्निर्धारण होगा।
  • G-7 शिखर सम्मेलन में अतिथि: भारत 50वें G- 7 शिखर सम्मेलन में अतिथि देश रहा है, जो इसके बढ़ते वैश्विक कद और एक प्रमुख आर्थिक एवं भू-राजनीतिक अभिनेता के रूप में इसकी भूमिका की मान्यता को दर्शाता है। 

पड़ोसियों के साथ संबंध

  • पड़ोसियों को प्राथमिकता- शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रण: दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देता है। परिणामस्वरूप भारतीय प्रधानमंत्री के तीसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष दक्षिण एशियाई नेताओं ने भाग लिया, जो ‘पड़ोसी पहले’ नीति के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • नई सरकार के शपथ ग्रहण में बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। हालाँकि, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्याँमार को आमंत्रण नहीं भेजा गया था। 
    • मालदीव के राष्ट्रपति की यात्रा, जो ‘इंडिया आउट’ के मुद्दे पर सत्ता में आए, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण थी।
  • इस बार, किसी भी पड़ोसी नेता के साथ कोई ठोस द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई।
    • इससे पहले वर्ष 2014 के शपथ ग्रहण समारोह में भारत ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सहित SAARC देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था।
  • महत्त्व: भारत की मजबूत शक्ति इसकी संस्कृति, लोगों और भूगोल में निहित हैं। यदि भारत एक वैश्विक महा शक्ति  के रूप में उभरना चाहता है, तो उसे ‘पड़ोसी पहले’ नीति या ‘एक्ट ईस्ट‘ नीतियों का अनुकरण करना चाहिए।
  • आवश्यक कार्य: कोई भी कूटनीति तभी दीर्घकालिक लाभ दे सकती है, जब उसे अपनी राष्ट्रीय संस्कृति और हितों का समर्थन प्राप्त हो। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी कई कमियों में सुधार करते हुए उन्हें अपनी शक्ति में बदल दिया है। उप-राष्ट्रीय राज्यों के साथ गहन जुड़ाव में अभी भी बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है।
    • भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ अपनी कूटनीति में लगातार सुधार करते रहना होगा और पारस्परिक आदान-प्रदान पर जोर दिए बिना एकतरफा उदारता दिखानी होगी।
    • भारत के कई पड़ोसी देश संयमित और संवेदनशील भारतीय विदेश नीति की उम्मीद कर रहे हैं।

पड़ोसी देशों के साथ संबंध

  • पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध: वर्ष 2014 तथा 2015 में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव आया, जिसके बाद वर्ष 2016 में पठानकोट और उरी में हुए आतंकवादी हमलों ने भारत पकिस्तान संबंध को बुरी तरह प्रभावित किया।
    • वर्ष 2019 में, पुलवामा और बालाकोट हमलों ने भारत में राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा दिया। परिणामस्वरूप भारत-पाकिस्तान संबंध निम्नतम स्तर पर पहुँच गए हैं।  
    • अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को लेकर हुए संवैधानिक परिवर्तनों ने दोनों देशों के राजनयिक संबंध को प्रभावित किया।
    • चुनौतीपूर्ण आंतरिक स्थिति: वर्तमान में, पाकिस्तान आर्थिक अस्थिरता में फँसा हुआ है, जिससे किसी भी शांति वार्ता का होना मुश्किल हो गया है। इसके अलावा, यह सवाल भी हमेशा बना रहता है कि किसके साथ बातचीत की जाए- निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व के साथ या सेना के साथ।
      • यह सर्वविदित है कि भारत के प्रति पाकिस्तान की नीति उसकी सेना द्वारा तैयार की जाती है, जिसके कारण कुछ विश्लेषक सेना के साथ सीधी बातचीत की वकालत करते हैं।
    • भारत का रुख: भारत का रुख स्पष्ट रहा है कि किसी भी वार्ता के शुरू होने से पहले पाकिस्तान को आतंकवाद का त्याग करना होगा।
  • अफगानिस्तान के साथ निम्न-स्तरीय जुड़ाव: अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद से कोई राजनयिक संबंध नहीं है।
    • भारत का रुख: मानवीय सहायता के लिए नियुक्त तकनीकी टीम के माध्यम से निम्न-स्तरीय सहभागिता बनी हुई है, लेकिन उच्च स्तरीय सहभागिता को फिलहाल खारिज कर दिया गया है।
  • म्याँमार में चुनौतीपूर्ण परिदृश्य: चुनौती यह है कि सैन्य सरकार के साथ कैसे तालमेल बिठाया जाए, जो आंतरिक रूप से सशस्त्र प्रतिरोध में व्यस्त रही है।
    • अक्टूबर 2023 में संघर्ष शुरू होने के बाद से म्याँमार की सरकारी सेना रक्षात्मक स्थिति में है।
    • भारत का रुख: सरकार के गिरने की संभावना को देखते हुए, भारत को विपक्षी समूहों के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए।
  • मालदीव के साथ प्रगतिशील संबंध: मालदीव सरकार के अनुरोध के अनुसार, भारत द्वारा मालदीव में भारतीय हवाई संपत्तियों की देखरेख करने वाले सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षित तकनीकी कर्मियों से बदलने के बाद, दोनों देश बातचीत के लिए तैयार दिखाई दिए हैं।
    • हाल ही में भारत ने मालदीव को 50 मिलियन डॉलर की बजटीय सहायता दी।
  • बांग्लादेश के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंध: ‘घुसपैठियों’ के बारे में अभियान संबंधी बयानबाजी एक चिंताजनक मुद्दा है। तीस्ता नदी का जल-बँटवारा एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।
    • सरकार और सत्तारूढ़ दल के सदस्यों का अधिक संयम फायदेमंद होने की संभावना है, क्योंकि दोनों पक्षों का उग्रवाद, कट्टरपंथ और आतंकवाद का मुकाबला करने का एक समान उद्देश्य है।
  • भूटान के साथ सामरिक संबंध: भारत भूटान को उसकी पंचवर्षीय योजना, वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज और गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी परियोजना में सहायता देने के लिए तैयार है।
    • भारत का रुख: यह सहायता जारी रहने की उम्मीद है, खासकर तब जब चीन अपनी शर्तों पर भूटान के साथ सीमा पर बातचीत करने की कोशिश कर रहा है।
  • नेपाल के साथ नाजुक रिश्ते: नेपाल के साथ रिश्ते एक नाजुक चुनौती पेश करते हैं। नेपाल में चीन की मजबूत राजनीतिक पकड़ है और ऐसा माना जाता है कि नेपाली सरकार भारत के खिलाफ चीन कार्ड का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है। 
    • भारत का रुख: भारत को नेपाली लोगों का विश्वास दोबारा हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, जिसे वर्ष 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद झटका लगा था।
  • चीन की चुनौती: सीमा गतिरोध अपने पाँचवें वर्ष में प्रवेश करने वाला है और नई सरकार के समक्ष कार्य कठिन तथा पेचीदा है।
    • भारत का कहना है कि जब तक सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक सब कुछ ठीक नहीं हो सकता।
    • उम्मीदें: भारत पूर्ण विघटन और फिर तनाव कम करना चाहता है और दोनों पक्षों से भारी सैनिकों और हथियारों को दूर ले जाने में बहुत समय लगेगा।
    • उच्च स्तरीय व्यस्तताओं, विशेष रूप से जुलाई के पहले सप्ताह में SCO शिखर सम्मेलन के मौके पर कजाखस्तान में चीनी राष्ट्रपति के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की बैठक, अनलॉक की संभावना हो सकती है।
  • श्रीलंका के साथ सद्भावना संबंध: द्वीप राष्ट्र के वित्तीय संकट से निपटने में मदद करने के बाद श्रीलंका की सड़कों पर भारत द्वारा अर्जित सद्भावना कच्चातिवू द्वीप मुद्दे के कारण खतरे में पड़ गई। 
    • वित्तीय सहायता के साथ-साथ निवेश के माध्यम से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को मजबूत करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य होगा।
  • सेशेल्स और मॉरीशस के साथ संबंध: इन देशों में बंदरगाहों के बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने में मदद करने की भारत की योजना उसकी समुद्री कूटनीति और सुरक्षा प्रयास का हिस्सा है।
    • मॉरीशस में अगलेगा द्वीप पर कुछ सफलता प्राप्त हुई है, लेकिन सेशेल्स में असम्पशन द्वीप को विकसित करना एक चुनौती बन गया है।

पश्चिमी देशों के साथ संबंध

  • प्रभावी संबंध: मौजूदा सरकार का पश्चिमी देशों के साथ जुड़ाव पिछली कई सरकारों की तुलना में अत्यधिक लेन-देन वाला रहा है। इसने अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ प्रभावी रणनीतिक संबंध भी विकसित किए हैं।
  • भारत-अमेरिका साझेदारी: भारत-अमेरिकी साझेदारी विदेश नीति के एक नए चरण पर है। गौरतलब है कि भारत को अमेरिका से अधिक विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है।
    • भारत की महत्त्वाकांक्षा सेमीकंडक्टर उद्योग में आत्मनिर्भर बनने की है। अमेरिका के साथ प्रगाढ़ होती साझेदारी का मतलब प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अधिक अमेरिकी निवेश को आकर्षित करना है।
      • अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भारत यात्रा, भारत-अमेरिका कूटनीतिक संबंधों की मजबूती को आगे बढ़ाएगी।
  • यूरोपीय देशों के साथ संबंध: फ्राँस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों के साथ आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों में सुधार हुआ है और ब्रिटेन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने का इच्छुक रहा है।
    • भारत और यूरोपीय संघ भी अपनी अर्थव्यवस्थाओं के पारस्परिक लाभ के लिए FTA समझौते करने के इच्छुक रहे हैं।
  • कनाडा के साथ संबंधों के बारे में चिंता: कनाडा ने भारत पर एक खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या में हाथ होने का आरोप लगाया है, विश्लेषकों द्वारा वर्ष 2025 के कनाडाई चुनावों तक राजनीतिक संबंध तनावपूर्ण बने रहने की संभावना जताई गई है।
    • हालाँकि, आर्थिक संबंधों और कनाडा में छात्रों के आगमन पर कोई असर नहीं पड़ा है।
  • अपेक्षाएँ
    • पश्चिमी देश: पश्चिमी देश भारत के साथ कम प्रभावी मुद्दों के बजाय भारत के साथ जुड़ने और व्यापार करने के लिए अधिक तत्पर रहते हैं। 
    • भारत: विदेश नीति का आदर्श परिदृश्य भारतीय हितों को सुरक्षित करना और पश्चिमी पूँजी एवं प्रौद्योगिकी से लाभ उठाना होगा। 

रूस के साथ संबंध

  • यूक्रेन प्रकरण: यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के कारण रूस के साथ भारत के संबंधों को एक अलग नजरिए से देखा जा रहा है। भारत रूस की रक्षा सामग्री और प्रौद्योगिकी तथा सस्ते तेल की उपलब्धता पर निर्भर है।
    • रूस, भारत की ऊर्जा का नया स्रोत है। INSTC या चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मैरीटाइम कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं में रूस के साथ साझेदारी को बढ़ाने की अपार संभावनाएँ  मौजूद हैं।
    • पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर रूस आर्थिक रूप से कमजोर नहीं हुआ है।
  • अग्रिम कार्रवाई: भारत के अलावा, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मैक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात यूक्रेन के लिए शांति सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों में से थे, लेकिन उन्होंने अंतिम विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए। 
    • उम्मीद है कि भारत इस मुद्दे को बातचीत और कूटनीति के जरिए सुलझाने पर  जोर देगा। 

लैटिन अमेरिकी देशों के साथ संबंध

  • यह क्षेत्र भारत के लिए अपनी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं जैसे कि UNSC, NSG की स्थायी सदस्यता और जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, व्यापार आदि जैसी विभिन्न अन्य वार्ताओं को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

अफ्रीका के साथ संबंध

  • इस क्षेत्र के महत्त्व को समझते हुए भारत ने अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल होने में मदद की। भारत अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। भारत अफ्रीकी देशों के विकास के लिए अनुदान और सहायता भी देता है।

मध्य पूर्व में उच्च जोखिम

  • मध्य पूर्व एक राजनीतिक शब्द है, जो राजनीतिक और ऐतिहासिक संदर्भ के आधार पर कई बार बदल चुका है, जबकि पश्चिम एशिया एक भौगोलिक शब्द है, जिसमें अधिक स्थिरता है।

  • सुसंगत एवं प्रगतिशील संबंध: पिछले 10 वर्षों में भारत ने सऊदी अरब से लेकर इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात से लेकर ईरान, कतर से लेकर मिस्र तक इस क्षेत्र के देशों के साथ भारत ने अपने संबंधों पर जोर दिया है।
    • भारत मध्य पूर्व तथा अन्य स्थानों पर सुरक्षा और राजनीतिक संतुलन सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना जारी रखेगा।
  • दायरा: ऊर्जा सुरक्षा, निवेश और इस क्षेत्र में 9 मिलियन प्रवासी भारतीय भारत के लिए प्रमुख रणनीतिक कारक हैं।
  • महत्त्व: मध्य पूर्व भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार बना रहा, जो आर्थिक लाभ और भू-रणनीतिक लाभांश दोनों प्रदान करता है।
    • वर्तमान में लाल सागर पर हमले और स्वेज नहर को अवरुद्ध करने से भारत के व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ा है। निस्संदेह, मध्य पूर्व में शांति भारत के व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए महत्त्वपूर्ण है।

विभिन्न समूहों के साथ संबंध

  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC), I2U2, अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण पारगमन गलियारा (International North South Transit Corridor- INSTC): इन सभी पहलों को रणनीतिक रूप से गेम चेंजर माना जाता है, लेकिन इजरायल-हमास संघर्ष ने अनिश्चितता उत्पन्न कर दी है।
    • IMEC बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य से होने वाले व्यापार के लिए एक व्यवहार्य विकल्प है, जो समुद्री यातायात के लिए एक प्रमुख अवरोध है और भारत IMEC गलियारे का तेजी से विकास सुनिश्चित करेगा।
  • इंडो-पैसिफिक सहयोग को बढ़ावा: इंडो-पैसिफिक साझेदारी पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही भारत के इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI) पर भी अधिक ध्यान दिया जा रहा है। वर्तमान में 12 से अधिक देश IPOI में भागीदार हैं। 
    • यदि भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विजन को सफल बनाना है, तो IPOI को कुछ विश्वसनीय गति प्राप्त करनी होगी। भारत, आसियान (ASEAN) पर मुख्य फोकस को बरकरार रखते हुए IPEF और अमेरिका के नेतृत्व वाले हिंद-प्रशांत कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहेगा।
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान): भारत के स्थलीय और समुद्री पड़ोसी, आसियान तथा जापान, कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ नवीनीकृत साझेदारी से रणनीतिक नेतृत्व में दीर्घकालिक मजबूती मिलेगी। 
    • भारत को अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता सहित व्यापक भू-राजनीतिक घटनाक्रमों पर गहराई से नजर रखनी होगी और उन पर कार्रवाई करनी होगी।
  • एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP): वर्ष 2024 में AEP की दसवीं वर्षगाँठ है। 
    • वर्ष 2014 में लुक ईस्ट पॉलिसी (LEP) की जगह लेने वाली AEP ने भारत के पूर्व के साथ जुड़ाव की नींव रखी है।
    • इसके अगले चरण के लिए, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के शुरुआती महीनों में एक नया AEP एजेंडा की उम्मीद जताई जा रही है।
    • एक्ट ईस्ट पॉलिसी का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के देशों के साथ भारत के आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना है।
  • बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक): बिम्सटेक देशों में तीव्र विकास की संभावना जताई जा रही है। इसके सदस्य देश आपसी संबंधों को और प्रभावी बनाने हेतु तत्पर हैं। 
    • छठा बिम्सटेक शिखर सम्मेलन सितंबर 2024 में बैंकॉक में होना है। बिम्सटेक में तीन नए सदस्य (मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर) शामिल होने की संभावना है। 
  • अन्य
    • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC): SAARC को धीरे-धीरे पुनः सक्रिय करने की आवश्यकता है, बशर्ते भारत-पाकिस्तान संबंध सामान्य हो जाएँ।
    • ब्रिक्स या IBSA: वैश्विक दक्षिण के साथ कार्य करते हुए, भारत ब्रिक्स या IBSA के माध्यम से विकासशील देशों के हितों को आगे बढ़ाता रहता है।
    • यदि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में प्रवेश सुनिश्चित कर लेता है, तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी

  • मुक्त व्यापार समझौता (Free trade Agreement- FTA): निर्यात बढ़ाने, FDI आकर्षित करने और मूल्यवान प्रौद्योगिकियों को सुरक्षित करने के लिए भारत के लिए FTA महत्त्वपूर्ण हैं। भारत नए FTA जारी रखेगा और UK, EU, बांग्लादेश आदि के साथ एक FTA पूरा करना चाहेगा। 

  • मुक्त व्यापार समझौता या संधि, अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, सहयोगी राज्यों के बीच मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के लिए किया गया एक समझौता है।

    • इसके अलावा, आसियान जैसे FTA की समीक्षा पूरी होने की संभावना है।
    • भारत पड़ोसी देशों और क्षेत्रों के साथ तेजी से एकीकृत हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, इंडोनेशिया, जापान, केन्या, कोरिया, मॉरीशस, ओमान, तंजानिया, सिंगापुर आदि के साथ द्विपक्षीय साझेदारी जारी रहने की संभावना है।
    • भारत फिलीपींस के साथ अधिक द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी और सेवा आधारित FTA का विकल्प चुन सकता है।
    • भारत-यूएई CEPA जैसे मध्य पूर्व के देशों के साथ द्विपक्षीय FTA और I2U2 या IMEC जैसी पहल पश्चिमी मोर्चे पर भारत के रणनीतिक हितों को सुरक्षित करने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।
    • अब देश डिजिटल अर्थव्यवस्था और ई-कॉमर्स के क्षेत्रों में व्यापार समझौतों में अधिक रुचि रखते हैं।
  • रूस और चीन ऐसे देश हैं, जिनके साथ भारत का कोई FTA नहीं है, जबकि भारत सुरक्षा और आर्थिक कारणों से उन पर बहुत अधिक निर्भर है।

निजी क्षेत्र के साथ सहयोग

  • अनेक उद्देश्यों को सुनिश्चित करना: भारत के विदेश मंत्रालय को भारत के रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों को सुनिश्चित करते हुए भारत के संपन्न निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करना होगा।
  • क्षेत्र: आने वाले दिनों में भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी, अंतरिक्ष और समुद्र के नीचे अन्वेषण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग आदि के क्षेत्रों में अधिक-से-अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी सामने आने की संभावना है।

भारत के विदेशी संबंधों का महत्त्व

  • लक्ष्य प्राप्त करने के लिए: हालाँकि भारत ने अगले 25 वर्षों में विकसित भारत का लक्ष्य रखा है, वैश्विक साझेदारी को गहन करने से 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने में मदद मिलेगी, जो वर्ष 2047 के लिए आर्थिक नींव को और मजबूत करेगी। 
  • बेहतर वैश्विक शासन के लिए: एक बहुध्रुवीय दुनिया में, रणनीतिक साझेदारी के नेटवर्क के साथ भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, बेहतर वैश्विक शासन की राह को सुगम बनाएगी क्योंकि भारत को दुनिया की जरूरत है, और दुनिया को भारत की जरूरत है।
  • महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाना: सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्तर पर पाँचवीं सबसे बड़ी GDP के रूप में, भारत की प्राथमिकता तीव्र आर्थिक विकास है। क्षमता एवं योग्यता में वृद्धि क्षेत्रीय एवं वैश्विक मामलों में अपनी उचित भूमिका निभाने की इच्छा के साथ जुड़ी हुई है।
  • समकालीन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना: