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अनुकूलन कृषि

Lokesh Pal August 21, 2024 06:19 90 0

संदर्भ

चूँकि जलवायु परिवर्तन ने भारत में कृषि को एक अनिश्चित और जोखिम भरा बना दिया है, इसलिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जो फसलों को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला बनाता हो और आय सहायता तथा कृषि घाटे के खिलाफ सुरक्षा जाल प्रदान करता है।

अनुकूलन कृषि के बारे में

अनुकूलन कृषि में अनुकूलन और रचनात्मक तरीके से रसायन मुक्त खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक गुण शामिल होते हैं।

  • इसमें जिम्मेदारी से खाद्य उत्पादन के लिए रणनीतियों और कौशल समूह के व्यापक स्पेक्ट्रम का उपयोग किया जाता है।
  • यह व्यक्तियों द्वारा खाद्य उत्पादन के सभी पहलुओं के साथ अपने स्वयं के स्वस्थ व्यक्तिगत संबंधों को विकसित करने की आवश्यकता को स्वीकार करता है।

जलवायु अनुकूल कृषि के लिए भारत द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम

देश की 42.3% आबादी कृषि क्षेत्र में संलग्न है तथा सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 18.2% है। भारत में जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:-

  • जलवायु अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय पहल (National Initiative on Climate Resilient Agriculture- NICRA): भारत ने वर्ष 2011 में कृषि की जलवायु अनुकूलता बढ़ाने के लिए अपना पहला कार्यक्रम NICRA शुरू किया।
    • इसे प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिए देश भर के 151 गाँवों में लॉन्च किया गया था।

  • जलवायु प्रतिरोधी कृषि पर परियोजना (POCRA): NICRA के सिद्धांतों के आधार पर, महाराष्ट्र ने POCRA लॉन्च किया।
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2018 से 2024 तक के प्रथम चरण में 16 वर्षा आधारित, सूखाग्रस्त, किसान आत्महत्या प्रवण, लवणता प्रभावित जिलों में 1.9 मिलियन किसानों और 2.6 मिलियन हेक्टेयर भूमि की लचीलापन क्षमता को बढ़ाना है।
    • इसका बजट 4,000 करोड़ रुपये है, जिसमें से 70% विश्व बैंक से ऋण के रूप में प्राप्त होगा तथा इसे भारत में सबसे बड़ी जलवायु अनुकूल कृषि परियोजना घोषित किया गया है।
    • भारत सरकार ने POCRA के कार्यान्वयन हेतु एक अलग इकाई की स्थापना की, जो निम्नलिखित विषयों को संबोधित करेगी-
      • जल सुरक्षा से जुड़े हस्तक्षेप।
      • छाया-गृहों में संरक्षित खेती।
      • मूल्य शृंखला को मजबूत करने के लिए रेशम उत्पादन और कृषि व्यवसाय गतिविधियों जैसे कृषि उद्यमों को बढ़ावा देना।
      • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से किसानों को सब्सिडी प्रदान करना।
  • जलवायु परिवर्तन, कृषि तथा खाद्य सुरक्षा पर अनुसंधान कार्यक्रम (CCAFS): इसे जलवायु-स्मार्ट कृषि पर बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप के लिए वर्ष 2010 में बिहार, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में पायलट आधार पर लागू किया गया था।
    • चिंता: हानिकारक शाकनाशियों पर निर्भरता अभी भी बनी हुई है। 
    • आवश्यकता: कैहियर्स एग्रीकल्चर में वर्ष 2018 में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि जलवायु स्मार्ट कृषि को स्थिरता के सिद्धांतों के अनुरूप सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
  • जैविक एवं प्राकृतिक खेती: केंद्र एवं राज्य सरकारों ने निम्नलिखित योजनाएँ क्रियान्वित की हैं:
    • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): इसे जैविक खेती को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था, जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
      • यह केंद्र प्रायोजित योजना (CSS), राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) का एक विस्तारित घटक है।
    • उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लिए ‘मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट’: यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों में अंत से अंत तक जैविक मूल्य शृंखला विकसित करने के लिए सतत् कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMSA) के तहत एक उप-मिशन है।
    • राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन: यह देश भर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2023-2024 में भारत सरकार द्वारा तैयार की गई एक अलग योजना है।
      • NMNF का उद्देश्य कृषि उत्पादकता और आय में वृद्धि करना, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बनाना और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है।
      • यह मिशन 15,000 क्लस्टर विकसित करके 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करेगा।
    • आंध्र प्रदेश सामुदायिक प्रबंधित प्राकृतिक खेती (APCNF): इसमें तीनों मौसमों में विविध फसलें उगाना, फसल अवशेष से मिट्टी को ढँकना, मिट्टी की न्यूनतम जुताई और सिंथेटिक उर्वरकों का उपयोग न करना शामिल है।
      • APCNF भारत में इस तरह का सबसे बड़ा कार्यक्रम है और नामांकित किसानों के मामले में भी यह दुनिया भर में सबसे बड़ा कार्यक्रम है।
    • जैव-इनपुट संसाधन केंद्र: ये केंद्र प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन के तहत स्थापित किए जा रहे हैं, जो किसानों को जैव इनपुट आसानी से उपलब्ध कराते हैं।
      • वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित करने की बात दोहराई गई है। यह प्रमाणीकरण और ब्रांडिंग द्वारा समर्थित, अगले दो वर्षों में प्राकृतिक खेती में 10 मिलियन किसानों को शामिल करने की भी घोषणा करता है।
  • किसान उत्पादक संगठन (FPOs): केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही FPO के गठन को बढ़ावा दे रही हैं। वर्ष 2027-28 तक 10,000 FPO स्थापित करने और बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2020 में 6,865 करोड़ रुपये के बजट के साथ योजना लागू की गई थी।
    • केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने किसान उत्पादक संगठनों पर राष्ट्रीय नीति का मसौदा जून 2024 में सार्वजनिक टिप्पणी के लिए जारी किया है।
    • वर्ष 2023 में, केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय ने सहकारी समितियों के माध्यम से जैविक उत्पादों के विपणन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल कोऑपरेटिव ऑर्गेनिक्स लिमिटेड (NCOL) लॉन्च किया।
    • इसने एक ब्रांड, ‘भारत ऑर्गेनिक्स’ भी लॉन्च किया है तथा इसका लक्ष्य किसानों के साथ 50% तक लाभ साझा करना है।

भारतीय कृषि के समक्ष चुनौतियाँ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि पृथ्वी ‘वैश्विक क्वथन’ (Global Boiling) के युग में प्रवेश कर रही है। पिछले कुछ वर्षों में, अनियमित एवं चरम मौसम की स्थिति के कारण बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान हुआ है।

  • जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 90% जिले जलवायु जोखिम का सामना कर रहे हैं और 54% जिले ‘उच्च’ और ‘बहुत उच्च’ जलवायु जोखिम का सामना कर रहे हैं।
    • योगदान देने वाले कारक
      • न्यूनतम तापमान में वृद्धि
      • सूखे की उच्च आवृत्ति
      • सिंचाई की कम पहुँच
      • चक्रवात

  • बड़े पैमाने पर फसल की हानि: ये हानि अप्रत्याशित और चरम मौसम के कारण होती है।
    • वर्ष 2020 से 2022 के दौरान NABCON द्वारा किए गए नवीनतम बड़े पैमाने के अध्ययन के अनुसार, भारत को प्रत्येक वर्ष लगभग 1.53 ट्रिलियन रुपये (18.5 बिलियन अमरीकी डॉलर) का खाद्यान्न नुकसान होता है।
  • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: भारत के कुल बोए गए क्षेत्र का 55% हिस्सा वर्षा से सिंचित है या बिल्कुल भी सिंचित नहीं है।
    • केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ये वर्षा आधारित क्षेत्र देश की 44% खाद्य आवश्यकता को पूरा करते हैं और 60% पशुधन का भरण-पोषण करते हैं।
    • इसका अर्थ यह है कि देश की खाद्य सुरक्षा का एक बड़ा हिस्सा और 61% किसानों की आजीविका वर्षा और उसकी मात्रा पर निर्भर करती है।
  • जैविक और प्राकृतिक खेती: जैविक और प्राकृतिक खेती को अपनाने में चुनौतियों के कारण इसका प्रसार धीमा रहा है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2023 तक, संयुक्त जैविक क्षेत्र देश के शुद्ध बोए गए क्षेत्र का 4.2% है, जबकि जैविक किसान 146 मिलियन कृषि भूमिधारकों में से 3% हैं।
    • प्रायः किसानों को सूचनाओं की कमी और इनपुट की उपलब्धता के अभाव तथा इसके लिए आवश्यक समय और श्रम के कारण जैविक और जैव-इनपुट तैयार करना कठिन लगता है।
  • बीमा: इसके कार्यान्वयन के पिछले आठ वर्षों में, 568 मिलियन किसानों को नामांकित किया गया है और 232.2 मिलियन किसानों को दावे प्राप्त हुए हैं।
    • भारत में सकल फसल क्षेत्र का लगभग 70% हिस्सा बीमा के अंतर्गत नहीं आता, जिससे यह असुरक्षित रह जाता है।
      • मानदंड: केंद्र सरकार ने राहत प्रदान करने के लिए केवल 12 आपदाओं को अधिसूचित किया है और किसानों को राहत प्रदान की जाती है, जहाँ फसल का नुकसान 33% या उससे अधिक है।
        • जलवायु में बे-मौसम परिवर्तन और लू जैसी आपदाओं को केंद्र के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष के तहत आपदा के रूप में अधिसूचित नहीं किया जाता है।
  • किसान उत्पादक संगठन (FPO): ये किसान 70% सब्जियाँ और 50% से अधिक फल और अनाज का उत्पादन करते हैं, लेकिन लंबी आपूर्ति शृंखला, खराब मूल्य संवर्द्धन और बाजार की कमी के कारण उन्हें अपने उत्पाद के विपणन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • मानव पूँजी: अपनी क्षमता के बावजूद, FPO को अपर्याप्त कार्यशील पूँजी, व्यावसायिक कौशल वाले मानव संसाधनों की कमी और विनियामक अनुपालन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • ऋण उपलब्धता: किसानों की कम संपार्श्विक शक्ति के कारण बैंक FPO को ऋण देने में संदेह करते हैं।
  • खरपतवारनाशकों को बढ़ावा देना: ग्लाइफोसेट जैसे खरपतवारनाशी चिंता का एक गंभीर कारण है, क्योंकि POCRA ने ‘जीरो टिलेज’ जैसी प्रथाओं को आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया है।

दृष्टिकोण जिसे अपनाने की आवश्यकता है

  • जैविक और प्राकृतिक खेती पर अधिक ध्यान: इन्हें जलवायु अनुकूलन के लिए समग्र दृष्टिकोण माना जाता है।
    • ये विधियाँ मिट्टी, जल, ऊर्जा, जैव विविधता, कार्बन पृथक्करण, शमन और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन से संबंधित स्वास्थ्य और पर्यावरण सेवाओं सहित सभी लागतों एवं लाभों पर विचार करके अधिक उत्पादक और लाभदायक हैं।
    • यह जल धारण क्षमता को बढ़ाता है और फसलों की जड़ों को गहराई तक जाने और अधिक पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने की अनुमति देता है।

  • समावेशी बीमा योजना: फसल बीमा, किसानों के बीच लोकप्रिय हो सकता है, यदि बीमा इकाई गाँव स्तर के बजाय किसान स्तर पर बनाई जाए और किसान सभी उपलब्ध बीमा कंपनियों में से चुनने में सक्षम हों। इससे कंपनियों के बीच प्रतिेस्पर्द्धा बढ़ेगी।
    • भारत में किसानों की संख्या के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) है। PMFBY को पाँच सार्वजनिक क्षेत्र और 15 निजी बीमा कंपनियों द्वारा लागू किया जाता है।
    • इस कार्यक्रम द्वारा प्रदत्त बीमा लाभों का लाभ उठाने के लिए किसानों को एक्चुरियल प्रीमियम का एक छोटा-सा हिस्सा जमा करना होगा।
      • योगदान की दरें फसलों के प्रकार के आधार पर भिन्न होती हैं: खरीफ फसलों के लिए (2%), रबी फसलों के लिए (1.5%), वाणिज्यिक फसलों के लिए (5%), और बागवानी फसलों के लिए (5%)।
      • हालाँकि, एक्चुरियल प्रीमियम का बड़ा हिस्सा, जो 95% से 98.5% तक होता है, राज्य और केंद्र सरकार दोनों द्वारा संयुक्त रूप से वहन किया जाता है तथा लागत 1:1 के अनुपात में समान रूप से साझा की जाती है।
  • विश्वसनीय पूर्वानुमान: किसानों को विश्वसनीय मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि-सलाह की आवश्यकता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, कृषि-सलाह अनुमानित 27 मिलियन किसानों तक पहुँचती है, जो 146.45 मिलियन कृषक परिवारों का केवल 18% है
    • ब्लॉक और यहाँ तक ​​कि पंचायत के भीतर भी मौसम में काफी बदलाव होता है। इसलिए किसानों को पंचायत स्तर पर पूर्वानुमान उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • तर्कसंगत अपनाना: यदि उपभोक्ता विविध खाद्य पदार्थों के बारे में जागरूक हो जाएँ, जो न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं बल्कि पर्यावरण और जलवायु के लिए भी लाभकारी हैं, तो जलवायु के अनुकूल भोजन की माँग बढ़ेगी।
  • अधिक बेहतर शासन: सतत् कृषि किसानों और खेती दोनों की लचीलापन बढ़ाती है, जबकि FPO उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन हो सकता है।
    • भारत के कृषि क्षेत्र में FPO की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जिसमें छोटे और सीमांत किसानों का प्रभुत्व है।
    • NICRA: 15वीं उच्च स्तरीय निगरानी समिति की बैठक में, अधिकारियों ने अनुसंधान को प्राथमिकता देने, जलवायु-लचीली प्रौद्योगिकियों को उन्नत करने और विभिन्न प्रौद्योगिकियों के कारण गाँवों की लचीलापन क्षमता का आकलन करने के लिए एक पद्धति विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • बाजार संपर्क: FPO के अलावा, सरकार जैविक किसानों को बाजारों से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। कर्नाटक, ओडिशा और उत्तराखंड जैसे राज्य पहले से ही जैविक उत्पाद खरीदते हैं और इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली और एकीकृत बाल विकास योजना से जोड़ते हैं।
    • सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): यह सुनिश्चित करना वांछनीय है कि किसानों को उनकी उपज के लिए सुनिश्चित मूल्य मिले।
      • वर्तमान MSP प्रणाली, जो मुख्य रूप से गेहूँ और चावल का समर्थन करती है, एकल कृषि को बढ़ावा देती है, जल संसाधनों पर दबाव डालती है और फसल विविधता को कम करती है, जिसका प्रभाव किसानों की लचीलापन पर पड़ता है।
    • सक्रिय कदम: कुछ राज्यों ने पहले ही सक्रिय कदम उठाए हैं जैसे
      • हरियाणा की ‘मेरा जल मेरी विरासत’ योजना फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करती है और इसमें MSP के तहत विविध उपज की खरीद का प्रावधान है।
      • ओडिशा का मिलेट मिशन (Millet Mission) जिसका उद्देश्य पोषण सुरक्षा और सतत् कृषि है, प्रोत्साहन और खरीद गारंटी के साथ बाजरा की खेती को बढ़ावा देता है।
      • कर्नाटक का रैथा सिरी (Raitha Siri) जैविक खेती पर जोर देते हुए प्रोत्साहन और खरीद समर्थन के माध्यम से बाजरा, दालों और तिलहन को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि अनियमित मानसून, जलवायु परिवर्तन, फसल रोग ने तीन वर्षों में खाद्य मुद्रास्फीति को दोगुना कर दिया है। इसलिए कृषि पर जलवायु प्रभाव के अनुकूल होना किसानों की आजीविका के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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