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आधार-आधारित फेस ऑथेंटिकेशन (FaceAuth)

Lokesh Pal July 09, 2025 04:00 17 0

संदर्भ 

हिमाचल प्रदेश सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत राशन वितरण के लिए आधार-आधारित फेस ऑथेंटिकेशन (FaceAuth) को लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है, जो पहले से जारी OTP एवं बायोमेट्रिक आधारित प्रणाली की जगह ले रहा है।

OTP-आधारित प्रमाणीकरण एक बार के पासवर्ड का उपयोग करता है, जो व्यक्ति के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर भेजा जाता है।

संबंधित तथ्य

  • पहले, प्रमाणीकरण OTP या बायोमेट्रिक सत्यापन के माध्यम से किया जाता था।
  • इन तरीकों में प्रायः SMS डिलीवरी विफलताओं एवं UIDAI की ओर से बायोमेट्रिक असत्यापन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता था, जिससे असुविधा होती थी।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के बारे में

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) भारत की खाद्य सुरक्षा प्रणाली है, जिसका प्रबंधन उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय करता है, ताकि रियायती दरों पर आवश्यक खाद्यान्नों की पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
  • 1960 के दशक में गंभीर खाद्यान्न की कमी के दौरान PDS को राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त हुआ।
  • प्रारंभ में यह शहरी आबादी को सेवा प्रदान करता था, लेकिन हरित क्रांति के बाद इसका दायरा जनजातीय और आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित हो गया।
  • पिछले कुछ वर्षों में यह भारत के खाद्य सुरक्षा ढाँचे का एक प्रमुख घटक बन गया है, जिसका उद्देश्य घरेलू खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
  • यह मुख्य रूप से गेहूँ, चावल, चीनी और मिट्टी का तेल वितरित करता है, जबकि कुछ राज्य इस सूची में दालें, खाद्य तेल और नमक भी शामिल करते हैं।
  • परिचालन संरचना
    • केंद्र सरकार: भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से खरीद, भंडारण, परिवहन एवं थोक आवंटन का प्रबंधन करती है।
    • राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारें: लाभार्थियों की पहचान करने, राशन कार्ड जारी करने, आपूर्ति वितरित करने एवं उचित मूल्य की दुकानों (FPSs) के प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार हैं।

नई प्रणाली कैसे कार्य करती है?

  • आधार आधारित फेस ऑथेंटिकेशन (FaceAuth) सुविधा उचित मूल्य की दुकान (FPS) के मालिक के स्मार्टफोन पर एक ऐप के माध्यम से मोबाइल कैमरा का उपयोग करती है।
  • यह लाभार्थियों के प्रत्यक्ष चेहरे के प्रमाणीकरण को सक्षम बनाता है, जिससे प्रक्रिया अधिक सुलभ एवं विश्वसनीय हो जाती है।
  • इस प्रणाली का उद्देश्य राशन वितरण को सुव्यवस्थित करना, सत्यापन समय को कम करना एवं प्रमाणीकरण सफलता दर में सुधार करना है।
  • यह PDS के तहत तीव्र, अधिक कुशल सेवा वितरण सुनिश्चित करता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार के लिए उठाए गए कदम

  • डिजिटलीकरण: लाभार्थी डेटा एवं पात्रता रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करने के लिए राशन कार्डों को डिजिटल किया गया है। GPS तकनीक गोदामों से उचित मूल्य की दुकानों (FPSs) तक खाद्यान्न की आवाजाही को ट्रैक करती है, जिससे रिसाव कम होता है।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: FPS पर e-POS डिवाइस अनाज वितरण की वास्तविक समय की निगरानी को सक्षम करते हैं, जिससे सटीकता एवं दक्षता में सुधार होता है।
  • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC): खाद्य सुरक्षा लाभों की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करता है, जिससे लाभार्थियों को देश में कहीं भी सब्सिडी वाले अनाज तक पहुँच मिलती है।
  • सामाजिक ऑडिट: समुदाय द्वारा संचालित ऑडिट पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं एवं सिस्टम को जवाबदेह बनाते हैं।

उदाहरण

  • डिजिटल लाभार्थी रिकॉर्ड: आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं गुजरात जैसे राज्यों ने लाभार्थी सत्यापन तथा पात्रता को कारगर बनाने के लिए राशन कार्डों को डिजिटल कर दिया है।
  • कंप्यूटरीकृत स्टॉक आवंटन: छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु जैसे राज्य खाद्यान्न आवंटन का प्रबंधन करने तथा स्टॉक को कुशलतापूर्वक ट्रैक करने के लिए कंप्यूटरीकृत सिस्टम का उपयोग करते हैं।
  • स्मार्ट कार्ड: तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा ने लाभार्थियों के विवरण को सुरक्षित रूप से संगृहीत करने तथा दोहराव को रोकने के लिए स्मार्ट कार्ड प्रस्तुत किए हैं।

आधार (Aadhar) के बारे में

  • आधार भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India- UIDAI) द्वारा जारी किया गया 12 अंकों की एक विशिष्ट पहचान संख्या है।
    • UIDAI, आधार अधिनियम, 2016 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • आधार में एकत्रित डेटा में जनसांख्यिकी (नाम, लिंग, जन्म तिथि एवं पता) के साथ-साथ बायोमेट्रिक (उँगलियों के निशान, आइरिस स्कैन तथा चेहरे की तस्वीर) शामिल हैं।
  • आधार अधिनियम, 2016 की धारा 7, सरकार को भारत की संचित निधि या राज्य निधि द्वारा वित्तपोषित कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँचने के लिए आधार को अनिवार्य करने की अनुमति देती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, आधार मेटा डेटा को छह महीने से अधिक समय तक संगृहीत नहीं किया जा सकता है।

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