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तमिलनाडु में लौह युग की शुरुआत संबंधी साक्ष्य

Lokesh Pal January 27, 2025 03:38 152 0

संदर्भ

हाल के अध्ययनों ने भारत में लौह युग की समयरेखा को पुनर्निधारण करने पर विवश किया है, जिससे पता चला है कि तमिलनाडु में लोहे का उपयोग 3345 ईसा पूर्व से ही शुरू हो गया था, जिससे यह विश्व स्तर पर लोहे का सबसे प्राचीन ज्ञात उपयोग बन गया।

संबंधित तथ्य

  • दशकों तक, लौह युग की उत्पत्ति काफी हद तक मेसोपोटामिया, अनातोलिया एवं सिंधु घाटी जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित थी, जिसकी समय-सीमा प्रायः दूसरी तथा पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व के बीच रखी गई थी।

एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (AMS) एवं ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनसेंस (OSL)

  • ये दोनों डेटिंग तकनीकें हैं जिनका उपयोग सामग्रियों की आयु निर्धारित करने के लिए पुरातत्त्व एवं भू-विज्ञान में किया जाता है। 
  • कार्य सिद्धांत
    • AMS मुख्य रूप से अपेक्षाकृत हाल की घटनाओं की तारीख तक कार्बनिक पदार्थों की रेडियोधर्मी कार्बन-14 सामग्री का विश्लेषण करता है।
    • OSL खनिज कणों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को मापकर, सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आए अवसादी निक्षेपों की तिथि निर्धारित करता है, जिससे रेत एवं मिट्टी जैसी अधिक पुरानी सामग्रियों की तिथि निर्धारित करना संभव हो जाता है।

मुख्य निष्कर्ष

  • अध्ययन रिपोर्ट: ‘लोहे की प्राचीनता: तमिलनाडु से हालिया रेडियोमेट्रिक तिथियाँ’ (Antiquity of Iron: Recent Radiometric Dates from Tamil Nadu)। 
  • वैज्ञानिक तरीके: ये निष्कर्ष पुरातात्त्विक स्थलों के नमूनों पर किए गए एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (AMS) एवं ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनसेंस (OSL) विश्लेषण द्वारा समर्थित हैं।
  • डेटिंग एवं स्थल
    • शिवगलाई (Sivagalai): 2953-3345 ईसा पूर्व के लोहे के साक्ष्य, धान के नमूने की तिथि 1155 ईसा पूर्व है।
    • मयिलाडुंपराई (Mayiladumparai): लौह कलाकृतियाँ 2172 ईसा पूर्व की हैं, जो इस क्षेत्र के लिए पिछले मानदंडों से अधिक हैं।
    • किलनामंडी (Kilnamandi): 1692 ईसा पूर्व का एक ताबूतनुमा शवदाह स्थल, जो तमिलनाडु में अपनी तरह का सबसे पहला शवदाह स्थल है।
  • तकनीकी प्रगति
    • लौह प्रगलन: कोडुमानल, चेट्टीपलायम एवं पेरुंगलुर में उन्नत भट्टियाँ पाई गईं, कोडुमनाल की भट्टियाँ 1,300°C तक पहुँच गईं, जो स्पंज आयरन उत्पादन के लिए पर्याप्त थीं।
    • परिकल्पना: उत्तरी भारत का ताम्र युग और दक्षिणी भारत का लौह युग संभवतः दक्षिण में ताँबे की कमी के कारण समकालिक रहे होंगे।

  • इतिहास का पुनर्लेखन: तमिलनाडु में मिले निष्कर्ष पारंपरिक रूप से स्वीकृत लौह युग की समयरेखा को चुनौती देते हैं, जिसे पहले हित्ती साम्राज्य (Hittite Empire) (1300 ईसा पूर्व) से जोड़ा जाता था।
    • लोहे का कार्य सबसे पहले तुर्किए में शुरू हुआ और फिर दूसरे यूरोपीय देशों में फैल गया।

भारत में लौह युग के चरण

  • प्रारंभिक लौह युग (1500 ईसा पूर्व – 1000 ईसा पूर्व)
    • कृषि एवं शिकार के लिए लोहे के औजारों का परिचय (जैसे- हल्लूर, कर्नाटक)।
    • उत्तर वैदिक काल (अथर्ववेद जैसे ग्रंथ) से भी संबंधित है।
    • प्रमुख स्थल: अतरंजीखेड़ा (उत्तर प्रदेश), मल्हार (छत्तीसगढ़), आदि।
  • मध्य लौह युग (1000 ईसा पूर्व – 600 ईसा पूर्व)
    • लौह प्रौद्योगिकी एवं शहरीकरण का विस्तार।
    • गंगा-यमुना के मैदानी इलाकों में चित्रित धूसर मृदभाँड (PGW) संस्कृति का उदय।
    • कौशांबी जैसी किलेबंद बस्तियाँ एवं जनपदों का उदय।
    • प्रमुख स्थल: कौशांबी (उत्तर प्रदेश), अतरंजीखेड़ा (उत्तर प्रदेश)
  • उत्तर लौह युग (600 ईसा पूर्व – 200 ईसा पूर्व)
    • महाजनपदों एवं मौर्य साम्राज्य का गठन।
    • बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म का प्रसार; अशोक के नैतिक आदेश
    • प्रमुख शहरी केंद्र: पाटलिपुत्र (पटना), उज्जैन।

लौह युग की प्रमुख विशेषताएँ

  • लौह प्रौद्योगिकी: औजारों एवं हथियारों के लिए उन्नत लौह प्रगलन तकनीक।
  • कृषि क्रांति: लोहे के हल एवं दराँती के उपयोग से अधिशेष खाद्य उत्पादन हुआ।
  • शहरीकरण: जल निकासी प्रणालियों और सार्वजनिक भवनों के साथ किलेबंद शहरों का विकास।
  • राजनीतिक संरचनाएँ: जनपदों, महाजनपदों का उदय और मौर्य साम्राज्य का प्रभुत्व।
  • सांस्कृतिक विकास: उपनिषद जैसे ग्रंथों की रचना तथा बौद्ध एवं जैन दर्शन व कला का उदय।

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